सभी को निमंत्रण, यहां करें बहस
मित्रो ! आए दिन किसी न किसी मुद्दे को लेकर देश बहस में उलझ जाता है और कई बार यह बहुत तीखी होती है ! यत्र - तत्र बहस हम भी करते हैं, किन्तु बिखरे रूप में ! यह बहस का एक मंच है, किन्तु कृपया यह स्मरण रखें कि यह संयत और शालीन रहे तथा कोई प्रतिभागी किसी प्रकार की उत्तेजक अथवा अनादर युक्त टिप्पणी नहीं करे ! जब भी बहस के लायक कोई मुद्दा आएगा, विषय मैं प्रस्तुत करूंगा और उस पर बहस अगला विषय आने तक जारी रहेगी ! विषय रखने के लिए सभी स्वतंत्र हैं, लेकिन कृपया यह ध्यान रखें गरमा-गरम बहस के बीच नहीं कूद पड़ें, उसके समापन का इंतज़ार करें ! धन्यवाद !
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... आज की बहस का विषय है-
गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे का पाकिस्तान पर बयान और उसके प्रभाव ! आधार सामग्री इस प्रकार है - भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता की अलख जगाने वाले गांधीवादी अन्ना हजारे की ओर से पाकिस्तान को लेकर की गई हालिया टिप्पणियों से इन दिनों एक तरह से भारत-पाकिस्तान में बहस छिड़ गई है। हाल ही हजारे ने अपने ब्लॉग पर लिखा था कि उन्होंने एक सैनिक के रूप में भारत-पाकिस्तान सीमा पर लड़ाई लड़ी थी और आगे भी पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भाग लेने के लिए तैयार हैं। हजारे ने कहा था, ‘‘आज भी मेरे ललाट पर आप चोट का निशान देख सकते हैं। यह पाकिस्तान की गोली का निशान है। यह मेरा मानना है कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और हमेशा रहेगा। अगर जरूरत पड़ी, तो मैं पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में फिर से भाग लेने को तैयार हूं।’’ पाकिस्तान के समाचार पत्र ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की वेबसाइट पर एक पाकिस्तानी ब्लॉगर उमर तारिक ने हजारे की टिप्पणियों को देखा और फिर उन्होंने ऑनलाइन बहस छेड़ दी। तारिक ने कहा, ‘‘ज्यादा दिन नहीं बीते हैं, जब अंतरराष्ट्रीय मीडिया एक नए सितारे के उदय का गवाह बना। यह व्यक्ति खुद को गांधी के सिद्धातों का अनुयायी बताता है। हमने उम्मीद की थी कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन पाकिस्तान में भी दस्तक दे, लेकिन अन्ना हजारे का ब्लॉग पढने के बाद अचानक मेरी सारी उम्मीदें खत्म हो गईं। हजारे की टिप्पणियों से पाकिस्तानी आहत हुए हैं। मुझे समझ नहीं आता कि हजारे को लोग दूसरा गांधी क्यों कहते हैं जब वह युद्ध की बात करते हैं। मैं नहीं मानता कि उनकी इन टिप्पणियों के बाद हजारे का पाकिस्तान में स्वागत होगा।’’ एक अन्य पाकिस्तानी पाठक ने लिखा, ‘‘अन्ना हजारे का आंदोलन हमें जगाने वाला था। भारत और यहां भी लोग मानने लगे थे कि हजारे सीधे जन्नत से उतर कर आए हैं। अब लोगों का खयाल बदलेगा।’’ भारत के एक पाठक ने कहा, ‘‘हम अन्ना को कहीं और नहीं जाने देंगे। आपके देश (पाकिस्तान) को कम ही बोलना चाहिए। ... वैसे क्या आप मानते हैं कि आपकी समस्याएं हल हो सकती हैं? फिलहाल ऐसा नहीं होने वाला है।’’ एक अन्य भारतीय ने कहा, ‘‘आप (पाकिस्तानी) अपनी जगह बिल्कुल सही हैं। आप देशभक्त हैं। परंतु आप जानते हैं कि आपके देश में सभी लोग, खासकर नेता इतने अच्छे नहीं हैं। क्या जरूरत पड़ने पर आप पाकिस्तान के लिए नहीं लड़ेंगे? आप अन्ना का स्वागत नहीं करेंगे, इसके लिए धन्यवाद। वैसे पाकिस्तान का दौरा भला कौन करना चाहेगा?’’ |
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यह क्या, बहस के लिए मशहूर इस देश में कोई बहस के लिए तैयार ही नहीं है ! ताज्जुब है !
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क्या जरुरी है की महात्मा गाँधी की हर बात मानी जाए. अहिंसा एक हद तक सही है लेकिन अगर दुश्मन सीमा पार से हम पर हमला बोल देता है या हमारे जमीन पर कब्ज़ा कर लेता है तो आप ही बताइए अहिंसा से कुछ हो सकता है क्या..
इस मामले में अन्ना का बयान बिलकुल सही है. मैं मानता हूँ आज भी भारत के मस्तक का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में और उसे किसी भी तरह से हासिल करना ही होगा. यह सम्पूर्ण भारत वर्ष के मान और मर्यादा का सवाल है. इस नक़्शे में को देखिये क्या हालत है भारत के मस्तक की, एक तरफ पाकिस्तान ने कब्ज़ा जमा रखा है दुसरे तरफ चीन कुंडली मार कर बैठा है. जी हाँ दोस्तों यह हमारी जमीन है, और हम पिछले ६४ साल से हाथ पर हाथ रख कर बैठे हैं. सन ७१ में इंदिरा गाँधी के पास मौका था, लेकिन उन्होंने अपनी कमजोर नीतियों के कारण यह मौका गवां दिया. आप ही बताइए यह हमारी भूमि हमें फिर से कैसे मिलेगी... क्या उपाय है.. |
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जब तक देश में ऐसे दृश्य आम हों, बाल दिवस मनाना कितना सार्थक है ?
