लघुकथाएँ
प्रेरक लघुकथा : बड़ी सोच
एक बार एक आदमी ने देखा कि एक गरीब फटेहाल बच्चा बड़ी उत्सुकता से उसकी महंगी ऑडी कार को निहार रहा था। गरीब बच्चे पर तरस खा कर अमीर आदमी ने उसे अपनी कार में बैठा कर घुमाने ले गया। लड़के ने कहा : साहब आपकी कार बहुत अच्छी है, यह तो बहुत कीमती होगी न...। अमीर आदमी ने गर्व से कहा : हां, यह लाखों रुपए की है। गरीब लड़का बोला : इसे खरीदने के लिए तो आपने बहुत मेहनत की होगी? अमीर आदमी हंसकर बोला : यह कार मुझे मेरे भाई ने उपहार में दी है। गरीब लड़के ने कुछ सोचते हुए कहा : वाह! आपके भाई कितने अच्छे हैं। अमीर आदमी ने कहा : मुझे पता है कि तुम सोच रहे होंगे कि काश तुम्हारा भी कोई ऐसा भाई होता जो इतनी कीमती कार तुम्हे गिफ्ट देता!! गरीब लड़के की आंखों में अनोखी चमक थी, उसने कहा : नहीं साहब, मैं तो आपके भाई की तरह बनना चाहता हूं... सार : अपनी सोच हमेशा ऊंची रखो, दूसरों की अपेक्षाओं से कहीं अधिक ऊंची, तो तुम्हें बड़ा बनने से कोई रोक नहीं सकता। |
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मेजबान
'कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।' करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा। 'मैं जरूर आती बशर्ते तुम्हारे घर का मतलब तुम्हारा पेट न होता।' भेड़ ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया। |
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मोती
एक बार, एक सीप ने अपने पास पड़ी हुई दूसरी सीप से कहा, “मुझे अंदर ही अंदर अत्यधिक पीड़ा हो रही है। इसने मुझे चारों ओर से घेर रखा है और मैं बहुत कष्ट में हूँ।” दूसरी सीप ने अंहकार भरे स्वर में कहा, “शुक्र है. भगवान का और इस समुद्र का कि मेरे अंदर ऐसी कोई पीड़ा नहीं है । मैं अंदर और बाहर सब तरह से स्वस्थ और संपूर्ण हूँ।” उसी समय वहाँ से एक केकड़ा गुजर रहा था । उसने इन दोनों सीपों की बातचीत सुनकर उस सीप से, जो अंदर और बाहर से स्वस्थ और संपूर्ण थी, कहा, “हाँ, तुम स्वस्थ और संपूर्ण हो; किन्तु तुम्हारी पड़ोसन जो पीड़ा सह रही है वह एक नायाब मोती है।” |
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अब राम राज्य आएगा
बापू के तीनों बंदर बापू की मुसकुराती प्रतिमा के सामने जा कर खड़े हो गये। तीनों की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। कान बंद किये हुए बंदर बोला-‘बापू बहुत समय हो गया। कान बंद करके भले ही बुरा न सुना हो, पर जो न चाहा था उसे मजबूरी से देखना पड़ रहा है, बहुत कहा किंतु किसी ने उस पर अमल नहीं किया। अब सहा नहीं जाता। कहते जबान थक चली है। असहनीय इतना है कि अब देखा भी नहीं जाता।' मुँह बंद किये हुए बंदर की आपबीती कान बंद किये बंदर ने सुनाई। बोला-‘बापू इतना कुछ देखने के बाद तो अब इससे बोले बिना नहीं रहा जाता, बहुत विचलित रहता है। सुना इतना कि अब तो कान भी पक गये हैं।' आँखे बंद किये तीसरा बंदर बोला- ‘बापू, ये सच बोल रहे हैं, मैं भी जो सुन रहा हूँ, असहनीय होता जा रहा है। बोलने की क्या कहूँ, मुझे कायर तक समझने लगते हैं, व्यंग्य करते हैं। देखने और सुनने से जब ये इतने व्यथित हैं, तो मैंने भी यदि देखा, तो मैं भी सह नहीं पाउँगा। क्या हो गया है मेरे देश को? आपने राम राज्य का सपना देखा था, हम तीनों आपके लिए कुछ नहीं कर सके।' तीनों ने हाथ नीचे करते हुए कहा- हमें क्षमा करें बापू, इतने समय से हम यह बात नहीं समझ पाये कि हमारे हाथ बँधे हुए थे। आपने हाथ बाँधने के लिए तो नहीं कहा था !हमें अपने हाथ खोलने होंगे बापू। अब समय आ गया है,हमें अब इन हाथों से कुछ कर गुजरना होगा,तब ही देश के हालात बदलेंगे। बापू अब भी मुसकुरा रहे थे। ऐसा लगा, वे कह रहे हों-‘अब राम राज्य आएगा !! --00-- |
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भ्रष्टाचार मिट सकता है
दो साहित्यकार घर पर मिले। एक बहुत चिन्तित थे। दूसरे ने पहले साहित्यकार से कहा-‘क्या बात है, बहुत चिन्तित दिखाई दे रहे हो। घर में सब ठीक तो है। पहले साहित्यकार ने कहा-‘घर में तो सब ठीक है, पर देश में कुछ ठीक नहीं चल रहा। अब तो विदेशों में भी अपने देश के भ्रष्टाचार के बारे में जानने लगे हैं लोग। पिछले दिनों ही अखबार में पढ़ा था कि एशिया प्रशांत में अपना देश भ्रष्ट देशों में चौथे नम्बर पर है।' 'हाँ, मैंने भी पढ़ा था।' क्या कर सकते हैं, कैंसर की तरह फैल चुका है यह रोग। कैसे मिटेगा यह लाइलाज रोग?' पहले साहित्*यकार ने कहा-‘मैं आजकल इसी विचार में रहता हूँ। भ्रष्*टाचार की जड़ है यह रुपया। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि पहले के राजा महाराजाओं की तरह देश में शासन करने वाली सरकार के ही नोट चलन में आयें और सरकार बदलने पर वे नोट चलन से बाहर हो जायें। इतिहास गवाह है, चमड़े के सिक्के चले, जॉर्ज पंचम के बाद महारानी के चित्र वाले नोट चले। फिर क्यों नहीं हमारे राष्ट्रपिता को इस मुद्रागार से मुक्त कर स्वच्छंद मुस्कुराने दें। डाक घर में देखो तो इनकी टिकिट पर ठप्पे से चोट पर चोट लगती है, शादी विवाह, पार्टियों में नोट उड़ाये जाते हैं। नोटों की कालाबाजारी, भ्रष्टाचारी, सट़टेबाजी में बापू को खुले आम शर्मसार किया जाता है। जो सरकार आये उसके चुनाव चिह्न वाले या सरकार के प्रमुख प्रधानमंत्री के चित्र वाले नोट छपें और सरकार के बदलते ही उनके नोट चलन से बाहर हो जायें। इससे कालाबाजारी, जमाखोरी भी कम होगी। करोड़ों अरबों के भ्रष्टाचार भी कम होंगे। कहो कैसी रही?’ दूसरे साहित्यकार अट्टहास करते हुए कहा-‘खूब रही।' |
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मनोरंजन और शिक्षा देने वाली लघुकथाएं.
