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dipu 03-04-2015 06:43 PM

बालगीत (फ़िल्मों से)
 
रचनाकार: शकील बदायूनी
Happy birthday to you
Happy birthday to you

हम भी अगर बच्चे होते
नाम हमारा होता गबलू बबलू
खाने को मिलते लड्डू
और दुनिया कहती happy birthday to you
happy birthday to you

कोई लाता गुड़िया, मोटर, रेल
तो कोई लाता फिरकी, लट्टू
कोई चाबी का टट्टू
और दुनिया कहती happy birthday to you
happy birthday to you

कितनी प्यारी होती है ये भोली सी उमर
न नौकरी की चिन्ता न रोटी की फ़िक्र
नन्हे-मुन्ने होते हम तो देते सौ हुक्म
पीछे-पीछे पापा-ममी बनके नौकर
चाकलेट , बिस्कुट , टोफ्फी खाते और पीते दुद्दू
और दुनिया कहती happy birthday to you
happy birthday to you

कैसे-कैसे नख़रे करते घरवालों से हम
पल में हँसते पल में रोते करते नाक में दम
अक्कड़-बक्कड़ लुक्का-छुपी कभी छुआ-छू
करते दिन भर हल्ला-गुल्ला दंगा और उधम
और कभी ज़िद पर अड़ जाते जैसे अड़ियल टट्टू
और दुनिया कहती happy birthday to you
happy birthday to you

अब तो है ये हाल के जब से बीता बचपन
माँ से झगड़ा बाप से टक्कर बीवी से अनबन
कोल्हू के हम बैल बने हैं धोबी के गधे
दुनिया भर के डण्डे सर पे खायें दना-दन
बचपन अपना होता तो न करते ढेँचू-ढेँचू
और दुनिया कहती happy birthday to you
happy birthday to you

dipu 03-04-2015 06:44 PM

Re: बालगीत (फ़िल्मों से)
 
रचनाकार: साहिर लुधियानवी
मेरे घर आई एक नन्ही परी
चाँदनी के हसीन रथ पे सवार
मेरे घर आई..

उसकी बातों में शहद जैसी मिठास
उसकी सासों में इतर की महकास
होंठ जैसे के भीगे-भीगे गुलाब
गाल जैसे के बहके-बहके अनार
मेरे घर आई ...

उसके आने से मेरे आंगन में
खिल उठे फूल गुनगुनायी बहार
देख कर उसको जी नहीं भरता
चाहे देखूँ उसे हज़ारों बार
मेरे घर आई ...

मैने पूछा उसे कि कौन है तू
हँसके बोली कि मैं हूँ तेरा प्यार
मैं तेरे दिल में थी हमेशा से
घर में आई हूँ आज पहली बार
मेरे घर आई ...

dipu 03-04-2015 06:44 PM

Re: बालगीत (फ़िल्मों से)
 
रचनाकार: गुलज़ार
लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा
घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा

घोड़ा पहुँचा चौक में, चौक में था नाई
घोड़ेजी की नाई ने हजामत जो बनाई
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
लकड़ी की काठी...

घोड़ा था घमण्डी पहुँचा सब्जी मण्डी
सब्जी मण्डी बरफ पड़ी थी बरफ में लग गई ठंडी
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
लकड़ी की काठी...

घोड़ा अपना तगड़ा है देखो कितनी चरबी है
चलता है महरौली में पर घोड़ा अपना अरबी है
बांह छुड़ा के दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
लकड़ी की काठी...

dipu 03-04-2015 06:44 PM

Re: बालगीत (फ़िल्मों से)
 
रचनाकार: हसरत जयपुरी
सुन लो सुनाता हूँ तुमको कहानी
रूठो ना हमसे ओ गुड़ियों की रानी
रे मामा रे मामा रे...

हम तो गए बाज़ार में लेने को आलू
आलू वालू कुछ न मिला पीछे पड़ा भालू
रे मामा रे मामा रे...

हम तो गए बाज़ार में लेने को लट्टू
लट्टू वट्टू कुछ न मिला पीछे पड़ा टट्टू
रे मामा रे मामा रे...

हम तो गए बाज़ार में लेने को रोटी
रोटी वोटी कुछ न मिली पीछे पड़ी मोटी
रे मामा रे मामा रे...

dipu 03-04-2015 06:45 PM

Re: बालगीत (फ़िल्मों से)
 
रचनाकार: हसरत जयपुरी
क्या नाम है तुम्हारा
तुम किधर से आई हो, बोलो ना, बोलो बोलो

कौन हूँ मैं, क्या नाम है मेरा, मैं कहाँ से आई हूँ
मैं परीयों की शहज़ादी, मैं आसमान से आई हूँ ...

न जापानी गुड़िया हूँ न मैं बंगाल का जादू हूँ
ढूँढ रहे हो सब जिसको मैं वही तुम्हारी खुश्बु हूँ
उड़कर सीधी मैं जन्नत के गुल्सितां से आई हूँ
मैं परियों की शहजादी ...

ख़ान चाचा और चौबे दादा आपस मे क्युँ लड़ते हो
मैंने उनको देखा है तुम जिनकी किताबें पढ़ते हो
राम रहीम वहीं रहते हैं मैं जहाँ से आई हूँ
मैं परियों की शहजादी ...