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1321274128 http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1321274128 |
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अमेरिका का दोहरा आचरण
जिस दिन भारत सरकार ने खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी, ठीक उसी दिन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक ट्वीट किया था ! ज़रा गौर फरमाएं - हमें स्थानीय दुकानदारों से खरीदारी करनी चाहिए और समाज के छोटे उद्योगों को समर्थन देना चाहिए ! यह महज़ संयोग था अथवा ओबामा दुनियाभर को दिखाना चाहते थे कि भारत के शासक किस हद तक अमेरिका के गुलाम हैं कि अपनी जनता की तमाम आकांक्षाएं ताक पर रख कर अमेरिका का हुक्म सर माथे ले रहे हैं ! यह एक गंभीर प्रश्न तो है ही, अमेरिका के दोहरे आचरण का पुख्ता सबूत भी है ! अब यह भी देखिए कि भारतीय जनता और विपक्षी दलों के तमाम विरोध को दरकिनार कर निर्णय पर अड़ी संप्रग सरकार की पीठ थपथपाते हुए अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मार्क टोनर आज कह रहे हैं कि इस निर्णय से दोनों देशों के सम्बन्ध और मज़बूत होंगे ! टोनर ने संवाददाताओं को बताया कि हम भारत के फैसले का स्वागत करते हैं। हमारा मानना है कि इस तरह के आर्थिक सुधारों से दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बंध और मजबूत होंगे। उन्होंने कहा कि इससे नए आर्थिक अवसर पैदा होने जा रहे हैं तथा इससे भारतीय ग्राहकों के पास और अधिक विकल्प होंगे। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी कंपनियों की बड़ी इच्छा दी कि खुदरा क्षेत्र में एफडीआई को मंजूरी दी जाए और अमेरिका भी लंबे समय से इस पर जोर दे रहा था। टोनर ने इस मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों के विरोध को भारत में विशिष्ट लोकतंत्र की झलक बताया। अमेरिका के उद्योग जगत ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस आशय के फैसले का स्वागत करते हुए पिछले सप्ताह कहा था कि इस साहसी आर्थिक सुधार से भारतीय ग्राहकों को लाभ मिलेगा। उद्योग जगत का तो यह भी कहना है कि इससे खाद्य कीमतों व मुद्रास्फीति में नरमी आएगी। हम क्या कहें इसे ? |
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anna ji ne jo bayan deya hai wo sahi hai
agar aaj gandhi ji hote to wo vi danda apni rakhsha ke liye uthate gandhi ji vi anna ji ka jasa bayan date dost wo time kuch or tha aaj kuch or hai |
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Quote:
जो होगा देखा जाएगा: हर बात पर यह न सोचें कि अब क्या होगा। याद रखें कि आपके हाथ में मौजूदा वक्त में कर्म करना है। इसका फल क्या मिलेगा, यह आप नहीं जानते। इसलिए हर बात पर नतीजों के बारे में ही न सोचते रहें, बल्कि आगे बढ़कर थोड़ा रिस्क लें और कुछ डिफरंट ट्राई करें। हालांकि इस दौरान अपने विवेक व बुद्धि का पूरा इस्तेमाल करें |
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Re: सभी को निमंत्रण, यहां करें बहस
उपरोक्त वीडियो में पटना की एक महिला एसपी महोदया, जिनका शुभ नाम "किम" है, घर के अंदर निर्दोष, निहत्थे और शांत महिला और उसके बच्चो पर अन्य पुरुष सिपाहियों के साथ अपनी मर्दानगी दिखा रही है। मीडिया आचरण के अनुरूप सनसनी फैला रहा है। राजनीतिज्ञ पानी पी-पी कर अपने पिपक्षी दलो को कोस रहे है। लोग पान-दुकानों, नुक्कड़, चौक-चौराहो और ड्राईंग रूम मे टीवी देखते हुये, अपने अमूल्य विचार व्यक्त कर रहे है।
वैसे तो हर दिन देश मे इस तरह के पुलिसिया जुल्म के हजारो घटनाए हो रही है - मगर कहते है ना - जो दिखता है वही बिकता है। कोई नई खबर सनसनी बनने तक, ये खबर चलता रहेगा। फिर अगर कही इस तरह की घटना की पुनरावृति होगी तो संदर्भ स्वरूप इसे फिर से याद किया जाएगा, वर्ना....... क्या कहु, किसके कहु - हमारे देश के लोगो की फितरत ही कुछ ऐसी है। एक मशहूर कहावत है - किसने कहा है - कृपया ये मुझसे मत पूछिएगा - पहले वो "यहूदियो" को लेने आये - मै कुछ नहीं बोला - क्योंकि मै "यहूदी" नहीं था। फिर वो "पारसियों" को लेने आये - मै फिर कुछ नहीं बोला - क्योंकि मै "पारसी" भी नहीं था। फिर वो "कम्युनिष्टों" को लेने आये - मै फिर कुछ नहीं बोला - क्योंकि मै "कम्युनिष्ट " भी नहीं था। अंत में वो मुझे लेने आये - कोई कुछ नहीं बोला - क्योंकि वो सभी को पकड़ चुके थे। |
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