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Deep_ 27-01-2015 10:02 PM

कुछ ओर!
 
यह मेरी प्रथम रचना है....फोरम के सभी मित्रो के लिए!

मन हमारा जो भी कहे, मानसीकता कुछ ओर है।
कहेने का सच ओर, वास्तविकता कुछ ओर है।

मीलना भी जब चाहा, एक बहाना तैयार था,
हम भी जानतें थे, यह व्यस्तता कुछ ओर है।

प्रतीक्षा है प्रतिक्षण, एक क्षण तो मीलोगे,
तुम मूर्खता भले मानो, यह मूर्खता कुछ ओर है।

ईस अकेलेपन को यादों से से भर दिया है,
वह सुनापन अलग था, यह रिक्तता कुछ ओर है।

anmolarora 13-02-2015 05:12 PM

Re: कुछ ओर!
 
वाह वाह अति सुंदर

Deep_ 13-02-2015 05:27 PM

Re: कुछ ओर!
 
धन्यवाद अनमोल जी!

rajnish manga 13-02-2015 11:06 PM

Re: कुछ ओर!
 
bahut sundar rachna hai, deep ji. kshama chahta hun pahle visit nahin kar paaya. mera anurodh hai ki aap apni anya rachnaayen bhi hamse sheyar karen.

Deep_ 02-03-2015 05:43 PM

http://www.loverofsadness.net/LOS/im...82c9a10214.jpg

बीती बातें दोहराई जाए,
सूखी आंखे रुलाई जए ।

आती जाती है जो सांस सी,
यादें वो सारी भुलाई जाए ।

अब रोशनी की क्या जरुरत?
उमीद हर एक मिटाई जाए...

फिर कभी भी जल न पाए,
हर लौ...एसे बुझाई जाए।

उसके दिल पे बोझ न पड़े,
कुछ एसी चाल चलाई जाए...

मै ही बेवफा था आखिर,
यह बात उसको मनवाई जाए ।

कत्ल करने को काफी है,
पलकें गिराई जाए, उठाई जाए।

जहां आना जाना हो उनका,
लाश वहीं दफनाई जाए|


(दीप)
२.३.१५

rajnish manga 03-03-2015 04:35 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by Deep_ (Post 548872)

....
कत्ल करने को काफी है,
पलकें गिराई जाए, उठाई जाए।

जहां आना जाना हो उनका,
लाश वहीं दफनाई जाए|



(दीप)


:bravo:

ग़ज़ल के अंदाज़ में यह एक सुंदर रचना है. सभी शे'रों में भावों की तीव्र अभिव्यक्ति मिलती है. टाइप की कुछ त्रुटियों (सुखी = सूखी, लो = लौ आदि) के बावजूद रचना अच्छी बन पड़ी है. उक्त दो शे'र विशेष रूप से प्रभावित करते हैं. आपको बहुत बहुत धन्यवाद व शुभकामनाएं, दीप जी.

Deep_ 03-03-2015 07:16 PM

Re: कुछ ओर!
 
बहुत धन्यवाद रजनीश जी। त्रुटीयां ठीक करवाने के लिए भी धन्यवाद!

Pavitra 04-03-2015 10:09 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by Deep_ (Post 548872)
http://www.loverofsadness.net/LOS/im...82c9a10214.jpg

बीती बातें दोहराई जाए,
सूखी आंखे रुलाई जए ।

आती जाती है जो सांस सी,
यादें वो सारी भुलाई जाए ।

अब रोशनी की क्या जरुरत?
उमीद हर एक मिटाई जाए...

फिर कभी भी जल न पाए,
हर लौ...एसे बुझाई जाए।

उसके दिल पे बोझ न पड़े,
कुछ एसी चाल चलाई जाए...

मै ही बेवफा था आखिर,
यह बात उसको मनवाई जाए ।

कत्ल करने को काफी है,
पलकें गिराई जाए, उठाई जाए।

जहां आना जाना हो उनका,
लाश वहीं दफनाई जाए|


(दीप)
२.३.१५


दीप जी आपका ये सूत्र देखा तो आपकी पहली कविता "कुछ और" के लिये था जो कि बहुत ही प्रशन्सनीय है , लेकिन आपकी दूसरी रचना पढने के बाद मुझे समझ नहीं आ रहा कि किन शब्दों में आपकी तारीफ करूँ , आपकी ये दूसरी रचना वास्तव में बहुत बहुत ज्यादा अच्छी है ।
:yourock::clappinghands:

Shikha sanghvi 04-03-2015 11:02 PM

Re: कुछ ओर!
 
very very nice deepji

soni pushpa 05-03-2015 02:28 PM

Re: कुछ ओर!
 
Quote:

Originally Posted by Deep_ (Post 547619)
यह मेरी प्रथम रचना है....फोरम के सभी मित्रो के लिए!

मन हमारा जो भी कहे, मानसीकता कुछ ओर है।
कहेने का सच ओर, वास्तविकता कुछ ओर है।

मीलना भी जब चाहा, एक बहाना तैयार था,
हम भी जानतें थे, यह व्यस्तता कुछ ओर है।

प्रतीक्षा है प्रतिक्षण, एक क्षण तो मीलोगे,
तुम मूर्खता भले मानो, यह मूर्खता कुछ ओर है।

ईस अकेलेपन को यादों से से भर दिया है,
वह सुनापन अलग था, यह रिक्तता कुछ ओर है।

bahut achche deep ji ....


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