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Rajat Vynar 22-02-2015 06:32 PM

आस्था पर आग
 
प्रायः आस्तिकों का सदैव से यही तर्क रहा है कि जहाँ पर हमारी आस्था की बात है वहाँ पर किसी प्रकार का प्रश्नचिह्न लगाना हमारी सहनशक्ति से बाहर की बात है। इसलिए हमारी ‘आस्था पर आँच’ नहीं आनी चाहिए। ऐसा कहने वाले आस्तिक लेखक वर्ग पर सदैव से यही आरोप लगाते रहे हैं कि लेखक वर्ग की कृतियों से उनकी ‘आस्था पर आँच’ ही नहीं, ‘आस्था पर आग’ लग जाती है। 'आस्था पर आग' लगाने वाले लेखकों में सलमान रुश्दी, तसलीमा नसरीन, वेंडी डोंनिगर और चित्रकारों में एम॰एफ॰ हुसैन का नाम अग्रणी रहा है। एम॰एफ॰ हुसैन ने तो देवी-देवताओं का विवादास्पद अश्लील चित्र तक बना डाला। हमने इनकी तरह न तो किसी तरह का कोई विवादास्पद अश्लील चित्र बनाया और न ही अपनी ओर से देवी-देवताओं पर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी की। जो भी लिखा है वह सब कुछ देवी-देवताओं की आपसी बातें हैं। रचना में हास्य-व्यंग्य का पुट लाने के उद्देश्य से हमने इनकी बातों का आधुनिकीकरण मात्र किया है। ‘मन्दिर बन्द’ का एकमात्र केन्द्रीय विचार है- ‘मन्नतें पूरी नहीं होतीं’। यही बात हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म पी॰के॰ में भी कही गई थी। पी॰के॰ में कही गई बात हमने गत वर्ष अगस्त में उस समय लिखी थी जब पी॰के॰ लोकार्पित भी नहीं हुई थी। पी॰के॰ पर विवाद उठा और समाप्त भी हो गया। उत्तर प्रदेश में तो पी॰के॰ को टैक्स-फ्री भी कर दिया गया। वर्ष 2008 में लोकार्पित तमिल फ़ीचर फ़िल्म ‘अरै एन 305इल कडवुल’ (அரை எண் 305ல் கடவுள்-कमरा नम्बर 305 में भगवान) में भगवान की निष्क्रियता पर कुपित होकर जूते और चप्पल तक फेंके गए, किन्तु फ़िल्म बिना किसी विवाद के सेंसर बोर्ड से पास भी हो गईखजुराहो और तिरुपति की बात छोड़िए, तमिलनाडु के मदुरै जिले में एक अलगर कोविल (मन्दिर) है, वहाँ की मूर्तियों की नक्काशी भी ऐसी नहीं है जिसे श्लील कहा जा सकेहमारी रचना कथेतर साहित्य (Non fiction) की श्रेणी में भी नहीं आती जिससे यह बात कही जा सके कि हमने अपनी बात वेंडी डोंनिगर की तरह गम्भीरतापूर्वक कही है

Rajat Vynar 22-02-2015 06:34 PM

Re: आस्था पर आग
 
वित्रा जी अपने आक्षेप में कहती हैं- 'भगवान के मन में भी आम इन्सान की ही तरह पैसे का लालच हो..' इस सन्दर्भ में मेरा तर्क यह है कि क्या देवराज इन्द्र का सिंहासन उस समय हिलने नहीं लगता जब कोई जप-तप में लीन हो जाता है? देवराज इन्द्र का विचलित और चिन्तित होना क्या अपनी पदवी के प्रति उनके लालच को प्रदर्शित नहीं करता? पवित्रा जी अपने आक्षेप में आगे कहती हैं- 'जिन देवी को निरोगी काया प्राप्त करने हेतु पूजा जाता हो ,उन्हें ईबोला फैलाने का कोन्ट्रैक्ट मिले (जिससे लोग उन्हें पूज सकें)..' इनका यह आक्षेप ही सिरे से गलत हैउत्तर भारत में जब किसी को चेचक निकल आती है तो लोग कहते हैं- 'माता निकल आई हैं' दक्षिण भारत में लोग कहते हैं- 'अम्मन का प्रकोप है' अतएव यह सिद्ध हुआ कि शीतला देवी स्वयं इन विषाणु (Virus) जन्य बीमारियों की जनक हैं और इन्हें निरोगी काया प्राप्त करने हेतु पूजा नहीं जाता, अपितु विषाणुजन्य बीमारियों को चंगा करने के उद्देश्य से पूजा जाता है। रही बात डायन की तो इसका स्पष्टीकरण रचना में ही लिखा है- ’यह तो हड़ताल होने की चिन्ता के कारण मेरा रूप डायन का बन गया है।'

