Re: कुछ ओर!
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Re: कुछ ओर!
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Re: कुछ ओर!
आदतन
http://howtomanguide.com/wp-content/...10/sad-man.jpg छेड़ दी वो ही बात आदतन, रोए फिर सारी रात आदतन, चैन न जाने कहां सो गया... जाग उठे जज़्बात आदतन। रुत बदली, मौसम भी बदले, बदल गए हालात आदतन... तुम बदले, दुनिया बदली, मन क्या चाहे सौगात आदतन? हुआ वही, होता जो अक्सर, आंखो से गीरी बरसात आदतन, उन आंसु में पिघल चले, जो पुछे थे सवालात आदतन! आगे क्या करते बात आदतन? खा ली हमने मात आदतन! खत्म हुई हर बार की तरहा... आखरी वो मुलाकात आदतन! (दीप १२.३.१५) |
Re: कुछ ओर!
बहुत बढिया....बहुत बहुत बढिया......अब जब से आपको भी गजल लिखते देख रही हूँ तो मुझे भी बहुत मन हो रहा है कि कुछ लिखूँ , पर समझ नहीं आता कि आप लोग इतने अच्छे शब्द लेकर कहाँ से आते हैं? मुझे तो कुछ सूझता ही नहीं..... :(
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Re: कुछ ओर!
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Re: कुछ ओर!
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Re: कुछ ओर!
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Re: कुछ ओर!
शाम
http://scontent-a.cdninstagram.com/h...47043971_n.jpg यह दिन ढल रहा है, पर शाम रुक गई है, वो पंछी उड़ रहें है, आवाम रुक गई है। जो धुप में थी दौडी, वह बादलों की टोली, ईस सांझ के किनारे, सरेआम रुक गई है। सब रास्ते, चौराहे, गलीयां तो थक गई है, चहलपहल भी लेने... आराम रुक गई है। बस पोंछ कर पसीना, मैं आगे बढ रहा हुं, मेरी जिंदगानी हो कर बेनाम रुक गई है! (दीप १३.३.१४) |
Re: कुछ ओर!
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