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rajnish manga 25-02-2013 09:32 PM

मोती और माणिक्य
 
मोती और माणिक्य नामक इस सूत्र के माध्यम से मैं लोक जीवन, लोक कथाओं / लोक गाथाओं तथा इतिहास में धड़कने वाले और कहीं न कहीं हमारी समृद्ध संस्कृति एवं परम्पराओं की झलक देने वाले महापुरुषों को श्रद्धा पूर्वक याद करते हुए उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करना चाहता हूँ. इसी कड़ी में सबसे पहले अकबर के नौरत्नों में से एक कविवर अब्दुर रहीम खान-ए-खाना (ई. सन् 1556- 1627) की पावन स्मृति को प्रणाम करते हुये अपनी बात का आरम्भ उन्ही के चंद दोहों से से कर रहा हूँ.

rajnish manga 25-02-2013 09:34 PM

Re: मोती और माणिक्य
 
कविवर रहीम
बड़े बड़ाई न करै बड़े न बोलें बोल i
रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मेरा मोल ii

रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून i
पानी गए न ऊबरे मोती मानुष चून न ii

रहिमन बिपदा हूँ भली जो थोरे दिन होय i
हित अनहित या जगत में जानि परत सब कोय ii

रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय i
टूटे से फिर ना मिले मिले गाँठ पड़ जाय ii

छिमा बड़ेन को चाहिए छोटिन को उतपात i
का रहीम हरि को घट्यो जो भृगु मारी लात ii

तरुवर फल नहीं खात हैं सरवर पियहिं न पान i
कहि रहीम पर काज हित संपति सँचहि सुजान ii

रहिमन गली है सांकरी दूजो ना ठहराहि i
आपु अहे तो हरि नहीं हरि तो आपुन नाहीं ii

rajnish manga 25-02-2013 09:37 PM

Re: मोती और माणिक्य
 
हिन्दी साहित्य के इतिहास में जिनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है उन्हीं प्रख्यात भक्तिकालीन कवि रहीम के रचे कुछ अमर दोहे आपने ऊपर पढ़े. इन्होने प्रकृति, अध्यात्म, भक्ति एवं श्रृंगार विषयक रचनाओं में अपने विचारों की मधुर अभिव्यक्ति करते हुये हिंदी साहित्य को समृद्ध और गौरवान्वित किया है. इनकी रचनाओं में ब्रिजभाषा का भी सुन्दर स्वरुप देखने को मिलता है. दो पंक्ति के दोहों में इन्होने जैसे गागर में सागर भरने वाला काम किया है.

रहीम के बारे में प्रसिद्ध था कि वे ज़रूरतमंदों की खूब मदद किया करते थे और दान पुण्य भी किया करते थे. प्रतिदिन इनके घर के बाहर जो लोग जमा होते थे उन्हें दान दक्षिणा दे कर विदा किया जाता था. यह सत्य है कि बड़ी बड़ी बख्शीशें देने से या बड़ी बड़ी रकमें दान में देने से कोई बड़ा नहीं बन जाता. उदारता तो वह है जो सहज स्वाभाविक हो.सच्चे उदार व्यक्ति को यह गुमान भी नहीं होता कि वह उदार है.

इन्हीं कविवर रहीम के बारे में एक प्रसंग लोक विख्यात है. एक बार इनकी बेगम ने इनसे यह प्रश्न किया:-

सीखी कहाँ नवाब जू ऐसी दैनी देन ?
ज्यों ज्यों कर ऊपर उठे त्यों त्यों नीचे नैन ii

कविवर ने बड़ी विनम्रतापूर्वक यह उत्तर दिया:-

देनहार कोऊ और है भेजत सो दिन रैन i
लोग भरम हम पे धरें या ते नीचे नैन ii

(कहीं कहीं इस प्रसंग के साथ कवि गंग का नाम भी जोड़ा जाता है)
******

bindujain 26-02-2013 07:35 AM

Re: मोती और माणिक्य
 
:bravo::bravo::bravo:

rajnish manga 28-02-2013 02:34 PM

Re: मोती और माणिक्य
 
अब्दुर रहीम खान खाने-खाना अकबर के संरक्षक बैराम खां के बेटे थे और उन्होंने अकबर और जहांगीर दोनों की सेवायें की थीं. उन्हें अनेक भाषाओं का अच्छा ज्ञान था जैसे अरबी, फारसी, तुर्की, संस्कृत और हिन्दी. उन्होंने रहीम या रहिमन नाम से हिंदी में दोहों की रचना की.

