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rajnish manga 19-09-2013 08:48 PM

कहानी/ क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
 
क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
साभार/ कहानीकार: हेमंत जोशी (अंतरजाल से)


असीम राय निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन में मदन मोहन शर्मा का बेताबी से इंतज़ार कर रहा था। रात के दस बज कर दस मिनट हो चुके थे और इंदौर एक्सप्रेस निकलनेमें अब कोई पाँच मिनिट बचे थे। अचानक सीढ़ियों से भागते हुएउतरता मदन उसके पास आ पहुँचा। वह हाँफ रहा था लेकिन सिगरेट तबभी हाथ में थी।
एई दादा, अपना डिब्बा किधर है?

यही सामने वाला है। यह भी कोई समय है आने का? असीम गुस्से मेंभी था और आश्वस्त भी हो चुका था।सामान रखते-रखते गाड़ी चल पड़ी थी। दोनो सहकर्मी अपनी-अपनीबर्थ पर चादर बिछा कर बैठ चुके थे। असीम अपनी उत्सुकता कोज़्यादा देर तक रोक नहीं पाया। एई बताओ मदन कि झाबुआ जैसीपिछड़ी जगह जाने के लिए तुम उतना ज़ोर क्यों लगाया?
उधर हमारा दूसरा बीबी रहता।

ओरी बाबा! तुम तो छुपा रुस्तम रे। आज तक किसी को बताया नहीं।
मौका ही नहीं लगा यार। अभी दो सुट्टे लगा कर आता हूँ।
जब मदन सिगरेट पीकर, फ़ारिग होकर लौटा तो असीम महाराज ढेर होचुके थे। इसे भी जल्दी सोने की बीमारी है मदन ने सोचा। मदनबर्थ पर लेटकर अडोर्नो की कल्चरल प्रोडक्शन्स पढ़ने लगा। पर आजभी भारत में पढ़ने का वह शौक कहाँ।

भाई साहब! रात काफी हो चुकी है बत्ती बंद कर दें तो बेहतरहोगा। ऊपर की बर्थ से आवाज़ आई।
मदन का मन तो कर रहा था कि वह कहे कि अभी उसे और पढ़ना हैलेकिन सोचा हर कदम पर बहसबाजी से क्या मिलेगा। बत्ती तो बंद होगई पर उसे नींद कहाँ आती थी इतनी जल्दी। लेटे-लेटे वह झाबुआमें बीते अपने बचपन के दिनों के बारे में सोचने लगा।

rajnish manga 19-09-2013 08:51 PM

Re: कहानी/ क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
 
1964 बात है। शाजापुर से पिताजी का जब तबादला हुआ तो सब लोगरेल से मेघनगर पहुँचे। दिल्ली से आने वाली राजधानी एक्सप्रेससुबह क़रीब साढ़े चार बजे वहाँ पहुँचती थी। छोटा सा सुनसान औरअँधेरे से भरा स्टेशन था। महाविद्यालय के कुछ शिक्षक और बाबूलोग स्वागत के लिए आए थे। बस सुबह सात बजे मिलती थी सो वहींडाक बँगले में विश्राम करने का प्रबंध किया गया था। पर नींदकिसे आनी थी। माँ पलंग पर लधर गईं और बाहर के बरामदे मेंपिताजी और हम अपनी नई दुनिया से वाकिफ़ होने में जुट गए।

अभी पिछले प्राचार्यजी ने तो मकान खाली किया नहीं है इसलिएआपके रहने का प्रबंध सर्किट हाउस में कर दिया है। वैसे भी इधरकम लोग आते हैं इसलिए जब तक आपके मकान में पुताई आदि होती हैआप वहीं रहेंगे। कालेज के भौतिकी के प्रोफेसर ने कहा।

बहुत पिछड़ा इलाक़ा है साहब, हेड बाबू ने जैसे चेतावनी देतेहुए कहा। बात-बेबात पर हत्या हो जाना तो यहाँ आम बात है। आजकलभी यह लोग तीर-धनुष रखते हैं। हेड बाबू भी शायद किसी शहर सेतबादले पर ही आए थे ऐसा मदन को उनकी बातों से लगा।

