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jai_bhardwaj 21-01-2013 06:24 PM

Re: प्रेरक प्रसंग
 
एक बार अमरीकी राष्ट्रपति लिंकन को एक आवेदन पत्र मिला जिसमे एक लडकी ने अपनी शैक्षिक विवरण लिखते हुए उसने अंत में एक पंक्ति और जोड़ी थी,"महोदय, आपके दफ्तर के लिए जिस पद के लिए एक महिला की आवश्यकता है उसके लिए मुझसे बेहतर कोई भी आवेदक नहीं होगी। हाँ, मैं दफ्तर के सभी कार्यों को सुरुचिपूर्ण ढंग से संपन्न करने के साथ साथ वह सब कार्य भी करने के लिए सुलभ हूँ जिसकी आपको जब कभी आवश्यकता पड़े तो।" लिंकन ने मुस्कुराते हुए यह आवेदन पत्र अपनी पत्नी की तरफ बढ़ा दिया। पत्र पढ़ कर लिंकन की पत्नी ने उत्तर लिखा, "प्रिय महोदया, आपका आवेदन मिला। आप निश्चित ही अत्यंत योग्य महिला है। किन्तु जिस पद के आवेदन प्रतीक्षित था वह पद कल ही भरा जा चुका है। और हाँ, वो सब कार्य करने के लिए मैं सदैव लिंकन महोदय के पास पहले से ही हूँ। धन्यवाद।"

aksh 21-01-2013 06:54 PM

Re: प्रेरक प्रसंग
 
Quote:

Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 214296)
प्रेरणा से ओतप्रोत प्रसंग हैं मित्र।

शुक्रिया बडे भैया...!! :hug::hug:

bindujain 15-02-2013 04:25 AM

Re: प्रेरक प्रसंग
 
बात उस समय की है जब जवाहरलाल नेहरू किशोर अवस्था के थे। पिता मोतीलाल नेहरू उन दिनों अंग्रेजों से भारत को आज़ाद कराने की मुहिम में शामिल थे। इसका असर बालक जवाहर पर भी पड़ा। मोतीलाल ने पिंजरे में तोता पाल रखा था। एक दिन जवाहर ने तोते को पिंजरे से आज़ाद कर दिया। मोतीलाल को तोता बहुत प्रिय था। उसकी देखभाल एक नौकर करता था। नौकर ने यह बात मोतीलाल को बता दी। मोतीलाल ने जवाहर से पूछा, 'तुमने तोता क्यों उड़ा दिया। जवाहर ने कहा, 'पिताजी पूरे देश की जनता आज़ादी चाह रही है। तोता भी आज़ादी चाह रहा था, सो मैंने उसे आज़ाद कर दिया।' मोतीलाल जवाहर का मुंह देखते रह गये।

jai_bhardwaj 19-02-2013 10:28 PM

Re: प्रेरक प्रसंग
 
एक समय की बात है कि एक राज्य में चन्द्र नामक एक राजा राज करता था.. उसकी पशुशाला में अनेक पशु थे, जिनमें हाथी,घोड़े,ऊंट,गाय,बंदर,भेड़ आदि थे... पशुशाला के भेड़ों में एक भेड़ बहुत लालची थी.. वो रोज रसोई में घुसकर खाना खा लिया करती थी.. रसोई घर के भंडारी उससे बहुत परेशान रहा करते थे.. और कई बार उनके हाथ में जो कुछ भी रहता उसी से मारते भी थे, लेकिन भेड़ अपनी आदत से बाज नहीं आती थी.. इस कलह को देखकर बंदरों के मुखिया को बहुत चिंता हुई.. वह नीति-शास्त्र का महान ज्ञाता था.. और इसके परिणाम से अवगत था.. एक दिन उसने सभी वानरों को एकांत में ले जाकर उन्हें समझाते हुए कहा कि जिस घर में प्रतिदिन कलह होता है, उस घर को तत्काल छोड़ देना चाहिए... वहां रहना ठीक नहीं होता.. तब वानरों ने पूछा कि हे कपि श्रेष्ठ! हमारा तो किसी से कलह नहीं है, फिर भेड़ और भंडारियों की कलह से हमें क्या मतलब? और उससे हमारा विनाश का क्या प्रयोजन?

तब उनके मुखिया ने बताया कि ये भंडारी लोग यदि किसी दिन क्रोध में आकर चुल्हे की जलती लकड़ी से भेड़ को मार दिया तो उसके शरीर के बालों में आग लग जाएगी... जिसे बुझाने के लिए भेंड़ घुड़साल में घुसकर लोटने लगेगी... तब अस्तबल में भी आग लग जाएगी और राजा के प्रिय घोड़े आग के शिकार हो जाएंगे.. उसके बाद घोड़ों के उपचार के लिए राजा किसी अश्व चिकित्सक को बुलाकर उपचार पूछेगा... इतना कहकर कपि श्रेष्ठ चुप हो गए... फिर वानरों ने पूछा कपिवर! इन बातों में तो हमारा कोई अनिष्ट नहीं है... फिर आप चिंतित क्यों है? मुखिया बोला- आचार्य शालि होत्र द्वारा रचित अश्व चिकित्सा ग्रंथ में लिखा गया है कि जले हुए घोड़ों का इलाज वानर की चर्बी से किया जाता है.. ऐसा करने से घोड़ा तुरंत ठीक हो जाता है.. अतः इलाज के लिए राजा हम सबको मरवा देगा.. क्योंकि घोड़े राजा को बहुत प्रिय हैं.. तब अपने मुखिया द्वारा इस तरह की बात सुनकर सभी वानर हंसते हुए बोले कि- वृद्धावस्था के कारण आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है.. जो केवल कल्पना के आधार पर अनिष्ट की रचना कर रहे हैं... मुखिया के लाख समझाने पर भी वानर नहीं माने तब मुखिया वहां से चला गया...

