महाभारत के पात्र: कुंती
महाभारत के पात्र: कुंती
सनातन धर्म के सबसे प्रमुख काव्य ग्रन्थ होने के साथ ही महाभारत विश्व का सबसे लम्बा सहित्यिक ग्रन्थ भी कहलाता है. महाभारत की कथा में अनेक पात्र ऐसे है जिन्हे हमेशा से सवालों के घेरे में रखा गया है. जिनमे से महाभारत की एक प्रसिद्ध पात्र कुंती भी है जो पांडवो की माता थी. |
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महाभारत के पात्र: कुंती
महाभारत की कथा में कुंती ने अनेक ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय लिए थे जो समाज की दृष्टि में गलत ठहराए जाते है. जैसे महारथी एवं दानशील योद्धा कहलाने वाले कर्ण के जन्म के समय कुंती ने उन्हें नदी में बहा दिया था जिसे अधिकतर लोग सही नहीं मानते. इसी के साथ ही एक अन्य गलतफहमी के कारण कुंती ने अपने पुत्रों को आदेश दिया था की वह द्रोपदी को पांचो भाइयो में बाट ले. अधिकत्तर लोगो द्वारा खासकर बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा कुंती का यह निर्णय उचित नहीं ठहराया जाता. |
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लेकिन यदि इन सभी बातो से ऊपर उठकर गहराई से सोचे तो महाभारत के अनेक पात्र पूर्वजन्म या बचपन के श्राप एव समस्याओं से गुजर चुके है. जिसके कारण उनका व्यक्तित्व एवं उनका कर्म उसी प्रकार प्रभावित हुआ है. कुंती भी इस बात का अपवाद रही है. क्या आप कुंती के जन्म से जुड़े रहस्य को जानते है तथा उनके वास्तविक नाम के बारे में जानते है. महाभारत की अनेक कथाओ में कुंती के जन्म से संबंधित तथ्यों के बारे में नहीं बताया गया है. अनेक टीवी सीरियल्स में भी कुंती के जन्म से जुडी कथाओ के बारे में नहीं बताया गया है. आज हम आपको कुंती के जन्म से संबंधित रहस्यों के बारे में बताने जा रहे है जिनका योगदान महाभारत के युद्ध में भी रहा. यदुवंश के प्रसिद्ध राजा शूरसेन भगवान श्री कृष्ण के पितामाह थे जिनकी पुत्री का नाम पृथा था. शूरसेन के फुफेरे भाई कुंतीभोज की कोई संतान नहीं थी. इसलिए शूरसेन ने कुन्तिभोज को वरदान दिया था की उनकी पहली संतान वे उसे गोद दे देंगे. फलस्वरूप शूरसेन की पहली पुत्री हुई पृथा जिसे शूरसेन ने कुन्तिभोज को गोद दे दिया. कुन्तिभोज के कारण ही पृथा का नाम कुंती पड़ा. >>> |
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एक बार कुंती के यहाँ दुर्वाशा ऋषि पधारे तथा कुंती ने उनकी खूब सेवा सत्कार किया. कुंती की सेवा से ऋषि दुर्वासा संतुष्ट हुए तथा कुंती को वरदान दिया कि वह मन्त्र के उच्चारण के साथ जिस भी देवता का ध्यान करेगी उसे उस देवता के ही समान पुत्र की प्राप्ति होगी. जब कुंती राजकुमारी थी और अविवाहित थी तब मन्त्र को परखने के लिए कुंती ने सूर्य देवता का स्मरण करते हुए मन्त्र का उच्चारण किया जिसके फलस्वरूप कुंती को कर्ण की प्राप्ति हुई. परन्तु कुंती ने लोकलाज के डर से कर्ण को नदी में प्रवाहित कर दिया. बाद में कुंती का विवाह हस्तिनापुर के राजा पाण्डु से हुआ. परन्तु एक श्राप के कारण विवाह के कुछ वर्षो के पश्चात है उनकी मृत्यु हो गई थी. कुंती के अन्य तीन पुत्रों में कुंती द्वारा मंत्र के जाप से धर्मराज के आह्वाहन पर युधिस्ठर का जन्म हुआ वायु के आह्वाहन पर भीम व देवराज इंद्र के आह्वाहन पर अर्जुन का जन्म हुआ था. |
