Re: लघुकथाएँ
[QUOTE=vijaysr76;557355]सकारात्मक सोच
सुख पाने के लिए सभी तरह-तरह के प्रयास करते हैं। कुछ लोग धन, सुविधाएं आने से सुखी हो जाते हैं और इनके जाने से दुखी हो जाते हैं। यदि हम दोनों ही परिस्थितयों के अनुसार अपनी सोच बदल लें तो धन न होने पर भी सुखी रह सकते हैं। इस किस्से से समझे सुखी रहने का सीधा तरीका... एक आश्रम में संत अपने शिष्य के साथ रहते थे। एक दिन शिष्य ने संत से कहा कि गुरुजी एक भक्त ने आश्रम के लिए गाय दान की है। संत ने कहा कि अच्छा है। अब रोज ताजा दूध पीने के लिए मिलेगा। संत और शिष्य ने गाय के दूध का सेवन करने लगे। कुछ दिन बाद शिष्य ने संत के कहा कि गुरुजी जिस भक्त ने गाय दी थी, वह अपनी गाय वापस ले गया है। संत ने कहा कि अच्छा है। अब रोज-रोज गोबर उठाने की परेशानी खत्म हो गई। इस किस्से की सीख यही है कि परिस्थितयों के अनुसार हमें अपनी सोच बदल लेनी चाहिए। हमेशा सकारात्मक सोचना चाहिए। यही सुखी रहने का सीधा तरीका है। लघु कथाएं समाज के लिए दृष्टान्त हैं जिससे समाज ने बहुत कुछ सिखा है आपकी तीनो कथाएं सामाजिक विचारधारा के लिए सराहनीय है .. सुन्दर साहित्य सुन्दर समाज का निर्माण करता है आपने बहुत अछि लघु कथाएं यहाँ दी हाँ धन्यवाद |
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सकारात्मक सोच
(इन्टरनेट से) ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी! एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया। वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।। किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया। सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया.. अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था। जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया । ध्यान रखे आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि , आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे... ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है। सकारात्मक रहे.. सकारात्मक जिए! इस संसार में.... सबसे बड़ी सम्पत्ति "बुद्धि " सबसे अच्छा हथियार "धैर्य" सबसे अच्छी सुरक्षा "विश्वास" सबसे बढ़िया दवा "हँसी" है और आश्चर्य की बात कि "ये सब निशुल्क हैं " सदा मुस्कुराते रहें। सदा आगे बढ़ते रहें! |
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Nice Collection
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अहंकार से मुक्ति
एक बार एक नवाब की राजधानी में एक फकीर आया। फकीर की प्रसिद्धि सुनकर पूरे नवाबी ठाठ के साथ भेंट के भेंट देने के लिए कीमती चीजो से भरे थाल ले कर फकीर के पास पहुंचा। तब फकीर कुछ लोगों से बातचीत कर रहे थे। बिना ध्यान दिए उन्होंने नवाब को बैठने का निर्देश दिया। जब नवाब का नंबर आया तो फकीर नवाब से मुखातिब हुआ। नवाब ने हीरे-जवाहरातों को भरे थाल को फ़कीर की तरफ़ बढ़ा दिया. फकीर ने उस थाल को छुआ तक नहीं, हां बदले में एक सूखी रोटी नवाब को दी और कहां कि इसे खा लो। रोटी सख्त थी, नवाब से चबायी नहीं गई। तब फकीर ने कहा जैसे आपकी दी हुई वस्तु मेरे काम की नहीं उसी तरह मेरी दी हुई वस्तु आपके काम की नहीं। हमें वही लेना चाहिए जो हमारे काम का हो। अपने काम का श्रेय भी नहीं लेना चाहिए। नवाब फकीर की इन बातों को सुनकर काफी प्रभावित हुआ। नवाब जब जाने के लिए हुआ तो फकीर भी दरवाजे तक उसे छोड़ने आया। नवाब ने पूछा, मैं जब आया था तब आपने देखा तक नहीं था, अब छोड़ने आ रहे हैं? फकीर बोला, बेटा जब तुम आए थे तब तुम्हारे साथ तुम्हारा अहंकार था। अब वो चोला तुमने उतार दिया है तुम इंसान बन गए हो। हम इंसानियत का आदर करते हैं। नवाब नतमस्तक हो गया। |
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हमेशा प्रसन्न रहने के लिए जरूरी है मन में सुविधाओं के त्याग का भाव भी हो