वित्रा जी, हमें आपकी बात पर पूरा यक़ीन है कि आपने हमारी रचना को तटस्थता के साथ ही पढ़ा होगा। मुझे इस बात का पूर्ण संज्ञान है कि किसी धर्म विशेष के प्रति आपका कोई भेदभाव कभी नहीं रहा और आप सभी धर्मों को एक समान दृष्टि से देखती हैं। इसलिए आपको इस सम्बन्ध में किसी प्रकार का स्पष्टीकरण देने की कोई आवश्यकता है। अँग्रेज़ी का वह उद्धरण तो आपने पढ़ा ही होगा- 'Never explain yourself. Your friends don’t need it and your enemies won’t believe it.' :)


Rajat Vynar 22-02-2015 06:34 PM

Re: आस्था पर आग
 
क्षेप लगाने और पेंच फँसाने के लिए बहुत से बड़े मामले ऐसे हैं जिन पर हमारी दृष्टि नहीं जाती। उदाहरण के लिए इस्लामिक रिसर्च फॉउन्डेशन के संस्थापक डॉ. ज़ाकिर नायक अपने वक्तव्य में कहते हैं कि 'हिन्दू धर्म के अन्तिम अवतार कल्कि का जन्म मोहम्मद साहब के रूप में हो चुका है'। अपनी इस बात को सिद्ध करने के लिए के लिए ये कई तर्क भी देते हैं जो किसी हालत में स्वीकार्य करने योग्य नहीं हैं। कदाचित इन्हें ज्योतिष ग्रन्थों में समाहित तथ्यों की जानकारी नहीं हैज्योतिष ग्रन्थों के अनुसार समस्त जगत की उत्पत्ति, स्थिति और लय के कारण श्री विष्णुजी के नाभिकमलोद् भूत श्री ब्रह्मा जी हैं। 4 युगों का एक महायुग होता है। जिसकी सौरमान वर्ष संख्या 43,20,000 है। 1000 महायुग का एक कल्प होता है। 2 कल्प बराबर ब्रह्माजी का एक अहोरात्र होता है अर्थात् एक कल्प का दिन और एक कल्प की रात्रि होती है।, तद् नुसार 360 अहोरात्र बराबर 720 कल्प का एक ब्राह्म वर्ष होता है। ब्रह्माजी की आयु 100 ब्राह्म वर्ष अर्थात् 7,20,0,00 कल्प की होती है। वर्तमान में ब्रह्माजी की आयु के 51 वर्ष व्यतीत होकर 52वें वर्ष का प्रथम दिन अर्थात् श्वेत वाराह कल्प है। ब्रह्माजी के उक्त एक दिन में जो 14 मन्वन्तर होते हैं, उनमें 1. स्वायम्भु, 2. स्वारोचिष, 3. उत्तम, 4. तामस, 5. रैवत, 6. चाक्षुस ये 6 मनु व्यतीत हो गए हैं। अब सातवॉं वैवस्वत मन्वन्तर चल रहा है, उसमें भी 27 महायुग समाप्त होकर 28वें महायुग के 3 युग— सतयुग, त्रेता, द्वापर व्यतीत हो गए हैं और चौथा यह कलियुग चल रहा है। कलियुग का आरम्भ भाद्रपद कृष्ण 13 रविवार को अर्धरात्रि में हुआ। इसकी आयु 4,32,000 वर्ष की है। इसमें भगवान् के अवतार श्री बुद्ध और निष्कलंक हैं, जिनमें श्री बुद्धावतार तो हो चुका, कल्कि अवतार कलियुग के 823 वर्ष शेष रहने पर सम्भल ग्राम में विष्णुयश ब्राह्मण के घर होगा, इस अवतार द्वारा दुष्टों का नाश होकर पृथ्वी पर विलुप्त धर्म की पुर्नस्थापना होगी। कलियुग के 5116 वर्ष बीत चुके, कल्पारम्भ से 1,97,29,49116 वर्ष सृष्टि के आरम्भ से 1,95,58,85,316 वर्ष, विक्रम राज्यकालीन संवत्सर से 2072 शकारम्भ से 1937 वर्ष भुक्त हुए हैं। कलिसंवत् और शक की भुक्त संख्या ही वर्तमान कलियुगाब्द और शकाब्द कहलाती है।

