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-   -   "ये जिदंगी और ये दुनिया" (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=2968)

deepkukna 07-06-2011 12:10 PM

"ये जिदंगी और ये दुनिया"
 
दोस्तो मेरी यह कविता जो मेरे युवावस्था मे कदम रखने के तुंरत बाद दुनिया के लिऐ मेरी अभिव्क्ति का हिस्सा है
क्या आपका भी है आईये जाने...

deepkukna 07-06-2011 12:36 PM

Re: "ये जिदंगी और ये दुनिया"
 
'ये जिँदगी ही जब बचपन मे थी
तो सोचा करता था, टटोला करता था
ये दुनिया क्या है, ये दुनिया वाले क्या है

'तब ये समझ ना पाया था
दुनिया क्या है, दुनिया वाले क्या है
धीरे-धीरे ये जिँदगी कुछ बङी हो गई
ओर इसकी दो आंखे हो गई तब यह देखा करता था, विचारा करता था
ये दुनिया बङी अलबेली है, ये दुनिया बङी निराली है.
पर तब यै समझ ना पाया था..
ये दुनिया अलबेली क्योँ है. ये दुनिया निराली क्योँ है
दिन निकलते रहै, राते गुजरती रही
मोसम आते-जाते रहै
वक्त ना रुका है ओर ना ही रुका
वह अपनी रफतार से गुजरता रहा
तभी एक दिन पता चला कि ये जिदंगी जवान हो गई हैँ
ये जिदंगी जवान हो गई
और इस दुनिया के, लिये खेल का बहुत सुंदर मैदान हो गई
दुनिया का नया रुप देखकर ये जिदंगी आवाक रह गई

दुनिया यह खेल देखकर निहाल हो गई
उसके ठोकरो से ये जिँदगी लहु लुहान हो गई

ये दुनिया जिदगी से खेली बहुत
ये दुनिया जिदंगी कौ रोदीँ बहुत
रुँदने से धुल उङी
सुर्यास्त के बाद तेजी से फैलतेँ अंधकार की तरह चारो ओर फैल गई

दुनिया एक किनारे पर खङी थीँ, जैसे कुछ ओर पा लेने की चाहत पङी थी

जिदँगी के बदं होते ही आँखो से दो आँसु लुढक गये. अंतर्मन से टीस भरी कराह निकल गई

अर्द्रनिशा के गहेरे अंधेरे मे अब ये समझ पाया था कि...
"ये दुनिया क्या है
ये दुनिया वाले क्या है
ये अलबेली क्योँ है
ये निराली क्योँ है"

ndhebar 07-06-2011 12:51 PM

Re: "ये जिदंगी और ये दुनिया"
 
Quote:

Originally Posted by deepkukna (Post 91222)
अर्द्रनिशा के गहेरे अंधेरे मे अब ये समझ पाया था कि...
"ये दुनिया क्या है
ये दुनिया वाले क्या है
ये अलबेली क्योँ है
ये निराली क्योँ है"

चलो.....................
जब जागो तभी सवेरा

अच्छी कविता है :bravo::bravo:

YUVRAJ 07-06-2011 04:18 PM

Re: "ये जिदंगी और ये दुनिया"
 
हकीकत है दोस्त ....:cheers:
आपने शब्दों में पिरोकर कमाल कर दिया ..:clap::clap::clap::bravo:
Quote:

Originally Posted by deepkukna (Post 91222)
'ये जिँदगी ही जब बचपन मे थी
तो सोचा करता था, टटोला करता था
ये दुनिया क्या है, ये दुनिया वाले क्या है

'तब ये समझ ना पाया था
दुनिया क्या है, दुनिया वाले क्या है
धीरे-धीरे ये जिँदगी कुछ बङी हो गई
ओर इसकी दो आंखे हो गई तब यह देखा करता था, विचारा करता था
ये दुनिया बङी अलबेली है, ये दुनिया बङी निराली है.
पर तब यै समझ ना पाया था..
ये दुनिया अलबेली क्योँ है. ये दुनिया निराली क्योँ है
दिन निकलते रहै, राते गुजरती रही
मोसम आते-जाते रहै
वक्त ना रुका है ओर ना ही रुका
वह अपनी रफतार से गुजरता रहा
तभी एक दिन पता चला कि ये जिदंगी जवान हो गई हैँ
ये जिदंगी जवान हो गई
और इस दुनिया के, लिये खेल का बहुत सुंदर मैदान हो गई
दुनिया का नया रुप देखकर ये जिदंगी आवाक रह गई

दुनिया यह खेल देखकर निहाल हो गई
उसके ठोकरो से ये जिँदगी लहु लुहान हो गई

ये दुनिया जिदगी से खेली बहुत
ये दुनिया जिदंगी कौ रोदीँ बहुत
रुँदने से धुल उङी
सुर्यास्त के बाद तेजी से फैलतेँ अंधकार की तरह चारो ओर फैल गई

दुनिया एक किनारे पर खङी थीँ, जैसे कुछ ओर पा लेने की चाहत पङी थी

जिदँगी के बदं होते ही आँखो से दो आँसु लुढक गये. अंतर्मन से टीस भरी कराह निकल गई

अर्द्रनिशा के गहेरे अंधेरे मे अब ये समझ पाया था कि...
"ये दुनिया क्या है
ये दुनिया वाले क्या है
ये अलबेली क्योँ है
ये निराली क्योँ है"


amit_tiwari 07-06-2011 06:47 PM

Re: "ये जिदंगी और ये दुनिया"
 
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