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singhtheking 19-10-2011 05:18 PM

नेहरु भी चाहते थे कश्मीर में जनमत संग्रह
 
नेहरु भी चाहते थे कश्मीर में जनमत संग्रह :: अरुंधति राय

सुप्रसिद्ध अधिवक्ता और टीम अन्ना के सदस्य प्रशांत भूषण, कश्मीर में जनमत संग्रह कराये जाने संबंधी अपने विचारों के कारण विवादों के घेरे में हैं. पिछले दिनों उनके कार्यालय में कुछ गुंडों ने उन पर हमला भी किया. प्रशांत भूषण ने केवल वही बातें कही हैं, जिसे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु लगातार दुहराते रहे हैं. साल भर पहले कश्मीर पर अपनी साफ राय रखने के कारण अदालत के आदेश पर लेखिका अरुंधति राय पर भी मुकदमा दर्ज किया गया था. न्यायालय के आदेश पर अरुंधति राय ने पिछले साल 28 नवंबर को 'वे जवाहरलाल नेहरू पर भी मृत्योपरांत मामला चला सकते हैं' शीर्षक लेख की शक्ल में जवाब दिया था. यहां हम अरुंधति राय के उस लेख का अनिल एकलव्य द्वारा किया अनुवाद पेश कर रहे हैं.

singhtheking 19-10-2011 05:18 PM

Re: नेहरु भी चाहते थे कश्मीर में जनमत संग्रह
 
न्यायालय द्वारा आज के उस आदेश के बारे में, जिसमें दिल्ली पुलिस को मेरे खिलाफ़ राज्य के विरुद्ध युद्ध चलाने के लिए एफ़ आई आर दर्ज करने का निर्देश दिया गया है, मेरी प्रतिक्रिया यह है: शायद उन्हें जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ़ भी मृत्योपरांत मामला दर्ज करना चाहिए. कश्मीर के बारे में उन्होंने यह सब कहा था:

1. पाकिस्तान के मुख्य मंत्री को भेजे गए एक तार में भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा, "मैं यह बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि इस आपातकाल में कश्मीर की मदद करने का सवाल किसी भी तरह से उसके भारत में विलय को प्रभावित करने से नहीं जुड़ा है. हमारा मत, जिसे हम बार-बार सार्वजनिक करते रहे हैं, यह है कि किसी भी विवादग्रस्त इलाके या राज्य के विलय का सवाल वहाँ के लोगों की इच्छाओं के अनुसार ही होना चाहिए और हम इस विचार पर कायम हैं." (तार 402, Primin-2227, दिनांकित 27 अक्तूबर, 1947, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को, उसी तार को दोहराते हुए जो यू. के. के प्रधानमंत्री को भेजा गया था).

singhtheking 19-10-2011 05:19 PM

Re: नेहरु भी चाहते थे कश्मीर में जनमत संग्रह
 
2. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भेजे गए एक अन्य पत्र में पंडित नेहरू ने कहा, "कश्मीर के भारत में विलय को हमने महाराजा की सरकार के और राज्य की सर्वाधिक जनसमर्थन वाली संस्था, जो कि मुख्यतया मुस्लिम है, के अनुरोध पर ही माना था. तब भी इसे इस शर्त पर स्वीकृत किया गया था कि जैसे ही कानून-व्यवस्था बहाल हो जाएगी, कश्मीर की जनता विलय के सवाल का निर्णय करेगी. ये निर्णय उन्हें लेना है कि वे किस देश में विलय को स्वीकार करें." (तार सं. 255 दिनांकित 31 अक्तूबर, 1947) .

singhtheking 19-10-2011 05:19 PM

Re: नेहरु भी चाहते थे कश्मीर में जनमत संग्रह
 
विलय का मुद्दा

3. 2 नवंबर, 1947 को आकाशवाणी पर राष्ट्र के प्रसारित नाम अपने संदेश में पंडित नेहरू ने कहा, "संकट के इस समय में हम यह सुनिश्चत करना चाहते हैं कि कश्मीर के लोगों को अपनी बात कहने का पूरा मौका दिए बिना कोई भी फैसला न लिया जाए. अंततः निर्णय उन्हें ही लेना है... और मैं यह साफ़ कर देना चाहूंगा कि हमारी नीति यही रही है कि जहाँ भी किसी राज्य के दोनों में से एक देश में विलय के बारे में विवाद हो, विलय पर निर्णय उस राज्य के लोगों को ही लेना चाहिए. इसी नीति के तहत हमने कश्मीर के विलय के समझौते में यह शर्त शामिल की थी."

