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-   -   मैं हूँ आकाश में उड़ता बादल (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=16396)

soni pushpa 13-01-2016 10:16 AM

मैं हूँ आकाश में उड़ता बादल
 
मैं हूँ आकाश में उड़ता बादल

(अभी हाल ही में धरती से ऊपर हवाई जहाज में उड़ते हुये व खिड़की से बाहर खुले व्योम को निहारते हुये जो विचार मेरे मन में उमड़ आये वही कविता के रूप में प्रस्तुत है)

अविरल स्निग्ध मुलायम सुन्दर श्वेत चादर सी फैली
चूम रही थी पर्वत माला को वो बादल की एक छवि
देख के उसके पीछे आती थीं छोटी छोटी कई बदलियाँ
उन्हें देख मन मचल उठे और कहे मैं भी चल दूँ उनके संग
कही दिखता अंगड़ाई सी लेता कही दौड़ता हुआ सा बादल
कही अकिंचन सा स्वरुप लिए खड़ा था ध्यान मग्न साधू की तरह
कही लगा करे है क्रीड़ा एक बड़ा बादल छोटे बादल संग.
कहीं ऊँचे पहाड़ो पर ऐसा बिछौना बना जैसे हो रुई कपास का रंग

श्वेत लहर और अपार शांति उल्लसित कर देती तन और मन को.
नीरवता में निमग्न बादल हास्य कर रहे थे मानव से
जन जीवन को गुरु बन कर ज्यों शिक्षा देते थे बादल
कुछ तो हमसे सीखो तुम धरती से पानी लेते हैं और उसी को देते हैं
सब कुछ पाया जीवन से तुमने पर कभी न खुश तुम रह पाये
हम तो बिना सहारे भी देखो धरती अम्बर बिच अडिग खड़े
फिर भी जल वर्षा करते कभी शीतल छाँव प्रदान कर हर्षाते
तुमको खुशियों का जीवन देकर पल में हम तो बिखर से जाते

अस्तित्व नहीं कोई अपना बस हैं बनते-बिगड़ते तुम्हारे हेतु
बिना सहारों के चलते जाते तन्हा बिना शिकायत शिकवे के
बस एक गिला है तुमसे यही संयंत्रों ने किया जीना दूभर
पहले की तरह अब चाह के भी बरसना अब तो कठिन हुआ
ग्लोबल वोर्मींग ने नमी सोख ली, पग में छाले ही छाले हैं
अब रूप कुरूप हुआ अपना ही शीतलता को दिन-रात तरसते



rajnish manga 13-01-2016 04:20 PM

Re: मैं हूँ आकाश में उड़ता बादल
 
Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 557033)
मैं हूँ आकाश में उड़ता बादल

अविरल स्निग्ध मुलायम सुन्दर श्वेत चादर सी फैली
चूम रही थी पर्वत माला को वो बादल की एक छवि
....कही लगा करे है क्रीड़ा एक बड़ा बादल छोटे बादल संग.
कहीं ऊँचे पहाड़ो पर ऐसा बिछौना बना जैसे हो रुई कपास का रंग

श्वेत लहर और अपार शांति उल्लसित कर देती तन और मन को.
नीरवता में निमग्न बादल हास्य कर रहे थे मानव से
जन जीवन को गुरु बन कर ज्यों शिक्षा देते थे बादल

....बिना सहारों के चलते जाते तन्हा बिना शिकायत शिकवे के
बस एक गिला है तुमसे यही संयंत्रों ने किया जीना दूभर
पहले की तरह अब चाह के भी बरसना अब तो कठिन हुआ
ग्लोबल वोर्मींग ने नमी सोख ली, पग में छाले ही छाले हैं
अब रूप कुरूप हुआ अपना ही शीतलता को दिन-रात तरसते

आकाश में उड़ते हुए श्वेत बादलों को देख कर आपने अपनी कविता में न सिर्फ प्रकृति के धवल स्वरूप की सुंदरता का चित्रण किया है बल्कि धरती के जन जीवन, पशु-पक्षियों और वनस्पतियों को बनाये रखने के लिए अपने निस्वार्थ योगदान के माध्यम से मनुष्य को सीख देने का सुंदर प्रयास भी किया है. कविता का सबसे महत्वपूर्ण भाग वह है जहाँ आपने बढ़ते प्रदूषण के दुष्प्रभाव में बादलों और बारिश में आयी कमीं का ज़िक्र किया गया है. अब तो जीवन प्रदान करने वाली शक्तियां ही चिंताजनक अवस्था में दिखाई दे रही हैं.

"पहले की तरह अब चाह के भी बरसना अब तो कठिन हुआ
ग्लोबल वोर्मींग ने नमी सोख ली, पग में छाले ही छाले हैं
यह दुखद स्थिति है"

अतः इसको सुधारने के लिए वैश्विक स्तर पर कारगर उपाय करने की आवश्यकता है. इस प्रकार एक उद्देश्यपूर्ण कविता फोरम पर साझा करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.

soni pushpa 13-01-2016 06:00 PM

Re: मैं हूँ आकाश में उड़ता बादल
 
[QUOTE=rajnish manga;557034]आकाश में उड़ते हुए श्वेत बादलों को देख कर आपने अपनी कविता में न सिर्फ प्रकृति के धवल स्वरूप की सुंदरता का चित्रण किया है बल्कि धरती के जन जीवन, पशु-पक्षियों और वनस्पतियों को बनाये रखने के लिए अपने निस्वार्थ योगदान के माध्यम से मनुष्य को सीख देने का सुंदर प्रयास भी किया है. कविता का सबसे महत्वपूर्ण भाग वह है जहाँ आपने बढ़ते प्रदूषण के दुष्प्रभाव में बादलों और बारिश में आयी कमीं का ज़िक्र किया गया है. अब तो जीवन प्रदान करने वाली शक्तियां ही चिंताजनक अवस्था में दिखाई दे रही हैं.

[size=3]"पहले की तरह अब चाह के भी बरसना अब तो कठिन हुआ
ग्लोबल वोर्मींग ने नमी सोख ली, पग में छाले ही छाले हैं
यह दुखद स्थिति है"

अतः इसको सुधारने के लिए वैश्विक स्तर पर कारगर उपाय करने की आवश्यकता है. इस प्रकार एक उद्देश्यपूर्ण कविता फोरम पर साझा करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी. [



हार्दिक धन्यवाद भाई , जी बस मन के ख्यालों को शब्दों का रूप दे दिया जिसके यथार्थ को आपने जाना समझा और इस कविता की मूल भावना को और सराहा भाई सच भगवान ने हम इंसानों के लिए कितनी सुन्दर दुनिया बनाई है पर उसे सहेजने की बजाय हमने उसके असली स्वरुप से ही उसे वंचित कर दिया है जब प्रकृति के सान्निध्य में हम होते हैं तब एक अनोखी शांति का एहसास होता है जिसे हम दिन ब दिन खोते चले जा रहे हैं एइसा ही कुछ एहसास हुआ था मुझे भाई और यह कविता बन गई ..

Rajat Vynar 19-01-2016 08:18 PM

Re: मैं हूँ आकाश में उड़ता बादल
 
Ati sundar kavita.

soni pushpa 19-01-2016 09:31 PM

Re: मैं हूँ आकाश में उड़ता बादल
 
Quote:

Originally Posted by Rajat Vynar (Post 557059)
Ati sundar kavita.

bahut bahut dhanywad rajat ji ....


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