रहीम के जीवन के कुछ प्रसंग

1. गोस्वामी तुलसीदास से भी रहीम का परिचय था. एक दिन तुलसीदास ने किसी गरीब ब्राह्मण को रहीम के पास भेजा. ब्राह्मण को अपनी कन्या के विवाह के लिए कुछ धन चाहिए था. तुलसीदास ने निम्न लिखित आधा दोहा लिख कर उस ब्राहण के हाथ बिहारी को भिजवाया:

“सुरतिय, नरतिय, नागतिय, अस चाहती सब कोय”

रहीम ने इस दोहे को यूं पूरा किया और उस ब्राहमण को बहुत सा धन दे कर तुलसीदास के पास भिजवा दिया:

“गोद लिए हुलसी फिरे, तुलसी सो सुत होय.”

rajnish manga 28-02-2013 02:36 PM

Re: मोती और माणिक्य
 
2. एक बार रहीम का एक नौकर छुट्टी ले कर अपने घर गया. छुट्टी के दिन समाप्त होने पर जब वह आने लगा तो उसकी नई नवेली दुल्हन ने उसे कुछ दिन और रुकने को कहा. लेकिन नौकरी छूट जाने के डर से नौकर ने उसकी बात न मानी. तब उसकी पत्नि ने एक बरवै लिख कर लिफ़ाफ़े में बंद कर के पति को दिया और कहा कि इसे अपने मालिक को दे देना. नौकर ने ऐसा ही किया. रहीम ने लिफाफा खोला तो उसमें लिखा था:

प्रेम प्रीत का बिरवा, चल्यो लगाय.
सींचन की सुध लीज्यो, मुरझि न जाय.

रहीम उसे पढ़ कर सारी बात समझ गए.उन्होंने उसी समय नौकर को बुलवाया. उसे घर जाने के लिए लम्बी छुट्टी दे कर और उसकी दुल्हन के लिए नए कपड़े और उपहार दे कर उसे बिदा किया. बाद में रहीम ने इसी छंद में कई रचनाएं लिखीं.

rajnish manga 28-02-2013 02:38 PM

Re: मोती और माणिक्य
 
3. रहीम कृष्ण के बड़े भक्त थे. अपनी कविताओं में उन्होंने कृष्ण के प्रति भक्ति का बहुत सुन्दर वर्णन किया है :

जिहि रहीम चित आपनो कीन्हो चतुर चकोर.
निशि वासर लागे रहें, कृष्ण चन्द्र की ओर.

4. रहीम महाराणा प्रताप की देश भक्ति और उनके स्वाभिमान की बड़ी प्रशंसा किया करते थे. एक बार इनके घर की बेगमें राजपूतों के हाथ पद गईं. राणाजी ने बड़े ही आदर के साथ उनके रहीम के पास भेज दिया. तब से तो रहीम राणा जी का और भी आदर करने लगे.इसका बदला चुकाने के लिए उन्होंने एक बार अकबर को मेवाड़ पर एक बड़ी चढ़ाई करने से रोका भी था. राना जी के विषय में इन्होने राजस्थानी बोली में बहुत से दोहे रचे, उनमे से एक नीचे दिया जा रहा है :

भ्रम रहसी, रहसी धरा, खिसजासे खुरसाण.
अमर बिंसम्भर ऊपरै, रखियो न हाचो राण.

अकबर के बाद जहांगीर के राज्य में रहीम को बहुत तकलीफें उठानी पडीं. दरबारियों ने बादशाह को इतना भड़काया कि वह उसकी जान का दुश्मन हो गया. उसने रहीम के छोटे बेटे को मरवा दिया रहीम को सभी सुविधाओं से महरूम कर दिया गया. बाद में जहांगीर को अपनी भूल का अनुभव हुआ तो उसने रहीम को आदर सहित दरबार में बुलवाया और वह एक बार फिर से शाही ठाट बाट से रहने लगे.

rajnish manga 28-02-2013 02:40 PM

Re: मोती और माणिक्य
 
खाने खाना का मकबरा
शहंशाह अकबर ने बैराम खां के बाद उनके बेटे अब्दुर रहीम खान को खाने-खाना की उपाधि प्रदान की थी जिनका मकबरा निजामुद्दीन इलाके के सामने मथुरा रोड के पूर्व में है. यह एक विशाल चौकौर इमारत है जो मेहराबी कोठरियों वाले एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है. इसमें हुमायूं के मकबरे के नमूने को अपनाया गया है. सन 1626 में मुग़ल सम्राट जहांगीर ने रहीम के मरने के बाद उसकी याद में दिल्ली में यह शानदार मकबरा बनवाया था.

