एक छोटी सी कहानी बहुत बड़ी बात कह जाती है.
एक दिन की बात है, एक तेरह चौदह वर्ष की
लड़की की माँ खूब परेशान होकर अपने पति को बोली कि एक तो हमारा एक समय का खाना पूरा नहीं होता और बेटी साँप की तरह बड़ी होती जा रही है. और गाँव के हवसी भेड़िये गिद्ध की तरह इसे देखते हैं. अगर समय पर इसकी शादी न हुई तो हम कहीं के न रहेंगे. भगवान गरीबों को बेटी देता ही क्यों है? इस गरीबी की हालत में इसकी शादी कैसे करेंगे ? |
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बाप भी विचार में पड़ गया. कुछ दिन बाद
माँ बाप ने गाव के ही एक दबंग के बेटे को लड़की को बूरी नजर से घूरते हुए देखा पर कमजोरी वश कुछ कर नहीं पाये दोनों ने दिल पर पत्थर रख कर एक फैसला किया कि कल बेटी को मार कर गाड़ देंगे . दुसरे दिन का सूरज निकला , माँ ने लड़की को खूब लाड प्यार किया , अच्छे से नहलाया , बार - बार उसका सर चूमने लगी . यह सब देख कर लड़की बोली : माँ मुझे कही दूर भेज रहे हो क्या ? |
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वर्ना आज तक आपने मुझे ऐसे कभी प्यार नहीं किया ,
माँ केवल चुप रही और रोने लगी , तभी उसका बाप हाथ में फावड़ा और चाकू लेकर आया माँ ने लड़की को सीने से लगाकर बाप के साथ रवाना कर दिया .रास्ते में चलते - चलते बाप के पैर में कांटा चुभ गया , बाप एक दम से निचे बैठ गया , बेटी से देखा नहीं गया. उसने तुरंत कांटा निकालकर फटी चुनरी का एक हिस्सा पैर पर बांध दिया . बाप बेटी दोनों एक जंगल में पहुचे. बाप फावड़ा लेकर एक गड्ढा खोदने लगा. बेटी सामने बेठे - बेठे देख रही थी , थोड़ी देर बाद गर्मी के कारण बाप को पसीना आने लगा . |
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बेटी बाप के पास गयी और पसीना पोछने के लिए
अपनी चुनरी दी .बाप ने धक्का देकर बोला, ' तू दूर जाकर बैठ ।' थोड़ी देर बाद जब बाप गड्ढा खोदते - खोदते थक गया , बेटी दूर से बैठे -बैठे देख रही थी, जब उसको लगा की पिताजी शायद थक गये तो पास आकर बोली पिताजी आप थक गये है . |
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लाओ फावड़ा में खोद देती हु आप थोडा आराम कर लो .
मुझसे आप की तकलीफ नहीं देखी जाती . यह सुनकर बाप ने अपनी बेटी को गले लगा लिया, उसकी आँखों में आंसू की नदिया बहने लगी , उसका दिल पसीज गया , बाप बोला : बेटा मुझे माफ़ कर दे , यह गड्ढा में तेरे लिए ही खोद रहा था . |
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और तू मेरी चिंता करती है , अब
जो होगा सो होगा, तू हमेशा मेरे कलेजे का टुकड़ा बन कर रहेगी. में खूब मेहनत करूँगा और तेरी शादी धूम धाम से करूँगा - !! आत्महत्या या हत्या कायरता है. सुख दुःख तो अपना साथी है. और कन्या कि हत्या करना तो सबसे बड़ा पाप है। संघर्ष ही जीवन है । |
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सारांश : बेटी तो भगवान की अनमोल भेंट और प्रसाद है,
यह भी अपने समाज का एक कलंक ही है कि बहुत से दरिंदे इस समाज में ऐसे हैं जो किसी भी बहन बेटी को गन्दी नजर से देखते हैं. ऐसे भेड़ियों को न ही बच्चे दिखायी देते हैं और न बड़े. बेटा - बेटी दोनों समान है , उनका एक समान पालन करना हमारा फ़र्ज़ है। परमात्मा के कार्य मे हम फैसला लेने वाले कौन होते हैं। |
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कहानी का दूसरा पक्ष : हालांकि उन माँ-बाप ने
मजबूरी में उस कदम को उठाया, लेकिन ये कदम भी गलत ही था. हम इस कहानी को यहाँ लिख रहे है. लाजमी नहीं है कि यह कहानी यहाँ पढ़ने वालों के स्तर की न हो, लेकिन मुझे लगा कि शायद समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कहीं से भी प्रेरणा लेकर एक बदलाव कि कोशिश करते हैं. धन्यवाद" |
Re: एक छोटी सी कहानी बहुत बड़ी बात कह जाती है.
रुलाओगे क्या गुरु !!!!!!!!!
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