कुतुबनुमा
मित्रो ! आज मैं फोरम पर अपना ब्लॉग शुरू कर रहा हूं ! यह शीर्षक इसलिए कि मैं कभी इसी शीर्षक से एक सायंकालीन अखबार में प्रतिदिन समाज के प्रति अपने सरोकारों का प्रतिदान किया करता था ! मैं प्रयास करूंगा कि समाज में उठ रहे ज्वलंत मुद्दों पर अपने विचारों से आपको प्रतिदिन अवगत कराऊं, कभी समयाभाव के कारण यह संभव नहीं हो पाया, तो मेरा प्रयास रहेगा कि किसी एक दिन दो-तीन मुद्दों को अपनी टिप्पणी में शामिल कर लूं ! धन्यवाद !
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Re: कुतुबनुमा
व्यर्थ है विरोध के लिए 'विरोध'
लोकसभा में बतौर रेल मंत्री पहली बार बजट पेश कर रहे दिनेश त्रिवेदी ने बुधवार को जब कहा कि रेलवे बहुत कठिनाई के दौर से गुजर रही है और उसके कंधे और कमर झुक गई है, तो लगा पिछले आठ बरस में जो रेल बजट पेश हुए, उनमें कहीं न कहीं इस सचाई को वास्तव में छिपाया गया कि दुनिया की सबसे बड़ी परिवहन व्यवस्था भारतीय रेल उस खुशनुमा हालत में नहीं है, जैसी कि बजट में दिखाई जाती रही है, वरना वर्तमान रेल मंत्री को यह नहीं कहना पड़ता कि रेलवे ‘आईसीयू’ में है और अगर यात्री किराए में बढ़ोतरी नहीं की गई, तो हालात काफी खराब हो सकते हैं। रेलवे की परिचालन लागत में लगातार हो रही बढ़ोतरी के अलावा सुरक्षा व खानपान समेत अनेक ऐसे विषय हैं, जहां खर्च निरन्तर बढ़ रहा है। इसी को ध्यान में रखकर रेल मंत्री ने सभी श्रेणियों के रेल यात्री किराए में दो पैसे से 30 पैसे प्रति किलोमीटर वृद्धि करने के साथ रेल टिकट की न्यूनतम दर 4 रूपए से बढ़ाकर 5 रूपए करने की घोषणा की है। अब भले ही विपक्षी दल ‘परम्परा’ के तहत किराए में बढ़ोतरी का विरोध करें या तृणमूल कांग्रेस के ही कोटे से मंत्री बने दिनेश त्रिवेदी की पार्टी की मुखिया भी उन पर किराए में बढ़ोतरी वापस लेने का दबाव बढ़ाएं, लेकिन रेल बजट में जो कुछ सकारात्मक प्रस्ताव किए गए हैं, उनसे परिचालन लागत को कम करने में तो अवश्य मदद मिलेगी; साथ ही रेलवे को अपनी क्षमता बढ़ाने का अवसर भी प्राप्त होगा। इसके अलावा रेल मंत्री रेलवे सुरक्षा को अब भी कमजोर पहलू मानते हुए, उसे यूरोप और जापान जैसी विश्व की आधुनिक रेल प्रणालियों वाली सुरक्षा की कसौटी पर खरा उतारना चाहते हैं । आंकड़े भी कहते हैं कि देश में 40 प्रतिशत से अधिक रेल दुर्घटनाएं बिना चौकीदार वाले फाटकों पर होती हैं अर्थात स्पष्ट है कि यात्री को सुरक्षित रेल सफर चाहिए, रेल में मिलने वाला खाना भी बेहतर होना चाहिए और यात्रा भी आरामदायक चाहिए तो कहीं न कहीं जेब तो ढीली करनी पड़ेगी ही। हालात तो हम देख ही रहे हैं। पिछले आठ बरसों में रेल किराया नहीं बढ़ा, तो उसके बदले सुविधाएं भी कितनी बढ़ी? ज़ाहिर है कि केवल विरोध के लिए विरोध देश के रेल परिवहन की दशा नहीं सुधार सकता। |
Re: कुतुबनुमा
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व्यर्थ है विरोध के लिए 'विरोध' ek dum sahi hai |
Re: कुतुबनुमा
भाई जान आप ने बहुत अच्छी तरह से यह मुद्दा उठाया हैँ
लेकिन नतीजा भी वही होगा ढाक के तीन पात किराया चाहे मर्जी जितना बढा ले ले देकर यात्री होगा बदहाल ही क्षमा करे यह मेरी अपनी सोच हैँ |
Re: कुतुबनुमा
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Re: कुतुबनुमा
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ठीक कहा है भाई जी अगर गाय को निरंतर दूध निकलते रहे और खाने को कुछ न दे , तो वो गाय कितने दिन दूध देगी रेलवे को आज ट्रेन की संख्या बढ़ने की बजाये उसकी स्पीड बढ़ने की और ध्यान देना होगा और स्पीड बढ़ने के लिए उसका पटरी वाला ढ़ांच मजबूत करना पड़ेगा जिसके लिए पैसे की जरूरत होगी वो कहाँ से आएगा |
Re: कुतुबनुमा
अब आप थोड़ी महंगी सिगरेट, थोड़ी सस्ती माचिस से सुलगाएं
