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soni pushpa 07-06-2015 07:33 PM

कुछ तर्क
 
हिंदी फोरम के सभी सदस्यों से निवेदन है की कृपया इस बहस में जरुर भाग ले क्यूंकि ये जो विषय मैं यहाँ रखने जा रही हूँ वो सबके जीवन से जुडा हुआ हुआ है और सबके अपने अपने विचार भी अलग से होते हैं इस विषय पर जो की इंसानी जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण अहम् हिस्सा है वो है ...............................शादी............... ..........
आज के समय में मैंने कई जगह देखा और पाया की आजकल शादी में लोग लाखो करोडो रुपयों का खर्च करते हैं जो शादी दो दिन में हुआ करती थी अब उस शादी के प्रोग्राम स ८ से लेकर १० दिन तक के हो जाते हैं

जिसमे खर्च और थकन होतीहै par दूसरा फायदा ये भी है की जो लोग कई बरसो से नहीं मिले होते वे इसीshadi ke बहाने मिल भी जाते हैं और रोज मर्रा के ढर्रे से बहार निकलकर कुछ अलग वातावरण प्राप्त करके फ्रेश हो जाते हैं और कई जगह बरसो से रहे मीठे सम्बन्ध छोटी सी गलतियों की वजह से कड़वाहट में बदल जाते हैं तो कहीं कडवे सम्बन्ध मिठास में परिवर्तित हो जाते हैं ... इस विषय मैं आप सबसे ये जानना चाहूंगी की आजकल जो शादी में भयंकर खर्च किये जाते हैं वो किस हद तक ठीक है ?या फिर ठीक है भी या नहीं ?

मुझे आप सबके विचारों का इंतजार रहेगा ... और हाँ सिर्फ खर्च ही नहीं इस विषय पर आप रिश्तों के विषय में अपने अपने मंतव्य यहाँ रख सकते हैं ..

Rajat Vynar 08-06-2015 12:41 PM

Re: कुछ तर्क
 
बहुत ही अच्छा सूत्र बनाया है आपने, सोनी पुष्पा जी।

soni pushpa 08-06-2015 11:52 PM

Re: कुछ तर्क
 
Quote:

Originally Posted by Rajat Vynar (Post 551598)
बहुत ही अच्छा सूत्र बनाया है आपने, सोनी पुष्पा जी।



prasansha ke liye bahut bahut dhanywad rajat ji ....

manishsqrt 09-06-2015 03:52 PM

Re: कुछ तर्क
 
aapne kafi achcha mudda uthaya par mai aapki is baat se asahmat hu ki aaj kal shadiyo me jyada din lagte hai aur pahle kam lagte the, vastavikta ye hai ki aaj kal ek do din me shadi nipta di jati hi aur pahle ke time me shadiyo ka janvasa hi ek hafte ka dera dalta tha, ha itana awshya manunga ki pahle samay to jyada lagta tha par fir bhi uske anupaat me faltu kharche kam hote the aur aaj kal dikhawe par adhik kharche hone lage hai jo ki sare ke sare tarkheen hai, 3-4 lakh to bas khane khilane band baje me kharch ho jate hai, jo ki kamane me varsho lag jaenge par udae sirf chand ghanto me jate hai.Ye upbhoktawad aur dikhawati sanskriti desh ke liye khatarnak ho gai hai.Agar jald ise na roka to nasoor ban jaegi par logo ne ab ise jiwan shaily man liya hai, aksar ye dikhawe var paksha ki farman par hi hote hai.