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जैसे की पहले बता चुके हैं पांचों पांडवों का जन्म पिता के होते हुए भी अनोखे रूप में हुआ। एक बार राजा पांडु अपनी दोनों पत्नियों कुंती तथा माद्री के साथ आखेट के लिए वन में गए। वहां उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दिखाई दिया । पांडु ने तत्काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। मरते हुए मृग ने पांडु को शाप दिया, “राजन! तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा। तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है अतः जब कभी भी तू मैथुनरत होगा, तेरी मृत्यु हो जाएगी।” इस शाप से पांडु अत्यन्त दुःखी हुए और अपनी रानियों से बोले, “हे देवियों! अब मैं अपनी समस्त वासनाओं का त्याग कर के इस वन में ही रहूंगा तुम लोग हस्तिनापुर लौट जाओ” उनके वचनों को सुन कर दोनों रानियों ने दुःखी होकर कहा, “नाथ! हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकतीं। आप हमें भी वन में अपने साथ रखने की कृपा कीजिए।” पांडु ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर के उन्हें वन में अपने साथ रहने की अनुमति दे दी। >>> |
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इसी दौरान राजा पांडु ने अमावस्या के दिन ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिए जाते हुए देखा। उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को साथ ले जाने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा, “राजन्! कोई भी निःसंतान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता अतः हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं।” ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पांडु अपनी पत्नी से बोले, “हे कुंती! मेरा जन्म लेना ही व्यर्थ हो रहा है क्योंकि संतानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिए मेरी सहायता कर सकती हो?” कुंती बोली, “हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मंत्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूं। आप आज्ञा दीजिए मैं किस देवता को बुलाऊं।” इस पर पांडु ने धर्म को आमंत्रित करने का आदेश दिया। धर्म ने कुंती को पुत्र प्रदान किया जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया। >>> |
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कालान्तर में पांडु ने कुंती को पुनः दो बार वायुदेव तथा इंद्रदेव को आमंत्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम तथा इंद्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात् पांडु की आज्ञा से कुंती ने माद्री को उस मंत्र की दीक्षा दी। माद्री ने अश्वनी कुमारों को आमंत्रित किया और नकुल तथा सहदेव का जन्म हुआ। एक दिन राजा पांडु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यन्त रमणीक था और शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पांडु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन में प्रवृत हुए ही थे कि शापवश उनकी मृत्यु हो गई। माद्री उनके साथ सती हो गई किन्तु पुत्रों के पालन-पोषण के लिए कुंती हस्तिनापुर लौट आई। |
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महाभारत की कहानी में कर्ण और कुंती का पुत्र-माँ का सम्बन्ध था, परन्तु इस बात से पांडव और कर्ण अनभिज्ञ थे. कौरव पांडव युद्ध के समय कुंती कर्ण से मिलने जाती हैं और उसे यह बताती हैं कि वो उनका पुत्र है अतः पांडव उसके भाई हैं. कर्ण दुर्योधन से अपनी मित्रता निभाते हुए किसी भी सहायता से मना कर देता है. कर्ण की मृत्यु के बाद कुंती पांडवों से यह बताती है कि कर्ण उनका बड़ा भाई था. इस बात जानकर सभी पांडव खासकर युधिष्ठिर बहुत दुखी और क्रोधित हुए. उन्हें लगा कि अगर कर्ण उनका बड़ा भाई था तो वह भी उचित सम्मान और अधिकार का पात्र था. उनकी माँ कुंती ने यह बात इतने वर्षों तक उनसे छुपायी रखी, इसी बात युधिष्ठिर इतना कुपित हुए कि उन्होंने सम्पूर्ण स्त्री जाति को ही श्राप देने का निश्चय किया. युधिष्ठिर ने श्राप दिया कि औरतें किसी भी बात को अधिक समय तक गुप्त नहीं रख पायेंगी. लोग कहते हैं कि औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती वो कही न कहीं, किसी न किसी से अवश्य बता देती हैं. वैसे इस बात में कितनी सच्चाई है इसके सम्बन्ध में बताना मुश्किल है. |
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