तब तक माँ को भी उत्सुकता हो आई थी सो वह भी बाहर आ गई थीं।हेड बाबू ने उनके मतलब की बात बताते हुए कहा माताजी आप तो बहुतखुश होंगी यहाँ क्योंकि सब्ज़ी बहुत सस्ती है। पावली मतलबचवन्नी में पूरी टोकरी साग-सब्ज़ी दे जाते है यह लोग। आप तोजानती ही होंगी इन लोगों को भील कहते हैं, एक आदिवासी जनजातिहै। बहुत सीधे-सादे और भोले लोग हैं यह। बस गुस्सा आ जाए तबखतरनाक हो जाते हैं।


rajnish manga 19-09-2013 08:53 PM

Re: कहानी/ क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
 
सुबह होते ही सब लोग बस से झाबुआ के लिए निकले। काफी सूखीज़मीन लेकिन बीच-बीच में मकई के हरे-भरे खेत दिखाई पड़ते थे।बस अड्डे से उतर कर सीधे वह लोग झाबुआ के सर्किट हाउस पहुँचे।मदन और उसका बड़ा भाई दोनों खुशी से नाच उठे। जैसे कहीं स्वर्गमें आ गए हों। अंग्रेज़ों का बनवाया हुआ शानदार भवन जिसके पासही एक सुन्दर सा तालाब था। चारों तरफ आम के बड़े-बड़े पेड़जिनमें हरी-हरी केरियाँ लटक रही थीं। जून का महीना था मदन कोयाद आया।

सोचते-सोचते पता ही नहीं चला कब मदन को नींद आ गई। सुबह साढ़ेसात बजे असीम बाबू की आवाज़ से नींद टूटी।


दूसरी पत्नी के सपने देख रहे हो क्या?

हूँ.. नहीं.. हाँ... कहाँ पहुँच गए दादा?


नागदा आने वाला है। तुम तो इधर बहुत रहा है ना नाश्ते में इधरका कोई खास चीज़ खिलाओ ..
ज़रूर बाबू मोशाय, यहाँ तो लोग नाश्ते में पोहा-सेंव खाता है, आपनि खाबेन ...


इंदौर पहुँचने पर दोनों ने नहा धोकर तीन दिन के लिए टेक्सी तयकी और झाबुआ के लिए निकल पड़े। असीम बाबू सेन्सुई का नयास्टीरियो प्लेयर कान में लगा कर संगीत सुनते हुए इधर-उधर कानज़ारा देखने लगे और मदन को एक बार फिर आडोर्नो का लेख पढ़नेका मौका मिल गया।

बीच सफ़र में जब दोनों अपने मनपसंद कामों से कुछ ऊब से गए तोअसीम बाबू ने सन्नाटा तोड़ते हुए कहा यार कुछ बताओ ना झाबुआ केबारे में... अपनी दूसरी बीबी के बारे में...

मदन को एक बार फिर अतीत में जाने का मौका मिल गया। बहुत मज़ाथा झाबुआ में। बड़ा सा मकान और अनेक नौकर-चाकर मंगलू, वीरू, आदि। सरकारी स्कूल में दाखिला हुआ जिसमें सरकारी अफ़सरों केबच्चे भीलों के बच्चों के साथ पढ़ते थे। कहाँ पढ़े-लिखों कीतीसरी-चौथी पीढ़ी और कहाँ किताबों की शक्ल पहली बार देखतीपीढ़ी। असीम बाबू, जिस दिन मास्टरजी ने मेरे भील सहपाठी सेजवाब न मिल पाने पर मुझसे उसके कान पर कंकड़ रख कर मसलने कोकहा उस दिन मेरा मन दिन भर ग्लानि से भरा रहा।


rajnish manga 19-09-2013 08:56 PM

Re: कहानी/ क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
 
पंद्रह अगस्त आया और जब प्रभात फेरी से घर लौट रहा था तो एकबनिए की दुकान पर यों ही रुक गया। मुझे भीलों के रंग-बिरंगेकपड़े बहुत अच्छे लगते थे। देखा क्या असीम, बनिया तराजू के एकपलड़े पर भील का लाया हुआ घी रख कर दूसरी तरफ दाल और नमक तोलरहा है। तब तो पता नहीं था पर बाद में जाना कि इसे बार्टरव्यवस्था कहते हैं।

तुम सच बोलता है क्या? हमको विश्वास नहीं होता।

-अरे गज़ब की दुनिया थी वह- उत्साहित हो कर मदन कहने लगा। स्कूलसे घर जाते समय रास्ते में जंगल भी पड़ता था। कई बार उसके भीतरसे भी आते थे। सुबह अनास नदी का पुल पार करते हुए दौड़ने जातेथे चार-पाँच मील दूर... दूर-दूर तक पेड़ों पर टेसू के फूल लालया फिर भगुआ रंग के। देख कर ही पता चल जाता था कि होली आनेवाली है। लौटते समय पेड़ों के नीचे गिरे ताजे-ताजे फूल बटोर करले आते थे...

