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Sikandar_Khan 04-11-2010 05:46 PM

प्रणय रस
 
वासना के चषक छलके
ज्योति के अलोक झलके
व्योम में द्युति हर्ष कौँधा
मूर्छना मेँ सफर डूबा
भोग के आयाम से ही
सर्जना मेँ सत्य डूबा
सृष्टि के वरदान झलके
ज्योति के अलोक झलकेँ
सत्य का स्थान ले जब
अहम बोला
श्रृष्टि ने जब संयमी
आयुध के बोध झलके
ज्योति के आलोक झलके
मै , सहित पर भी यहां है
द्वैत का संभ्रम तना है
दृष्टि पर पर्दे पड़े हैँ
सत्य पर संशय घना है
नौ रसोँ के सेतू झलके
ज्योति के अलोक झलकेँ
________________________
साभारः ऋतुपर्णा
द्वाराः शशि भूषण अवस्थी

Sikandar_Khan 04-11-2010 05:55 PM

रूप प्यास की बदरी छाई
 
रूप प्यास की बदरी छाई
मन आंगन मेँ झड़ी लगाई
धुली विरह की काली राख
स्नेहिल मन कतकी की रात
मन बौराया तन ललचाया
बांकी छावि ने धूम मचाया
आज वर्जता प्रश्न नया रव
किरन किरन कतकी की
रात बदरी के घूंघट मेँ चंदा
लुकछिप खिले चांदनी फंदा
अरमानोँ का उजाला पाख
महक रही कतकी की रात
मन का चोर निकल
कर भागा
सोया अपनापन फिर जागा
फिर से जगी प्रीति की साख
सुरासिक्त कतकी की रात
_________________________
साभारः ऋतुपर्णा
द्वाराः शशि भूषण अवस्थी

Sikandar_Khan 04-11-2010 06:25 PM

दृगोँ का घूंघट उघारो
 
दृगोँ का घूंघट उघारो
मधुमिलन के इन क्षणोँ को; ह्रदय के पट पर उघारो,
दृगोँ का घूंघट उघारो,
शर्म को देकर तिलांजलि;
आज प्रिय उन्मुक्त होओ आज अलिंगन सुरा;
छककर पियो उन्मत्त होओ हम पढ़ेँ संस्पर्श आखर;
जो मिलन की आदि भाषा कामना का संसार धरती
पर उतारो
दृगोँ का घूंघट उघारो
रह न जाये आज कोई प्यास या ख्वाहिश अधूरी
बांध लो आकाश मुटठी मे मिटायेँ आज दूरी
इस अनंगी यज्ञ मे;
हर द्वैत का हम दहन कर देँ युग्म बन अद्वैत जीवन
मे उतारो
दृगोँ का घूंघट उघारो
________________________
साभारः ऋतुपर्णा
द्वाराः शशि भूषण अवस्थी

aksh 04-11-2010 08:23 PM

बहुत सुन्दर सूत्र है अनुज सिकंदर. बहुत बहुत साधुवाद !

ndhebar 04-11-2010 11:27 PM

सिकन्दर भाई मैं यहाँ आपको स्पष्ट कर दूँ की ऐसा हो सकता की आपके इस सूत्र में जवाब कम आये
पर इससे विचलित मत होना मेरे भाई
इसका कारन है की बहुत कम लोग ऐसे विषयों में रूचि रखते हैं
पर कुछ लोग जो इसे पसंद करते हैं उनके लिए आपका ये सूत्र अमृत कलश स्वरुप हैं
और उन्ही लोगों के लिए सूत्र की निरन्तरता बनाये रखना

Sikandar_Khan 04-11-2010 11:36 PM

Quote:

Originally Posted by ndhebar (Post 9969)
सिकन्दर भाई मैं यहाँ आपको स्पष्ट कर दूँ की ऐसा हो सकता की आपके इस सूत्र में जवाब कम आये
पर इससे विचलित मत होना मेरे भाई
इसका कारन है की बहुत कम लोग ऐसे विषयों में रूचि रखते हैं
पर कुछ लोग जो इसे पसंद करते हैं उनके लिए आपका ये सूत्र अमृत कलश स्वरुप हैं
और उन्ही लोगों के लिए सूत्र की निरन्तरता बनाये रखना

मित्र निशांत जी
आपका हार्दिक आभार
हमारा प्रयास जारी रहेगा

jalwa 05-11-2010 12:06 AM

बेहद मादक और उत्तेजक,
भाई सिकंदर सूत्र तुम्हारा.
जारी रखना यूँही हमेशा,
कीमती ये प्रयास तुम्हारा.


बेहद बेहतरीन सूत्र और आपकी रचनाएं. धन्यवाद

Sikandar_Khan 05-11-2010 07:18 AM

Quote:

Originally Posted by jalwa (Post 9976)
बेहद मादक और उत्तेजक,
भाई सिकंदर सूत्र तुम्हारा.
जारी रखना यूँही हमेशा,
कीमती ये प्रयास तुम्हारा.


बेहद बेहतरीन सूत्र और आपकी रचनाएं. धन्यवाद

मित्र जलवा जी
सूत्र भ्रमण और सुझाव के लिए आपका हार्दिक आभार

Sikandar_Khan 05-11-2010 07:26 AM

कामना की पलक हिलते
 
कामना की पलक हिलते
ह्रदय के पट बंद खुलते स्वांस मेँ रस छंद घुलते
सृष्टि मेँ नव स्वप्न खिलते रूप मेँ श्रृंगार मचले
सर्जना का
भावना संगीत बनती
अर्चना मे ज्योति घुलती
वंदना मे प्रीति बहती
दृगोँ को नव सृष्टि मिलती
बोध मे सत्कार मचले
व्यंजना का
अक्षरोँ के बंध खुलते
छंद के मीड़न सम्हलते
रसोँ के मकरंद खिलते
सर्जना को व्योम मिलते गान मे उल्लास मचले
कामना का
________________________
साभारः ऋतुपर्णा
द्वाराः शशि भूषण अवस्थी

Sikandar_Khan 05-11-2010 07:37 AM

बजे वासना भी शहनाई
 
बजे वासना भी शहनाई
मन डोले,
तन बोले
कोष कोष मे सूत्र लिखे हैँ आखर ब्रह्रा के
रूपोँ के रूपाकारोँ मेँ भाव भंगिमा के
रचे गीत नूतन तरूणाई
मन बोले,
तन डोले
भाव भाव संवेग सुहावन
स्नेहिल बंधन के
अंतहीन रूपक जीवन की रचना गंगा के
मौसम लेते हैँ अंगड़ाई
मन डोले
तन बोले
अथक, अनगिनत,रामकथा मे प्रहसन लीला के
सद सौ असद भाव रूपोँ के शिवकी करूण के
सांस करे सुर की पहुनाई
मन डोले,
तन बोले


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