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rajnish manga 18-09-2016 07:45 PM

प्रायश्चित
 
प्रायश्चित

"सुनो..कल मम्मी पापा आ रहे हैं दस दिन रूकेंगे..
एडजस्ट कर लेना..
"मयंक ने स्वाति को बैड पर लेटते हुए कहा।
"..कोई बात नही आने दिजिए आपको शिकायत का कोई मौका नही मिलेगा.."
स्वाति ने भी प्रतिउत्तर में कहा और स्वाति ने लाइट बन्द कर दी और दोनो सो गए।
सुबह जब मयंक की आंख खुली तो स्वाति बिस्तर छोड़ चुकी थी। "चाय ले लो..स्वाति ने मयंक की तरफ चाय की प्याली को बढाते हुए कहा..अरे तुम आज इतनी जल्दी नहा ली..हां तुमने रात को बताया था कि आज मम्मी पापा आने वाले हैं तो सोचा घर को कुछ व्यवस्थित कर लूं..स्वाति ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा..वैसे..किस वक्त तक आ जाएंगे वो लोग.."दोपहर वाली गाड़ी से पहुंचेंगे चार तो बज ही जाऐंगे..मयंक ने चाय का कप खत्म करते हुए जवाब दिया.."स्वाति..देखना कभी पिछली बार की तरह.."नही नही..पिछली बार जैसा कुछ भी नही होगा..स्वाति ने भी कप खत्म करते हुए मयंक को कहा और उठकर रसोई की तरफ बढ गई। मयंक भी आफिस जाने के लिए तैयार होने के लिए बाथरूम की तरफ बढ गया। नाश्ता करने के बाद मयंक ने स्वाति से पूछा "..तुम तैयार नही हुई..क्या बात..आज स्कूल की छुट्टी है..??.." नही..आज तुम निकलो मैं आटो से पहुंच जाऊंगी..थोड़ा लेट निकलूंगी..स्वाति ने लंच बाक्स थमाते हुए मयंक को कहा। "..बाय बाय..कहकर मयंक बाइक से आफिस के लिए निकल गया। और स्वाति घर के काम में लग गई..
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rajnish manga 18-09-2016 07:48 PM

Re: प्रायश्चित
 
"..मुझे तो बहुत डर लग रहा है मैं तुम्हारे कहने से वहां चल तो रहा हूं लेकिन पिछली बार बहू से जिस तरह खटपट हुई थी मेरा तो मन ही भर गया था। ना जाने ये दस दिन कैसे जाने वाले हैं..मयंक के पिताजी मयंक की मम्मी से कह रहे थे।"..अजी..भूल भी जाइये..बच्ची है..कुछ हमारी भी तो गलती थी। हम भी तो उससे कुछ ज्यादा ही उम्मीद लगाए बैठे थे। उन बातों को सालभर बीत गया है..क्या पता कुछ बदलाव आ गया हो। इंसान हर पल कुछ नया सीखता है..क्या पता कौन सी ठोकर किस को क्या सिखा दे..मयंक की मां ने पिताजी को हौंसला देते हुए कहा..
मयंक की मां यह कहकर चुप हो गई और याद करने लगी..दो भाइयों में मयंक बड़ा था और विवेक छोटा। मयंक गांव से दसवीं करके शहर आ गया..आगे पढने और विवेक पढाई में कमजोर था इसलिए गांव में ही पिताजी का खेती बाड़ी में हाथ बंटाने लगा। मयंक बी टेक करके शहर में ही बीस हजार रू की नौकरी करने लगा। स्वाति से कोचिंग सेन्टर में ही मयंक की जान पहचान हुई थी यह बात मयंक ने स्वाति से शादी के कुछ दिन पहले बताई। पिताजी कितने दिन तक नही माने थे इस रिश्ते के लिए..वो तो मैने ही समझा बुझाकर रिश्ते के लिए मनाया था वरना ये तो पड़ौस के गांव के अपने दोस्त की बेटी माला से ही रिश्ता करने की जिद लगाए बैठे थे। गांव आकर स्वाति के घर वालों ने शादी की थी..दो साल होने को आए उस दिन को भी।

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rajnish manga 18-09-2016 07:50 PM