एक बौद्ध कथा है। भगवान बुद्ध के पास एक राजा आए और पूछा कि हमारे राजकुमार, जिन्हें हर तरह की सुविधाएं हैं, जो बड़े महल में रहते हैं, जिनके साथ नौकर-चाकरों की पूरी फौज है, वे खुश नहीं रहते। हमेशा तनाव और परेशानी से घिरे दिखते हैं। हमने हर तरह की सुविधा देकर देख ली। वे प्रसन्न नहीं रह पा रहे। जबकि, आपके ये भिक्षु जो पदयात्रा करते हैं, खाने को जैसा मिल जाता है, खा लेते हैं, रहने को जो कुटिया मिल जाए वहां रह लेते हैं, इनके चेहरे पर हमेशा इतनी खुशी रहती है। इसका कारण क्या है? भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया, खुशियां खोजनी हो तो जिसके पास कुछ भी न हो, उस में खोजो। जिसने संकल्प करके सब कुछ छोड़ दिया, वही खुश रह सकता है। जो स्वेच्छा से चीजों का त्याग करता है, वो ही हमेशा प्रसन्न रह सकता है। भिखारी कभी ख्रुश नहीं होगा, क्योंकि उसने छोड़ा नहीं है। वह तो अभाव में ही जीवन जी रहा है। अभाव का जीवन जीने वाला कभी खुश नहीं रह सकता। चिंताएं उसे हर समय घेरे रहती हैं। जिसने जानबूझ कर छोड़ा है, वह खुश रह सकता है। ये दो बातें हैं- एक छोड़ना और एक छूटना। ऐसे ही आपके राजकुमार सारी सुविधाओं से परिपूर्ण हैं लेकिन उनके मन में उन सुविधाओं के छूट जाने का डर रहता है। छूट जाना और छोड़ देना, दोनों में अंतर है, छूट जाना या छूट जाने की सोच हमें डरना सिखाती है, जबकि छोड़ देना या छोड़ने का संकल्प लेना आपको आत्मविश्वास और प्रसन्नता से भर देता है। जिसे कोई चीज मिली नहीं तो उसका त्याग नहीं किया जा सकता है। त्यागी वह होता है, जो अपने स्वतंत्र मन से त्याग कर दे। साधन, सुविधा संपन्न व्यक्ति भी खुश नहीं रह सकता। उसे पैसे की सुरक्षा की चिंता सताती है। वह हमेशा भयभीत रहता है। निडर सिर्फ वही हो सकता है, जिसने स्वेच्छा से त्याग किया है। राजा को अपने प्रश्न का समाधान मिल गया। |
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भगवद गीता की 18 ज्ञान की बातें
भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने न केवल ज्ञान की बातें बताई हैं बल्कि जीवन जीने की कलाओं के बारे में भी बताया है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो गीता का उपदेश दिया है, वह हर मनुष्य के लिए प्रेरणास्रोत साबित हो सकता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि जो भी मनुष्य भगवद गीता की अठारह बातों को अपनाकर अपने जीवन में उतारता है वह सभी दुखों से, वासनाओं से, क्रोध से, ईर्ष्या से, लोभ से, मोह से, लालच आदि के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आगे जानते हैं भगवद गीता की 18 ज्ञान की बातें। 1. आनंद मनुष्य के भीतर ही निवास करता है। परंतु मनुष्य उसे स्त्री में, घर में और बाहरी सुखों में खोज रहा है। 2. श्रीकृष्ण कहते हैं कि भगवान उपासना केवल शरीर से ही नहीं बल्कि मन से करनी चाहिए। भगवान का वंदन उन्हें प्रेम-बंधन में बांधता है। 3. मनुष्य की वासना ही उसके पुनर्जन्म का कारण होती है। 4. इंद्रियों के अधीन होने से मनुष्य के जीवन में विकार और परेशानियां आती है। 5. संयम यानि धैर्य, सदाचार, स्नेह और सेवा जैसे गुण सत्संग के बिना नहीं आते हैं। 6. श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को वस्त्र बदलने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता हृदय परिवर्तन की है। 7. जवानी में जिसने ज्यादा पाप किए हैं उसे बुढ़ापे में नींद नहीं आती। 8. भगवान ने जिसे संपत्ति दी है उसे गाय अवश्य रखनी चाहिए। 9. जुआ, मदिरापान, परस्त्रीगमन (अनैतिक संबंध), हिंसा, असत्य, मद, आसक्ति और निर्दयता इन सब में कलियुग का वास है। 10. अधिकारी शिष्य को सद्गुरु (अच्छा गुरु) अवश्य मिलता है। 11. श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को अपने मन को बार-बार समझाना चाहिए कि ईश्वर के सिवाय उसका कोई नहीं है। साथ ही यह विचार करना चाहिए कि उसका कोई नहीं है। साथ ही वह किसी का नहीं है। 12. भोग में क्षणिक (क्षण भर के लिए) सुख है। साथ ही त्याग में स्थायी आनंद है। 13. श्रीकृष्ण कहते हैं कि सत्संग ईश्वर की कृपा से मिलता है। परंतु कुसंगति में पड़ना मनुष्य के अपने ही हाथों में है। 14. लोभ और ममता (किसी से अधिक लगाव) पाप के माता-पिता हैं। साथ ही लोभ पाप का बाप है। 15. श्रीकृष्ण कहते हैं कि स्त्री का धर्म है कि रोज तुलसी और पार्वती का पूजन करें। 16. मनुष्य को अपने मन और बुद्धि पर विश्वास नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये बार-बार मनुष्य को दगा देते हैं। खुद को निर्दोष मानना बहुत बड़ा दोष है। 17. यदि पति-पत्नी को पवित्र जीवन बिताएं तो भगवान पुत्र के रूप में उनके घर आने की इच्छा रखते हैं। 18. भगवान इन सभी कसौटियों पर कसकर, जांच-परखकर ही मनुष्य को अपनाते हैं। |
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