Rajat Vynar 09-06-2015 06:49 PM

Re: कुछ तर्क
 
जिस कल्चर की आप बात कर रही हैं उसका मुझे संज्ञान है। लाखों-करोडों का खर्च होने वाली शादी का कार्ड मिलना भी कोई मामूली बात नहीं, सोनी पुष्पा जी। किसी साधारण व्यक्ति को नहीं मिलता ऐसा कार्ड। ऐसा कोई कार्ड अपनी शक्ति से प्रकट किया क्या जो इस बारे में चर्चा कर रही हैं? वैसे किसी कहानी का कितना सुन्दर आइडिया लिखा है आपने। शादी में मिले और दुश्मनी दोस्ती में बदल गई। शादी में मिले और दोस्ती दुश्मनी में बदल गई। वाह-वाह, क्या बात है। इसीलिए तो मैं कहता हूँ- आपमें बहुत कुछ बनने की क्षमता है। आपके अन्दर एक दो नहीं, कई कलाऍ छिपी हुई है। बस उन कलाओं को खोद-खोद कर बाहर निकालने की जरूरत है। बधाइयाँ।

soni pushpa 09-06-2015 10:34 PM

Re: कुछ तर्क
 
[

bahut bahut dhanywad manish ji ki aapne is sutra ko aage badhaya ..

Deep_ 09-06-2015 10:39 PM

Re: कुछ तर्क
 
सच कहुं तो शादी जीवन का सबसे बड़ा त्यौहार है, सबसे बड़ी खुशी है। हम यही मानतें है की ईसमें पैसो की वजह से कोई कमी न रह जाए। पैसों की यहां कम और खुशीयों की अधिक महत्ता होती है। सो हम यथाशक्ति खर्च करतें है। हां, हम सबकी प्रायोरिटीझ अलग अलग होती है। शायद कोई अधिक खर्च न करना चाहे और वही पैसे भविष्य के योजनाओं मे लगाए यह भी योग्य है।

हमें कभी लगता है फलां ने बहूत खर्च कर दिया, फलां ने कैसी कंजूसी की! लेकिन एक बात बता दूं...हम में से ज्यादातर लोग यही सोचतें है की अगर पैसो की कमी न होती तो हेलिकोप्टर में आते और केटरीना कैफ को ब्याह ले जाते! :laughing:

हाला की शादी में होने वाले खाने का व्यय मुझे सबसे ज्यादा ना पसंद है! :nono:

soni pushpa 09-06-2015 11:15 PM

Re: कुछ तर्क
 
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Originally Posted by rajat vynar (Post 551670)
जिस कल्चर की आप बात कर रही हैं उसका मुझे संज्ञान है। लाखों-करोडों का खर्च होने वाली शादी का कार्ड मिलना भी कोई मामूली बात नहीं, सोनी पुष्पा जी। किसी साधारण व्यक्ति को नहीं मिलता ऐसा कार्ड। ऐसा कोई कार्ड अपनी शक्ति से प्रकट किया क्या जो इस बारे में चर्चा कर रही हैं? वैसे किसी कहानी का कितना सुन्दर आइडिया लिखा है आपने। शादी में मिले और दुश्मनी दोस्ती में बदल गई। शादी में मिले और दोस्ती दुश्मनी में बदल गई। वाह-वाह, क्या बात है। इसीलिए तो मैं कहता हूँ- आपमें बहुत कुछ बनने की क्षमता है। आपके अन्दर एक दो नहीं, कई कलाऍ छिपी हुई है। बस उन कलाओं को खोद-खोद कर बाहर निकालने की जरूरत है। बधाइयाँ।

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Originally Posted by rajat vynar (Post 551670)
जिस कल्चर की आप बात कर रही हैं उसका मुझे संज्ञान है। लाखों-करोडों का खर्च होने वाली शादी का कार्ड मिलना भी कोई मामूली बात नहीं, सोनी पुष्पा जी। किसी साधारण व्यक्ति को नहीं मिलता ऐसा कार्ड। ऐसा कोई कार्ड अपनी शक्ति से प्रकट किया क्या जो इस बारे में चर्चा कर रही हैं? वैसे किसी कहानी का कितना सुन्दर आइडिया लिखा है आपने। शादी में मिले और दुश्मनी दोस्ती में बदल गई। शादी में मिले और दोस्ती दुश्मनी में बदल गई। वाह-वाह, क्या बात है। इसीलिए तो मैं कहता हूँ- आपमें बहुत कुछ बनने की क्षमता है। आपके अन्दर एक दो नहीं, कई कलाऍ छिपी हुई है। बस उन कलाओं को खोद-खोद कर बाहर निकालने की जरूरत है। बधाइयाँ।