खटाक!

ड्राइवर के सामने शीशे पर एक पत्थर आकर लगा।

क्या था? असीम बाबू ने पूछा।


वह देखो उस भील ने गोफन से कार का निशाना लगाया था। वह तो शुकरकरो कि दारू पिए हुए है, नहीं तो इनका वार चूकता नहीं। असीमभाई इसका मतलब है कि झाबुआ आने वाला है और आपके स्वागत मेंहवाई फायर होने लगे हैं।

जैसे ही कार ढलान पर आई तो मदन चिल्ला कर बोला देखो असीम भाईवह रही अनास नदी!!
वो कोई नदी है? ऊ तो नाला माफिक दिखता है।

वाकई असीम सही कह रहा था। पर इसमें तो बहुत पानी होता था? मदनने ड्राइवर से पूछा।
अब कहाँ साब, अब तो वो देखो कृषि विभाग वालों ने ऐसे कई चैकडैम बना दिए हैं।

मदन ने देखा कि विकास के इतने नारों के बाद भी बहुत कुछ वैसाही है इस शहर में।

rajnish manga 19-09-2013 08:57 PM

Re: कहानी/ क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
 
शहर के कलेक्टर से मिलकर कल होने वाले उद्घाटन के बारे मेंबातचीत की। उन्होंने मीनाक्षी होटल में हमारे ठहरने के प्रबंधके बारे में बताते हुए हमें सलाह दी कि हम पाँच साल पहले खुलेपोलिटेक्निक को जा कर देख ज़रूर लें। कुछ देर होटल में आरामकरने के बाद मदन ने कहा यहाँ बैठे-बैठे भी क्या करेंगे असीमबाबू। चलो वह पोलिटेक्निक ही देख आएँ।

ठीक ही है, चलो। असीम ने कहा।

पोलिटेक्निक अनास नदी के पास ही था। मदन ने ड्राइवर से कहाज़रा पुल के पास गाड़ी रोक दो। गाड़ी से उतर कर मदन और असीम उसजगह पहुँचे जहाँ बचपन में मदन तैरा करता था। अब वहाँ तैरनेलायक तो दूर मुँह धोने भर का पानी भी नहीं था।

मायूस मदन गाड़ी की ओर लौट गया। पोलिटेक्निक के प्रिंसिपल नेबताया कि इस संस्था को बनाने के लिए भारत सरकार ने सात करोड़रुपए का अनुदान दिया है। फिर वह मदन और असीम को उन कार्यशालाओंमें ले गए जहाँ एकदम नई लेथ मशीनें जंग खा रही थीं। बड़े-बड़ेहाल लेकिन एक परिंदा तक वहाँ नहीं था।

साब, चाय नाश्ता लगा दिया है। वहाँ के चपरासी ने प्रिंसिपलसाहब को सूचना दी।

चलिए, जलपान ग्रहण कीजिए। प्रिंसिपल ने असीम और मदन से कहा।


rajnish manga 19-09-2013 08:59 PM

Re: कहानी/ क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
 
जहाँ अग्रवाल साहब बैठे थे उसके पीछे एक ओर लकड़ी के बोर्ड परउनसे पहले यहाँ काम कर चुके प्रिसिपलों के नाम दर्ज थे।मानवेंद्र शर्मा, रघुराज सिंह, रजनीश माथुर, प्रीतम सिंह, डी.एन.गुप्ता और फिर भोलानाथ अग्रवाल। दूसरी ओर आरंभ से अब तकपरीक्षा में सर्वोच्च स्थान पाए छात्रों के नाम थे मनोहर लालगुप्ता, कुंवर पाल सिंह, ओम शुक्ला, राधवेन्द्र सिंह, प्रमोदश्रीवास्तव और मनोज मिश्रा। प्रिंसिपल ने बताया कि पिछले सालसे अनुदान न मिल पाने की वजह से शैक्षिक सत्र बंद हो गया है परपहले जिन बच्चों को इंदौर के पोलिटेक्निक में प्रवेश नहीं मिलपाता था वही शहरी बच्चे यहाँ से डिप्लोमा करने आ जाते थे।