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अनुताप “बाबूजी आइए---मैं पहुँचाए देता हूँ।”एक रिक्शेवाले ने उसके नज़दीक आकर कहा, “असलम अब नहीं आएगा।” “क्या हुआ उसको ?” रिक्शे में बैठते हुए उसने लापरवाही से पूछा। पिछले चार-पाँच दिनों से असलम ही उसे दफ्तर पहुँचाता रहा था।“बाबूजी, असलम नहीं रहा---” “क्या?” उसे शाक-सा लगा, “कल तो भला चंगा था।” “उसके दोनों गुर्दों में खराबी थी, डाक्टर ने रिक्शा चलाने से मना कर रखा था,” उसकी आवाज़ में गहरी उदासी थी, “कल आपको दफ्तर पहुँचा कर लौटा तो पेशाब बंद हो गया था, अस्पताल ले जाते समय उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया था---।” आगे वह कुछ नहीं सुन सका। एक सन्नाटे ने उसे अपने आगोश में ले लिया---कल की घटना उसकी आँखों के आगे सजीव हो उठी। रिक्शा नटराज टाकीज़ पार कर बड़े डाकखाने की ओर जा रहा था। रिक्शा चलाते हुए असलम धीरे-धीरे कराह रहा था।बीच-बीच में एक हाथ से पेट पकड़ लेता था। सामने डाक बंगले तक चढ़ाई ही चढ़ाई थी।एकबारगी उसकी इच्छा हुई थी कि रिक्शे से उतर जाए। अगले ही क्षण उसने खुद को समझाया था-‘रोज का मामला है---कब तक उतरता रहेगा---ये लोग नाटक भी खूब कर लेते हैं, इनके साथ हमदर्दी जताना बेवकूफी होगी--- अनाप-शनाप पैसे माँगते हैं, कुछ कहो तो सरेआम रिक्शे से उतर पड़ा था, दाहिना हाथ गद्दी पर जमाकर चढ़ाई पर रिक्शा खींच रहा था। वह बुरी तरह हाँफ रहा था, गंजे सिर पर पसीने की नन्हीं-नन्हीं बूंदें दिखाई देने लगी थीं---। किसी कार के हार्न से चौंककर वह वर्तमान में आ गया। रिक्शा तेजी से नटराज से डाक बंगले वाली चढ़ाई की ओर बढ़ रहा था। “रुको!” एकाएक उसने रिक्शे वाले से कहा और रिक्शे के धीरे होते ही उतर पड़ा। रिक्शे वाला बहुत मज़बूत कद काठी का था। उसके लिए यह चढ़ाई कोई खास मायने नहीं रखती थी। उसने हैरानी से उसकी ओर देखा। वह किसी अपराधी की भाँति सिर झुकाए रिक्शे के साथ-साथ चल रहा था। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°° |
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ऑक्सीजन वह सड़क पर नज़रें गड़ाए बहुत ही सुस्त चाल से चल रहा था। मजबूरी में मुझे बहुत धीरे-धीरे कदम बढ़ाने पड़ रहे थे। “भाई साहब---दो मिनट सुस्ता लें?” उसने पुलिया के नज़दीक रुकते हुए पूछा। “हाँ---हाँ, जरूर ।” मैंने कहा। “बहुत जल्दी थक जाता हूँ, लगता है जैसे शरीर में जान ही नहीं है।” वह निराशा से बुदबुदाया। फिर उसने एक सिगरेट सुलगा ली। सुबह की सैर पर निकले लोग उसके सिगरेट पीने की हैरानी से देख रहे थे। तभी कुछ फौजी दौड़ते हुए हमारे सामने से गुज़रे। “मैं आपको भी इन फौजियों की तरह दौड़ लगाते देखा करता था,” उसने कहा, “मेरी वजह से आप दौड़ नहीं पाते----।” “नहीं---नहीं, आप गलत सोच रहे हैं,” मैंने उसकी बात काटते हुए जल्दी से कहा, “मुझे तो आपका साथ बहुत पसंद है।” उसने मेरी ओर देखा। उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी, आँखों से जीवन के प्रति घोर निराशा झाँक रही थी। चार दिन पहले गाँधी पार्क में टहलते हुए मेरा और उसका साथ हो गया था। ज़िदगी कुछ लोगों के साथ कितना क्रूर मज़ाक करती है, एक के बाद एक हादसों ने उसे तोड़कर रख दिया था। हम फिर टहलने लगे थे, वह लगातार निराशाजनक बातें कर रहा था। “मुझे थकान-सी महसूस हो रही है।” थोड़ी देर बाद मैंने उससे झूठ बोलते हुए कहा। “आप थक गए? इतनी जल्दी!---मैं तो नहीं थका!!” उसकें मुँह से निकला। “फिर भी दो मिनट बैठिए---मेरी खातिर!!” “क्यों नहीं---क्यों नहीं!” इन चार दिनों में पहली बार उसके होंठों पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान रेंगती दिखाई दी। इस बार उसने सिगरेट नहीं सुलगाई बल्कि दो-तीन बार लंबी साँस खींचकर फेफड़ों में ताजी हवा भरने का प्रयास किया। थोड़ा सुस्ताने के बाद जब हम चले तो मैंने देखा, उसकी चाल में पहले जैसी सुस्ती नहीं थी। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°° |
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आखिरी तारीख
“वर्माजी !”उसने पुकारा। बड़े बाबू की मुद्रा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। उनकी आँखें बंद थीं और दाँतों के बीच एक बीड़ी दबी हुई थी। ऐश-ट्रे माचिस की तीलियाँ और बीड़ी के अधजले टुकड़ों से भरी पड़ी थी। सुरेश को आश्चर्य हुआ। द्फ्तर के दूसरे भागों से भी लड़ने-झगड़ने की आवाज़ें आ रही थीं। बड़े बाबू की अपरिवर्तित मुद्रा देखकर वह सिर से पैर तक सुलग उठा। उसकी इच्छा हुई एक मुक्का उनके जबड़े पर जड़ दे । “वर्माजी, आपने आज बुलाया था!” अबकी उसने ऊँची आवाज में कहा। बड़े बाबू ने अपनी लाल सुर्ख आँखें खोल दीं। सुरेश को याद आया---पहली दफा वह जब यहाँ आया था तो बड़े बाबू के व्यवहार से बहुत प्रभावित हुआ था। तब बड़े बाबू ने आदर के साथ उसे बिठाया था और उसके पिता की फाइल ढ़ूँढ़कर सारे कागज़ खुद ही तैयार कर दिए थे। दफ्तर के लोग भी एकाग्रचित् हो काम कर रहे थे। बड़े बाबू अभी भी उसकी उपस्थिति की परवाह किए बिना टेबल कैलेंडर पर एक तारीख के इर्द-गिर्द पेन से गोला खींच रहे थे। उसने बड़े बाबू द्वारा दायरे में तारीख को ध्यान से देखा तो उसे ध्यान आया, आज महीने का आखिरी दिन है और पिछली दफा जब वह यहाँ आया था, तब महीने का प्रथम सप्ताह था। बड़े बाबू के तारीख पर चलते हाथ से ऐसा लग रहा था मानो वे इकतीस तारीख को ठेलकर आज ही पहली तारीख पर ले आना चाहते थे। एकाएक उसका ध्यान आज सुबह घर के खर्चे को लेकर पत्नी से हुए झगड़े की तरफ चला गया। पत्नी के प्रति अपने क्रूर व्यवहार के बारे में सोचकर उसे हैरानी हुई। अब उसके मन में बड़े बाबू के प्रति गुस्सा नहीं था बल्कि वह अपनी पत्नी के प्रति की गई ज्यादती पर पछतावा हुआ।वह कार्यालय से बाहर आ गया। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°° |
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सभी लघुकथाएं एक संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर कर रख देती हैं. कृपया इस सिलसिले को जारी रखें.