बहुत बहुत धन्यवाद रजत जी इस बहस में भाग लेने के लिए ,आज के समय में
बड़े लोग तो धाम धूम से शादी करके समाज में खर्च करने का एक नियम सा बना डालते हैं . जिसकी मार साधारण लोगो पर पड़ती है क्यूंकि शादी के नाम पर अब जितने ज्यदा प्रोग्राम होंगे उतने खर्च ज्यादा और जब एक मध्यम वर्ग के इंसान पर खर्च का बोझ आता है तब वो क़र्ज़ लेकर ही उसे पूरा कर सकता है....
और अगर साधारण ईन्सान अपने पर क़र्ज़ का बोझ न लेकर एइसे सादगी से ये जीवन का बड़ा कार्य निपटा भी लेते हैं पर उनके मन में जीवन भर के लिए एक अफ़सोस एक खटका सा रह जाता है की काश हम भी बड़ी से बड़ी धामधूम कर सकते शादी में

याने पिसता कौन है एइसे समाज के बढ़ते दिखावे से? मध्यमवर्गीय इन्सान ही न ?

soni pushpa 09-06-2015 11:26 PM

Re: कुछ तर्क
 
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Originally Posted by deep_ (Post 551686)
सच कहुं तो शादी जीवन का सबसे बड़ा त्यौहार है, सबसे बड़ी खुशी है। हम यही मानतें है की ईसमें पैसो की वजह से कोई कमी न रह जाए। पैसों की यहां कम और खुशीयों की अधिक महत्ता होती है। सो हम यथाशक्ति खर्च करतें है। हां, हम सबकी प्रायोरिटीझ अलग अलग होती है। शायद कोई अधिक खर्च न करना चाहे और वही पैसे भविष्य के योजनाओं मे लगाए यह भी योग्य है।

हमें कभी लगता है फलां ने बहूत खर्च कर दिया, फलां ने कैसी कंजूसी की! लेकिन एक बात बता दूं...हम में से ज्यादातर लोग यही सोचतें है की अगर पैसो की कमी न होती तो हेलिकोप्टर में आते और केटरीना कैफ को ब्याह ले जाते! :laughing:

हाला की शादी में होने वाले खाने का व्यय मुझे सबसे ज्यादा ना पसंद है! :nono:


बहुत बहुत धन्यवाद दीप जी ,सही कहा आपने इन्सान का बेहद महत्वपूर्ण दिन होता है ये ,.. मेरा इस बहस को यहाँ छेड़ने का आशय यही था की हम क्यों शादी के नाम लाखो रुपये खर्च कर डालते हैं इन्ही पैसों से यदि हम किसी अन्य गरीब की बेटी की शादी करवा दे या किसी विद्यार्थी की फ़ीस भरकर उसे आगे और पढ़ायें उसका जीवन बना दें तो मेरे विचार से ये उस ख़ुशी से ज्यदा बड़ी ख़ुशी की उपलब्धि होगी पर यहाँ ये कदापि न समझा जाय की मैं खुशियाँ मनाने के विरुध्ध हूँ खुशिया कम पैसों में भी मनाई जा सकती है बिना दिखावे के .

