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-   -   अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें........... (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=9601)

Dr.Shree Vijay 20-06-2014 06:15 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
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Originally Posted by rajnish manga (Post 510060)
न काम आया खफ़ा होना तो क्या, इक दांव है बाक़ी
मैं उसके पांव पर इस बार ....अपनी ज़ात रख दूंगा

गम के सागर में कभी डूब ना जाना
कभी मंजिल ना मिले तो टूट ना जाना
ज़िन्दगी में अगर महसूस हो कमी दोस्त की
अभी मैं ज़िंदा हूँ, यह भूल ना जाना.......


Swati M 20-06-2014 07:18 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
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Originally Posted by dr.shree vijay (Post 510079)
गम के सागर में कभी डूब ना जाना
कभी मंजिल ना मिले तो टूट ना जाना
ज़िन्दगी में अगर महसूस हो कमी दोस्त की
अभी मैं ज़िंदा हूँ, यह भूल ना जाना.......


नहीं निगाह मे मंज़िल तो जुस्तजू ही सही.
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही.....

rajnish manga 20-06-2014 10:29 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
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Originally Posted by swati m (Post 510094)

नहीं निगाह मे मंज़िल तो जुस्तजू ही सही.
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही.....

हर कोई अपना था लेकिन कोई भी अपना न था
ज़िन्दगी से इस तरह ... रिश्ता कभी टूटा न था
ख्वाहिशों की भीड़ में निकला तो ये मुश्किल हुई
पास था मेरे सभी कुछ ... इक मेरा चेहरा न था


Dr.Shree Vijay 21-06-2014 04:34 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
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Originally Posted by rajnish manga (Post 510098)
हर कोई अपना था लेकिन कोई भी अपना न था
ज़िन्दगी से इस तरह ... रिश्ता कभी टूटा न था
ख्वाहिशों की भीड़ में निकला तो ये मुश्किल हुई
पास था मेरे सभी कुछ ... इक मेरा चेहरा न था

थे खौफज़दा-ए-अंजाम-ए-ज़िन्दगी, कैद-ए-जिस्म-ए-विदाद सही !
क़फ़स-ए-इल्तिफ़ात-ए-परिंदा इस कद्र, ख़्वाब-ए-रिहाई का निशाँ नहीं !!.....
_____________________________________
विदाद = मुहब्बत, क़फ़स = पिंजरा, इल्तिफ़ात = दोस्ती,

Suraj Shah 21-06-2014 07:00 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
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Originally Posted by dr.shree vijay (Post 510153)
थे खौफज़दा-ए-अंजाम-ए-ज़िन्दगी, कैद-ए-जिस्म-ए-विदाद सही !
क़फ़स-ए-इल्तिफ़ात-ए-परिंदा इस कद्र, ख़्वाब-ए-रिहाई का निशाँ नहीं !!.....
_____________________________________
विदाद = मुहब्बत, क़फ़स = पिंजरा, इल्तिफ़ात = दोस्ती,

हजार नाकामियाँ हों 'नश्तर' हजार गुमराहियाँ हों लेकिन,
तलाशे-मंजिल है अगर दिल से, तो एक दिन लाजिमी मिलेगी...
-हरगोविंद दयाल 'नश्तर'

Dr.Shree Vijay 22-06-2014 07:06 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
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Originally Posted by suraj shah (Post 510168)
हजार नाकामियाँ हों 'नश्तर' हजार गुमराहियाँ हों लेकिन,
तलाशे-मंजिल है अगर दिल से, तो एक दिन लाजिमी मिलेगी...
-हरगोविंद दयाल 'नश्तर'

ग़म नहीं ग़र कम भी हों, मेरी कलम-ए-रोशनाई !
लहू-ए-आदम भिखरा तो है, हर नक्श-ए-क़ायनात तलक !!.........


rajnish manga 22-06-2014 10:24 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
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Originally Posted by dr.shree vijay (Post 510256)
ग़म नहीं ग़र कम भी हों, मेरी कलम-ए-रोशनाई !
लहू-ए-आदम भिखरा तो है, हर नक्श-ए-क़ायनात तलक !!.........


कुमुक सूरज की आने तक तुझे ही जूझना होगा
चराग़े-शब वो अंधियारे की सुल्तानी पलट आयी
मुहब्बत करने वाले ....जानेमन तनहा नहीं रहते
तेरे जाते ही घर में .....देख वीरानी पलट आयी
(तुफ़ैल चतुर्वेदी)

Dr.Shree Vijay 22-06-2014 11:04 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
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Originally Posted by rajnish manga (Post 510269)
कुमुक सूरज की आने तक तुझे ही जूझना होगा
चराग़े-शब वो अंधियारे की सुल्तानी पलट आयी
मुहब्बत करने वाले ....जानेमन तनहा नहीं रहते
तेरे जाते ही घर में .....देख वीरानी पलट आयी
(तुफ़ैल चतुर्वेदी)

ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल,
मज़ा तो जब है कि पैरों में कुछ थकन रहे........

राहत इन्दौरी.......

rajnish manga 23-06-2014 10:11 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
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Originally Posted by dr.shree vijay (Post 510279)
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल,
मज़ा तो जब है कि पैरों में कुछ थकन रहे........

राहत इन्दौरी.......

हैं दगाबाज़ सियासत के हठीले चेहरे
हमने देखे हैं फसादात में पीले चेहरे
कौन देखेगा अश्क माओं के बहनों के
नौनिहालों के बुजुर्गों के ये गीले चेहरे

(रजनीश मंगा)

Dr.Shree Vijay 23-06-2014 10:23 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
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Originally Posted by rajnish manga (Post 510324)
हैं दगाबाज़ सियासत के हठीले चेहरे
हमने देखे हैं फसादात में पीले चेहरे
कौन देखेगा अश्क माओं के बहनों के
नौनिहालों के बुजुर्गों के ये गीले चेहरे

(रजनीश मंगा)

रहनुमा खो गये मंजिल तो बुलाती है हमें,
पांव जख्मी है तो क्या, जौके-सफर रखते हैं........



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