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भूख
( लघु कथा) एक भिखारिन नाबालिग लड़की फटेहाल कपड़ों में सड़क के किनारे बैठ कर आते-जाते लोगों से भीख मांग रही थी . कोई उसे दुत्कार के चला जाता ,तो कोई तरस खा के 1-2 के सिक्के उसकी झोली में फैंक कर चला जाता . मगर उसे तो बड़ी भूख लगी थी .उसका तो यह जी चाह रहा था की उसे कुछ खाने को देदे। पिछले दो दिनों से वो भूखी थी ,और कुछ बीमार भी लग रही थी . कमजोरी के मारे ऊससे बोल भी नहीं जा रहा था। मगर किसी को उसकी इस हालत से कोई सरोकार नहीं था .हां ! अगर था भी तो उसके तार -तार कपड़ो से झांकते नव- यौवन से . विकृत मानसिकता से लबरेज़ घूरती निगाहों का वोह निशाना बनी हुई थी ,वहीँ सभ्रांत महिलायों की आँखों से छलकती नफरत की भी . उस मजबूर और बेसहारा लड़की की हालत पर तमाशबीन बने लोगों में एक अधेड़ उम्र का शख्स भी वहीँ मौजूद था ,वोह दिखने में कुछ सभ्य , सुशिक्षित और सज्जन लग रहा था . उस लड़की के पास आया ,उसे आँखों से टटोला और धीरे से फुफुसाते हुए बोल ,” ऐ लड़की! तू यहाँ कब तक बैठी रहेगी ? चल उठ मेरे साथ चल . ” वोह लड़की सवालिया निगाहों से उसकी तरफ दिखने लगी . ” देख क्या रही है ! चल ,हां ! हां ! मैं तुझे कुछ खाने को देता हूँ , तुझे बड़ी भूख लगी है ,है ना !’ वोह मासूम लड़की ख़ुशी से उठ खड़ी हुई और चहकते हुए बोली ,” सच साब जी ! आप मुझे खाने को दोगे ? ” अधेड़ शख्स ,” हां बाबा हां ! खाना भी और पहनने को कपड़े भी ,मगर तुझे मुझे खुश करना होगा ” लड़की -” अ -आप को खुश ! कैसे ? अधेड़ शख्स -” अब कैसे ,क्या ! बाद में बताता हूँ ,तू चल तो सही ” वोह मासूम लड़की उसके साथ चल दी। |
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गैरज़रूरी
‘‘क्यों सता रखा है उसे तुमने ?’’ बेटे ने माँ से नई-नवेली पत्नी के विषय में आक्रोश से भरकर कहा। अत्यंत संवेदनशील वह नारी जो चींटी भी नहीं मार सकती थी किसी का दिल दुखाने सताने की तो दूर की बात। हैरत से पहले तो बेटे को देखती रही। फिर कुछ न बोल अपने भीतर उतरती चली गई। बहू कुछ रोज के लिए मायके गई थी। अब घर में सिर्फ माँ और बेटा ही थे। जो माँ बेटे की पीड़ा की कल्पना मात्र से काँपने लगती। हर समय अपनी ममता का सागर उस पर लुटाती। न जाने किस सूत्र से बेटे के अंदर का सब कुछ जान लेने वाली माँ अब जैसे राख हो गई थी। बेटे के एक वाक्य ने उस पर कहर ढा दिया था। अब बेटे की उपस्थिति को नकारती-छुपाती..अपने ऊपर विश्वास मानो खो चुकी थी। उसके भीतर जैसे सब चूक गया था। वह बीमार रहने लगी। जिसकी किसी को ज़रूरत नहीं उसका मर जाना ही अच्छा माँ के हृदय से आवाज आती रही और एक दिन वह सचमुच मर गई। |
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माँ के गाल
‘‘पापा माँ के गालों पर लाल गुलाब खिलते हैं न ?’’ ‘‘कौन कहता है’’ पापा शक से चौकन्ने हुए आँखों में हरापन और गहरा गया। माँ के गालों के लाल गुलाब पीले गुलाबों में परिवर्तित होने लगे। मगर मुन्नी इससे बेखबर चहकते हुए बोली, ‘‘मैडम डिसूजा और कौन !’’ पापा की आँखों का भूरापन लौट आया और पीले गुलाब फिर लाल हो गए। |
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मुखौटे
‘‘पापाऽऽ पापाऽऽ वो देखिए कितने फनीमास्क हैं। पपा हम मास्क लेंगे, प्लीज ले दीजिए ना पापा !’’ नन्हें शोमू ने दशहरे पर बिक रहे राम और रावण के मुखौटों को देखकर जिद की। ‘‘भैया कैसे दिये ये मुखौटे ?’’ ‘‘कौन सा चाहिए साहब, राम का या रावण का ?’’ ‘‘शोमू कौन-सा लोगे बेटे ?’’ ‘‘वो डरावना वाला। उसे पहनकर मैं दोस्तों को डराऊँगा।’’ ‘‘बेटे रामजीवाला मास्क ले लो। देखो तो कितना सुंदर है !’’ मम्मी ने शोमू को समझाया। ‘‘नहीं ! हमतो डरावना वाला ही लेंगे।’’ शोमू अपनी बात मनवाने पर अड़ा था। पापा ने उदारता बरतते हुए कहा, अच्छा दोनों ही ले लो। भैया दोनों कितने-कितने के है ? ‘‘एक ही दाम है दोनों का दस-दस रुपैया साहब।’’ ‘‘दोनों का एक ही दाम ?’’ मम्मी के प्रश्न में आश्चर्य था।’’ ‘‘भला इसमें आश्चर्य की क्या बात है !’’ पापा का व्यावहारिकता पूर्ण जवाब था। |
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जरूरत
”चलो पीछे करों भाई इन सबको, दरवाजे पर भीड़ क्*यों इकट्ठा कर रखी है।“ मरीजों को देखते हुए डॉ. प्रशांत ने अपने कम्*पाउंडर से कहा। उसने डॉ. का इशारा पाते ही मरीजों को सरकारी डिस्*पेंसरी के दरवाजे से बाहर धकेल दिया। उनमें से एक मरीज को डॉ. प्रशांत के पास लाते हुए वह बोला, ”सर, इसका इलाज तत्*काल करना पड़ेगा। यह बहुत ही सीरियस है। यदि कहीं यह इलाज के बिना मर गया तो गांव की राजनीति को एक नया मुद्*दा मिल जायेगा साथ ही आपकी बड़ी फजीहत होगी। अतः इसे जरूर देख लें।“ ”ठीक है, बुलाओ उसे। मैं देख लेता हूँ।“ कम्*पाउंडर ने मरीज को डिस्*पेंसरी के अंदर ठेल दिया। ”क्*या नाम है तुम्*हारा?“ ”जी रामू , रामू बल्*द घिस्*सू।“ ”हूं , क्*या तकलीफ है ?“ ”डागदर साब, कब्*ज बनी रहवे है।“ ”अच्*छा, कल शाम को क्*या खाया था?“ ”जी , कुछ नहीं।“ ”कल सुबह?“ ”जी कुछ नहीं।“ ”परसों दोनो टाईम?“ ”जी कुछ नहीं।“ डॉ. प्रशांत ने गर्मी और भारी उमस में पसीना पौछते हुए कहा, ”क्*या करते हो?“ ”जी कुछ नहीं।“ डॉ. ने आश्*चर्य से प्रतिप्रश्*न किया, ”गुजारा कैसे होता है?“ ”साब, बहुत गरीब आदमी हूँ। जब से फसल कटाई के लिए मशीनें आई हैं, भूखे मरने की नौबत आ गई है।“ डॉ. प्रशांत ने उसका मर्ज ज्ञात कर लिया था। उन्*होंने कम्*पाउंडर को पचास रूपये का नोट देते हुए कहा, ”इसे ले जाओ भरपेट खाना खिलाओ, इसे दवा की नहीं भोजन की जरूरत है।“ |
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बेवजह
रात के बारह बज रहे हैं। शैफाली आज फिर सफेद रंग की मारुति में आई है। सरल ने देखा उसके बॉस पी.के. उसे सहारा देकर सीढ़ियों तक पहुँचा गए हैं। पत्नी के कमरे में घुसते ही वह उस पर बरस पड़ा, ‘‘क्या तुमने मुझे भड़ुवा समझ रखा है जो मैं यह सब खामोशी से बर्दाश्त करता रहूँगा। नहीं करवानी मुझे तुमसे नौकरी। कल से घर बैठो।’’ ‘‘नौकरी तो मैं छोड़ने से रही।’’ ‘‘मतलब ?’’ ‘‘मतलब साफ है उसके लिए मैं तुम्हें छोड़ सकती हूँ।’’ ‘‘अब नौबत यहाँ तक आ पहुँची है ?’’ ‘‘ये तो तुम्हें पहले ही सोच लेना था जब तुमने प्रमोशन के लिए मुझे इस्तेमाल किया था। अब सिर्फ मैं अपने लिए अपने को इस्तेमाल कर रही हूँ। तुम्हारा गुस्सा बेवजह है।’’ शैफाली ने ठंडे लहजे में कहा और सिंक में चेहरा धोने लगी। |
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परिश्रम का फल
एक था कौआ। बिलकुल उस प्राचीन कथा वाले कौए के समान। जिसमें प्*यासा कौआ पानी पीने के लिए मिट्*टी के बर्तन में स्*थित पानी ऊपर लाने के लिए चोंच में कंकड़ दबाकर लाता है। कंकड़ बर्तन में डालता है। अपने अथक परिश्रम के पश्*चात पानी ऊपर आने पर पीकर उड़ जाता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। गाँव के गरीब भोले भाले एक कौये ने अपने परिश्रम के द्वारा मिट्*टी के बर्तन को छोटे-छोटे कंकड़ो से भरा। बर्तन में पानी ऊपर आने पर एक अन्*य राजनीति के ज्ञाता, चालाक और तिकड़मी कौये ने बल पूर्वक उसे डरा धमका कर बर्तन को अपने कब्*जे में ले लिया। उसका पूरा जल पीकर अपनी प्*यास बुझाई। उड़ने से पूर्व मिट्*टी के पात्र को तिपाई से गिराकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया। पहले कौआ अब भी प्*यास से तड़प रहा है। |
Re: लघुकथाएँ
एक बार फिर ये कथाएं कलेवर में लघु होते हुये भी अपने में बड़े संदेश समेटे हैं. कई स्थानों पर तो बिना कहे पात्र बहुत कुछ कह जाता है. धन्यवाद आपका.