आपके इस मत से सहमत हूँ मैं की ,शायद कोई अधिक खर्च न करना चाहे और वही पैसे भविष्य के योजनाओं मे लगाए यह भी योग्य है।

Rajat Vynar 10-06-2015 05:36 PM

Re: कुछ तर्क
 
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Originally Posted by soni pushpa (Post 551687)
बहुत बहुत धन्यवाद रजत जी इस बहस में भाग लेने के लिए ,आज के समय में
बड़े लोग तो धाम धूम से शादी करके समाज में खर्च करने का एक नियम सा बना डालते हैं . जिसकी मार साधारण लोगो पर पड़ती है क्यूंकि शादी के नाम पर अब जितने ज्यदा प्रोग्राम होंगे उतने खर्च ज्यादा और जब एक मध्यम वर्ग के इंसान पर खर्च का बोझ आता है तब वो क़र्ज़ लेकर ही उसे पूरा कर सकता है....
और अगर साधारण ईन्सान अपने पर क़र्ज़ का बोझ न लेकर एइसे सादगी से ये जीवन का बड़ा कार्य निपटा भी लेते हैं पर उनके मन में जीवन भर के लिए एक अफ़सोस एक खटका सा रह जाता है की काश हम भी बड़ी से बड़ी धामधूम कर सकते शादी में

याने पिसता कौन है एइसे समाज के बढ़ते दिखावे से? मध्यमवर्गीय इन्सान ही न ?

इस पर मैं बाद में उत्तर दूंगा।

Deep_ 10-06-2015 09:19 PM

Re: कुछ तर्क
 
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Originally Posted by soni pushpa (Post 551688)
बहुत बहुत धन्यवाद... खुशिया कम पैसों में भी मनाई जा सकती है बिना दिखावे के.

यही तो मसला है की पैसे वालों को दिखावे का शौक है । उनकी यही आदत 'स्टेटस' बन जाती है जिसे आम आदमी प्राप्त करना चाहता है। उसी के लिए वह अपने आप को घिसता रहता है।

आपको जान कर खुशी होगी की हमारे गांव में दहेज प्रथा है ही नहीं। सिर्फ कन्यादान में अगर किसीने एकाद फर्निचर, तीजोरी, स्टील के घडे, दिवार-घडी दे दी तो बहुत हो गया। ईस में भी गांववाले, रिश्तेदारो की मदद होती है।

लेकिन जब लोग खेती के अलावा नौकरी करने लगे और अच्छा पैसा कमाने लगे....उन्हों ने खर्चा करना शुरु कर दिया। उनको देख कर अब गरीब लोग भी चाहते है की उनकी बारात ईनोवा कार में जाए, मंहगे कपडे सिलवाए, बडा पंडाल बना कर बुफे डीनर करवाए ।

साथ साथ दूल्हेवालों के बिना मांगे ज्यादा फर्निचर, गहने आदि देने का चलन बढ गया है। यह वर्तन लडकेपक्ष वालों को चाबी दे रहा है....मांग करने के लिए। मुझे ईस बात से असंतोष है।

rajnish manga 10-06-2015 09:24 PM

Re: कुछ तर्क
 
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Originally Posted by Rajat Vynar (Post 551670)
जिस कल्चर की आप बात कर रही हैं उसका मुझे संज्ञान है। लाखों-करोडों का खर्च होने वाली शादी का कार्ड मिलना भी कोई मामूली बात नहीं, सोनी पुष्पा जी। किसी साधारण व्यक्ति को नहीं मिलता ऐसा कार्ड। ऐसा कोई कार्ड अपनी शक्ति से प्रकट किया क्या जो इस बारे में चर्चा कर रही हैं? वैसे किसी कहानी का कितना सुन्दर आइडिया लिखा है आपने। शादी में मिले और दुश्मनी दोस्ती में बदल गई। शादी में मिले और दोस्ती दुश्मनी में बदल गई। वाह-वाह, क्या बात है। इसीलिए तो मैं कहता हूँ- आपमें बहुत कुछ बनने की क्षमता है। आपके अन्दर एक दो नहीं, कई कलाऍ छिपी हुई है। बस उन कलाओं को खोद-खोद कर बाहर निकालने की जरूरत है। बधाइयाँ।