4. 3 नवंबर, 1947 को राष्ट्र के नाम एक अन्य प्रसारण में पंडित नेहरू ने कहा, "हमने यह घोषणा की है कि कश्मीर के भाग्य का निर्णय अंततः वहाँ की जनता के द्वारा ही किया जाएगा. यह वचन हमने केवल कश्मीर के लोगों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को दिया है. हम इससे पीछे नहीं हटेंगे और हट भी नहीं सकते."

5. पाकिस्तान के प्रं. मं. को लिखे अपने एक पत्र सं. 368 Primin, दिनांकित 21 नवंबर, 1947, में पंडित नेहरू ने कहा, "मैंने बार-बार यह वक्तव्य दिया है कि जैसे शांति तथा व्यवस्था स्थापित हो जाएगी, कश्मीर को किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था, जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ, के तत्वावधान में जनमत (प्लेबीसाइट या रेफ़रेंडम) के द्वारा विलय का फ़ैसला करना चाहिए."

singhtheking 19-10-2011 05:20 PM

Re: नेहरु भी चाहते थे कश्मीर में जनमत संग्रह
 
संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में

6. भारतीय संविधान सभा में 25 नवंबर, 1947 को अपने वक्तव्य में पंडित नेहरू ने कहा, "हमारे सद्भाव को प्रमाणित करने के लिए हमने यह प्रस्ताव रखा है कि जब जनता को अपने भविष्य का फ़ैसला करने का अवसर दिया जाए तो ऐसा किसी निष्पक्ष ट्राइब्यूनल के तत्वावधान में होना चाहिए, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र संघ. कश्मीर में मुद्दा यह है कि भविष्य का फ़ैसला नग्न ताकत से होना चाहिए या फिर जनता की इच्छा से."

7. भारतीय संविधान सभा में 5 मार्च, 1948 को अपने वक्तव्य में पंडित नेहरू ने कहा, "विलय के समय भी हमने अपेक्षा से आगे जा कर यह एकतरफ़ा घोषणा की थी कि हम जनमत में कश्मीर की जनता द्वारा लिए गए निर्णय का सम्मान करेंगे. हमने आगे यह भी ज़ोर देकर कहा था कि कश्मीर की सरकार तुरंत एक लोकप्रिय सरकार होना चाहिए. हम लगातार इस वचन पर कायम रहे हैं और जनमत (प्लेबीसाइट) कराने के लिए तैयार हैं, जिसमें न्यायपूर्ण मतदान करने की पूरी सुरक्षा हो तथा हम कश्मीर के लोगों के निर्णय का पालन करने के लिए भी वचनबद्ध हैं.