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Re: लघुकथाएँ
एक बालक अपनी दादी मां को एक पत्र लिखते हुए देख रहा था। अचानक उसने अपनी दादी मां से पूंछा, "दादी मां !" क्या आप मेरी शरारतों के बारे में लिख रही हैं ? आप मेरे बारे में लिख रही हैं, ना"
यह सुनकर उसकी दादी माँ रुकीं और बोलीं, "बेटा मैं लिख तो तुम्हारे बारे में ही रही हूँ, लेकिन जो शब्द मैं यहाँ लिख रही हूँ उनसे भी अधिक महत्व इस पेन्सिल का है जिसे मैं इस्तेमाल कर रही हूँ। मुझे पूरी आशा है कि जब तुम बड़े हो जाओगे तो ठीक इसी पेन्सिल की तरह होगे।" यह सुनकर वह बालक थोड़ा चौंका और पेन्सिल की ओर ध्यान से देखने लगा, किन्तु उसे कोई विशेष बात नज़र नहीं आयी। वह बोला, "किन्तु मुझे तो यह पेन्सिल बाकी सभी पेन्सिलों की तरह ही दिखाई दे रही है।" इस पर दादी माँ ने उत्तर दिया, "बेटा ! यह इस पर निर्भर करता है कि तुम चीज़ों को किस नज़र से देखते हो। इसमें पांच ऐसे गुण हैं, जिन्हें यदि तुम अपना लो तो तुम सदा इस संसार में शांतिपूर्वक रह सकते हो।" "पहला गुण : तुम्हारे भीतर महान से महान उपलब्धियां प्राप्त करने की योग्यता है, किन्तु तुम्हें यह कभी भूलना नहीं चाहिए कि तुम्हे एक ऐसे हाथ की आवश्यकता है जो निरन्तर तुम्हारा मार्गदर्शन करे। हमारे लिए वह हाथ ईश्वर का हाथ है जो सदैव हमारा मार्गदर्शन करता रहता है।" "दूसरा गुण : बेटा ! लिखते, लिखते, लिखते बीच में मुझे रुकना पड़ता है और फ़िर कटर से पेन्सिल की नोक बनानी पड़ती है। इससे पेन्सिल को थोड़ा कष्ट तो होता है, किन्तु बाद में यह काफ़ी तेज़ हो जाती है और अच्छी चलती है। इसलिए बेटा ! तुम्हें भी अपने दुखों, अपमान और हार को बर्दाश्त करना आना चाहिए, धैर्य से सहन करना आना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से तुम एक बेहतर मनुष्य बन जाओगे।" "तीसरा गुण : बेटा ! पेन्सिल हमेशा गलतियों को सुधारने के लिए रबर का प्रयोग करने की इजाज़त देती है। इसका यह अर्थ है कि यदि हमसे कोई गलती हो गयी तो उसे सुधारना कोई गलत बात नहीं है। बल्कि ऐसा करने से हमें न्यायपूर्वक अपने लक्ष्यों की ओर निर्बाध रूप से बढ़ने में मदद मिलती है।" "चौथा गुण : बेटा ! एक पेन्सिल की कार्य प्रणाली में मुख्य भूमिका इसकी बाहरी लकड़ी की नहीं अपितु इसके भीतर के 'ग्रेफाईट' की होती है। ग्रेफाईट या लेड की गुणवत्ता जितनी अच्छी होगी, लेख उतना ही सुन्दर होगा। इसलिए बेटा ! तुम्हारे भीतर क्या हो रहा है, कैसे विचार चल रहे हैं, इसके प्रति सदा सजग रहो।" "अंतिम गुण : बेटा ! पेन्सिल सदा अपना निशान छोड़ देती है। ठीक इसी प्रकार तुम कुछ भी करते हो तो तुम भी अपना निशान छोड़ देते हो। अतः सदा ऐसे कर्म करो जिन पर तुम्हें लज्जित न होना पड़े अपितु तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का सिर गर्व से उठा रहे। अतः अपने प्रत्येक कर्म के प्रति सजग रहो। |
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डर के आगे जीत है।
एक लड़की कार चला रही थी और पास में उसके पिताजी बैठे थे। राह में एक भयंकर तूफ़ान आया। और लड़की ने पिता से पूछा -- "अब हम क्या करें?" पिता ने जवाब दिया -- "कार चलाते रहो।" तूफ़ान में कार चलाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था और तूफ़ान और भयंकर होता जा रहा था। "अब मैं क्या करू ?" -- लड़की ने पुनः पूछा। "कार चलाते रहो।" -- पिता ने पुनः कहा। थोड़ा आगे जाने पर लड़की ने देखा की राह में कई वाहन तूफ़ान की वजह से रुके हुए थे। उसने फिर अपने पिता से कहा -- "मुझे कार रोक देनी चाहिए। मैं मुश्किल से देख पा रही हूँ। यह भयंकर है और प्रत्येक ने अपना वाहन रोक दिया है।" उसके पिता ने फिर निर्देशित किया -- "कार रोकना नहीं. बस चलाते रहो।" अब तूफ़ान ने बहुत ही भयंकर रूप धारण कर लिया था किन्तु लड़की ने कार चलाना नहीं रोका और अचानक ही उसने देखा कि कुछ साफ़ दिखने लगा है। कुछ किलो मीटर आगे जाने के पश्चात लड़की ने देखा कि तूफ़ान थम गया और सूर्य निकल आया। अब उसके पिता ने कहा -- "अब तुम कार रोक सकती हो और बाहर आ सकती हो।" लड़की ने पूछा -- "पर अब क्यों?" पिता ने कहा -- "जब तुम बाहर आओगी तो देखोगी कि जो राह में रुक गए थे, वे अभी भी तूफ़ान में फंसे हुए हैं। चूँकि तुमने कार चलाने के प्रयत्न नहीं छोड़ा, तुम तूफ़ान के बाहर हो।" शिक्षा: यह किस्सा उन लोगों के लिए एक प्रमाण है जो कठिन समय से गुजर रहे हैं। मजबूत से मजबूत इंसान भी प्रयास छोड़ देते हैं। किन्तु प्रयास कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए। निश्चित ही जिन्दगी के कठिन समय गुजर जायेंगे और सुबह के सूर्य की भांति चमक आपके जीवन में पुनः आयेगी। इसीलिए कहते है "डर के आगे जीत है। uf |
Re: लघुकथाएँ
अक्ल का इस्तेमाल
एक गाँव में एक बढ़ई रहता था। वह शरीर और दिमाग से बहुत मजबूत था। एक दिन उसे पास के गाँव के एक अमीर आदमी ने फर्नीचर फिट करने के लिए बुलाया। जब वहाँ का काम खत्म हुआ तो लौटते वक्त शाम का हो गई तो उसने काम के मिले पैसों की एक पोटली बगल मे दबा ली और ठंड से बचने के लिए कंबल ओढ़ लिया। वह चुपचाप सुनसान रास्ते से घर की और रवाना हुआ। कुछ दूर जाने के बाद अचानक उसे एक लुटेरे ने रोक लिया। वह शरीर से तो बढ़ई से कमजोर था पर उसकी कमजोरी को उसकी बंदूक ने ढक रखा था। अब बढ़ई ने उसे सामने देखा तो लुटेरा बोला, "जो कुछ भी तुम्हारे पास है सभी मुझे दे दो नही तो मैं तुम्हें गोली मार दूँगा।" यह सुनकर बढ़ई ने पोटली उस लुटेरे को थमा दी और बोला, "ठीक है यह रुपये तुम रख लो मगर मैं घर पहुँच कर अपनी बीवी को क्या कहुंगा। वो तो यही समझेगी कि मैने पैसे जुए मे उड़ा दिए होंगे। तुम एक काम करो, अपने बंदूक की गोली से मेरी टोपी मे एक छेद कर दो ताकि मेरी बीवी को लूट का यकीन हो जाए।" लुटेरे ने