Rajat Vynar 22-02-2015 06:44 PM

Re: आस्था पर आग
 
परोक्त अनुच्छेद के पढ़ने से स्पष्ट है कि अभी कलियुग के समाप्त होने में बहुत वर्ष बाकी हैं। ऐसी अवस्था में कल्कि अवतार के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसके अतिरिक्त कल्कि अवतार को इस्लाम से सम्बद्ध करने की चेष्टा करना क्या हिन्दू धर्म की आस्था को आग लगाने के तुल्य नहीं है? अपने भाषण के अन्त में डॉ. ज़ाकिर नायक कहते है कि 'क़ुरान ईश्वर प्रदत्त नवीनतम ग्रन्थ है और सभी आस्तिकों को इसका ही अनुगमन करना चाहिए' डॉ. ज़ाकिर नायक के इस कथन के सन्दर्भ में हमारा भी अपना स्वतन्त्र शोधकार्य रहा है और हमारा मत भी इनसे भिन्न नहीं हैं!

Rajat Vynar 22-02-2015 06:45 PM

Re: आस्था पर आग
 
स्पष्ट है- आक्षेप ही लगाना हो तो कल्कि अवतार के सन्दर्भ में डॉ. ज़ाकिर नायक के कथन पर लगाइए, हमारी छोटी सी तुच्छ रचना पर नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि आप इस दोहे पर विश्वास करती हों-

'ऐसी वाणी बोलिए, सबसे झगड़ा होय

पर उससे न बोलिए, जो तुझसे तगड़ा होय' :laughing:

soni pushpa 22-02-2015 07:16 PM

Re: आस्था पर आग
 
रजत जी याने की आप मानते हैं न की आप भगवन को मानते हो आप नास्तिक नहीं आस्तिक हो? फिर अब ये आरोप प्रत्यारोप क्यों? इस विषय पर जितनी बहस होगी उतना सबका सर दुखेगा और इससे सबके मन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा . रजत जी मानती हूँ आप मजाक के मूड में लिख गए किन्तु कई बार संवेदन शील बातें किसी न किसी के मन को हर्ट कर जाती हैं तो आप प्लीज जब भी कुछ लिखें(भले ही वे बातें सारगर्भित हों )लेकिन थोडा सा उसका परिणाम सोच लिया कीजिये की कही आपके हास्य व्यंग से किसी की भावना को ठेस तो नहीं पहुँच रही .
आप भगवान् की पूजा करते ही होगे ?करते हो न ? फिर जिसे हम पूज रहे है उसका मजाक तो बना ही नहीं सकते न ?सारगर्भित होते हैं आपके लेख किन्तु व्यंग की अतिश्योक्ति की वजह से सारी समस्या खडी होती है तो क्यों एईसी बातें ही लिखना जिससे विवाद उत्पन्न हो ?

