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-   -   कुछ ओर! (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=14543)

Arvind Shah 05-03-2015 11:11 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by deep_ (Post 548872)
http://www.loverofsadness.net/los/im...82c9a10214.jpg

बीती बातें दोहराई जाए,
सूखी आंखे रुलाई जए ।

आती जाती है जो सांस सी,
यादें वो सारी भुलाई जाए ।

अब रोशनी की क्या जरुरत?
उमीद हर एक मिटाई जाए...

फिर कभी भी जल न पाए,
हर लौ...एसे बुझाई जाए।

उसके दिल पे बोझ न पड़े,
कुछ एसी चाल चलाई जाए...

मै ही बेवफा था आखिर,
यह बात उसको मनवाई जाए ।

कत्ल करने को काफी है,
पलकें गिराई जाए, उठाई जाए।

जहां आना जाना हो उनका,
लाश वहीं दफनाई जाए|


(दीप)
२.३.१५

बहुत खुब !!

Deep_ 07-03-2015 01:42 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by Pavitra (Post 548999)
दीप जी आपका ये सूत्र देखा तो आपकी पहली कविता "कुछ और" के लिये था जो कि बहुत ही प्रशन्सनीय है , लेकिन आपकी दूसरी रचना पढने के बाद मुझे समझ नहीं आ रहा कि किन शब्दों में आपकी तारीफ करूँ , आपकी ये दूसरी रचना वास्तव में बहुत बहुत ज्यादा अच्छी है ।

Quote:

Originally Posted by Shikha sanghvi (Post 549010)
very very nice deepji

Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 549030)
bahut achche deep ji ....

Quote:

Originally Posted by Arvind Shah (Post 549039)
बहुत खुब !!

सभी मित्रों को धन्यवाद! :hello:

Deep_ 12-03-2015 10:55 PM

Re: कुछ ओर!
 
आदतन
http://howtomanguide.com/wp-content/...10/sad-man.jpg

छेड़ दी वो ही बात आदतन,
रोए फिर सारी रात आदतन,
चैन न जाने कहां सो गया...
जाग उठे जज़्बात आदतन।

रुत बदली, मौसम भी बदले,
बदल गए हालात आदतन...
तुम बदले, दुनिया बदली,
मन क्या चाहे सौगात आदतन?

हुआ वही, होता जो अक्सर,
आंखो से गीरी बरसात आदतन,
उन आंसु में पिघल चले,
जो पुछे थे सवालात आदतन!

आगे क्या करते बात आदतन?
खा ली हमने मात आदतन!
खत्म हुई हर बार की तरहा...
आखरी वो मुलाकात आदतन!


(दीप १२.३.१५)

Pavitra 12-03-2015 11:38 PM

Re: कुछ ओर!
 
बहुत बढिया....बहुत बहुत बढिया......अब जब से आपको भी गजल लिखते देख रही हूँ तो मुझे भी बहुत मन हो रहा है कि कुछ लिखूँ , पर समझ नहीं आता कि आप लोग इतने अच्छे शब्द लेकर कहाँ से आते हैं? मुझे तो कुछ सूझता ही नहीं..... :(

Deep_ 12-03-2015 11:45 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by pavitra (Post 549276)
बहुत बढिया....बहुत बहुत बढिया......अब जब से आपको भी गजल लिखते देख रही हूँ तो मुझे भी बहुत मन हो रहा है कि कुछ लिखूँ , पर समझ नहीं आता कि आप लोग इतने अच्छे शब्द लेकर कहाँ से आते हैं? मुझे तो कुछ सूझता ही नहीं..... :(

एक बार शुरु कर दिजीए बस! आप भी कमाल का अच्छा सोचते और लिखते तो हो ही!

Pavitra 12-03-2015 11:48 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by deep_ (Post 549277)
एक बार शुरु कर दिजीए बस! आप भी कमाल का अच्छा सोचते और लिखते तो हो ही!

जी कोशिश करूँगी कि मैं भी आप लोगों जैसे लिख सकूँ....... :)

rajnish manga 13-03-2015 11:44 AM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by deep_ (Post 549274)
आदतन

.....
हुआ वही, होता जो अक्सर,
आंखो से गिरी बरसात आदतन,
उन आंसू में पिघल चले,
जो पूछे थे सवालात आदतन!

(दीप १२.३.१५)

बहुत खूब, बहुत सुंदर. आपकी कविताओं में जज़्बात की अच्छी अभिव्यक्ति नज़र आती है. इसी प्रकार लिखते रहें और हम मित्रों के साथ शेयर करते रहें. एक दिन आप कवियों की अगली पंक्ति में होंगे. धन्यवाद, दीप जी.

Deep_ 13-03-2015 08:44 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 549298)
बहुत खूब, बहुत सुंदर. आपकी कविताओं में जज़्बात की अच्छी अभिव्यक्ति नज़र आती है. इसी प्रकार लिखते रहें और हम मित्रों के साथ शेयर करते रहें. एक दिन आप कवियों की अगली पंक्ति में होंगे. धन्यवाद, दीप जी.

खुब खुब धन्यवाद रजनीश जी! :hello:

Deep_ 13-03-2015 10:22 PM

Re: कुछ ओर!
 
शाम

http://scontent-a.cdninstagram.com/h...47043971_n.jpg

यह दिन ढल रहा है,
पर शाम रुक गई है,
वो पंछी उड़ रहें है,
आवाम रुक गई है।

जो धुप में थी दौडी,
वह बादलों की टोली,
ईस सांझ के किनारे,
सरेआम रुक गई है।

सब रास्ते, चौराहे,
गलीयां तो थक गई है,
चहलपहल भी लेने...
आराम रुक गई है।

बस पोंछ कर पसीना,
मैं आगे बढ रहा हुं,
मेरी जिंदगानी हो कर
बेनाम रुक गई है!

(दीप १३.३.१४)

rajnish manga 13-03-2015 10:55 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by deep_ (Post 549318)
शाम

....

जो धुप में थी दौडी,
वह बादलों की टोली,
ईस सांझ के किनारे,
सरेआम रुक गई है।

वाह...वाह !! आपकी कविताओं को पढ़ कर यही कह सकते हैं कि 'एक से बढ़ कर एक'. सारी रचना अद्वितीय है, किंतु उपरोक्त पंक्तियाँ आपकी कल्पना की जैसे खूबसूरती बयान करती है. बहुत बहुत धन्यवाद, दीप जी.


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