बड़ी शान से बंदूक से गोली चलाकर टोपी मे छेद कर दिया। अब लुटेरा जाने लगा तो बढ़ई बोला, "एक काम और कर दो, जिससे बीवी को यकीन हो जाए कि लुटेरों के गैंग ने मिलकर लुटा हो। वरना मेरी बीवी मुझे कायर समझेगी। तुम इस कंबल मे भी चार-पाँच छेद कर दो।" लुटेरे ने खुशी खुशी कंबल मे गोलियाँ चलाकर छेद कर दिए। इसके बाद बढ़ई ने अपना कोट भी निकाल दिया और बोला, "इसमें भी एक दो छेद कर दो ताकि सभी गॉंव वालों को यकीन हो जाए कि मैंने बहुत संघर्ष किया था।" इस पर लुटेरा बोला, "बस कर अब। इस बंदूक मे गोलियां भी खत्म हो गई हैं।' यह सुनते ही बढ़ई आगे बढ़ा और लुटेरे को दबोच लिया और बोला, "यही तो मैं चाहता था। तुम्हारी ताकत सिर्फ ये बंदूक थी। अब ये भी खाली है। अब तुम्हारा कोई जोर मुझ पर नही चल सकता है। चुपचाप मेरी पोटली मुझे वापस दे दो वरना …।" यह सुनते ही लुटेरे की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई और उसने तुरंत ही पोटली बढई को वापिस दे दी और अपनी जान बचाकर वहाँ से भागा। आज बढ़ई की ताकत तब काम आई जब उसने अपनी अक्ल का सही ढंग से इस्तेमाल किया। इसलिए कहते है कि मुश्किल हालात मे अपनी अक्ल का ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए तभी आप मुसीबतों से आसानी से निकल सकते हैं |
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पंडित का एक वैश्या से प्रश्न ......
एक पंडित जी कई वर्षों तक काशी में शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद अपने गांव लौटे। गांव के एक किसान ने उनसे पूछा, पंडित जी आप हमें यह बताइए कि पाप का गुरु कौन है? प्रश्न सुन कर पंडित जी चकरा गए, क्योंकि भौतिक व आध्यात्मिक गुरु तो होते हैं, लेकिन पाप का भी गुरु होता है, यह उनकी समझ और अध्ययन के बाहर था। पंडित जी को लगा कि उनका अध्ययन अभी अधूरा है, इसलिए वे फिर काशी लौटे। फिर अनेक गुरुओं से मिले। मगर उन्हें किसान के सवाल का जवाब नहीं मिला। अचानक एक दिन उनकी मुलाकात एक वेश्या से हो गई। उसने पंडित जी से उनकी परेशानी का कारण पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी। वेश्या बोली, पंडित जी..! इसका उत्तर है तो बहुत ही आसान, लेकिन इसके लिए कुछ दिन आपको मेरे पड़ोस में रहना होगा। पंडित जी के हां कहने पर उसने अपने पास ही उनके रहने की अलग से व्यवस्था कर दी। पंडित जी किसी के हाथ का बना खाना नहीं खाते थे, नियम-आचार और धर्म के कट्टर अनुयायी थे। इसलिए अपने हाथ से खाना बनाते और खाते। इस प्रकार से कुछ दिन बड़े आराम से बीते, लेकिन सवाल का जवाब अभी नहीं मिला। एक दिन वेश्या बोली, पंडित जी...! आपको बहुत तकलीफ होती है खाना बनाने में। यहां देखने वाला तो और कोई है नहीं। आप कहें तो मैं नहा-धोकर आपके लिए कुछ भोजन तैयार कर दिया करूं। आप मुझे यह सेवा का मौका दें, तो मैं दक्षिणा में पांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन दूंगी। स्वर्ण मुद्रा का नाम सुन कर पंडित जी को लोभ आ गया। साथ में पका-पकाया भोजन। अर्थात दोनों हाथों में लड्डू। इस लोभ में पंडित जी अपना नियम-व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ भूल गए। पंडित जी ने हामी भर दी और वेश्या से बोले, ठीक है, तुम्हारी जैसी इच्छा। लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना कि कोई देखे नहीं तुम्हें मेरी कोठी में आते-जाते हुए। वेश्या ने पहले ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर पंडित जी के सामने परोस दिया। पर ज्यों ही पंडित जी खाने को तत्पर हुए, त्यों ही वेश्या ने उनके सामने से परोसी हुई थाली खींच ली। इस पर पंडित जी क्रुद्ध हो गए और बोले, यह क्या मजाक है? वेश्या ने कहा, यह मजाक नहीं है पंडित जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है। यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथ का भी नहीं पीते थे,मगर स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया। यह लोभ ही पाप का गुरु है। |
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स्व मूल्यांकन (Self Appraisal)
एक चौदह पंद्रह साल का लड़का एक टेलीफोन बूथ पर जाकर एक नंबर लगाता है और किसी के साथ बात करता है, बूथ मालिक उस लड़के की बात को ध्यान से सुनता रहता है ; लड़का : किसी महिला से कहता है कि, मैंने बैंक से कुछ क़र्ज़ लिया है और मुझे उसका क़र्ज़ चुकाना है, इस कारण मुझे पैसों की बहुत जरुरत है, मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे की घास काटने की नौकरी दे सकती हैं..? महिला : (दूसरी तरफ से) मेरे पास तो पहले से ही घास काटने वाला माली है.. लड़का : परन्तु मैं वह काम आपके माली से आधी तनख्वाह पर कर दूंगा.. महिला : तनख्वाह की बात ही नहीं है मैं अपने माली के काम से पूरी तरह संतुष्ट हूँ.. लड़का : (और निवेदन करते हुए) घास काटने के साथ साथ मैं आपके घर की साफ़ सफाई भी कर दूंगा वो भी बिना पैसे लिए.. महिला : धन्यवाद और ना करके फोन काट दिया..लड़का चेहरे पर विस्मित भाव लिए फोन रख देता है.. बूथ मालिक जो अब तक लड़के की सारी बातों को सुन चूका होता है,लड़के को अपने पास बुलाता है.. दुकानदार : बेटा मेरे को तेरा स्वभाव बहुत अच्छा लगा, मेरे को तेरा सकारात्मक बात करने का तरीका भी बहुत पसंद आया..अगर मैं तेरे को अपने यहाँ नौकरी करने का ऑफ़र दूं तो क्या तू मेरे यहाँ काम करेगा..?? लड़का : नहीं, धन्यवाद. दुकानदार : पर तेरे को नौकरी की सख्त जरुरत है और तू नौकरी खोज भी रहा है. लड़का : नहीं श्रीमान मुझे नौकरी की जरुरत नहीं है मैं तो नौकरी कर ही रहा हूँ, वो तो मैं अपने काम का मूल्यांकन कर रहा था..मैं वही माली हूँ जिसकी बात अभी वो महिला फोन पर कर रही थी..!!! |
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दृष्टिकोण का फ़र्क...