जब आप कुछ लिखते हो तब किसने किसका मजाक उड़ाया किसने भगवान , इंसान या फिल्म के बारे में क्या कहा ये बातें कोई महत्व की नहीं रहती. महत्व रह जाता है तो सिर्फ आपकी कहीऔर लिखी बातो का ...अंत में इतना कहना चाहूंगी की हास्य व्यंग कीजिये, लिखिए बस पहले थोडा सा उसका परिणाम सोच लीजिये की मानव मन पर क्या असर होगी इसकी(और आपने धर्म का भगवन का या अपनी संस्कृति का हमने उपहास तो नहीं उडा दिया न). क्यूंकि ईश्वर के स्वरुप को हम इंसानों ने बाँट दिया है किन्तु सारे विश्व की एक ही महा सत्ता है जो सा रे विश्व का संचालन करती है इसलिए उनका नमन ही करिए ...
मेरी कोई बात यदि ठीक न लगी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ

kuki 22-02-2015 08:50 PM

Re: आस्था पर आग
 
रजतजी ,आप जो बातें कह रहे हैं वो अपनी जगह ठीक हैं ,लेकिन जब हम एक सार्वजनिक मंच पर होते हैं जहाँ हमें बहुत लोग पढ़ रहे होते हैं या सुन रहे होते हैं तो हमारा दायित्व बनता है की हम दूसरों की भावनाओं का ख्याल रखें और ऐसा कुछ न कहें जिससे किसी की भावनाएं आहत हों। आप बहुत अच्छे लेखक हैं इसलिए हम सब आपको पढ़ते हैं और हमारी उम्मीदें भी आप से ज़्यादा ही हैं। आपने तँदै पेरियार जी के बारे में कहा की उनकी कई जगह प्रतिमाएं लगी हैं ,उन्हें लोग बहुत मानते हैं तो आप खुद ही बता रहे हैं की वो एक समाज सेवी थे। जो व्यक्ति समाज की भलाई के लिए कार्य करते हैं उन्हें लोग हमेशा सम्मान देते हैं इससे उनके नास्तिक या आस्तिक होने का कोई सरोकार नहीं होता। महात्मा गांधी तो भगवान को मानते थे और वो ये भजन भी हमेशा गया करते थे "रघुपति राघव राजा राम " और पूरा विश्व उनका सम्मान करता है। लोग किसी का सम्मान करें उसके लिए नास्तिक या आस्तिक होना ज़रूरी नहीं है ,बस एक अच्छा इंसान होना ज़रूरी है।

kuki 22-02-2015 09:21 PM

Re: आस्था पर आग
 
Quote:

Originally Posted by rajat vynar (Post 548508)
वित्रा जी अपने आक्षेप में कहती हैं- 'भगवान के मन में भी आम इन्सान की ही तरह पैसे का लालच हो..' इस सन्दर्भ में मेरा तर्क यह है कि क्या देवराज इन्द्र का सिंहासन उस समय हिलने नहीं लगता जब कोई जप-तप में लीन हो जाता है? देवराज इन्द्र का विचलित और चिन्तित होना क्या अपनी पदवी के प्रति उनके लालच को प्रदर्शित नहीं करता? पवित्रा जी अपने आक्षेप में आगे कहती हैं- 'जिन देवी को निरोगी काया प्राप्त करने हेतु पूजा जाता हो ,उन्हें ईबोला फैलाने का कोन्ट्रैक्ट मिले (जिससे लोग उन्हें पूज सकें)..' इनका यह आक्षेप ही सिरे से गलत हैउत्तर भारत में जब किसी को चेचक निकल आती है तो लोग कहते हैं- 'माता निकल आई हैं' दक्षिण भारत में लोग कहते हैं- 'अम्मन का प्रकोप है' अतएव यह सिद्ध हुआ कि शीतला देवी स्वयं इन विषाणु (virus) जन्य बीमारियों की जनक हैं और इन्हें निरोगी काया प्राप्त करने हेतु पूजा नहीं जाता, अपितु विषाणुजन्य बीमारियों को चंगा करने के उद्देश्य से पूजा जाता है। रही बात डायन की तो इसका स्पष्टीकरण रचना में ही लिखा है- ’यह तो हड़ताल होने की चिन्ता के कारण मेरा रूप डायन का बन गया है।'

वित्रा जी, हमें आपकी बात पर पूरा यक़ीन है कि आपने हमारी रचना को तटस्थता के साथ ही पढ़ा होगा। मुझे इस बात का पूर्ण संज्ञान है कि किसी धर्म विशेष के प्रति आपका कोई भेदभाव कभी नहीं रहा और आप सभी धर्मों को एक समान दृष्टि से देखती हैं। इसलिए आपको इस सम्बन्ध में किसी प्रकार का स्पष्टीकरण देने की कोई आवश्यकता है। अँग्रेज़ी का वह उद्धरण तो आपने पढ़ा ही होगा- 'never explain yourself. Your friends don’t need it and your enemies won’t believe it.' :)


