इनसे दोस्ती करो (छंदमुक्त कविता)
इनसे दोस्ती करो (छंदमुक्त कविता)
■■■■■■■■■■■■■■■■ ये जमीं ये आसमाँ ग़मगीन है बहुत पेड़ों पर जुल्म करना जुर्म संगीन है बहुत इनसे दोस्ती करो मोहब्बत करो ये बेवफा होते नहीं औरों की तरह ये रूठते नहीं दिल तोड़ते नहीं और रुलाते नहीं औरों की तरह इनकी जुल्फों के नीचे खो जाओ मुस्कुरा के ये तड़पाते नहीं औरों की तरह सच कहता हूँ ये खूबसूरत और रंगीन हैं बहुत पेड़ों पे जुल्म करना जुर्म संगीन है बहुत इन्हें मरते हो पत्थर ये देते हैं मीठे फल ये अपने लिए रोते नहीं औरों की तरह अपना सब कुछ लुटाने मिटाने के बाद भी ये इठलाते नहीं औरों की तरह मरने के बाद भी ये निभाते हैं दोस्ती छोड़ जाते नहीं औरों की तरह ख़ुदा की तरह होकर भी ये दीन हैं बहुत पेड़ो पे जुल्म करना जुर्म संगीन है बहुत रचना- आकाश महेशपुरी कुशीनगर, उत्तर प्रदेश मो- 9919080399 ■■■■■■■■■■■ * यह रचना मेरे प्रथम काव्य संग्रह "सब रोटी का खेल" से ली गयी है। यह पुस्तक मेरे द्वारा शुरुवाती दिनों में लिखी गयी रचनाओं का हूबहू संकलन है। |
Re: इनसे दोस्ती करो (छंदमुक्त कविता)
एक बहुत सुंदर और प्रेरक रचना. मनुष्य की तरह प्रकृति स्वार्थ के वशीभूत हो कर कोई काम नहीं करती. बल्कि चोट खाने के बाद भी बदले की भावना से काम नहीं करती.
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Re: इनसे दोस्ती करो (छंदमुक्त कविता)
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