रजत जी, यदि आप सूत्र में व्यक्त की गई अंतर्वस्तु के दायरे में रह कर अपनी विवेकपूर्ण टिप्पणी प्रस्तुत करेंगे तो सूत्र और भी उपयोगी हो जायेगा. इससे हट कर, सूत्र जारी करने वाले सदस्य में क्या-क्या करने की क्षमता है, क्या-क्या बनने की क्षमता है, या उनमें क्या क्या कलायें छिपी हुयी हैं, इससे आपका कोई सरोकार नहीं होना चाहिए. क्या कविता और क्या debate, लगता है आप हर जगह मूल विषय से हट कर अपनी टिप्पणियों के ज़रिये सम्बंधित सदस्य की खिल्ली उड़ाने पर ही अपना ध्यान बनाये रखते हैं. इस प्रवृत्ति से न तो उनके सम्मान में बढ़ोत्तरी होती है और न आपकी प्रतिष्ठा में इज़ाफा होता है. आशा है आप मेरी इस बात पर गौर करेंगे.

soni pushpa 11-06-2015 02:54 PM

Re: कुछ तर्क
 
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Originally Posted by deep_ (Post 551720)
यही तो मसला है की पैसे वालों को दिखावे का शौक है । उनकी यही आदत 'स्टेटस' बन जाती है जिसे आम आदमी प्राप्त करना चाहता है। उसी के लिए वह अपने आप को घिसता रहता है।

आपको जान कर खुशी होगी की हमारे गांव में दहेज प्रथा है ही नहीं। सिर्फ कन्यादान में अगर किसीने एकाद फर्निचर, तीजोरी, स्टील के घडे, दिवार-घडी दे दी तो बहुत हो गया। ईस में भी गांववाले, रिश्तेदारो की मदद होती है।

लेकिन जब लोग खेती के अलावा नौकरी करने लगे और अच्छा पैसा कमाने लगे....उन्हों ने खर्चा करना शुरु कर दिया। उनको देख कर अब गरीब लोग भी चाहते है की उनकी बारात ईनोवा कार में जाए, मंहगे कपडे सिलवाए, बडा पंडाल बना कर बुफे डीनर करवाए ।

साथ साथ दूल्हेवालों के बिना मांगे ज्यादा फर्निचर, गहने आदि देने का चलन बढ गया है। यह वर्तन लडकेपक्ष वालों को चाबी दे रहा है....मांग करने के लिए। मुझे ईस बात से असंतोष है।





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Originally Posted by deep_ (Post 551720)
यही तो मसला है की पैसे वालों को दिखावे का शौक है । उनकी यही आदत 'स्टेटस' बन जाती है जिसे आम आदमी प्राप्त करना चाहता है। उसी के लिए वह अपने आप को घिसता रहता है।

आपको जान कर खुशी होगी की हमारे गांव में दहेज प्रथा है ही नहीं। सिर्फ कन्यादान में अगर किसीने एकाद फर्निचर, तीजोरी, स्टील के घडे, दिवार-घडी दे दी तो बहुत हो गया। ईस में भी गांववाले, रिश्तेदारो की मदद होती है।

लेकिन जब लोग खेती के अलावा नौकरी करने लगे और अच्छा पैसा कमाने लगे....उन्हों ने खर्चा करना शुरु कर दिया। उनको देख कर अब गरीब लोग भी चाहते है की उनकी बारात ईनोवा कार में जाए, मंहगे कपडे सिलवाए, बडा पंडाल बना कर बुफे डीनर करवाए ।

साथ साथ दूल्हेवालों के बिना मांगे ज्यादा फर्निचर, गहने आदि देने का चलन बढ गया है। यह वर्तन लडकेपक्ष वालों को चाबी दे रहा है....मांग करने के लिए। मुझे ईस बात से असंतोष है।

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धन्यवाद दीप जी इस सूत्र को आगे बढाने के लिए .. ये तो बेहद ख़ुशी की बात है की आपके गाँव में दहेज़ प्रथा बिलकुल भी नहीं है आपके गाव के लोगो से हमारे देश के दहेज़ के लिए बहुओं को आग में झोंक देने वाले लोगो को सिख लेनी चाहिए ...
आपकी बात का दूसरा हिस्सा ही है जो समाज के लिए अब समस्या बनता जा रहा है ये ही की शादी में दिखावा , बेकार के खर्च और देखादेखी की वजह से शादी में धामधूम का रिवाज ..