रजतजी ,हम शीतला माता को इसलिए नहीं पूजते की वो चेचक जैसी बीमारियों की जनक हैं ,बल्कि उनके पास ऐसी शक्ति है जो इन बीमारियों से हमें बचाती हैं। जब हम बीमार होते हैं तो डॉक्टर के पास ही जाते हैं क्योंकि उनके पास उस बीमारी का इलाज होता है ,लेकिन इसका मतलब ये नहीं है की डॉक्टर ही सारी बीमारियां फैलाते हैं।

Pavitra 22-02-2015 10:46 PM

Re: आस्था पर आग
 
:hello: Rajat ji आपकी बात का उत्तर दूँ उससे पहले आपको धन्यवाद कहना चाहती हूँ ....आपकी एक कहानी याद आगयी जो आपने अभी हाल ही में हमसे share की थी..... एक आदमी हमेशा जिन्ना के खिलाफ बोलता रहता था।
जिन्ना के सेक्रेटरी ने एक दिन उनसे कहा- 'आप क्यों नहीं उस आदमी के खिलाफ अपना बयान देते?'
जिन्ना ने कहा- 'अगर मैं उसके खिलाफ बोलूँगा तो वो बड़ा आदमी बन जाएगा। इसलिए दाँत पीसना ही सही रास्ता है!'


आज आपने मेरे बारे में बोलकर , forum पर मेरे कद में इजाफा कर दिया.......:laughing::laughing:


अब बात आपकी कही बात की......जो आस्तिक लेखक वर्ग पर आरोप लगाते हैं , दरसल वो आस्तिक नहीं कट्टरपंथी होते हैं , जिन्हें लगता है कि सिर्फ उनका धर्म ही श्रेष्ठ है और अगर यही लेखक वर्ग किसी दूसरे धर्म का अपमान करें तो उन्हें कोई फर्क नहीं पडेगा । अगर आप मेरी बात कर रहे हैं तो मैं आपको बता दूँ कि मैं हिन्दू हूँ , और अगर आप मेरे सामने किसी भी अन्य धर्म के लिये भी कुछ ऐसा कहेंगे जो मेरी नजर में सही नहीं है तो मैं उसका भी विरोध करूँगी ही.....

आपने पी.के. मूवी का जिक्र किया ...मैंने भी वो मूवी देखी है और मुझे कहीं भी यह महसूस नहीं हुआ कि हमसे कहा जा रहा हो कि "मन्नतें पूरी नहीं होती"......उसमें तो साफ-साफ बताया गया है कि मन्नतें पूरी होती हैं , बस मन्नतें पूरी करने के नाम पर जो धन्धा होता है ,मूवी में उसका विरोध किया गया है.....मैं आपको फिल्म के scenes के उदाहरण भी दे देती लेकिन शायद मैं मुख्य मुद्दे से भटक जाऊँगी , इसलिये फिर कभी.......

अब आपने देवराज इन्द्र के बारे में कहा कि - "देवराज इन्द्र का सिंहासन उस समय हिलने नहीं लगता जब कोई जप-तप में लीन हो जाता है? देवराज इन्द्र का विचलित और चिन्तित होना क्या अपनी पदवी के प्रति उनके लालच को प्रदर्शित नहीं करता?"......आपसे किसने कहा कि देवराज इन्द्र इसलिये विचलित होते हैं कि उनकी पदवी उनसे छिन जायेगी??? कोई भी व्यक्ति जब अपने से श्रेष्ठ व्यक्ति को देखता है तो उससे उसे भय लगता ही है , तो जब कोई जप-तप में लीन हो जाता है तो हो सकता है देवराज इन्द्र को लगता हो कि कहीं ये मुझसे अधिक प्रिय ना हो जाये प्रभु को , और इसलिये वो विचलित होते हों ......आपको रामचरितमानस का वो प्रसंग याद होगा कि जब सीता जी के स्वयंवर के समय श्री राम जी खडे हुए थे तो हर व्यक्ति ने उन्हें अपनी अलग नजर से देखा , किसी को वो पुत्र , किसी को काल , किसी ने शत्रु के रूप में दिखे.........जाकि रही भावना जैसी , प्रभु मूरत देखी तिन तैसी......तो देवराज इन्द्र विचलित क्यों होते हैं इसपर लोगों के मत उनकी भावना के अनुसार अलग हो सकते हैं..... (अब ये ना समझियेगा कि मैं आपकी भावना पर सन्देह कर रही हूँ :P , मुझे पता है आपने भी ग्रन्थों में से ही पढा है पर वो ग्रन्थ लिखने वाले भी तो मनुष्य ही हैं , जो अपनी भावना के अनुसार ही लिखेंगे)

