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jai_bhardwaj 14-01-2013 11:56 PM

Re: छींटे और बौछार
 
फगुनी बयार ले के आ रहा बसंत है

स्फूर्ति आ गयी है जन जन में आज कैसी
सुगंध छा गयी है वातावरण में कैसी
हैरान हैं ये लोग परेशान हैं ये लोग
आज लग रही है हर वस्तु नई जैसी
चौंकिए ना कोई, यह माया अनंत है
फगुनी बयार ले के आ रहा बसंत है


रंगीले पुष्प खिल गए हैं आज डाल डाल पर
भ्रमर यूथ गा रहे हैं आज स्वर ताल पर
ठुमक ठुमक नाच रही तितलियाँ समूह में
लाली आ गयी है आज कलियों के गाल पर
घूँघट की ओट किये बैठी दुल्हन नयी
लज्जा से आँखें नत, सामने ही कन्त है
फगुनी बयार ले के आ रहा बसंत है

स्वागत के लिए खड़े अति विनम्र द्रुम सभी
हरित पट से तन ढके, नग्न थे जो कभी
मुस्कुरा रहा है व्योम, खिलखिला रही धरा
पवन मंद बह रही, खुश हैं खग-मृग सभी
लहलहा रहे हैं आज, सरसों के खेत 'जय'
सुभाशीष दे रहे, जैसे साधु-संत हैं
फगुनी बयार ले के आ रहा बसंत है

jai_bhardwaj 20-01-2013 06:31 PM

Re: छींटे और बौछार
 
जिसे पायलों की धुन समझा, वो बेड़ी की खनखन निकली
जिसे ब्रह्मनाद सी शांति कही, वो अपनों की अनबन निकली
मृगमरीचिका लिए हुए, 'जय' भटक रहा प्रति पल प्रति दिन
मीठे जल की धारा भी क्यों, वारि रहित बलुआ-नद निकली

aksh 20-01-2013 06:44 PM

Re: छींटे और बौछार
 
बशीर बद्र साहब की कुछ लाइने पेश कर रहा हू..!!


परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता

aksh 20-01-2013 06:57 PM

Re: छींटे और बौछार
 
इसी बडे शायर की दो चार लाइने और पेश है..

मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता

कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता

jai_bhardwaj 20-01-2013 07:05 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by aksh (Post 213976)
बशीर बद्र साहब की कुछ लाइने पेश कर रहा हू..!!


परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता

हार्दिक आभार बन्धु .......

बिना परखे बिना जाने, कोई अपना नहीं होता
जो चेहरों को समेटे ना, वो दर्पण तो नहीं होता
मेरे बाजू खुले रहते, निम्न को भी उच्च को भी
बिना बूँदों के मिलने से, सागर 'जय' नहीं होता

rajnish manga 21-01-2013 04:25 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 213971)
जिसे पायलों की धुन समझा, वो बेड़ी की खनखन निकली
जिसे ब्रह्मनाद सी शांति कही, वो अपनों की अनबन निकली
मृगमरीचिका लिए हुए, 'जय' भटक रहा प्रति पल प्रति दिन
मीठे जल की धारा भी क्यों, वारि रहित बलुआ-नद निकली

Quote:

Originally Posted by aksh (Post 213976)
बशीर बद्र साहब की कुछ लाइने पेश कर रहा हू..!!

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता

:bravo:

आप दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया. जितनी सुन्दर और भावप्रवण जय जी द्वारा प्रणीत क्रिया (मूल रचना) है उतनी ही मधुर अक्ष जी की प्रतिक्रिया भी है. बशीर साहब का ही एक शे'र हाज़िर है:

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से.
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फांसले से मिला करो.

jai_bhardwaj 21-01-2013 06:34 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 214224)
:bravo:

आप दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया. जितनी सुन्दर और भावप्रवण जय जी द्वारा प्रणीत क्रिया (मूल रचना) है उतनी ही मधुर अक्ष जी की प्रतिक्रिया भी है. बशीर साहब का ही एक शे'र हाज़िर है:

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से.
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फांसले से मिला करो.


सूत्र भ्रमण एवं मूल्यवान प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक अभिनन्दन रजनीश जी।

नहीं मिलता गले तो क्या, न हाथों को मिलाये तो ?
'जय' अपने जैसा करता है, उन्हें भी अपना करने दो

Ranveer 21-01-2013 09:18 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 213982)
हार्दिक आभार बन्धु .......

बिना परखे बिना जाने, कोई अपना नहीं होता
जो चेहरों को समेटे ना, वो दर्पण तो नहीं होता
मेरे बाजू खुले रहते, निम्न को भी उच्च को भी
बिना बूँदों के मिलने से, सागर 'जय' नहीं होता

सुंदर और आश्चर्यजनक !
भले ही सहज रूप से आपने इसे रच दिया हो पर सच कहूँ तो ऐसी गुणवता के साथ ऐसी कविता लिख देना कोई आसान बात नहीं । :cheers:

jai_bhardwaj 21-01-2013 11:17 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by ranveer (Post 214521)
सुंदर और आश्चर्यजनक !
भले ही सहज रूप से आपने इसे रच दिया हो पर सच कहूँ तो ऐसी गुणवता के साथ ऐसी कविता लिख देना कोई आसान बात नहीं । :cheers:

रणवीर जी, सूत्र पर आपकी सार्थक अभिव्यक्ति के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। अपार आभार बन्धु।

jai_bhardwaj 21-01-2013 11:19 PM

Re: छींटे और बौछार
 
बन्धुओं, आज मैं अपने छोटे भाई के साथ हुई कुछ काव्यात्मक परिचर्चा प्रस्तुत कर रहा हूँ। वर्ष 2001 में वह कारगिल युद्ध का समय चल रहा था। जलसेना में भर्ती हुआ मेरा छोटा भाई "पञ्च" उस समय कोचीन में अपनी ट्रेनिंग ले रहा था। तभी एक दिन उसका एक पत्र मुझे मिला। जी हाँ, पत्र ही संदेशों की कड़ी थे उस समय हम लोगों के मध्य। पारिवारिक चर्चाओं के मध्य उस पत्र में पञ्च ने एक काव्यात्मक खंड भी लिखा था। इस काव्य में निहित कुछ बातों ने मेरे अंतर में द्वंद्व किया और तब मैंने उसे अगले छः सप्ताह तक प्रति सप्ताह एक पत्र लिखा था और प्रत्येक पत्र में एक कविता लिखा थी।

बन्धुओं, मैं उन्ही में से कुछ पंक्तियाँ यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ। शायद आप सभी को रुचिकर लगे।:think::think:


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