खुशियों के पल
दिल ही दिल में हम गुनगुनाने लगे
आसमा में पंछि बन उड़ जाने लगे भोर की ओस बूंदों को हाथो में ले सहलाने लगे छाई चांदनी थी आकाश में जब पपीहा बन पिहू पिहू के शब्द दोहराने लगे.......... . असीम आनंद की लहरें जब दिल को धड़काने लगे लगे है बयार शीतल सी गुनगुनाने लगे झरनों की बुँदे गीत गाने लगे . आ गए एइसे खुशियों के पल ये सोच सोच हम मुस्कुराने लगे ..... |
Re: खुशियों के पल
प्रकृति के खुले प्रांगण में उल्लास में भरा दिल खो जाना चाहता है- आसमान में पंछी बन कर, चांदनी को देख कर, शीतल पवन और झरने की मादक ध्वनि को सुन कर उनमे डूब जाना चाहता है. प्रकृति और मनुष्य का रिश्ता अनंत और अटूट है. हमारी जितनी भी कलाएं हैं, इसी रिश्ते को पुष्ट करती हैं. बहुत सुंदर कविता. इसे फोरम पर हम सब से शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
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Re: खुशियों के पल
Bahut khoob soni pushpa ji....anand se bhari, ek masoom si kavita ke liye bahut badhai.....
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Re: खुशियों के पल
इतनी सुंदर रचना को हम सबसे शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद।
मन के आनंद के पलों की ; प्रकृति के अलग-अलग मनमोहक स्वरूपों द्वारा बड़ी ही सुंदर अभिव्यक्ति की है आपने। |
Re: खुशियों के पल
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Re: खुशियों के पल
[QUOTE=Pavitra;557245]Bahut khoob soni pushpa ji....anand se bhari, ek masoom si kavita ke liye bahut badhai.....[/
बहुत बहुत धन्यवाद पवित्रा जी इस कविता को पसंद करके इतने प्यारे शब्दों में नवाज़ने के लिए .. |
Re: खुशियों के पल
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