चाय पीकर प्रिंसिपल से विदा लेकर दोनों लौट आए और होटल मेंथोड़ा सा आराम किया। रात को मेघनगर जो जाना था चेयरमैन साहब कोलेने जो उसी राजधानी से आ रहे थे जिससे करीब तीस साल पहले मदनअपने परिवार वालों के साथ यहाँ उतरा था। शाम सात बजे जब असीमऔर मदन महाराजपुर के लिए रवाना हुए तो मदन की यादों का सिलसिलाआगे बढ़ा।

असीम दा! तुम्हें एक दिन का किस्सा सुनाता हूँ। मदन ने कथाआरंभ की।

हमारे घर के सामने एक बड़ा सा ढलान था। कालोनी के सभी बच्चेवहीं सायकिल चलाना सीखते थे। आरंभ में कैंची सायकिल, फिर सीटपर बैठ कर। बड़े भाई की खूब डाँट खा कर उस दिन मैंने पहली बारकैंची सायकिल चलाई थी और मैं ढलान के आखिरी छोर से लौट रहा था।

अचानक मुझे लगा कि मैं सपना देख रहा हूँ। मेरे सामने से जो भीलआ रहा था उसके पीछे-पीछे कालोनी के कई बच्चे चल रहे थे, हक-बकऔर बदहवास। पास जाने पर पता चला कि एक तीर उसके पेट को चीर करआधे से ज़्यादा पीछे की ओर निकल आया है। वह बहादुर भील बेहोश होकर गिरने के बजाय पाँच-छह मील से पेट की तरफ से तीर को पकड़ेचला आ रहा था। मेरे पूछने पर कि वह कहाँ जा रहा है उसने बतायाकि वह अस्पताल जाएगा जहाँ डाक्टर फाल की तरफ से तीर को काट करउसे पेट से निकालेगा और पट्टी कर देगा।


rajnish manga 19-09-2013 09:02 PM

Re: कहानी/ क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
 
वही सुबह के साढ़े चार बजे मदन, असीम और एस.डी.एम. अंसारीमेघनगर स्टेशन पर राजधानी के आने का इंतज़ार कर रहे थे। गाड़ीआयी और वहाँ रुकी। पूरी ट्रेन से केवल एक यात्री फर्स्ट एसी केडिब्बे से निकला। कोई और नहीं बल्कि हमारे कार्यालय के एम.डी.श्रीधरन साहब। अंसारी ने कहा साहब, आप थक कर आये होंगे यहींडाक बँगले में थोड़ा आराम कर लीजिए फिर सुबह सात-आठ बजे तकनिकल चलेंगे। पर एम.डी साहब को लगा कि विश्राम घर से ठीक तोझाबुआ के सर्किट हाऊस में जाना ही उनकी शान के मुताबिक होगा।अंसारी ने अदब से कहा साहब रात में जाना ठीक नहीं है इस इलाकेमें।

अच्छी बात है, चलिए।

डाक बँगले में तीस साल पहले की तरह चाय-पानी का कोई इंतज़ामनहीं था। एस.डी.एम अंसारी बहुत ही सरल स्वभाव के इन्सान थेलेकिन उनके ओहदे का जादू था कि तुरंत ही सिपाही कुछ अच्छे वालेबिस्कुट और दूध की स्पेशल चाय बनवा कर ले आया।

श्रीधरन साहब ने पूछा यह भील लोग कैसे होते हैं। अंसारी ने कहासाहब बहुत भले लोग होते हैं पर पता नहीं कब क्या कर बैठें।इनका एक त्यौहार होता है भगोड़िया जिसमें इनके जवानलड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे को पसंद करते हैं और भाग कर आपस मेंशादी मना लेते हैं। अभी पिछले साल इसी त्यौहार में एक भीलताड़ी पीकर एक इमारत की सीढ़ी पर बैठा था। मैं जब अपनी जीप परवहाँ से गुजरा और उससे मिला तो वह बहुत खुश था। अभी मैं घर तकही पहुँचा था कि वायरलेस पर संदेश मिला कि हमारे एस.आई. को एकभील ने गंडासे से मार दिया है। तुरंत लौटा तो देखता हूँ कि वहीभील वहाँ बैठा है। पुलिसवालों ने बताया कि इसी ने इंसपेक्टर कीहत्या की है। उससे पूछा तो बोला हाँ साब, हमने इसे मारा। मैंनेपूछा क्यों मारा तुमने इसे, तो कहने लगा यों ही। पुलिसवालों नेबताया कि एस.आई. ने इसे डाँटते हुए पूछा था यहाँ क्या कर रहेहो तो इसे गुस्सा आ गया।


rajnish manga 19-09-2013 09:03 PM

Re: कहानी/ क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
 
इनकी मज़ेदार बात यह है कि यह जुर्म करने के बाद भागते नहींहैं और इन्हें जेल भेज दो तो भी अपने बचाव में वकील करनाआवश्यक नहीं समझते।