और एक दिन हुआ वही जिस बात की मुखिया को डर थी- जलती लकड़ी भंडारी ने भेड़ को मारी... उसके बालों में आग लग गई, वो आग बुझाने अस्तबल में भागी.. अस्तबल भी आग की चपेट में आ गया.. घोड़े भी जलकर मरने लगे... किसी तरह आग पर काबू पाई गई.. उसके बाद राजा ने बैद्यराज को बुलाया, और घोड़े को बचाने का उपचार पूछा.. तब बैद्यराज ने कहा जले हुए घोड़ों को बचाने के लिए वानरों की चर्बी चाहिए.. राजा ने तुरंत सब वानरों को मारने का आदेश दे दिया और घोड़ों का उपचार शुरु कर दिया.. इस प्रकार कलहपूर्ण स्थान पर रहने के कारण बंदरों का विनाश हो गया... अतः मनुष्य को चाहिए की वो ऐसे स्थान पर रहें जहां शांति हो...

aspundir 21-02-2013 09:54 PM

Re: प्रेरक प्रसंग
 
विद्यालय में सब उसे मंदबुद्धि कहते थे । उसके गुरुजन भी उससे नाराज रहते थे क्योंकि वह पढने में बहुत कमजोर था और उसकी बुद्धि का स्तर औसत से भी कम था।
कक्षा में उसका प्रदर्शन हमेशा ही खराब रहता था । और बच्चे उसका मजाक उड़ाने से कभी नहीं चूकते थे । पढने जाना तो मानो एक सजा के समान हो गया था , वह जैसे ही कक्षा में घुसता और बच्चे उस पर हंसने लगते , कोई उसे महामूर्ख तो कोई उसे बैलों का राजा कहता , यहाँ तक की कुछ अध्यापक भी उसका मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते । इन सबसे परेशान होकर उसने स्कूल जाना ही छोड़ दिया ।
अब वह दिन भर इधर-उधर भटकता और अपना समय बर्वाद करता । एक दिन इसी तरह कहीं से जा रहा था , घूमते – घूमते उसे प्यास लग गयी । वह इधर-उधर पानी खोजने लगा। अंत में उसे एक कुआं दिखाई दिया। वह वहां गया और कुएं से पानी खींच कर अपनी प्यास बुझाई। अब वह काफी थक चुका था, इसलिए पानी पीने के बाद वहीं बैठ गया। तभी उसकी नज़र पत्थर पर पड़े उस निशान पर गई जिस पर बार-बार कुएं से पानी खींचने की वजह से रस्सी का निशाँ बन गया था । वह मन ही मन सोचने लगा कि जब बार-बार पानी खींचने से इतने कठोर पत्थर पर भी रस्सी का निशान पड़ सकता है तो लगातार मेहनत करने से मुझे भी विद्या आ सकती है। उसने यह बात मन में बैठा ली और फिर से विद्यालय जाना शुरू कर दिया। कुछ दिन तक लोग उसी तरह उसका मजाक उड़ाते रहे पर धीरे-धीरे उसकी लगन देखकर अध्यापकों ने भी उसे सहयोग करना शुरू कर दिया । उसने मन लगाकर अथक परिश्रम किया। कुछ सालों बाद यही विद्यार्थी प्रकांड विद्वान वरदराज के रूप में विख्यात हुआ, जिसने संस्कृत में मुग्धबोध और लघुसिद्धांत कौमुदी जैसे ग्रंथों की रचना की। “
आशय यह है कि हम अपनी किसी भी कमजोरी पर जीत हांसिल कर सकते हैं , बस ज़रुरत है कठिन परिश्रम और धैर्य के साथ अपने लक्ष्य के प्रति स्वयं को समर्पित करने की।