मित्रो ! अगर आप मेरा सूत्र 'एकदम ताज़ा ख़बरें' देखते हैं, तो आप सवाल करेंगे कि केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत बजट पर उसमें मैंने बतौर 'प्रतिक्रिया' सिर्फ सरकारी पक्ष प्रस्तुत किया है ! एक भी विपक्षी दल की प्रतिक्रिया नहीं दी ! ऐसा क्यों ? वज़ह सिर्फ यह है कि आप सब जानते हैं कि विपक्ष का काम सिर्फ आलोचना करना है, लेकिन उनकी किसी टिप्पणी में तार्किक बात नहीं होती ! यह बजट जन-विरोधी है, यह ग़रीबों का जीना मुश्किल कर देगा, जनता की कमर करों के बोझ से दोहरी हो गई है और ... इसी प्रकार की टिप्पणियां हम पिछले साठ साल से निरंतर सुन रहे हैं और अब कान पक चुके हैं ! हां, सिर्फ सत्ता पक्ष के विचार प्रस्तुत करने के पीछे मेरा मकसद क्या है, यह मैं स्पष्ट किए देता हूं ! मेरी कामना है कि जिन मतदाताओं ने इन्हें संसद में भेजा है और इस काबिल बनाया है कि यह मंत्री बन कर ऐश करें, वही ... हां, वही जनता इनके विचारों अथवा कहें कि 'अपनी ढफली, अपना राग' से अवगत अवश्य हो, ताकि उसे इनका गला पकड़ने में आसानी हो और वह इनसे साधिकार कह सके, "महाशय, बहुत हुआ ! अब आप नीचे आ जाइए !" आपने यदि गौर से पढ़ा हो, तो एक 'मज़ाक' पर आपकी नज़र अवश्य गई होगी - 'सिगरेट महंगी, माचिस सस्ती !' यानी अब आप थोड़ी महंगी सिगरेट, थोड़ी सस्ती माचिस से सुलगाएं ! यह बजट ऐसे तमाम मजाकों से भरा हुआ है ! लेकिन ज़रा ठहरिए, इस मज़ाक में भी एक गंभीर बात छिपी हुई है, वह यह कि देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि आज एक माचिस एक रुपए में आती है ! आप उसकी कीमत कितनी कम करेंगे ? दस-बीस ... पच्चीस पैसे ? अगर कोई वित्त मंत्री से पूछे, "महाशय, ये सारे सिक्के तो आप बंद कर चुके हैं, फिर इस कम कीमत का फायदा जनता को क्या हुआ - उसे तो माचिस अब भी एक रुपए में ही मिलेगी ! इस एक माचिस की न कोई रसीद मिलती है, न किसी उपभोक्ता फोरम में इसकी कोई शिकायत ही की जा सकती है ! ऎसी स्थिति में यह फायदा किसकी जेब में जा रहा है? क्या आप कालेधन पर काबू पाने की घोषणा करते हुए उसे बढ़ाने के लिए कई और खिड़कियां नहीं खोल रहे हैं ? ... तो मेरे विचार से किसी के पास कोई जवाब नहीं है ! अगर आप आंकड़ों पर गौर करेंगे, तो दादा का कौशल अथवा चतुराई, साफ़ आपके समझ आ जाएगी ! वैसे दोष इसमें दादा का भी नहीं है, क्योंकि अब तक लगभग सभी वित्त मंत्री यही करते रहे हैं ! पिछले सालों में पेश हुए तमाम बजट की 'सस्ता यह हुआ' सूची पर नज़र डालें, नज़र तकरीबन ऎसी ही चीजें आएंगी - मच्छरदानी, चिमटा, कपड़ा धोने का साबुन, झाडू, कान कुरेदने वाली सलाई, स्वेटर बुनने वाली सलाई, लालटेन, खुरपी, चम्मच, गमछा ... आदि ! दरअसल ऎसी सामग्री बजट को ग्राम्योंमुखी साबित करने के लिए पूरी तरह मुफीद है ! यह अनुभव कर अफ़सोस होता है कि देश की अधिकांश शहरी जनता तो आज के ग्रामीण भारत से वाकिफ है ही नहीं, देश के लिए योजनाएं बनाने का जिम्मा जिन लोगों ने संभाल रखा है, उन्होंने भी कभी गांव देखा ही नहीं ! इन्हें कौन बताए, कि महाशय जिस वाशिग मशीन, टीवी, कार, एसी और फ्रिज पर आप कर बढ़ा रहे हैं, वह आज ग्रामीण भारत के लिए सामान्य चीजें हैं ! यहां मैं उन गांवों की बात नहीं कर रहा, जहां आपकी 'कृपा' से अब तक बिजली ही नहीं पहुंची है और जो आदिम अवस्था में जीने के कारण किसानों की आत्महत्याओं का अभिशाप झेलने को विवश हैं, लेकिन अब अधिकांश ग्राम्य भारत वह नहीं है, जैसा आप सोचते हैं ! कृपया गांव को देखें ... समझें और फिर उसके लिए बजट बनाएं ! यह कतई न सोचें कि देश की जनता निपट मूर्ख है, 'जैसी पट्टी हम पढ़ाएंगे, पढ़ लेगी' ! यह भूल एक दिन बहुत महंगी साबित होगी, ऐसा मेरा मानना है ! |
Re: कुतुबनुमा
प्रधानमंत्री का यह दुखद सच