singhtheking 19-10-2011 05:21 PM

Re: नेहरु भी चाहते थे कश्मीर में जनमत संग्रह
 
रेफ़रेंडम या प्लेबीसाइट

8. लंदन में 16 जनवरी, 1951 को अपनी प्रेस कान्फ़रेंस में, जैसा कि दैनिक 'स्टेट्समैन' ने 18 जनवरी, 1951 को अपनी रिपोर्ट में बताया, पंडित नेहरू ने कहा, "भारत ने बार-बार संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ काम करने का प्रस्ताव रखा है ताकि कश्मीर की जनता अपनी राय प्रकट कर सके और हम उसके लिए हमेशा तैयार हैं. हमने एकदम शुरू से ही इस बात को माना है कि कश्मीर के लोगों अपने भाग्या का फ़ैसला करने का हक है, चाहे रेफ़रेंडम के द्वारा या प्लेबीसाइट के द्वारा. बल्कि सच तो यह है कि हमारा ऐसा प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ के बनने के बहुत पहले से है. अंततः मुद्दे का फ़ैसला तो होना ही है, जिसे आना चाहिए, सबसे पहले तो मुख्यतः कश्मीर की जनता की तरफ़ से, और फिर पाकिस्तान और भारत के बीच सीधे तौर पर. और यह भी याद रखा जाना ही चाहिए कि हम (भारत और पाकिस्तान) बहुत से मुद्दों पर अनेक समझौतों पर पहले ही पहुँच चुके हैं. मेरे कहने का अर्थ है कि कई मूलभूत बातें निपटाई जा चुकी हैं. हम सब इस बात से सहमत हैं कि कश्मीर की जनता को ही अपने भविष्य के बारे में निर्णय लेना होगा, चाहे भीतर या बाहर. यह जाहिर बात है कि हमारे समझौते के बिना भी कोई देश कश्मीर पर कश्मीरियों की इच्छा के विरूद्ध अपनी पकड़ बना कर नहीं रखने वाला.

singhtheking 19-10-2011 05:21 PM

Re: नेहरु भी चाहते थे कश्मीर में जनमत संग्रह
 
9. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को अपनी रिपोर्ट में 6 जुलाई, 1951 को स्टेट्समैन में 9 जुलाई, 1951 को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पंडित नेहरू ने कहा, "कश्मीर को गलत तौर पर भारत और पाकिस्तान के बीच एक इनाम के रूप में देखा गया है. लोग शायद भूल जाते हैं कि कश्मीर कोई बिकाऊ माल या अदला-बदली की चीज़ नहीं है. उसका अपना अलग अस्तित्व है और वहाँ के लोग ही अपने भाग्य के अंतिम निर्णायक हो सकते हैं. यहीं पर एक संघर्ष फल-फूल रहा है, युद्धभूमि में नहीं, बल्कि जनमानस में."

10. 11 सितंबर, 1951 को संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि को अपने पत्र में पंडित नेहरू ने लिखा, "भारत सरकार न केवल इस बात को दृढ़तापूर्वक दोहराती है कि उसने इस सिद्धांत को माना है कि जम्मू तथा कश्मीर के विलय के जारी रहने के सवाल का हल जनतांत्रिक तरीके से संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जनमत-संग्रह के द्वारा हो, बल्कि वो इस बात के लिए भी चिंतित है कि इस जनमत-संग्रह के लिए ज़रूरी हालात जितनी जल्दी हो सके तैयार किए जाएँ."

singhtheking 19-10-2011 05:22 PM

Re: नेहरु भी चाहते थे कश्मीर में जनमत संग्रह
 
वचनबद्धता

11. अमृत बाज़ार पत्रिका, कलकत्ता, में 2 जनवरी, 1952 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय विधानमंडल में डॉ. मुकर्जी के इस प्रश्न के जवाब में कि कांग्रेस सरकार उस एक तिहाई इलाके के बारे में क्या करने जा रही है जिस पर अब भी पाकिस्तान का कब्ज़ा है, पंडित नेहरू ने कहा, "यह भारत या पाकिस्तान की संपत्ति नहीं है. इस पर कश्मीरी लोगों का हक है. जब कश्मीर का भारत में विलय हुआ था, तब हमने कश्मीरी लोगों के सामने यह स्पष्ट कर दिया था कि अंततः हम उनके जनमत-संग्रह के फैसले का सम्मान करेंगे. अगर वो हमें बाहर निकल जाने के लिए कहते हैं, तो मुझे बाहर आने में कोई हिचक नहीं होगी. हम मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र तक ले गए और हमने शांतिपूर्ण हल के प्रति अपना वचन दिया है. एक महान राष्ट्र होने के नाते उससे पलट नहीं सकते. हमने अंतिम हल का सवाल कश्मीर के लोगों पर छोड़ दिया है और हम उनके फ़ैसले पर अमल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं."