न जाने लोग कब समझेंगे की खुशियाँ मन में होती है दिखावे में नहीं और मन की खुशियाँ तो कम खर्च में भी इंसान प्राप्त कर ही सकता है न ? आज की महंगाई की मार पूंजीपतियों के आलावा हरेक इन्सान पर है और हमे ये भी नहीं पता की ये महंगाई कहाँ जाकर रुकेगी दिन ब दिन बढ़ोतरी ही है इसमें ...

यदि हम बचत करके खुद के लिए भी रखते हैं धन को तो वो भविष्य में हमें ही काम आएगा. भले आप दान धरम की बात न भी सोचो ना दान करना चाहो न करो खुद का भविष्य ही संवर जा य इतना काफी है ..पर नहीं आज लोग दिखावे में ही ज्यदा समझते हैं ...
कही एक गरीब दो टाइम की रोटी को तरसता है और कहीं शादी के बुफे लंच और डिनर की प्लास्टिक प्लेट्स पकवानों से भरी कचरे के डब्बे में जाती है वो भी सिर्फ झूठे दिखावे की वजह से ...

soni pushpa 11-06-2015 11:12 PM

Re: कुछ तर्क
 
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Originally Posted by rajnish manga (Post 551722)
रजत जी, यदि आप सूत्र में व्यक्त की गई अंतर्वस्तु के दायरे में रह कर अपनी विवेकपूर्ण टिप्पणी प्रस्तुत करेंगे तो सूत्र और भी उपयोगी हो जायेगा. इससे हट कर, सूत्र जारी करने वाले सदस्य में क्या-क्या करने की क्षमता है, क्या-क्या बनने की क्षमता है, या उनमें क्या क्या कलायें छिपी हुयी हैं, इससे आपका कोई सरोकार नहीं होना चाहिए. क्या कविता और क्या debate, लगता है आप हर जगह मूल विषय से हट कर अपनी टिप्पणियों के ज़रिये सम्बंधित सदस्य की खिल्ली उड़ाने पर ही अपना ध्यान बनाये रखते हैं. इस प्रवृत्ति से न तो उनके सम्मान में बढ़ोत्तरी होती है और न आपकी प्रतिष्ठा में इज़ाफा होता है. आशा है आप मेरी इस बात पर गौर करेंगे.

.................................................. .................................................. .................

बहुत बहुत धन्यवाद भाई ... जी सही कहा आपने कई बार हम लेखको की जब एईसी
खिल्ली उड़ाई जाती है तब यहाँ आने का मन ही नहीं करता क्यूंकि यदि अछि और
सबकी भलाई की बातें लिखने के बाद भी यदि किसी को प्रोब्लेम्स हैं तो यहाँ आना
ही क्यूँ? और लिखना ही क्यों एइसा लगा करता है कई बार हमें ..
हम खास् करके
मैं और पवित्रा जी कुछ भी लिखते हैं हमारे लेखों की और कविताओं की
ज्यदातर मजाक बनाई जाती है .. मैं मानती हूँ की रजत जी जितने हम ज्ञानी
नहीं अल्प ज्ञान है हमारा पर हम हमारे लिखने का जो शौक है सो कुछ न कुछ
लिखते रहतेहैं ... हम कोई व्यावसायिक लेखक नहीं की हमसे भूलें न हों . रजत जी से निवेदन है की आपको कहीं हमारी गलतियाँ दिखे निसंदेह हमें
बताएं ताकि हम उन्हें सुधार सके..किन्तु कृपया मजाक न बनायें ..