बहुत समय पहले की बात है ,किसी गाँव में एक किसान रहता था . वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता था . इसकाम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था , जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था . उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एक दम सही था . इस वजह से रोज़ घर पहुँचते -पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था .ऐसा दो सालों से चल रहा था . सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है, वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है . फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया , उसने किसान से कहा , “ मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ?” “क्यों ? “ , किसान ने पूछा , “ तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?” “शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ , और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ , मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है , और इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है .”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा. किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुःख हुआ और वह बोला , “ कोई बात नहीं , मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो .” घड़े ने वैसा ही किया , वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया , ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुँचते – पहुँचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा . किसान बोला ,” शायद तुमने ध्यान नहीं दिया पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस तुम्हारी तरफ ही थे , सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था . ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था , और मैंने उसका लाभ उठाया . मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग - बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे , तुम रोज़ थोडा- थोडा कर के उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया . आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ . तुम्ही सोचो अगर तुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता ?” दोस्तों हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है , पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं . उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वो जैसा है वैसे ही स्वीकारना चाहिए और उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए, और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा. |
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अच्छे में बुरा और बुरे में अच्छा छुपा है..
परियां भेस बदलकर घूमने निकली थीं। उन्होंने बुजुर्ग महिलाओं का रूप धर लिया था। घूमते घमते रात हो गई, तो वे सामने दिख रहे एक आलीशान मकान के दरवाजो पर पहुंच गईं। वह एक अमीर का घर था। वृद्धाओं के वेश में परियों ने उससे रात के लिए आश्रय मांगा। वह जमाना समाज में अतिथि देवा भव: की भावना वाला था। इसलिए अमीर चाहकर भी मना न कर सका। लेकिन उसने उन्हें घर के किसी कमरे में ठहराने की बजाय तहख़ाने में ठहरा दिया। परियों ने वहां किसी तरह रात काटी। सुबह एक परी की नजर तहख़ाने की टूटती दीवाल पर पड़ी, तो उसने जादू से उसकी मरम्मत कर दी। अलगी रात वे एक ग़रीब के घर पहुंचे। वह परिवार भले ही ग़रीब था, लेकिन सभी सदस्य परियों की खातिर के लिए आतुर हो उठे। उन्होंने उन्हें अपने हिस्से का खाना खिलाया और सबसे अच्छे कमरे में सुलाया। सुबह जब परियां जाने लगीं, तो उन्होंने देखा कि उस ग़रीब की पत्नी रो रही थी। पूछने पर पता चला कि उस परिवार की आय का बड़ा सहारा, एक बकरी रात को अचानक मर गई। दूसरी परी ने पहली को मुस्कराते हुए देखा, तो समझ गई कि यह उसी की करतूत है। उसने पूछा कि तुमने र्दुव्*यवहार करने वाले अमीर की दीवार बिना कहे सुधार दी, जबकि इस सज्जन परिवार की आय का सहारा ही छीन लिया! पहली परी ने बताया, ‘दरअसल, तहख़ाने की दीवार में सोने की सैकड़ों मुहरें दबी थीं। अगर दीवार जरा और उखड़ती, तो मुहरें बाहर झांकने लगतीं। इसलिए मैंने दीवार की मरम्मत कर दी, ताकि मुहरें हमेशा वहीं दबी रहें। दूसरी तरफ़, कल इस ग़रीब परिवार की स्त्री पर मौत आई थी, लेकिन मैंने उसे बकरी की तरफ़ मोड़ दिया था।’ सबक- चीजें या घटनाएं जैसी दिखती हैं, वैसी होती नहीं हैं। सो, कोई भी धारणा तात्कालिक नहीं, अंतिम परिणाम के आधार पर बनाई जानी चाहिए। अक्सर बुराई में भी अच्छाई छुपी होती है |
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लघुकथा बहुत रोचक तथा शिक्षाप्रद है. |
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अपना-पराया
किसी होटल के मालिक ने एक लड़का नौकर रखा| उसकी उम्र अधिक नहीं थी| वह लड़का बड़ा भला और भोला था, बहुत ही ईमानदार और मेहनती था| एक दिन वह लड़का शीशे के गिलास धो रहा था| संयोग से एक गिलास उसके हाथ से फिसल गया और फर्श से टकराकर चूर-चूर हो गया| मालिक ने गिलास के गिरने और टूटने की आवाज सुनी तो दौड़ता हुआ आया और लाल-पिला होकर बोला - "क्यों रे बदमाश, यह क्या हुआ?" बेचारा बालक वैसे ही डर रहा था, मालिक की भाव-भंगिमा देखकर उसके रहे-सहे होश भी गायब हो गए| अपने बचाव में वह कुछ कहे कि उससे पहले ही मालिक ने एक हाथ से कसकर उसका कान उमेठा और दूसरे से तड़ातड़ पांच-सात चांटे लगा दिए| बालक के मुंह से दबी हुई एक चीख निकलने को हुई, पर वह पी गया और कोई चारा भी तो नहीं था| मालिक ने दांत पीसते हुए उसे और उसकी सारी जमात को चुन-चुनकर गालियां दीं और जी भरकर उसे कोसा| फिर वह ज्योंही जाने को मुड़ा कि उसका लड़का आ गया| पिता के तमतमाए हुए चेहरे को देखकर वह उलटे पैरों लौटने को हुआ कि घबराहट में उसका पैर फिसल गया और प्लेटों की अलमारी पर गिरा| कई कीमती प्लेटें नीचे गिरकर टुकड़े-टुकड़े हो गईं| पिता ने दौड़कर अपने उस इकलौते बेटे को उठा लिया और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला - "क्यों बेटे, तुम्हें चोट तो नहीं लगी?" फिर प्लेटों के टुकड़ों की ओर देखकर बेटे को सांत्वना देते हुए कहा - "कोई बात नहीं है, ऐसा तो हो ही जाता है|" कुछ कदम पर खड़े नौकर ने मालिक के चेहरे पर व्याप्त ममता को देखा और अपनी उम्र के उस लड़के पर निगाह डाली| अचानक उसने पाया कि उसके गालों पर पड़ी चांटों की मार जोर से कसक उठी है और रोकते-रोकते भी उसकी आंखों से आंसुओं की कई बड़ी-बड़ी बूंदें टपक पड़ीं| उसे भगवान ने छोटी उम्र में ही अपने पराए का भेद समझा दिया था| |