Re: प्रायश्चित
 
शादी करके दोनो शहर में ही रहने लगे। स्वाति भी प्राइवेट स्कूल में टीचर की जाॅब करने लगी। पिछली बार जब गांव से आए थे तो मन में बड़ी उमंगे थी पर सात आठ दिन में ही बहू के तेवर और बेटे की बेबसी के चलते वापस गांव की तरफ हो लिए। कई बार मयंक को फोन करकर बोला भी की बेटा गांव आ जा..पर वो हर बार कह देता..मां छुट्टी ही नही मिलती कैसे आऊं..लेकिन मैं ठहरी एक मां..आखिर मां का तो मन करता है ना अपने बच्चे से मिलने का..बहू चाहे कैसा भी बर्ताव करे..काट लेंगे किसी तरह ये दस दिन..पर बच्चे को जी भरकर देख तो लेंगे.."अरे भागवान..उठ जाओ..स्टेशन आ गया उतरना नही है क्या..मयंक के पिताजी की आवाज मयंक की मां को यादों की दुनियां से वापस खींच लाई.. सामान उठाकर दोनो स्टेशन से बाहर आ गए और आटो में बैठकर दोनो मयंक के घर के लिए रवाना हो गए..
घर पहुंचे तो बहू घर पर ही थी। जाते ही बहू ने दोनो के पैर छुए..हम दोनो को ड्राइंगरूम में बिठाकर हम दोनो के लिए ठण्डा ठण्डा शरबत लाई हम लोगों ने जैसे ही शरबत खत्म किया बहू ने कहा "पिता जी...आप सफर से थक गए होंगे..नहा लिजिए..सफर की थकान उतर जाएगी फिर मैं आपके लिए खाना लगा देती हूं। पिताजी नहाने चले गए। बहू रसोई में घुसकर खाना बनाने लगी। थोड़ी देर में मयंक भी आ गया। फिर बैठकर सबने थोड़ी देर बातें की और फिर सबने खाना खाया। मयंक और बहू सोने चले गए और हम भी सो गए।

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rajnish manga 18-09-2016 07:51 PM

Re: प्रायश्चित
 
सुबह पांच बजे पिताजी उठे तो तो बहू उठ चुकी थी पिताजी को उठते ही गरम पानी पीने की आदत थी बहे ने पहले से ही पिताजी के लिए पानी गरम कर रखा था नहा धोकर पिताजी को मंदिर जाने की आदत थी..बहू ने उनको जल से भरकर लौटा दे दिया..नाश्ता भी पिताजी की पसंद का तैयार था..सबको नाश्ता करवाकर बहू मयंक के साथ चली गई पिताजी ने भी चैन की सांस ली..चलो अब चार पांच घण्टे तो सूकून से निकलेंगे। दिन के खाने की तैयारी बहू करकर गई थी सो मैने चार पांच रोटियां हम दोनो की बनाई और खा ली। स्कूल से आते ही बहू फिर से रसोई में घुस गई और हम दोनों के लिए चाय बना लाई..शाम को हम दोनों को लेकर बहू पास के पार्क में गई वहां उसने हमारा परिचय वहां बैठे बुजुर्गों से करवाया..वो अपनी सहेलियों से बात करने लगी और हम अपने नए परिचितों से परिचय में व्यस्त हो गए।शाम के सात बज चुके थे..हम घर वापस आ गए। मयंक भी थोड़ी देर में घर आ गया। बैठकर खूब सारी बातें हुई। बहू भी हमारी बातों में खूब दिलचस्पी ले रही थी थोड़ी देर बाद सब सोने चले गए।

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rajnish manga 18-09-2016 07:52 PM

Re: प्रायश्चित
 
अगले दिन सण्डे था बहू, मयंक और हम दोनो चिड़ियाघर देखने गए.. हमारे लिए ताज्जुब की बात ये थी की प्रोग्राम बहू ने बनाया था..बहू ने खूब अच्छे से चिड़ियाघर दिखाया और शाम को इण्डिया गेट की सैर भी करवाई..खाना पीना भी हम सबने बाहर ही किया..फिर हम सब घर आ गए और सो गए..इस खुशमिजाज रूटीन से पता ही नही चला वक्त कब पंख लगाकर उड़ गया..कहां तो हम सोच रहे थे कि दस दिन कैसे गुजरेंगे और कहां पन्द्रह दिन बीत चुके थे। आखिर कल जब विवेक का फोन आया कि फसल तैयार हो गई है और काटने के लिए तैयार है तो हमें अगले ही दिन गांव वापसी का प्रोग्राम बनाना पड़ा। रात का खाना खाने के बाद हम कमरे में सोने चले गए तो बहू हमारे कमरे में आ गई बहू की आंखों से आंसू बह रहे थे। मैने पूछा.."क्या बात है बहू..रो क्यों रही हो..तो बहू ने पूछा "..पिताजी, मां जी..पहले आप लोग एक बात बताइये..पिछले पन्द्रह दिनों में कभी आपको यह महसूस हुआ की आप अपनी बहू के पास है या बेटी के पास.."नही बेटा सच कहूं तो तुमने हमारा मन जीत लिया.. हमें किसी भी पल यह नही लगा की हम अपनी बहू के पास रह रहें हैं तुमने हमारा बहुत ख्याल रखा लेकिन एक बात बताओ बेटा.."तुम्हारे अंदर इतना बदलाव आया कैसे..??
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rajnish manga 18-09-2016 07:55 PM