aspundir 21-02-2013 09:56 PM

Re: प्रेरक प्रसंग
 
एक मकड़ी थी. उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उसे आहार बनाउंगी और मजे से रहूंगी . उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और वहाँ जाला बुनना शुरू किया. कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर तैयार हो गया. यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे देखकर हँस रही थी.
मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली , ” हँस क्यो रही हो?”
”हँसू नही तो क्या करू.” , बिल्ली ने जवाब दिया , ” यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है, यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे.”
ये बात मकड़ी के गले उतर गई. उसने अच्छी सलाह के लिये बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर दूसरी जगह तलाश करने लगी. उसने ईधर ऊधर देखा. उसे एक खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ देर तक वह जाला बुनती रही , तभी एक चिड़िया आयी और मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली , ” अरे मकड़ी , तू भी कितनी बेवकूफ है.”
“क्यो ?”, मकड़ी ने पूछा.
चिड़िया उसे समझाने लगी , ” अरे यहां तो खिड़की से तेज हवा आती है. यहा तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी.”
मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगीँ और वह वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब कहाँ जाला बनायाँ जाये. समय काफी बीत चूका था और अब उसे भूख भी लगने लगी थी .अब उसे एक आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे अपना जाला बुनना शुरू किया. कुछ जाला बुना ही था तभी उसे एक काक्रोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख रहा था.
मकड़ी ने पूछा – ‘इस तरह क्यो देख रहे हो?’
काक्रोच बोला-,” अरे यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये तो बेकार की आलमारी है. अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी. यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा .
बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी. भूख की वजह से वह परेशान थी. उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता. पर अब वह कुछ नहीं कर सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही.
जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया .
चींटी बोली, ” मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी , तुम बार- बार अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देती . और जो लोग ऐसा करते हैं , उनकी यही हालत होती है.” और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही.
दोस्तों , हमारी ज़िन्दगी मे भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है. हम कोई काम start करते है. शुरू -शुरू मे तो हम उस काम के लिये बड़े उत्साहित रहते है पर लोगो के comments की वजह से उत्साह कम होने लगता है और हम अपना काम बीच मे ही छोड़ देते है और जब बाद मे पता चलता है कि हम अपने सफलता के कितने नजदीक थे तो बाद मे पछतावे के अलावा कुछ नही बचता.

aspundir 02-03-2013 01:54 AM

Re: प्रेरक प्रसंग
 
एक स्त्री एक दिन एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ के पास गई और बोली,
"डाक्टर मैँ एक गंभीर समस्या मेँ हुँ और मेँ
आपकी मदद चाहती हुँ । मैं गर्भवती हूँ,
आप किसी को बताइयेगा नही मैने एक जान
पहचान के सोनोग्राफी लैब से यह जान लिया है
कि मेरे गर्भ में एक बच्ची है । मै पहले से
एकबेटी की माँ हूँ और मैं किसी भी दशा मे
दो बेटियाँ नहीं चाहती ।"
डाक्टर ने कहा ,"ठीक है, तो मेँ
आपकी क्या सहायता कर सकता हु ?"
तो वो स्त्री बोली,"मैँ यह चाहती हू कि इस
गर्भ को गिराने मेँ मेरी मदद करें ।"
डाक्टर अनुभवी और समझदार था।
थोडा सोचा और फिर बोला,"मुझे लगता है कि मेरे
पास एक और सरल रास्ता है जो आपकी मुश्किल
को हल कर देगा।"वो स्त्री बहुत खुश हुई..
डाक्टर आगे बोला,"हम एक काम करते है
आप दो बेटियां नही चाहती ना ?? ?
तो पहली बेटी को मार देते है जिससे आप इस
अजन्मी बच्ची को जन्मदे सके और
आपकी समस्या का हल भी हो जाएगा. वैसे
भी हमको एक बच्ची को मारना है तो पहले
वाली को ही मार देते है ना.?"
तो वो स्त्री तुरंत बोली"ना ना डाक्टर.".!!!
हत्या करनागुनाह है पाप है और वैसे भी मैं
अपनी बेटी को बहुत चाहती हूँ । उसको खरोंच
भी आती है तो दर्द का अहसास मुझे होता है
डाक्टर तुरंत बोला,"पहले
कि हत्या करो या अभी जो जन्मा नही
उसकी हत्या करो दोनो गुनाह
है पाप हैं ।"
यह बात उस स्त्री को समझ आ गई । वह स्वयं
की सोच पर लज्जित हुई और पश्चाताप करते हुए
घर चली गई ।
क्या आपको समझ मेँ आयी ?
अगर आई हो तो SHARE करके दुसरे
लोगो को भी समझाने मे मदद कीजिये
ना महेरबानी. बडी कृपा होगी ।
हो सकता है आपका ही एक
shareकिसी की सोच बदल दे..
और एक कन्या भ्रूण सुरक्षित, पूर्ण विकसित
होकर इस संसारमें जन्म ले.....

khalid 02-03-2013 08:18 AM

Re: प्रेरक प्रसंग
 
बहुत बढिया प्रसंग हैँ अनिल भैया बहुत कुछ सीखने को मिलेगा

aksh 02-03-2013 12:45 PM

Re: प्रेरक प्रसंग
 
Quote:

Originally Posted by khalid (Post 238175)
बहुत बढिया प्रसंग हैँ अनिल भैया बहुत कुछ सीखने को मिलेगा

शुक्रिया अनुज...!!

jai_bhardwaj 04-03-2013 06:56 PM

Re: प्रेरक प्रसंग
 
बोले हुए शब्द वापस नहीं आते

एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया.उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा.

संत ने किसान से कहा , ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो .” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया.

तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”

किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है,तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.

इस कहानी से क्या सीख मिलती है:

कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर human nature कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं hurt हो ही जाता है.
जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए.


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