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rajnish manga 05-11-2017 12:53 PM

ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017) कृष्णा सोबती को
 
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ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017) कृष्णा सोबती को
KRISHNA SOBTI

rajnish manga 05-11-2017 12:59 PM

Re: ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017) कृष्णा सोबती को
 
ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017) कृष्णा सोबती को
krishna sobti

साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार साल 2017 के लिए हिन्दी की शीर्षस्थ कथाकार कृष्णा सोबती को प्रदान किया जायेगा.

ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई के मुताबिक, साल 2017 के लिए दिया जाने वाला 53वां ज्ञानपीठ पुरस्कार हिंदी साहित्य की मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती को साहित्य के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रदान किया जाएगा.

उन्होंने बताया कि पुरस्कार चयन समिति की बैठक में इसका निर्णय किया गया. पुरस्कार स्वरूप कृष्णा सोबती को 11 लाख रुपए, प्रशस्ति पत्र और प्रतीक चिह्न प्रदान किया जाएगा.

rajnish manga 05-11-2017 12:59 PM

Re: ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017) कृष्णा सोबती को
 
ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017) कृष्णा सोबती को
krishna sobti

कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी, 1925, पंजाब के शहर गुजरात में (जो अब पाकिस्तान में है) हुआ। पचास के दशक से आपने लेखन आरम्भ किया और आपकी पहली कहानी, 'लामा' 1950 में प्रकाशित हुई। आप मुख्यत: उपन्यास, कहानी, संस्मरण विधाओं में लिखती हैं। 'डार से बिछुड़ी, ज़िंदगीनामा, ए लड़की, मित्रो मरजानी, हम हशमत आपकी मुख्य कृतियाँ हैं।

कृष्णा सोबती को उनके उपन्यास 'ज़िंदगीनामा' के लिए साल 1980 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था. इसके अलावा उनको साहित्य शिरोमणि सम्मान, शलाका सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, साहित्य कला परिषद पुरस्कार, कथा चूड़ामणि पुरस्कार प्राप्त हुये. वह साहित्य अकादमी की फेलोशिप से भी सम्मानित की जा चुकीं हैं।

rajnish manga 05-11-2017 02:25 PM

Re: ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017) कृष्णा सोबती को
 
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ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017) कृष्णा सोबती को
krishna sobti

rajnish manga 18-11-2017 06:41 AM

Re: ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017) कृष्णा सोबती को
 
कृष्णा सोबती / krishna sobti
ज़िंदगीनामा: एक परिचय

कृष्णा सोबती अविभाजित पंजाब मूल की लेखिका हैं। उन्होंने अपनी कहानियों में अविभाजित पंजाब की जीवंत संस्कृति के जो चित्र प्रस्तुत किए हैं जो उनके ‘जिंदगीनामा’ नामक उपन्यास को प्रेमचन्द के गोदान’, यशपाल के झूठा सच’, अज्ञेय के शेखर : एक जीवनी’, जैनेन्द्र कुमार के त्याग पत्र’, अमृतलाल नगर के बूँद समुद्र’, फणिश्वरनाथ रेणु के मैला आँचलऔर श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारीकी श्रेणी में ला खड़ा करते हैं।

1979 में यह उपन्यास प्रकाशित हुआ। 392 पृष्ठ के इस उपन्यास में विभाजन पूर्व पंजाब के जन-जीवन और संस्कृति का अद्भुत पुनःसृजन किया गया है। लेखिका काअपनी मातृभूमि और संस्कृति से गहरा लगाव है और वह उपन्यास के शुरू मेंकविता-रूप में पाठक के सामने आता है।लेखन को जीवन का पर्याय मानने वालीकृष्णा सोबती जीकी क़लम से उतरा यह एक ऐसा उपन्यास है जो सचमुच ज़िन्दगी का पर्याय है और उसका नाम हैज़िन्दगीनामावास्तव में यह उपन्यास पारंपरिक उपन्यास से भिन्न है। इसमें न कोई नायकहै, न कोई खलनायक। सिर्फ़ लोग, और लोग, और लोग। यह उपन्यास जीवनानुभव केअनुसार अपना ढाँचा स्वयं बनाता है।

इस उपन्यास में कथा तो कम है, दृश्योंका एक लगातार क्रम है। लेखिका ने डेरा जट्टा गांव की यादों को दृश्य मेंबांधकर प्रस्तुत किया है। उस गांव में बसे हिन्दू, मुसलमान और सिख समुदायकी ज़िन्दगी के अनेक चित्र सांस्कृतिक बिंबों के ज़रिए प्रस्तुत किया गया है।शाहजी के परिवार को केन्द्र में रखकर प्रेम कथाएं, लोहड़ी, ईद, दशहारा, बैशाखी उत्सव के चित्र और अनेकों कहानियों का संगम है यह उपन्यास। इसकेपन्नों में आपको बादशाह और फ़क़ीर, शहंशाह, दरवेश और किसान एक साथ खेतों कीमुँडेरों पर खड़े मिलेंगे, एक भीड़ के रूप में। एक भीड़ जो आमजन की भीड है, एकऐसी भीड़ जो हर काल में, हर गांव में, हर पीढ़ी को सजाए रखती है।


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