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असली मर्द
अरब देश की बात है| एक राजा था| उसके बड़े-ठाठ-बाट थे| उसके पास किसी चीज की कमी न थी| एक दिन वह राजा लड़ाई पर गया| उसके पास खाने-पीने का सामन इतना था कि उसे लादने के लिए तीन सौ ऊंटों की जरूरत पड़ी| दुर्भाग्य से वह दुश्मन से हार गया और बंदी बना लिया गया| उसके पास उसका रसोइया खड़ा था| राजा ने कहा - "मुझे भूख लगी है| कुछ खाने को तैयार कर दो|" रसोइए के पास मांस का एक टुकड़ा बचा था| उसने उसे देगची में डालकर उबलने को रख दिया| कहीं कुछ साग-सब्जी मिल जाए तो अच्छा होगा, यह सोचकर वह खोज में निकल पड़ा| इतने में एक कुत्ता वहां आया| मांस की गंध से उसने अपना मुंह देगची में डाल दिया| संयोग से देगची में उसका मुंह अटक गया| उसने मुंह निकालने की बहुत कोशिश की| जब मुंह न निकला तो देगची को लेकर ही वह वहां से भागा| राजा ने वह दृश्य देखा तो जोर से हंस पड़ा| पास में एक संतरी खड़ा था| उसने राजा की हंसी सुनी तो उसे बड़ा अचरज हुआ| उसने कहा - "आप इतनी मुसीबत में हैं तब भी हंस रहे हैं| क्या बात है?" राजा ने जवाब दिया - "मुझे यह सोचकर हंसी आ रही है कि कल तक मेरे रसोई के सामान को ले जाने के लिए तीन सौ ऊंटों की जरूरत होती थी, अब उसके लिए एक कुत्ता ही काफी है|" किसी ने ठीक ही कहा है कि सुख में तो सभी खुश रहते हैं, लेकिन असली मर्द तो वह है जो मुसीबत में भी हंस सके| |
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तोड़ो नहीं, जोड़ो
अंगुलिमाल नाम का एक बहुत बड़ा डाकू था| वह लोगों को मारकर उनकी उंगलियां काट लेता था और उनकी माला बनाकर पहनता था| इसी कारण उसका यह नाम पड़ा था| मुसाफिरों को लूट लेना उनकी जान ले लेना, उसके बाएं हाथ का खेल था| लोग उससे बहुत डरते थे| उसका नाम सुनते ही उनके प्राण सूख जाते थे| संयोग से एक बार भगवान बुद्ध उपदेश देते हुए उधर आ निकले| लोगों ने उनसे प्रार्थना की कि वे वहां से चले जाएं| अंगुलिमाल ऐसा डाकू है, जो किसी के भी आगे नहीं झुकता| बुद्ध ने लोगों की बात सुनी, पर उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला| वे बेधड़क वन में घूमने लगे| जब अंगुलिमाल को इसका पता चला तो वह झुंझलाकर बुद्ध के पास आया| वह उन्हें मार डालना चाहता था, लेकिन जब उसने बुद्ध को मुस्कराकर प्यार से उसका स्वागत करते देखा तो उसका पत्थर का दिल कुछ मुलायम हो गया| बुद्ध ने उससे कहा - "सुनो भाई, सामने के पेड़ से चार पत्ते तोड़ लाओगे?" अंगुलिमाल के लिए यह क्या मुश्किल था! वह दौड़कर गया और जरा-सी देर में पत्ते तोड़कर ले आया| बुद्ध ने कहा - "अब एक काम और करो| जहां से इन पत्तों को तोड़कर लाए हो, वहीं इन्हें लगा आओ|" अंगुलिमाल बोला - "यह कैसे हो सकता है?" बुद्ध ने कहा - "भैया! जब तुम जानते हो कि टूटा जुड़ता नहीं तो फिर तोड़ने का काम क्यों करते हो?" इतना सुनते ही अंगुलिमाल को बोध हो गया और वह उस दिन से अपना धंधा छोड़कर बुद्ध की शरण में आ गया| |
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पैरों के निशान
जन्म से ठीक पहले एक बालक भगवान से कहता है,” प्रभु आप मुझे नया जन्म मत दीजिये , मुझे पता है पृथ्वी पर बहुत बुरे लोग रहते है…. मैं वहाँ नहीं जाना चाहता …” और ऐसा कह कर वह उदास होकर बैठ जाता है । भगवान् स्नेह पूर्वक उसके सर पर हाथ फेरते हैं और सृष्टि के नियमानुसार उसे जन्म लेने की महत्ता समझाते हैं , बालक कुछ देर हठ करता है पर भगवान् के बहुत मनाने पर वह नया जन्म लेने को तैयार हो जाता है। ” ठीक है प्रभु, अगर आपकी यही इच्छा है कि मैं मृत लोक में जाऊं तो वही सही , पर जाने से पहले आपको मुझे एक वचन देना होगा। ” , बालक भगवान् से कहता है। भगवान् : बोलो पुत्र तुम क्या चाहते हो ? बालक : आप वचन दीजिये कि जब तक मैं पृथ्वी पर हूँ तब तक हर एक क्षण आप भी मेरे साथ होंगे। भगवान् : अवश्य, ऐसा ही होगा। बालक : पर पृथ्वी पर तो आप अदृश्य हो जाते हैं , भला मैं कैसे जानूंगा कि आप मेरे साथ हैं कि नहीं ? भगवान् : जब भी तुम आँखें बंद करोगे तो तुम्हे दो जोड़ी पैरों के चिन्ह दिखाइये देंगे , उन्हें देखकर समझ जाना कि मैं तुम्हारे साथ हूँ। फिर कुछ ही क्षणो में बालक का जन्म हो जाता है। जन्म के बाद वह संसारिक बातों में पड़कर भगवान् से हुए वार्तालाप को भूल जाता है| पर मरते समय उसे इस बात की याद आती है तो वह भगवान के वचन की पुष्टि करना चाहता है। वह आखें बंद कर अपना जीवन याद करने लगता है। वह देखता है कि उसे जन्म के समय से ही दो जोड़ी पैरों के निशान दिख रहे हैं| परंतु जिस समय वह अपने सबसे बुरे वक़्त से गुजर रहा था उस समय केवल एक जोड़ी पैरों के निशान ही दिखाइये दे रहे थे , यह देख वह बहुत दुखी हो जाता है कि भगवान ने अपना वचन नही निभाया और उसे तब अकेला छोड़ दिया जब उनकी सबसे अधिक ज़रुरत थी। मरने के बाद वह भगवान् के समक्ष पहुंचा और रूठते हुए बोला , ” प्रभु ! आपने तो कहा था कि आप हर समय मेरे साथ रहेंगे , पर मुसीबत के समय मुझे दो की जगह एक जोड़ी ही पैर दिखाई दिए, बताइये आपने उस समय मेरा साथ क्यों छोड़ दिया ?” भगवान् मुस्कुराये और बोले , ” पुत्र ! जब तुम घोर विपत्ति से गुजर रहे थे तब मेरा ह्रदय द्रवित हो उठा और मैंने तुम्हे अपनी गोद में उठा लिया , इसलिए उस समय तुम्हे सिर्फ मेरे पैरों के चिन्ह दिखायी पड़ रहे थे। “ दोस्तों, बहुत बार हमारे जीवन में बुरा वक़्त आता है , कई बार लगता है कि हमारे साथ बहुत बुरा होने वाला है , पर जब बाद में हम पीछे मुड़ कर देखते हैं तो पाते हैं कि हमने जितना सोचा था उतना बुरा नहीं हुआ ,क्योंकि शायद यही वो समय होता है जब ईश्वर हम पर सबसे ज्यादा कृपा करता है। अनजाने में हम सोचते हैं को वो हमारा साथ नहीं दे रहा पर हकीकत में वो हमें अपनी गोद में उठाये होता है। Prakash Dwivedi |
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तीसरी भूल, जब उस युवती ने कह दिया 'कपड़ों को क्यों देखते हो'
