शंखनाद
ये कविता मैंने बाबा रामदेव पर हुए लाठी चार्ज के बाद लिखा था !
सफेद चोले में छिपाते हो कुक्र्मो कि कालिख ईमान बेचने कि याद न होगी तुम्हे तारिख ! शहिदो के लहू का अच्छा सिला दिया भरत पुत्रो ने मा के दुध को तौल दिया काले नोटो ने !! सत्ता के शेष्नागो ने ऐसा उठाया विषैला लहर अपनों ने अपनों पे बर्पा दि लाठियो का कहर ! कूल्वधू बन कर आयि वो नारि जिस देश में वहि कूल्हन्ता निकलि है होलिका के वेश में !! आप इन्सानो कि बात करते है हमने पुतलो को भी ताज पहनाया है ! जिसे वोटो कि सिढि पर चलना सिखाया हम्ने वहि रोन्द रहा है हमे सरे बजार में !! अब तो दुध के दान्त टूट गये भारत के लालो के बहुत सहायि उडेल दि कोरे कागजो पे ! इतिहास दोह्र्राने का समय है,नीव डालने का छू लो चरन सुभाष, भगत का,लगा लो नारा 'जय भारत' का !! आज सोया इक्बाल जागे, बुझे दिन्कर कि लौ उठे हर सीने कि धर्र्कन बढे, सिन्ह्भुम कि गर्ज्जन उठे ! नागिन का सर कुच्ल्ने परशुराम का परशु उठे कुछ करो आज ऐसा कि 'मा भारती' का सर उठे !! कृत - कुनाल स्थान : फ्लोरिडा , अमेरिका |
Re: शंखनाद
अच्छी व्यंग्य कविता है इन समाज के ठेकेदारोँ के लिए |
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Re: शंखनाद
धन्यवाद !! लेकिन इस कविता मैं व्यंग्य से जाएदा क्रोध है...
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Re: शंखनाद
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Re: शंखनाद
सफेद चोले में छिपाते हो कुकर्मों की कालिख
ईमान बेचने की याद न होगी तुम्हें तारीख ! शहीदों के लहू का अच्छा सिला दिया भरत पुत्रों ने मां के दूध को तौल दिया काले नोटों ने !! सत्ता के शेषनागों ने ऎसी उठाई विषैली लहर अपनों ने अपनों पे बर्पा दिया लाठियों का कहर ! कुलवधू बन कर आई वो नारी जिस देश में वहीं कुल-हन्ता निकली है होलिका के वेश में !! आप इंसानों की बात करते हैं हमने पुतलों को भी ताज पहनाया है ! जिसे वोटों की सीढ़ी पर चलना सिखाया हमने वही रौंद रहा है सरे बाज़ार हमें !! अब तो दूध के दांत टूट गए भारत के लालों के बहुत सियाही उंडेल दी कोरे कागजों पे ! इतिहास दोहराने का समय है, नींव डालने का छू लो चरन सुभाष-भगत के, लगा लो नारा 'जय भारत' का !! आज सोया इकबाल जागे, बुझे दिनकर की लौ उठे हर सीने की धड़कन बढ़े, सिंहभूमि की गर्जन उठे ! नागिन का सर कुचलने परशुराम का परशु उठे कुछ करो आज ऐसा कि 'मां भारती' का सर उठे !! |
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