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-   -   अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें........... (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=9601)

rajnish manga 02-12-2014 11:24 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by mansar80 (Post 540807)
तुम्ही बताओ प्यार तुमसे कैसे करें
दिल के हर कोने में तुम ही तुम हो
फिर दूसरा एहसास वहाँ पैदा कैसे करें
कत्ले आम मचा रखा है तुम्हारे एहसास ने
थोडी सी जगह खाली कर दो तो प्यार तुम से करें



(अज्ञात)


रोशनी रोशनी चिल्लाओगे तुम याद रखो
कैसे मुमकिन है कि सूरज हो ज़िबह शाम न हो

कोई पहुंचा दे मेरी आखिरी ख्वाहिश उन तक
जो मेरे साथ हुआ उसका चलन आम न हो

(बालस्वरुप राही)



Dr.Shree Vijay 03-12-2014 06:01 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 540861)

रोशनी रोशनी चिल्लाओगे तुम याद रखो
कैसे मुमकिन है कि सूरज हो ज़िबह शाम न हो

कोई पहुंचा दे मेरी आखिरी ख्वाहिश उन तक
जो मेरे साथ हुआ उसका चलन आम न हो

(बालस्वरुप राही)






हम उन्हें, वोह हमें भुला बैठे,
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे,
आंधियो! जाओ अब करो आराम!
हम खुद अपना दिया बुझा बैठे...........

(खुमार बाराबंकवी)


rajnish manga 04-12-2014 07:27 AM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by dr.shree vijay (Post 540878)

हम उन्हें, वोह हमें भुला बैठे,
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे,
आंधियो! जाओ अब करो आराम!
हम खुद अपना दिया बुझा बैठे...........

(खुमार बाराबंकवी)


ठीक है ये दर्द तुमने ही दिया मुझको
पर तुम्हें मैं दर्द का कारण न मानूं तो

दे रहे हो तुम खुले बाजार का नारा
मैं तुम्हारी बात जन-गण-मन न मानूं तो

(ओम प्रकाश चतुर्वेदी पराग)

soni pushpa 20-01-2015 02:07 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
[QUOTE=rajnish manga;540898][size=4]ठीक है ये दर्द तुमने ही दिया मुझको
पर तुम्हें मैं दर्द का कारण न मानूं तो

दे रहे हो तुम खुले बाजार का नारा
मैं तुम्हारी बात जन-गण-मन न मानूं तो



तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?
सब द्वारों पर भीड़ मची है,
कैसे भीतर जाऊं मै
द्बारपाल भय दिखलाते हैं,
कुछ ही जन जाने पाते हैं

तेरी विभव कल्पना कर के,
उसके वर्णन से मन भर के,
भूल रहे हैं जन बाहर के
कैसे तुझे भुलाऊं मैं?................

0
मैथिलीशरण गुप्त... Maithili Sharan Gupt
(गुणगान)

rajnish manga 24-01-2015 06:43 AM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 547116)

तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?
सब द्वारों पर भीड़ मची है,
कैसे भीतर जाऊं मै
द्बारपाल भय दिखलाते हैं,
कुछ ही जन जाने पाते हैं

तेरी विभव कल्पना कर के,
उसके वर्णन से मन भर के,
भूल रहे हैं जन बाहर के
कैसे तुझे भुलाऊं मैं?................

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मैथिलीशरण गुप्त... Maithili sharan gupt
(गुणगान)

उक्त सुंदर कविता के लिए व सूत्र को गति प्रदान करने के लिए आपका धन्यवाद, पुष्पा सोनी जी. अर्ज़ किया है:

मुंह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में........खामोशी पहचाने कौन

(निदा फ़ाज़ली)

Suraj Shah 06-03-2015 05:17 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 547360)
उक्त सुंदर कविता के लिए व सूत्र को गति प्रदान करने के लिए आपका धन्यवाद, पुष्पा सोनी जी. अर्ज़ किया है:

मुंह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में........खामोशी पहचाने कौन

(निदा फ़ाज़ली)


नाकामियों ने और भी सरकश बना दिया,
इतने हुए जलील, की खुददार हो गए...

(अज्ञात)


rajnish manga 08-03-2015 09:33 AM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
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Originally Posted by suraj shah (Post 549045)

नाकामियों ने और भी सरकश बना दिया,
इतने हुए जलील, की खुददार हो गए...

(अज्ञात)


ऐसे नगर में रहना भी किस काम का भला
जिसके करीब में कोई बहती नदी न हो
ज़िद पर तो अड़ गए हो मगर सोच लो ज़रा
जिस बात पर अड़े हो, कहीं खोखली न हो
(अनु जसरोटिया)

bindujain 08-03-2015 01:46 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 549091)
ऐसे नगर में रहना भी किस काम का भला
जिसके करीब में कोई बहती नदी न हो
ज़िद पर तो अड़ गए हो मगर सोच लो ज़रा
जिस बात पर अड़े हो, कहीं खोखली न हो
(अनु जसरोटिया)



हर तरफ सद्भावना का संचार होना चाहिए
आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए
ज़र्फ़ देहलवी

rajnish manga 08-03-2015 05:41 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by bindujain (Post 549095)


हर तरफ सद्भावना का संचार होना चाहिए
आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए
ज़र्फ़ देहलवी

एक पत्ता हवा का सिम्त-नुमा
एक पत्थर निशान मंजिल का
इक सितारा था आसमान में कम
मैंने नुक्ता लगा दिया दिल का
सिम्त-नुमा = दिशा बताने वाला यंत्र
(शकील ग्वालियरी)

bindujain 08-03-2015 08:45 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 549117)
एक पत्ता हवा का सिम्त-नुमा
एक पत्थर निशान मंजिल का
इक सितारा था आसमान में कम
मैंने नुक्ता लगा दिया दिल का
सिम्त-नुमा = दिशा बताने वाला यंत्र
(शकील ग्वालियरी)




किताबों में मेरे फ़साने ढूँढ़ते है,
नादान हैं गुज़रे ज़माने ढूँढ़ते है.
जब वोह थे....!! तलाश-इ-ज़िन्दगी भी थी,
अब तो मौत के ठिकाने ढूँढ़ते है


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