Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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सरे आइना मेरा अक्स है,पसे आइना कोई और है. मैं किसी के दस्ते तलब में हूँ तो किसी के हर्फे दुआ में हूँ मैं नसीब हूँ किसी और का मुझे मांगता कोई और है अज़ब ऐतबारों पे ऐतबार के दरमियान है ज़िंदगी मैं करीब हूँ किसी और के मुझे जानता कोई और है तुझे दुश्मनों की खबर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं तेरी दास्तां कोई और थी मेरा वाकया कोई और है वही मुन्सिफों की रिवायतें वही फैसलों की इबारतें मेरा जुर्म तो कोई और था ये मेरी सजा कोई और है जो मेरी रियाज़ते नीम शब को सलीम सुबहो न मिल सके तो फिर इसके माने तो ये हुए की यहाँ खुदा कोई और है. |
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हम तो चले पदेश हम परदेशी हो गए छुटा अपना देश हम परदेशी हो गए.................. |
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इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल
जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल इक दिन बिक जायेगा ... ला ला ललल्लल्ला (अनहोनी पग में काँटें लाख बिछाए होनी तो फिर भी बिछड़ा यार मिलाए ) \- (२) ये बिरहा ये दूरी, दो पल की मजबूरी फिर कोई दिलवाला काहे को घबराये, तरम्पम, धारा, तो बहती है, बहके रहती है बहती धारा बन जा, फिर दुनिया से डोल एक दिन ... (परदे के पीछे बैठी साँवली गोरी थाम के तेरे मेरे मन की डोरी ) \- (२) ये डोरी ना छूटे, ये बन्धन ना टूटे भोर होने वाली है अब रैना है थोड़ी, तरम्पम, सर को झुकाए तू, बैठा क्या है यार गोरी से नैना जोड़, फिर दुनिया से डोल एक दिन ... |
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बात मतलब की करूँगा होश आ जाने के बाद |
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देखेगी मुखड़ा अपना अब से जवानी दिल के दाग़ में बरसेगा कैसे सावन कैसे पड़ेंगे झूले बाग़ में बैन करेंगे ख़्वाब कुंवारे दो दिल टूटे दो दिल हारे मैं न रहूँगी लेकिन गूँजेंगे आहें मेरे गाँव में अब न खिलेगी सरसों अब न लगेगी मेहंदी पाँव में अब न उगेंगे चाँद सितारे दो दिल टूटे दो दिल हारे प्यार तुम्हारा देखा देखा तुम्हारा आँखें मोड़ना तोड़ के जाना दिल को खेल नहीं है दिल का तोड़ना तड़पोगे तुम भी साथ हमारे दो दिल टूटे दो दिल हारे |
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राही मनवा दुःख कि चिंता क्यों सताती है दुःख तो अपना साथी है, सुख है एक छाव ढलती आती हैं जाती है दुःख तो अपना साथी है............ |
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तेरा जवाब नहीं हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं कोई तुझ-सा नहीं हज़ारों में हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं तू है ऐसी कली जो गुलशन में साथ अपने बहार लायी हो तू है ऐसी किरण जो रात ढले चाँदनी में नहा के आयी हो ये तेरा नूर ये तेरे जलवे जिस तरह चाँ.द हो सिता.रों में हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं तेरी आँखों में ऐसी मस्ती है जैसे छलके हुए हों पैमाने तेरे होंठों पे वो खामोशी है जैसे बिखरे हुए हों अफ़साने तेरी ज़ुल्फ़ों की ऐसी रंगत है जैसे काली घटा बहारों में हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं तेरी सूरत जो देख ले शायर अपने शेरों में ताज़गी भर ले एक मुसव्विर जो तुझ को पा जाए अपने ख़्वाबों में ज़िंदगी भर ले नग़मागर ढूँढ ले अगर तुझ को दर्द भर ले वो दिल के तारों में हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं कोई तुझ-सा नहीं हज़ारों में हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं |
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तुलसी स्वारथ मीत सब परमारथ रघुनाथ. |
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जब मेरा यार आ जाये तो जम के बरस, पहले ना बरस की वो आ ना सके, फिर इतना बरस की वो जा ना सके ... |
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किस रुत के मुंतज़िर हैं ये पेड़ रास्तों पर खुद धूप में खड़े हैं, साया मुसाफिरों पर |
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