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-   -   अघोषित आलसी का इकबालनामा (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1766)

ABHAY 28-12-2010 12:24 PM

Re: अघोषित आलसी का इकबालनामा
 
उधर उस मरघट में
उठती लपटें भी सकूं देती है
चलो, अच्छा ही हुआ,
एक व्यक्ति अपनी मंजिल तक पहुंचा...
तमाम चिंताएं, दुश्वारियां
अग्नि के हवाले कर.
वो निश्चित होकर चल दिया...
और, सब कुछ धुंए में उड़ जाता है.

ABHAY 28-12-2010 12:24 PM

Re: अघोषित आलसी का इकबालनामा
 
दूर घाट के पार अघोरी
जो चिता की आग से
अपनी धूनी जमाये बैठा है
खुनी खोपड़ी - कटा निम्बू,
कुछ सिन्दूर – शास्वत सा.
और मदिरा... आहुति के लिए
अपने कर्म-दुष्कर्म,
मदिरा बन होम कर दिए अग्नि में
और
सब कुछ धुंए में उड़ जाता है.

ABHAY 28-12-2010 12:25 PM

Re: अघोषित आलसी का इकबालनामा
 
और मैं यहाँ ....
अपने घर में....
जहाँ सास-बहु के रिश्तों की सनक
नहीं देखने देती राष्ट्रीय नेताओं की हरकत....
कसमकसा रहा हूँ ...
उस मजदूर का, मरघट का और अघोरी का
धुंवा अंदर भर रहा हूँ..
विद्रोह दबा रहा हूँ...
अग्नि अंदर ही अंदर सुलगा रहा हूँ.
-:-

ABHAY 28-12-2010 12:31 PM

Re: अघोषित आलसी का इकबालनामा
 
सच इस महंगाई में तो पतिव्रता नारी बनना भी कित्ता मुश्किल है....
जाते जाते ......
संता सिंह जब घर पहुंचा तो बीवी ने पूजा की तैयारी कर रखी थी.... घर का वातावरण बहुत आलौकिक लग रहा था..
मैं क्यया भागवान ऐ की कर रही है...
कुज नई, तुवाडा ही स्यापा कर रही हाँ.......


और हाँ, अभी एक मित्र का sms आया है, बिलकुल सटीक बैठ रहा है इस मौके पर :
लक्ष्मी जी का वाहन, उल्लू एक बार नाराज़ हो गया.... बोला ... ये माता, आपकी पूजा दुनिया करती है पर मुझे कोई नहीं पूजता..
इस पर माता बोली... परेशान मत हो.... आज तुने शिकायत की है तो ठीक है. अब मेरी पूजा से ठीक ११ दिन पहले तेरी भी पूजा होगी.. और इसी प्रकार उस दिन को "करवाचौथ" कहा जाने लगा.

ABHAY 28-12-2010 12:45 PM

Re: अघोषित आलसी का इकबालनामा
 
एक पोस्ट गंगा राम की तरफ से.......
बाबा मेरी बात सुनो......, गधा बनना मंज़ूर है ........ पर खुदा किसी को छोटा भाई न बनाये.......
रे गंगा राम के बात हो गयी.

कुछ नहीं बाबा, बस एक बात गधा बनना मंज़ूर है ........ पर खुदा किसी को छोटा भाई न बनाये.......
अरे फिर भी कुछ तो बोलेगा...

अब क्या बोलूं बाबा, घर में हम पांच भाई, मैं सबसे छोटा - गंगा राम..
ठीक है, इसमें के... एक न एक ने तो छोटा होना ही था....... तू हो गया.

नहीं बाबा, तेरा कोई बड़ा भाई है...
नहीं - गंगा राम..... न तो मेरा कोई बड़ा भाई है न ही कोई छोटा...पण तेरे जीसे छोटे-बड़े घने भाई से.....

बाबा, मैं असल की बात करूँ और तू बातां की खान लग रहा....
नहीं गंगा राम, मेरो कोई बड़ो भाई कोणी......
जी बात....

बाबा.... इब मैं अपना दर्द सुनाऊं .......
सुना भाई छोरे....

ABHAY 28-12-2010 12:46 PM

Re: अघोषित आलसी का इकबालनामा
 
पहला बोला, रे गंगाराम, भैंसों ने सानी कर दे हमने सूट और बूट पहन रखे हैं....
ठीक है भैया.....
दूसरा बोला, रे गंगाराम, जा जीजी ने घर छोड़ आ, और हाँ जे सूट और बूट पहर जईओ - इज्जत का सवाल है .... हमने काम ज्यादा है....
ठीक है भैया.....
तीसरा बोला, रे गंगाराम, जा खेता में चला जा, पानी लगा दिए.... आज बिजली रात की है.
ठीक है भैया.....
चोथा बोला, रे गंगा राम, अब ये सूट और बूट तू पहन ले, मेरे पे छोटे हो गए.
ठीक hai
और हाँ, रात चला जाईये, प्रधान जी ने दारू पी राखी होगी.... उने राम राम कर दिए - जरूर, बापू ने मने कही थे.... पर मेरे कपडे ठीक कोणी - तने सूट और बूट पहर रखे हैं

भाई जे है छोटे भाई की दास्ताँ, अगर खुद सूट और बूट पहने तो कोई काम न करे ..... और हमने पहर लिए तो प्रधान जी तैयार........

Hamsafar+ 28-12-2010 12:58 PM

Re: अघोषित आलसी का इकबालनामा
 
बहुत अच्छे . शानदार काम


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