यह मंच विचारों की आप ले करने का है और हम जैसे लेखकों के लिए कुछ सीखते रहने का मंच है न की कोई प्रतियोगिता हो रही है यहाँ की आपस में होड़ लगाई जाय की कौन सबसे आगे कौन अच्छा कौन बुरा ... यहाँ आपस में हम सब जितना मिलकर एकदूजे के सहयोग से लिखेंगे उतना ही सबके लिए अच्छा है न कोई व्यवसाय तो है नहीं ये सो प्लीज आप सहयोग करे और विषय जो चल रहा है बहस के लिए उसे ही आगे रखें न की और बातें बिच में लायें ... यदि मेरी कोई बात आपको बुरी लगी हो तो छमा प्रार्थी हूँ रजत जी ..धन्यवाद

Rajat Vynar 12-06-2015 11:36 AM

Re: कुछ तर्क
 
अरे, सोनी पुष्पा जी, आप तो रजनीश जी के कहे में आ गईं। रजनीश जी भ्रमवश मेरी प्रसंशा को 'खिल्ली' समझ रहे हैं। इस तरह तो आप भी मेरी बहुत प्रसंशा करती हैं। क्या मैं इसका मतलब यह निकालूँ कि आप मेरी खिल्ली उड़ा रही हैं? नहीं न? दूसरी बात यह है कि आपको इस प्रकार किसी के कहे में आकर मेरे विरुद्ध मंच पर क्रोधपूर्ण टिप्पणी नहीं लगानी चाहिए। आप हमारी मित्र-सूची में शामिल बोनाफाइड मित्र हैं। यदि आपको हमारी टिप्पणी के सम्बन्थ में गलतफहमी की वजह से कोई शिकायत है भी तो आपको सबसे पहले मुझे अपना व्यक्तिगत संदेश भेजकर इस बारे में अवगत करके अपना विरोध प्रकट करना चाहिए, न कि 'फोरम पुलिस' मंगा जी से मेरी सीधी शिकायत करनी चाहिए। मित्र-सूची में रहकर यदि आप इस प्रकार करेंगी तो फिर मैं नहीं, मंच पर उपस्थित दूसरे सदस्य आपको फ्रेनेमी अर्थात् मित्रवत् शत्रु समझने लगेंगे जो पीठ पीछे वार करता है। इस तरह से तो आपका ही नाम खराब होगा, मेरा नहीं और यदि ऐसा होता है तो सबसे ज्यादा दुख मुझे पहुँचेगा। यदि मेरी बात अभी भी आपकी समझ में नहीं आती है तो यह अत्यन्त दुःखद विषय है और आपके पास हमारी मित्र-सूची से बाहर जाने का विकल्प खुला हुआ है, क्योंकि हम मित्र-सूची से बाहर के सदस्यों के सूत्रों पर अपनी टिप्पणी नहीं लगाते हैं। प्राब्लम सॉल्व्ड। यही नियम पवित्रा जी और कुकी जी पर भी लागू होते हैं। मित्र सूची से बाहर होने पर हम इस मंच पर ही नहीं, अन्तर्जाल में कहीं भी उस सदस्य के सूत्रों पर अपनी टिप्पणी नहीं लगाते। कुछ बुरा लगा हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ।

