भारत के कैलाश सत्यार्थी को नोबेल शांति पु
भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला को नोबेल शांति पुरस्कार |
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नई दिल्ली। 2014 के लिए शांति के नोबेल पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है। इस बार संयुक्त रूप से दो लोगों को यह पुरस्कार दिया गया है। भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। दोनों बच्चों के अधिकारों के लिए काम करते हैं। पुरस्कार मिलने के बाद सत्यार्थी ने सभी भारतीयों को सहयोग के लिए शुक्रिया कहा है। उन्होंने कहा कि उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलना बाल अधिकार अभियान में लगे कार्यकर्ताओं की जीत है। सत्यार्थी ने मलाला के साथ मिलकर बाल मजदूरी रोकने के लिए काम करने की इच्छा जताई है। उन्होंने कहा कि यह दुनिया भर के बच्चों का सम्मान है। आखिरकार, करोड़ों बच्चों की आवाजें सुन ली गईं। दूसरी ओर, नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा करने वाली कमिटी ने सत्यार्थी की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने महात्मा गांधी की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया है। |
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मोदी ने फोन पर दी बधाई, शाम को होगी मुलाकात सत्यार्थी को शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्यार्थी को फोन पर बधाई दी और मिलने के लिए भी बुलाया। सत्यार्थी के मुताबिक, वे आज शाम को ही मोदी से मिलने जाएंगे। |
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ऐसे माहौल में संयुक्त पुरस्कार? यह अजब संयोग है कि एक भारतीय और पाकिस्तानी को संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा ऐसे वक्त में हुई है, जब दोनों देशों की सीमा पर भारी तनाव है। पाकिस्तान लगातार सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रहा है। दोनों देशों की सेनाओं के साथ-साथ नेताओं की बयानबाजी भी जारी है। दूसरी ओर, एक संयोग यह भी है कि शांति का नोबेल पहली बार भारत-पाकिस्तान को संयुक्त रूप से दिया गया है। नोबेल कमिटी ने खास तौर से यह बात कही है कि एक हिंदू और एक मुस्लिम, एक हिंदुस्तानी और एक पाकिस्तानी, दोनों ही बच्चों की पढ़ाई और उनके हक के लिए कट्टरपंथ से संघर्ष कर रहे हैं। |
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80 हजार बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराया 11 जनवरी,1954 को जन्मे और गांधीवादी परंपरा को मानने वाले कैलाश सत्यार्थी मध्य प्रदेश के विदिशा के रहने वाले हैं। उनके संगठन 'बचपन बचाओ आंदोलन' ने अभी तक करीब 80 हजार बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त करवाया है। सत्यार्थी लंबे समय से बच्चों को बाल मजदूरी से हटाकर उन्हें शिक्षा अभियान से जोड़ने की मुहिम चलाते रहे हैं। जबकि सिर्फ 14 साल की मलाला ने 4 साल की उम्र से ही लड़कियों की शिक्षा के पक्ष में आवाज उठाई थी, क्योंकि तब स्वात पर तालिबान के कब्जे के बाद सारे स्कूल बंद कर दिए गए थे। मलाला को आवाज उठाने की कीमत चुकानी पड़ी और स्कूल से लौटते समय आतंकियों ने उन पर हमला कर दिया। आतंकियों ने मलाला के सिर में गोली मार दी, जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए लंदन लाया गया और अब वह लड़कियों की शिक्षा को लेकर पूरे दुनिया का चेहरा बन चुकी हैं। |
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तस्वीर मेंः सत्यार्थी और उनकी पत्नी। सत्यार्थी की सास (बीच में) और उनकी गोद में सत्यार्थी का बेटा। |
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सत्यार्थी की मां (बीच में)। साथ हैं दोनों भाभियां। |
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सत्यार्थी का पूरा परिवार। इनमें शॉल ओढ़े हुए सत्यार्थी दिख रहे हैं। उनके साथ उनकी मां, तीनों भाई, बहन और बड़े भाई की बेटी दिखाई दे रही हैं। |
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