Re: " कबीर के दोहे "
चार जातकी मिले भय्या बनी खाटकी धोरीरे ।
कहत कबीरा सुन भाई साधु फुकदिया जैसी फागकी होरीरे ॥ |
Re: " कबीर के दोहे "
कायकूं माया जोडीरे । नर काय कूं माया जोडीरे ॥
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Re: " कबीर के दोहे "
जमीन खोदीनें माया उडीरे । तो कहेगा माया थोडी रे ॥
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Re: " कबीर के दोहे "
तांबा पितलको तो पार न आवे । पण काढीके खोखरी दोणी रे ॥
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Re: " कबीर के दोहे "
तीन गज कपडो लोक लाजको । उपर डाभकी दोरी रे ॥
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Re: " कबीर के दोहे "
दो चार बटवा लेई चलेगा । तूं तो चढ बैठे बासकी घोडीरे ॥
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Re: " कबीर के दोहे "
कहत कबीरा सुन भाई साधु । फुकदिया जैसी होली रे ॥
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Re: " कबीर के दोहे "
कर गुजरान गरिबोंमें मगरूरी किसपर करतारे ॥
मट्टी चुन चुन मेहल बनायो लोक कहे घर मेरारे । ना घर तेरा ना घर मेरा चुरिया रहे बसेलरे ॥ |
Re: " कबीर के दोहे "
ये दुनियामें कोई नहीं आपना । आपना कहेतारे ।
कची मटीका बना तूं पुतला घडी पलकमें ढलतारे ॥ |
Re: " कबीर के दोहे "
ये दुनियामें नाटक चेटक भुला भटकता फिरतारे ।
कहत कबीरा सुन भाई साधु एक सच्चा एक झूटारे ॥ |
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