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jai_bhardwaj 03-06-2011 12:54 AM

Re: छींटे और बौछार
 
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Originally Posted by kalyan (Post 89002)
कोई फूल बन गया है, कोई चाँद कोई तारा,
जो चिराग बुझ गया है तेरी अंजुमन में जल कर !
मेरे दोस्तों ख़ुदारह मेरे साथ तुम भी धुन्ड़ो,
वोह यहीं कहीं छुपा है मेरे गम का रुख बदल कर ........!!!


आग में सजन को खोजते रहे हैं हम, हमको जलन मिली मगर वो प्यार ना मिला
हमने जलाई देह, पाए लाखों घाव 'जय', लेकिन अभी तलक हमें ऐतबार ना मिला
कैसा फलसफा है यह, कैसा नज़रिया, क्यों जलते को बुझाते हैं बुझते को जलाते हैं
चलते को गिराने को हैं लाखों आस पास, गिरते को उठा दे जो, वो दिलदार ना मिला

ndhebar 03-06-2011 04:37 PM

Re: छींटे और बौछार
 
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Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 90362)
कैसा फलसफा है यह, कैसा नज़रिया, क्यों जलते को बुझाते हैं बुझते को जलाते हैं
चलते को गिराने को हैं लाखों आस पास, गिरते को उठा दे जो, वो दिलदार ना मिला

क्या बात कही है जय भैया
गिरतो को उठाना ही तो बड़ी बात है और यही बात याद रखनी चाहिए

khalid 03-06-2011 05:28 PM

Re: छींटे और बौछार
 
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Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 90362)

आग में सजन को खोजते रहे हैं हम, हमको जलन मिली मगर वो प्यार ना मिला
हमने जलाई देह, पाए लाखों घाव 'जय', लेकिन अभी तलक हमें ऐतबार ना मिला
कैसा फलसफा है यह, कैसा नज़रिया, क्यों जलते को बुझाते हैं बुझते को जलाते हैं
चलते को गिराने को हैं लाखों आस पास, गिरते को उठा दे जो, वो दिलदार ना मिला

पार लगा दे कोई ऐसा पतवार ना मिला
काट सके जो दुश्मन का सर ऐसा कोई तलवार ना मिला
छीटेँ तो बहुत दिया दुनिया ने धो सके ऐसा कोई बौछार ना मिला
गुरबत मेँ साथ चल सके ऐसा कोई यार ना मिला
बढकर कोई गले मिले ऐसा ना कोई दिलदार मिला
छीँटे तो मिले बहुत धोने को बौछार ना मिला

jai_bhardwaj 03-06-2011 11:35 PM

Re: छींटे और बौछार
 
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Originally Posted by khalid1741 (Post 90427)
पार लगा दे कोई ऐसा पतवार ना मिला
काट सके जो दुश्मन का सर ऐसा कोई तलवार ना मिला
छीटेँ तो बहुत दिया दुनिया ने धो सके ऐसा कोई बौछार ना मिला
गुरबत मेँ साथ चल सके ऐसा कोई यार ना मिला
बढकर कोई गले मिले ऐसा ना कोई दिलदार मिला
छीँटे तो मिले बहुत धोने को बौछार ना मिला

'जय' पास बुलाओ तो, लोग दूर जायेंगे
उठ के चल पड़ो तो, लोग पीछे आयेंगे
कोई साथ दे न दे , हिम्मत हमारी साथ है
आज नहीं तो कल, तारा-ए-जमीं कहलायेंगे
:think::bravo:

jai_bhardwaj 03-06-2011 11:45 PM

Re: छींटे और बौछार
 
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Originally Posted by ndhebar (Post 90416)
गिरतो को उठाना ही तो बड़ी बात है और यही बात याद रखनी चाहिए

भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता (जिसे आजकल 'शार्ट कट' भी कहा जाता है) के मद में चूर चंचल मन झूमते हुए चलता है और सामने आ रही हर वस्तु और प्राणी को नष्ट करता हुआ निकल जाता है / भला कौन महावत इसे अंकुश मारेगा !!
इन सब से परे , 'माह के प्रयोक्ता सदस्य' नामित होने पर बिलम्बित बधाई / धन्यवाद निशांत बन्धु /

ndhebar 03-06-2011 11:52 PM

Re: छींटे और बौछार
 
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Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 90449)
भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता (जिसे आजकल 'शार्ट कट' भी कहा जाता है) के मद में चूर चंचल मन झूमते हुए चलता है और सामने आ रही हर वस्तु और प्राणी को नष्ट करता हुआ निकल जाता है / भला कौन महावत इसे अंकुश मारेगा !!

मनुष्य की स्वयं के प्रति निष्ठुरता ही औरों के प्रति निर्दयता में परवर्तित हो जाती है

jai_bhardwaj 04-06-2011 12:14 AM

Re: छींटे और बौछार
 
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Originally Posted by ndhebar (Post 90451)
मनुष्य की स्वयं के प्रति निष्ठुरता ही औरों के प्रति निर्दयता में परवर्तित हो जाती है

सत्य वचन , बन्धु !:bravo:

jai_bhardwaj 04-06-2011 11:20 PM

Re: छींटे और बौछार
 

इतना तो बता दीजे, 'जय' कैसी शरारत है
हमसे ही मुहब्बत है हमसे ही अदावत है

ndhebar 05-06-2011 10:08 AM

Re: छींटे और बौछार
 
कौन हो तुम ?
राह में रोड़ा बनकर खड़े हो |
मन में गहन संताप छिपाए
शुष्क संतप्त वीत राग-से
रात्रि अन्धकार में भी वर्षों से खड़े हो !
कौन हो तुम ?

एक-एक कर कितने ही पथिक आये
देखकर अनदेखा कर गए
इस वीरान धरा पर
निर्जीव-से पड़े हो तुम
कौन हो तुम ?

मई जून की तपती धरा पर
यूँ ही तप रहे हो |
कैक्टस भी तो होता है भला
जो रहता है हर दम हरा !
खुशबू नहीं तो क्या……..
कंटीला होने पर भी सबको हरता !

कितने ही बादल आये , चले गए
कितने ही आंधी तूफ़ान आकर चले गए !
कितने ही राही तुम्हें ठुकराकर चले गए !
फिर अंतर ने महसूस किया—–
कितने निष्ठुर हो तुम
निरे ठूँठ ही हो…….ठूँठ ही हो……!!!!!

jai_bhardwaj 09-06-2011 10:59 PM

Re: छींटे और बौछार
 
मैं धरा हूँ, मैं गगन हूँ
नीर हूँ मैं, मैं अगन हूँ
मैं प्रकृति हूँ और सच भी
सबका जीवन हूँ, पवन हूँ //

मुझको देखो और छुओ भी
जीने दो और खुद जियो भी
तुम प्रकृति को छेड़ कर के
बच न पाओगे, वचन दूं //

तप रहा है जगत सारा
शुष्क होने लगी धारा
जंगलों को काट कर के
जो बना मैं वो भवन हूँ //

लड़कियों का जन्म दुष्कर
बुजुर्गों का मान कमतर
निर्धनों से गबन कर के
जो कमाया मैं वो धन हूँ //

बहुत कुछ पाया है मैंने
पर अधिक खोया है मैंने
चाह करके मर सका ना
ऐसा निष्ठुर 'जय' जीवन हूँ //


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