इक दिन मैंने देखा सोते स्वर्ग के पेहरेदारों को
तोता मैना वाली कहानी होगी याद हज़ारों को
मैं उस तोता मैना वाली दास्तां से आई हूँ
मैं परियों की शहजादी ...

dipu 03-04-2015 06:45 PM

Re: बालगीत (फ़िल्मों से)
 
रचनाकार: आन्नद बख़्शी
आओ बच्चो आज तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ मैं
शेर की कहानी सुनोगे

मेरे पास आओ मेरे दोस्तो एक क़िस्सा सुनो
कई साल पहले की ये बात है
भयानक अंधेरी सियाह रात में
लिये अपनी बन्दूक मैं हाथ में
घने जंगलों से गुज़रता हुआ कहीं जा रहा था
जा रहा था, नहीं आ रहा था, नहीं जा रहा था

ओफ़ ओ आगे भी तो बोलो ना

बताता हूँ बताता हूँ

नहीं भूलती उफ्फ़ वो जंगल की रात
मुझे याद है वो थी मंगल की रात
चला जा रहा था मैं डरता हुआ
हनुमान चालीसा पढ़ता हुआ

बोलो हनुमान की जय
जय बजरंग बली की जय

घड़ी थी अन्धेरा मगर सख़्त था
कोई दस सवा दस का बस वक़्त था
लरज़ता था कोयल की भी कूक से
बुरा हाल हुआ उस पे भूख से
लगा तोड़ने एक बेरी से बेर
मेरे सामने आ गया एक शेर

जो घिघ्घी बँधी नज़र फिर गई
तो बन्दूक भी हाथ से गिर गई

मैं लपका वो झपका, मैं ऊपर वो नीचे
वो आगे मैं पीछे, मैं पेड़ पे वो पीछे
अरे बचाओ -२
मैं डाल-डाल वो पात-पात
मैं पसीना वो बाग़-बाग़
मैं सुर में वो ताल में
ये जंगल पाताल में
बचाओ बचाओ
अरे भागो रे भागो
अरे भागो

फिर क्या हुआ?

ख़ुदा की क़सम मज़ा आ गया
मुझे मार कर बेसरम खा गया

खा गया? लेकिन आप तो ज़िन्दा हैं

अरे ये जीना भी कोई जीना है लल्लू

dipu 03-04-2015 06:45 PM

Re: बालगीत (फ़िल्मों से)
 
रचनाकार: मजरूह सुल्तानपुरी
गुड़िया, हमसे रूठी रहोगी
कब तक, न हँसोगी
देखो जी, किरन सी लहराई
आई रे आई रे हँसी आई
गुड़िया ...

झुकी-झुकी पलकों में आ के
देखो गुपचुप आँखों से झाँके
तुम्हारी हँसी
फिर भी, अँखियाँ बन्द करोगी
गुड़िया ...

अभी-अभी आँखों से छलके
कुछ-कुछ होंठों पे झलके
तुम्हारी हँसी
फिर भी, मुख पे हाथ धरोगी
गुड़िया ...

dipu 03-04-2015 06:46 PM

Re: बालगीत (फ़िल्मों से)
 
रचनाकार: आनंद बख़्शी
गुड़िया रानी बिटिया रानी
परियों की नगरी से इक दिन
राजकुंवर जी आएंगे महलों में ले जाएंगे
गुड़िया रानी बिटिया रानी ...

आगे पीछे घोड़े हाथी बीच में होंगे सौ बाराती
कितनी आज अकेली है तू तेरे कितने होंगे साथी
मैं खुश मेरी आँख में पानी
गुड़िया रानी बिटिया रानी ...

तू मेरी छोटी सी गुड़िया बन जाएगी जादू की पुड़िया
तुझपे आ जाएगी जवानी मैं तो हो जाऊँगी बुढ़िया
भूल ना जाना प्रीत पुरानी
गुड़िया रानी बिटिया रानी ...

dipu 03-04-2015 06:46 PM

Re: बालगीत (फ़िल्मों से)
 
रचनाकार: शकील बदायूनी
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ
छोड़ो जी ये ग़ुस्सा ज़रा हँस के दिखाओ

छोटी-छोटी बातों पे न बिगड़ा करो
ग़ुस्सा हो तो ठण्डा पानी पी लिया करो
खाली-पीली अपना कलेजा न जलाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...

दादी तुम्हें हम तो मना के रहेंगे
खाना अपने हाथों से खिला के रहेंगे
चाहे हमें मारो चाहे हमें धमकाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...

कहो तो तुम्हारी हम चम्पी कर दें
पियो तो तुम्हारे लिये हुक्का भर दें
हँसी न छुपाओ ज़रा आँखें तो मिलाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...

हमसे जो भूल हुई माफ़ करो माँ
गले लग जाओ दिल साफ़ करो माँ
अच्छी सी कहानी कोई हमको सुनाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...

dipu 03-04-2015 06:46 PM

Re: बालगीत (फ़िल्मों से)
 
रचनाकार: शैलेन्द्र
नानी तेरी मोरनी को, मोर ले गए
बाकी जो बचा था, काले चोर ले गए

खाके पीके मोटे होके, चोर बैठे रेल में
चोरों वाला डिब्बा कट कर, पहुँचा सीधे जेल में
नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए ...

उन चोरों की खूब ख़बर ली, मोटे थानेदार ने
मोरों को भी खूब नचाया, जंगल की सरकार ने
नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए ...

अच्छी नानी प्यारी नानी, रूसा-रूसी छोड़ दे
जल्दी से एक पैसा दे दे, तू कंजूसी छोड़ दे
नानी तेरी मोरनी को, मोर ले गए ....


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