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आकाश महेशपुरी 05-01-2015 08:03 AM

माँ
 
टूटी खाट पर बैठी बुढ़िया चिल्लाए
जा रही थी। "बेटा रामनाथ! बड़े जोर
की प्यास
लगी है...गला सूखा जा रहा है...बेटे!
जरा पानी पिला दे।"
रामनाथ यारों के साथ बैठा मुनिया,
चुनिया आदि के बारे में बातें करता हुआ
पागल हो रहा था। माँ के पुनः टोकने पर
गुस्से में बडबडाया- "क्या तब से बक बक किए
जा रही है! तू बीमार है, बेचैन है, तो क्या मैं
जीना छोड़ दूँ! अब तू मर
भी जाती तो अच्छा रहता!" उठा और
पानी लाकर खाट पर रखते हुए पुन: बोला-
"पी लेना, मैं जा रहा हूँ खेलने! शाम
को आऊँगा!" चला गया। माँ खाँसती रही,
कराहती रही।
बड़ा बेटा शेखर अमेरिका में इन्जीनियर है।
पिता केशव बिहारी के परिश्रम
की बदौलत कामयाब हुए शेखर को देश, गाँव,
घर व विधवा माँ की याद भूलकर
भी नहीं आती।
इधर माँ अन्तिम सांसें गिन रही थी, उधर
रामनाथ व उसके दोस्त गोवा जाने
की तैयारी कर रहे थे। रामनाथ ने
अपनी मौसी को पत्र लिखा। " मौसी!
प्रणाम्! मौसी! माँ अकेली है उसके पास
चली जाना। मैं गोवा जा रहा हूँ, १०-१५
दिन में वापस आ जाऊँगा।"
पत्र गाँव के ही एक व्यक्ति को देकर
रामनाथ अपने दोस्तों के साथ गोवा पहुँच
गया। घुमक्कड दोस्तों ने एक कमरा किराए
पर लिया। वे दिन भर घूमने के बाद रात कमरे
में गुजारते। वहाँ से लगभग ५०० मीटर दूरी पर
एक पार्क था। जहाँ आते और जाते वक्त
२०-२५ मिनट रुकते। एक महिला प्रति दिन
वहाँ सफाई करने आया करती थी।
एक दिन रामनाथ, अनवर और सागर पार्क मे
बैठकर बातें कर रहे थे।
कर्मचारी महिला आयी और अपने नन्हे से
बच्चे को घास पर सुला कर सफाई करने
लगी। तीनों मित्र आपस में बात कर रहे थे,
अचानक अनवर चीखा- "अरे यार!
वो देखो बच्चे के पास साँप!
इतना सुनना था कि महिला बच्चे की ओर
भागी। उसने बिना डरे साँप को बच्चे से दूर
फेंक दिया और अपने लाल को सीने से
लगाकर सिसकने लगी। कुछ देर बाद
महिला वहीं बेहोश हो गयी। शायद साँप
के ज़हर का असर था। उसे अस्पताल ले
जाया गया।
रामनाथ को माँ की ममता का एहसास
हो गया था। सोचने लगा- "एक माँ है
जो अपने बच्चे के लिए प्राणों का मोह
त्याग देती है। एक मैं हूँ
कि अपनी माँ को मौत के मुँह में छोडकर
घूमने चला आया......!"
"अरे यार! क्या सोच रहे हो?" अनवर ने
रामनाथ का ध्यान भंग किया।
"सोच रहा था, अब हमें घर चलना चाहिए!
पता नहीँ मेरी माँ किस हाल में होगी!"
"कुछ नहीं होगा तेरी माँ को। अब घूमने आये
हैं तो घूम के ही चलेंगे।"
नहीं यार! मुझे जाना ही होगा।"
बातचीत पर विराम लगाते हुए रामनाथ घर
के लिए चल पड़ा।
गाँव में प्रवेश करते ही उसे अजीब सा लगा।
सोचने लगा- "लोग मेरी तरफ इस तरह
क्यों देख रहे हैं! क्यों हर तरफ खामोशी है!"
उसका मन उलझनो और शंकाओं से
घिरता चला जा रहा था।
किसी अनहोनी की आशंका से डरा-
सहमा रामनाथ अपने घर का दरवाजा बन्द
देखकर सन्न रह गया। उसके मुँह से कुछ
भी नहीं निकल पा रहा था।
उसका साहस कहीं गुम हो गया था। पड़ोस
की चाची को सामने देखकर नमस्ते किया।
"खुश रहो बेटा!"
"माँ नहीं दिखाई दे रही! क्या मौसी उसे
अपने घर ले गयीं?"
"नहीं बेटे! तुम्हारी मौसी के गाँव में बहुत
बड़ा दंगा हुआ था, तुम गये थे उसी दिन।
सभी लोग गाँव छोड़ कर जाने कहाँ चले गये
हैं। उन लोगों का कोई अता-
पता नहीं है। ...और तुम्हारी माँ!
बेचारी रात भर तुम्हें पुकारती रहीं,
बिलखती रहीं। बार बार कहती थीं- "मेरे
रामनाथ को बुला दो... मेरे रामनाथ
को बुला दो...!" हम लोगों ने तुम्हें बहुत ढूँढा,
पर पता नहीं तुम कहाँ चले गये थे! वे तुम्हें
पुकारते पुकारते थक गईं... हमेशा हमेशा के
लिए। गाँव वालों ने उनका अन्तिम
संस्कार पश्चिम वाले बगीचे में कर दिया।
उस दिन सबको यह बात बहुत कष्ट
पहुँचा रही थी कि उनको आग देने
वाला कोई नहीं था।"
रामनाथ भारी कदमों से बगीचे में पहुँचा।
वह माँ की राख हाथों में लेकर खूब रोया।
आज वह माँ से ढेर सारी बातें
करना चाहता था।
कहानी- आकाश महेशपुरी
Aakash maheshpuri
पता-
वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी"
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
मो. 09919080399


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