soni pushpa 12-06-2015 04:09 PM

Re: कुछ तर्क
 
[QUOTE=Rajat Vynar;552142]अरे, सोनी पुष्पा जी, आप तो रजनीश जी के कहे में आ गईं। रजनीश जी भ्रमवश मेरी प्रसंशा को 'खिल्ली' समझ रहे हैं। इस तरह तो आप भी मेरी बहुत प्रसंशा करती हैं। क्या मैं इसका मतलब यह निकालूँ कि आप मेरी खिल्ली उड़ा रही हैं? नहीं न? दूसरी बात यह है कि आपको इस प्रकार किसी के कहे में आकर मेरे विरुद्ध मंच पर क्रोधपूर्ण टिप्पणी नहीं लगानी चाहिए। आप हमारी मित्र-सूची में शामिल बोनाफाइड मित्र हैं। यदि आपको हमारी टिप्पणी के सम्बन्थ में गलतफहमी की वजह से कोई शिकायत है भी तो आपको सबसे पहले मुझे अपना व्यक्तिगत संदेश भेजकर इस बारे में अवगत करके अपना विरोध प्रकट करना चाहिए, न कि 'फोरम पुलिस' मंगा जी से मेरी सीधी शिकायत करनी चाहिए। मित्र-सूची में रहकर यदि आप इस प्रकार करेंगी तो फिर मैं नहीं, मंच पर उपस्थित दूसरे सदस्य आपको फ्रेनेमी अर्थात् मित्रवत् शत्रु समझने लगेंगे जो पीठ पीछे वार करता है। इस तरह से तो आपका ही नाम खराब होगा, मेरा नहीं और यदि ऐसा होता है तो सबसे ज्यादा दुख मुझे पहुँचेगा। यदि मेरी बात अभी भी आपकी समझ में नहीं आती है तो यह अत्यन्त दुःखद विषय है और आपके पास हमारी मित्र-सूची से बाहर जाने का विकल्प खुला हुआ है, क्योंकि हम मित्र-सूची से बाहर के सदस्यों के सूत्रों पर अपनी टिप्पणी नहीं लगाते हैं। प्राब्लम सॉल्व्ड। यही नियम पवित्रा जी और कुकी जी पर भी लागू होते हैं। मित्र सूची से बाहर होने पर हम इस मंच पर ही नहीं, अन्तर्जाल में कहीं भी उस सदस्य के सूत्रों पर अपनी टिप्पणी नहीं लगाते। कुछ बुरा लगा हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ।[/QUO


रजत जी जो कुछ लिखा है सबके सामने है, पीठ पीछे या प्राइवेट मेल द्वारा किसी से शिकायत या बातें करने की आदत मेरी नहीं . और कुपित होकर कुछ नहीं लिखा मैंने यदि आप ध्यान से पढेंगे मेरी बात को तो जरुर समझ जायेंगे ...

Rajat Vynar 13-06-2015 12:50 AM

Re: कुछ तर्क
 
हाँ, ठीक कहती हैं आप। आप पीएम का जवाब भी कहाँ देती हैं। इसका मतलब है- रजनीश जी को गलतफहमी हुई है।

rajnish manga 13-06-2015 04:31 PM

Re: कुछ तर्क
 
Quote:

Originally Posted by rajat vynar (Post 552162)
हाँ, ठीक कहती हैं आप। आप पीएम का जवाब भी कहाँ देती हैं। इसका मतलब है- रजनीश जी को गलतफहमी हुई है।

जी मुझे कोई ग़लतफ़हमी नहीं हुयी है. कोई भी सदस्य जो (खास तौर पर महिला सदस्यों द्वारा जारी सूत्रों पर) आपकी टिप्पणियों को पढ़ता है, वह उनमें छिपे व्यंग्य और खिल्ली को महसूस किये बिना नहीं रह सकता. एक टिप्पणी विशुद्ध प्रशंसा वाली और अगली टिप्पणी कटाक्ष या खिल्ली भरी. मुझे महिला सदस्यों द्वारा शिकायत किये जाने की दरकार नहीं है. यदि आप या कोई अन्य सदस्य किसी सूत्र पर अमर्यादित भाषा का प्रयोग करता है या दूसरे सदस्य की खिल्ली उड़ाता है तो इसे रोकना मेरा कर्तव्य है. जिस टिप्पणी को मैं खिल्ली की श्रेणी में रख रहा हूँ, उसे आप प्रशंसा कह रहे हैं. मुझे किसी से कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है कि मैं उस पर मिथ्या आरोप लगाऊं.


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