सुबह होने तक ढेर सी बातें हुईं और फिर गाड़ियों का काफिलाझाबुआ की ओर चल पड़ा। उसी दिन दोपहर को हैलीकॉप्टर से दिल्लीसे हमारे मंत्री, यहाँ के मुख्यमंत्री, झाबुआ के संसद सदस्यअलीराजपुर जाने वाले रास्ते के एक ऊबड़-खाबड़ मैदान के पासउतरे। हमारे कार्यालय की नई शाखा की आधारशिला रखी गई। भाषण हुआऔर लोहे की चिड़िया फिर आकाश में गुम हो गई। उन्हीं लोगों केसाथ हमारे एम.डी भी उड़ चले।

मदन और असीम लौटकर इंदौर आए और रात की इंदौर एक्सप्रेस सेदिल्ली के लिए निकल पड़े। असीम की उत्सुकता अभी खत्म नहीं हुईथी, उसने फिर दूसरी बीबी का प्रसंग छेड़ दिया।
मदन ने मन ही मन सोचा कि लोग अपनी पसंद की बातों को तुरंत सहीक्यों मान लेते हैं।

उस दिन जब मदन को झाबुआ में कार्यालय की शाखा खुलने की बात पताचली तो वह खुशी से उछल पड़ा। वैसे तो वह हमेशा एम.डी. से मिलनेसे कतराता था लेकिन उस दिन वह स्वयं उनसे समय लेकर उनके कमरेमें जा पहुँचा।

rajnish manga 19-09-2013 09:42 PM

Re: कहानी/ क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
 
सर, झाबुआ किसे भेज रहे हैं?


भई दो लोगों को जाना पड़ेगा फिर अगले दिन मैं भी जाऊँगा।क्यों?


सर अगर आपने नाम तय न किए हों तो मैं भी जाना चाहूँगा।


वहाँ तो कोई जाना ही नहीं चाहता, डी.ए. कम मिलता है न वहाँ का!पर तुम्हें क्या दिलचस्पी है?

सर! बचपन में वहाँ रहा था। वहाँ एक नदी है अनास जिसमें नहायाकरता था..उसे देखने का मन करता है।

ठीकहै तुम चले जाओ असीम राय के साथ।

मुस्कुराते हुए मदन ने असीम की ओर देखा। यह असीम बाबू भी खूबहैं। मैने कहा कि यहाँ मेरी दूसरी पत्नी रहती है तो मान गए। एकमैं हूँ जो झाबुआ से लौटते हुए इसलिए उदास हूँ कि अनास नदी सूखगई है और रंग-बिरंगे प्रिंट वाले कपड़े पहने मोटर साइकिल परघूमते सीधे-सादे भील आज भी प्रकृति के इतने नज़दीक हैं किउन्हें इस शोख नदी के मर जाने का शायद अहसास ही नहीं है।
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rajnish manga 28-09-2013 09:37 PM

Re: कहानी/ क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
 
मित्रो, आज दस दिन हो गये इस कहानी को अपलोड किये हुये. मैं आपको बताना चाहता हूँ कि आज से पहले मैंने इन्टरनेट के सौजन्य से प्राप्त होने वाली इस कहानी के आरंभिक अंश ही पढ़े थे. क्षमा चाहता हूँ कि पूरी कहानी आज ही पढ़ पाया हूँ और मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है यह कहानी मेरी अब तक की पढ़ी हुई मेरी पसंदीदा कहानियों से किसी मायने में कम नहीं है और अपनी सादगी के कारण मेरे दिल के बहुत करीब है. कुछ ही शब्दों में झाबुआ के प्रकृति-प्रेमी मूल भील निवासियों का ईमानदारी से किया गया वर्णन अद्वितीय है. लेखक के प्रति मैं नतमस्तक हूँ.


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