जब मैं यह खबर पढ़ रहा था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में घोषणा की है कि रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी का इस्तीफा मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेज दिया गया है और नए रेल मंत्री मुकुल राय कल प्रातः दस बजे शपथ ग्रहण करेंगे, तो मेरे मस्तिष्क में सबसे पहले उभरने वाला विचार था - यह भारतीय संसदीय इतिहास का वह दुखद क्षण है जिसने अंततः यह साबित कर दिया कि श्री मनमोहन सिंह देश के इतिहास के अब तक के सबसे असहाय और निर्बल प्रधानमंत्री हैं ! मेरे विचार से आप सभी को याद होगा कि इन्हीं मुकुल राय को इन्हीं प्रधानमंत्री ने कुछ अरसा पहले अपनी अवज्ञा के लिए रेल राज्य मंत्री पद से हटाया था ! जिन्हें स्मरण नहीं है, उनके लिए उल्लेख करता चलूं कि असम में हुई एक रेल दुर्घटना के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तत्कालीन रेल राज्य मंत्री मुकुल राय को दुर्घटना स्थल जाकर हालात का जायजा लेने के निर्देश दिए थे ! संवेदनहीनता की यह पराकाष्ठा थी कि जहां राय को स्वेच्छा से जाना चाहिए था, वहां वह प्रधानमंत्री के निर्देश के बावजूद नहीं गए ! इससे खफा प्रधानमंत्री ने उनका विभाग बदल दिया था ! अब वही राय तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के अनुपम हठ के कारण बढ़े हुए दर्जे के साथ रेल मंत्री बनने जा रहे हैं ! यह मेरे विचार से भारतीय इतिहास को कलंकित करने वाली दुर्घटना है ! इससे सिर्फ मनमोहन सिंह का ही व्यक्तित्व उजागर हुआ हो, ऐसा नहीं है; इस घटना ने कवयित्री, दार्शनिक, चिन्तक और जुझारू नेत्री मानी जाने वाली ममता बनर्जी के कुछ आवरण भी हटा दिए हैं ! एक बेहतर लेखक की सबसे बड़ी पहचान एक श्रेष्ठ मनुष्य भी है ! कहा गया है कि श्रेष्ठ लेखक वही हो सकता है, जो एक बेहतर इंसान भी हो और बेहतर इंसान की पहली शर्त संवेदनशीलता है ! कुछ मित्र कह सकते हैं कि इस मामले में तो ममताजी बाजी मार ले गईं, क्योंकि उन्होंने अपनी संवेदनशीलता के कारण ही जनता के लिए यह जंग लड़ी है ! लेकिन यह साफ़ समझा जाना चाहिए कि मामला सिर्फ किराया बढ़ोतरी ही नहीं है, इसके पीछे बहुत कुछ है ! अगर ऐसा ही होता, तो आज ममता बनर्जी के सुर में यह बदलाव नहीं आया होता कि ऊपरी श्रेणी के किराए में वृद्धि मंजूर की जा सकती है, लेकिन निचली श्रेणी के में नहीं ! यही शर्त उन्होंने त्रिवेदी के समक्ष रखी होती और उन्होंने नहीं मानी होती, यह तर्क तभी चल सकता था ! घटनाक्रम स्पष्ट संकेत दे रहा है कि राय पर वे कुछ अतिरिक्त मेहरबान हैं और इसी कारण वे ऐसे ही किसी पल की शिद्दत से प्रतीक्षा कर रही थीं, जिसमें वे मनमोहन सिंह को बता सकें कि संप्रग की यह सरकार उनके रहमो-करम पर है और वे एक कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं हैं ! यदि ऐसा नहीं है, तो सवाल यह है कि मुकुल राय ही क्यों ? क्या अठारह-उन्नीस सांसदों में एकमात्र वे ही इतने योग्य हैं कि उनके लिए बढ़ाए गए किराए में कमी के साथ कुछ समझौता भी मंजूर है ! और अंत में - किसी मित्र ने मुझे बताया कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के एक जिक्र के रूप में एक एसएमएस संचार जगत में तेज़ी से फ़ैल रहा है, वह कुछ इस प्रकार है ! नरेंद्र मोदी ने कहा कि मुझे एक एसएमएस मिला, जिसमें कहा गया था कि मनमोहन सिंह को ऑस्कर अवार्ड मिला है ! मैंने भेजने वाले से पलट कर पूछा, भाई मनमोहन सिंह को ऑस्कर कैसे मिला? उन्होंने बताया, "प्रधानमंत्री के रूप का श्रेष्ठ अभिनय करने के लिए !" |
Re: कुतुबनुमा
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Re: कुतुबनुमा
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राज +निती राज करना हो तो निती से करो |
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