12. भारतीय संसद में 7 अगस्त, 1952 को अपने वक्तव्य में पंडित नेहरू ने कहा, "मैं यह बात एकदम स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि हम इस मूलभूत प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं कि कश्मीर का भविष्य अंततः वहाँ के लोगों की सद्भावना और इच्छा से निर्धारित किया जाएगा. इस मामले में इस संसद की सद्भावना और इच्छा का कोई महत्व नहीं है, इसलिए नहीं कि संसद के पास कश्मीर प्रश्न को हल करने कि शक्ति नहीं है, बल्कि इसलिए कि किसी भी तरह की ज़बरदस्ती उन सिद्धांतों के खिलाफ़ होगी जिन्हें यह संसद मानती है. कश्मीर के लिए हमारे दिलों और दिमागों में बहुत जगह है और अगर वो किसी निर्णय या प्रतिकूल परिस्थिति के कारण भारत का अंग नहीं रहता तो यह हमारे लिए बहुत कष्ट और संताप की बात होगी. फिर भी, अगर, कश्मीर की जनता हमारे साथ नहीं रहना चाहती तो उन्हें अपनी राह जाने का पूरा हक है. हम उन्हें उनकी इच्छा के विरूद्ध रोक कर नहीं रखेंगे, चाहे हमारे लिए यह कितनी ही कष्टदाई क्यों न हो. मैं ज़ोर देकर कहना चाहता हूँ कि सिर्फ़ कश्मीर के लोग ही कश्मीर के भाग्य का निर्णय कर सकते हैं. ऐसा नहीं है कि हमने संयुक्त राष्ट्र संघ से और कश्मीर की जनता से सिर्फ़ ऐसा कहा है, हमारा यह दृढ़ विश्वास है और यह उस नीति पर आधारित है जिसका हम पालन करते रहे हैं, सिर्फ़ कश्मीर में ही नहीं बल्कि सब जगह. हालांकि इन पाँच सालों में हमारे सब कुछ करने के बाद भी बहुत परेशानी और खर्चा हुआ है, हम स्वेच्छा से छोड़ने के लिए तैयार हैं यदि हमारे सामने यह स्पष्ट हो जाए कि कश्मीर के लोग चाहते हैं कि हम चले जाएं. हम चाहे कितना भी उदास अनुभव करें, हम लोगों की इच्छा के विरूद्ध रुकने वाले नहीं हैं. हम खुद को संगीन की नोक पर उनके ऊपर काबिज नहीं करना चाहते."

singhtheking 19-10-2011 05:22 PM

Re: नेहरु भी चाहते थे कश्मीर में जनमत संग्रह
 
कश्मीर की आत्मा

13. लोक सभा में 31 मार्च, 1955 को अपने बयान में, हिंदुस्तान टाइम्स में 1 अप्रैल, 1955 को छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, पंडित नेहरू ने कहा, "भारत और पाकिस्तान के बीच सभी समस्याओं में शायद सबसे कठिन समस्या कश्मीर है. हमें यह याद रखना चाहिए कि कश्मीर कोई वस्तु नहीं है जिसे भारत और पाकिस्तान के बीच ठेला जाए, बल्कि उसकी अपनी एक आत्मा है और अपना एक व्यक्तित्व है. बिना कश्मीर के लोगों की इच्छा और सद्भावना के कुछ भी नही किया जा सकता."

14. सुरक्षा समिति की 765वीं बैठक, जो कश्मीर के बारे में थी, में भाग लेते हुए सुरक्षा समिति को दिए अपने एक बयान में भारतीय प्रतिनिधि श्री कृष्णा मेनन ने कहा, "जहाँ तक हमारा सवाल है, मैंने इस समिति को अब तक जितने बयान दिए हैं उनमें से किसी में एक शब्द भी ऐसा नहीं है जिसका अर्थ यह लगाया जा सके कि हम अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का सम्मान नहीं करेंगे. मैं दस्तावेज़ों में दर्ज करने के उद्देश्य से यह कहना चाहता हूँ कि भारत सरकार की ओर से ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया है जिससे ज़रा सा भी अंदेशा हो कि भारत सरकार या भारतीय संघ उन अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों की अवमानना करेगा, जिनका पालन करने का उसने वचन दिया था."


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