Re: प्रायश्चित
 
"पिताजी..पिछले साल मेरे भाई की शादी हुई थी। मेरे मायके की माली हालात बहुत ज्यादा बढिया नही है। इन छुट्टियों में जब मैं वहां रहने गई तो मैने अपने माता पिता को एक एक चीज के लिए तरसते देखा.. बात बात पर भाभी के हाथों तिरस्कृत होते देखा..मेरा भाई चाहकर भी कुछ नही कर सकता था। मैं वहां उनके साथ हो रहे बर्ताव से बहुत दुखी थी। उस वक्त मुझे अपनी करनी याद आ रही थी.. कि किस तरह का सलूक मैंने आप दोनो के साथ किया था। किसी ने यह बात सच ही कही है कि जैसा बोओगे वैसा काटोगे। मैं अपने मां बाप का भविष्य तो नही बदल सकती लेकिन खुद को बदल कर मैं ये उम्मीद तो अपने आप में जगा ही सकती हूं कि कभी मेरी भाभी में भी बदलाव आएगा और मेरे मां बाप भी सुखी होंगे...बहू की बात सुनकर मेरी आंखे भर आई। मैने बहू को खींचकर गले से लगा लिया.."हां बेटा अवश्य एक दिन अवश्य ऐसा होगा...ठोकर सबको लगती है लेकिन सम्भलता कोई कोई ही है लेकिन हम दुआ करेंगे कि तुम्हारी भाभी भी सम्भल जाए..
बहू अब भी रोए जा रही थी उसकी आंखों से जो आंसू गिर रहे थे वो शायद उसके पिछली गलतियों के प्रायश्चित के आंसू थे....!
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soni pushpa 20-09-2016 03:29 PM

Re: प्रायश्चित
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 559488)
"पिताजी..पिछले साल मेरे भाई की शादी हुई थी। मेरे मायके की माली हालात बहुत ज्यादा बढिया नही है। इन छुट्टियों में जब मैं वहां रहने गई तो मैने अपने माता पिता को एक एक चीज के लिए तरसते देखा.. बात बात पर भाभी के हाथों तिरस्कृत होते देखा..मेरा भाई चाहकर भी कुछ नही कर सकता था। मैं वहां उनके साथ हो रहे बर्ताव से बहुत दुखी थी। उस वक्त मुझे अपनी करनी याद आ रही थी.. कि किस तरह का सलूक मैंने आप दोनो के साथ किया था। किसी ने यह बात सच ही कही है कि जैसा बोओगे वैसा काटोगे। मैं अपने मां बाप का भविष्य तो नही बदल सकती लेकिन खुद को बदल कर मैं ये उम्मीद तो अपने आप में जगा ही सकती हूं कि कभी मेरी भाभी में भी बदलाव आएगा और मेरे मां बाप भी सुखी होंगे...बहू की बात सुनकर मेरी आंखे भर आई। मैने बहू को खींचकर गले से लगा लिया.."हां बेटा अवश्य एक दिन अवश्य ऐसा होगा...ठोकर सबको लगती है लेकिन सम्भलता कोई कोई ही है लेकिन हम दुआ करेंगे कि तुम्हारी भाभी भी सम्भल जाए..
बहू अब भी रोए जा रही थी उसकी आंखों से जो आंसू गिर रहे थे वो शायद उसके पिछली गलतियों के प्रायश्चित के आंसू थे....!
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बहुत सुन्दर कहानी भाई धन्यवाद .. सच कहा पिछली गलतियों के कोई ही प्रयाचित कर सकता है हरकोई नहीं क्यूंकि इंसान का अहम् आड़े आता है ..

आज के समाज को अछि सिख दी गई है इस कहानी के माध्यम से भाई


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