सन 1956-57 में रहीम का 400 वाँ ज़ोमें-पैदाइश (चौथी जन्म-शती) मनाया जा रहा था तो भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू खाने-खाना के मकबरे को देखने गए. वह यह देख कर दंग रह गए कि इस इमारत की देखभाल करने वाला कोई नहीं था. खाने-खाना के मकबरे के चारों ओर लोगों ने कब्जे कर रखे थे. उन के दिल को चोट पहुंची. उन्होंने हुक्म दिया कि मकबरे की हालत ठीक करवाई जाए और चारों ओर सफ़ाई राखी जाये. इसके बाद इमारत की मरम्मत भी कर दी गई और चारों ओर बाग़ भी लगा दिया गया. रहीम के मकबरे की दास्तान भी बहुत कुछ उनके जीवन की कहानी से मिलती जुलती है. खाने-खाना ने भी अपने जीवन में कई उतार चढ़ाव देखे.
*****

rajnish manga 09-04-2013 11:47 PM

Re: मोती और माणिक्य
 
कविवर सियाराम शरण गुप्त

कवि परिचय :- सियारामशरण गुप्त का जन्म झाँसी के निकट चिरगाँव में सन् 1895 में हुआ था। खड़ी बोली के महान कवि मैथिलीशरण गुप्त इनके बड़े भाई थे. उनकी रचनाओं से और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से ये बहुत प्रभावित थे. गुप्त जी की रचनाओं का प्रमुख गुण है कथात्मकता। इन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा सामाजिक कुरुतियों पर करारी चोट की है। इनके काव्य की पृष्ठभूमि अतीत हो या वर्तमान, उनमे मानवता के प्रति करुणा, यातना और द्वंद्व समन्वित रूप में उभरा है।

सियाराम गुप्त की प्रमुख कृतियाँ:मौर्य विजय , आर्द्रा , पाथेय , मृण्मयी , उन्मुक्त , आत्मोत्सर्ग , दूर्वादलऔर नकुल तथा नारी (उपन्यास)।

नोट: मुझे यह बताते हुए बड़ा गर्व होता है कि उनकी काव्य-कृति “मौर्य विजय” पढ़ने का सौभाग्य दसवीं कक्षा में पढ़ते हुए मिला. यह पुस्तिका हमारे पाठ्यक्रम का भाग थी. संदर्भित कविता “एक फूल की चाह” हमें आठवीं कक्षा में पढाई गई थी.

(रजनीश मंगा)

कविता का सारांश :- ‘ एक फूल की चाह ’ छुआछूत की समस्या से संबंधित कविता है। महामारी के दौरान एक अछूत बालिका भी उसकी चपेट में आ जाती है। वह अपने जीवन की अंतिम साँसे ले रही है। वह अपने माता- पिता से कहती है कि वे उसे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दें । पिता असमंजस में है कि वह मंदिर में कैसे जाए। मंदिर के पुजारी उसे अछूत समझते हैं और मंदिर में प्रवेश के योग्य नहीं समझते। फिर भी बच्ची का पिता अपनी बच्ची की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए मंदिर में जाता है। वह दीप और पुष्प अर्पित करता है और फूल लेकर लौटने लगता है। बच्ची के पास जने की जल्दी में वह पुजारी से प्रसाद लेना भूल जाता है। इससे लोग उसे पहचान जाते हैं। वे उस पर आरोप लगाते हैं कि उसने वर्षों से बनाई हुई मंदिर की पवित्रता नष्ट कर दी। वह कहता है कि उनकी देवी की महिमा के सामने उनका कलुष कुछ भी नहीं है। परंतु मंदिर के पुजारी तथा अन्य लोग उसे थप्पड़-मुक्कों से पीट-पीटकर बाहर कर देते हैं। इसी मार-पीट में देवी का फूल भी उसके हाथों से छूट जाता है। भक्तजन उसे न्यायालय ले जाते हैं। न्यायालय उसे सात दिन की सज़ा सुनाता है। सात दिन के बाद वह बाहर आता है , तब उसे अपनी बेटी की ज़गह उसकी राख मिलती है।
इस प्रकार वह बेचारा अछूत होने के कारण अपनी मरणासन्न बेटी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाता। इस मार्मिक प्रसंग को उठाकर कवि पाठकों को यह कहना चाहता है कि छुआछूत की कुप्रथा मानव-जाति पर कलंक है। यह मानवता के प्रति अपराध है।

rajnish manga 09-04-2013 11:52 PM

Re: मोती और माणिक्य
 
उद्वेलित कर अश्रु-राशिआँ
ह्रदय-चितायें धधका कर ,
महा महामारी प्रचण्ड हो
फ़ैल रही थी इधर उधर..

क्षीण-कंठ मृत्वत्साओं का
करूँ रुदन दुर्दांत नितांत,
भरे हुये था निज क्रश रव में
हाहाकार अपार अशांत ..

बहुत रोकता था सुखिया को,
न जा खेलने को बाहर’ ,
नहीं खेलना रुकता उसका
नहीं ठहरती वह पल – भर.

मेरा ह्रदय कांप उठता था ,
बाहर गई निहार उसे;
यही मनाता था कि बचा लूँ
किस भांति इस बार उसे.


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