भगवान का दर्द
व्यर्थ खोज रहे हो मुझको गलियो में चौबारों में| मंदिर में मस्जिद मे अब नहीं रहा गुरुद्वारों में| व्यर्थ खोज .............................. मुझे नहीं पता था कलयुग मेरा ऐसे खेल दिखाएगा| जर जोरू जमीन की खातिर मनुज मनुज को खाएगा| घट-घट का वासी हृद का वासी| छोड़ चला अब करबत काशी| माला-फूल लेकर क्यो लंबे खड़े कतारों में| व्यर्थ खोज .............................. जिस हृद में मै था पहले अब कुटिल भावना करे निवास| सोच रहा हूँ अब कहाँ हो मेरा कोई नवीन आवास| धन-यश दानी जीवनदानी| बात ये मुझसे हुई पुरानी| मै भी विवश हुआ रे मानव रहने को अंधकारों में| व्यर्थ खोज .............................. मानव कहना श्रेष्ठ कहाँ अब तुलना है शैतानों से| अघम निरंकुश कपटी दुष्ट अनंत शुशोभित तानों से| कह रहा आज विकृत समाज| खत्म हो अब शैतनराज| सावधान अब प्रलय आ रहा होगी धरा जलधारों में| व्यर्थ खोज .............................. |
Re: भगवान का दर्द
बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं दोस्त ...:bravo:
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Re: भगवान का दर्द
आपकी सभी रचनाएं बहुत अच्छी हैं सचेन्द्र जी. यूँ ही लिखते रहे. :cheers:
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