अब आपने कहा कि -अतएव यह सिद्ध हुआ कि शीतला देवी स्वयं इन विषाणु (Virus) जन्य बीमारियों की जनक हैं और इन्हें निरोगी काया प्राप्त करने हेतु पूजा नहीं जाता, अपितु विषाणुजन्य बीमारियों को चंगा करने के उद्देश्य से पूजा जाता है

इस बारे में मैं बस इतना कहुँगी कि कुछ बातें बस कहने के लिये ही कही जाती हैं , भय एक ऐसी चीज है जिसके वशीभूत हो व्यक्ति कुछ भी कर सकता है , तो माता निकल आयी है इसका मतलब ये कतापि नहीं है कि माता ने बीमारी फैलायी है , सोचिये अगर मुझे खुद को ही घर साफ करना हो तो मैं क्यों पहले घर गन्दा करुँगी??? जब माता को खुद ही बीमारी ठीक करनी है तो वो क्यों पहले बीमार करेंगी??? (अब ये तो रही logic की बात) .....अब दूसरी तरह से देख लीजिये कि आप खुद कह रहे हैं कि माता विषाणुजन्य बीमारियों की जनक हैं , तो जो कारण हो दुख का उसको कोई क्यों दुख दूर करने के लिये पूजेगा??? आप खुद गौर करें अपनी कही बात पर.......

अब आपने कहा -
आक्षेप ही लगाना हो तो कल्कि अवतार के सन्दर्भ में तो डॉ. ज़ाकिर नायक के कथन पर लगाइए, हमारी छोटी सी तुच्छ रचना पर नहीं।

रजत जी जब जमीन में गलत बीज बोया जा रहा हो तभी उस बीज को निकाल देना अच्छा रहता है , जब बीज पेड बन जाये तब उसे कैसे भी नहीं निकाला जा सकता......आप जिनकी बात कर रहे हैं अगर उन्हें भी शुरुआत में ही सही दिशा मिली होती तो शायद आज आप हमें उनका उदाहरण ना दे रहे होते......आगे कोई लेखक हमें आपका उदाहरण ना दे इसलिये आपसे इतना लडना पड रहा है यहाँ..... :giggle:


मैं बाकि सभी धर्मों का सम्मान करती हूँ ये जताने के लिये मुझे अपने धर्म का अपमान करना पडे , या मेरा धर्म श्रेष्ठ है ये बताने के लिये मुझे दूसरे धर्मों की निन्दा करनी पडे , ये उचित नहीं है।


और इस दुनिया में बहुत से लोग हैं जो वैमनस्य सोच रखते हैं , उनकी बातों से फर्क नहीं पडता अब आप "पडोसी" तो हैं नहीं , "फ्रेंड्लिस्ट" में आ चुके हैं तो आपकी बातों से फर्क पडता है , इसलिये ही इतना कहा , वरना ओवैसी , नायक सरीखे बहुत हैं इस दुनिया में ....अब वो गलत हैं तो हमें उनके competition में गलत थोडे ही बनना है........

kuki 22-02-2015 11:25 PM

Re: आस्था पर आग
 
हमारे लिये तो आप भी तगडे ही हैं , क्युँकि आप जिनकी बात कर रहे हैं , उनका तो हमने नाम नाम भी नहीं सुना है , तो आप ज्यादा फेमस हैं:laughing:


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