सुधांशु जी महाराज / अध्यात्मिक गुरु मानव जीवन घटनाओं की एक अद्भुत घाटी है। जीवनयात्रा में अनेक घटनाएं घटती हैं, घटनाओं का प्रवाह इंसान को जगाने के लिए आता है, झकझोरने के लिए आता है। जीवन में घटने वाली छोटी-छोटी घटनाएं इतनी प्रेरणादायक होती हैं कि व्यक्ति का जीवन बदल जाता है। संवेदनशील व्यक्ति बहुत बार स्वयं से ही लज्जित हो जाता है और अपने आप से लज्जित होना अच्छी बात होती है। एक यहूदी फकीर हुसैन साहिब हुए हैं-उन्होंने कहा मैं अपनी जिन्दगी में तीन बार बड़ा शर्मिन्दा हुआ। वह कहते हैं मैंने एक बार एक व्यक्ति को देखा जो शराब पिए हुआ था, उसको कीचड़ में फिसलते हुए, गिरते हुए संभलने की कोशिश करते मैंने देखा, यह देखते ही मैंने उसे आवाज दी, सम्भल भाई! नशे में हो। अगर गिर जाओगे तो उठना मुश्किल हो जाएगा। इतना सुनते ही वह शराबी व्यक्ति मेरी तरफ देखकर बोला, मैं तो नशे में पागल हूं, कीचड़ में गिर जाउंगा तो कपड़ों में लगा हुआ कीचड़ तो धोकर ठीक हो जाएगा, लेकिन तुम तो धर्मिक इंसान हो, ईश्वर के नेक बन्दे हो, तुम न गिर जाना, अगर तुम गिर गए तो तुम्हारा मन स्वच्छ होने वाला नहीं। क्योंकि मन पर लगा कीचड़ कभी साफ नहीं हो पाएगा। हुसैन साहिब कहते हैं कि उस समय मुझे बहुत शर्मिन्दगी हुई कि एक शराब के नशे में बेहोश आदमी जो कह गया, वह होश वाला भी नहीं कह सकता। फकीर आगे कहते हैं कि दूसरी बार मैं एक बच्चे को देखकर लज्जित हुआ। वह बच्चा हाथ में जलता हुआ दीपक लेकर आ रहा था, मैंने उससे पूछा कि इस दीये में प्रकाश कहां से आया है? मेरे इतना कहते ही एक हवा का तेज झोंका आया और दीपक बुझ गया। बच्चे ने उत्तर दिया कि यह बाद में पूछना कि प्रकाश कहां से आया, पहले आप यह बताओ कि प्रकाश गया कहां? तो फिर मैं आपको बताऊं कि प्रकाश आया कहां से था। बच्चे का उत्तर सुनकर हुसैन साहिब लज्जित होकर सोचेन लगे कि कहां से आता है प्रकाश और कहां समाहित हो जाता है? हुसैन कहते हैं कि जीवन में मुझे तीसरी बार शर्मिन्दगी उस समय हुई जब एक युवति ने मेरे पास आकर कहा कि मेरा पति निर्मोही है, घर-गृहस्थी पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता। मैंने उस महिला को डांटते हुए कहा, पहले अपना आंचल तो ठीक कर, बाद में पति के लिए शिकायत करना। यह सुनकर वह महिला बोली, मैं तो अपने पति के लिए पागल हूं, मुझे तो अपना होश नहीं, लेकिन तू तो अपने मालिक के प्यार में पागल है, तब भी तुझे दूसरों के कपड़ों का ही ध्यान आता है। अगर तू सच में मालिक का प्यारा है तो देख सारी दुनिया में सर्वत्र तुझे प्यार करने वाला तेरा परमात्मा तेरे सामने है, तू उसका ध्यान कर। हुसैन साहिब कहते हैं कि मैं उसकी इस बात से बहुत शर्मिन्दा हुआ |
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अमीर कौन?
महिला पिकनिक के दौरान 3 स्टार होटल में ठहरी थी. उसके साथ उसका एक छोटा सा बच्चा था. बच्चा भूख से रोये जा रहा था. सर एक कप दूध मिलेगा क्या...? 8 माह के बच्चे की माँ ने 3 स्टार होटल मैनेजर से पूछा... मैनेजर "हाँ, 100 रू. में मिलेगा"... महिला ने कहा - "ठीक है दे दो" वह सुबह जब गाड़ी में जा रहे थे ... बच्चे को फिर भूख लगी...., बच्चा रोए जा रहा था .. गाडी को टूटी झोपड़ी वाली पुरानी सी चाय की दुकान पर रोका… बच्चे को दूध पिला कर शांत किया... दूध के पैसे पूछने पर बूढा दुकान मालिक बोला... "बेटी! मैं इस बच्चे के दूध के पैसे नहीं ले सकता " यदि रास्ते के लिए चाहिए तो लेती जाओ... "अब बच्चे की माँ के दिमाग मे एक सवाल बार बार घूम रहा था कि अमीर कौन 3 स्टार होटल वाला या टूटी झोपड़ी वाला...? |
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अपना अपना स्थान
एक राजा था. वह दिन- रात यही देखता रहता कि कौन वस्तु उपयोगी है और कौन अनुपयोगी. एक बार उसने यह फरमान दिया कि पता करो कौन -कौन से प्राणी, वनस्पति, जीव -जंतु उपयोगी हैं और कौन अनुपयोगी. राजा के मंत्रियों -दरवारियों ने इसके लिए समिति बनाई जिसे एक महीने बाद अपनी रिपोर्ट देनी थी. एक महीने बाद समिति के प्रतिनिधि राजा से मिलने आये. उन्होंने राजा को बताया कि दो कीड़े- मकड़ी और मक्खी बेकार हैं. ये किसी भी तरह से उपयोगी नहीं हैं. राजा ने सोचा- क्यों न हम इन दोनों कीड़ों को बिलकुल नष्ट करवा दें. तभी एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला - महाराज! हमारे ऊपर पडोसी राजा ने आक्रमण कर दिया है. दोनों में युद्ध हुआ और राजा हार गया और जंगल की और जान बचाने के लिए भागा. राजा थक गया था इसलिए एक पेड़ के नीचे सो गया. तभी एक जंगली मक्खी ने उसकी नाक पर डंक मार दिया जिससे राजा की नींद खुल गई. राजा ने सोचा इस तरह खुले में सोना सुरक्षित नहीं और एक गुफा में छिप गया. उस गुफा में बहुत मकड़ी रहती थी. मकड़ियों ने गुफा के द्वार पर जाल बन दिया. जब राजा को खोजते हुए सैनिक आये और उस गुफा की तरफ़ा देखा तो बोले - इसमें नहीं गया होगा. अगर गया होता तो मकड़ी का जाला नष्ट हो गया होता. गुफा में छिपा राजा यह सब सुन रहा था. सैनिक चले गए. राजा ने सोचा- प्रकृति में सभी जीव -जंतुओं का अपना अपना स्थान होता है. सबकी अपनी उपयोगिता होती है. अब राजा की आँखें खुल चुकी थी. |
Re: लघुकथाएँ
बंधन
कमरुद्दीन और उसका मालिक खैरातीचंद 50 ऊटों का काफिला लिए मरुभूमि में बढ़ता चला जा रहा था. सूर्य देव को अस्ताचल में छिपता देख सेठ ने कमरुद्दीन को आवाज लगाई - देख सामने सराय है आज यहीं रुक जाते हैं. कमरुद्दीन ने उनचास ऊंटों को जमीन में खूंटियां गाड़कर रस्सियों से बांध दिया. एक ऊंट के लिए रस्सी थी ही नहीं, न ही खूंटा था. काफी खोजा लेकिन इंतजाम न हो सका. उस सराय के बुजुर्ग मालिक ने एक सलाह दी - सुनो तुम ऐसा करो जिससे लगे कि तुम खूंटी गाड़ रहे हो और ऊंट को रस्सी से बांध रहे हो. इसका अहसास ऊंट को करवाओ. यह सुनकर कमरुद्दीन और उसका मालिक खैरातीचंद हैरानी में पड़ गया, पर दूसरा कोई उपाय था, इसलिए कमरुद्दीन ने वैसा ही किया. झूठीमुठी खूंटी गाड़ी गई, ताकि उसकी आवाज ऊंट सुन सके. झूठ मुठ की रस्सी बांधी गयी ताकि ऊंट को लगे कि उसे बांधा जा चुका है. ऊंट ने आवाज सुनीं और समझ लिया कि वह बंध चुका है. वह भी अन्य ऊँटों कि तरह बैठ गया और जुगाली करने लगा. सुबह उनचास ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं गयी और रस्सियां खोलीं गयी. सारे ऊंट उठ गए और चलने लगे. लेकिन एक ऊंट बैठा ही रहा. कमरुद्दीन को आश्चर्य हुआ - अरे, इसे तो बाँधा भी नहीं है, फिर भी यह उठ क्यों नहीं रहा है? फिर उस सराय के बुजुर्ग मालिक ने समझाया - तुम यह देख रहे हो कि ऊंट बंधा नहीं है लेकिन ऊंट स्वयं को बंधन में महसूस कर रहा है. जैसे रात को तुमने झूठ मुठ का खूंटी गाड़ने और बाँधने का एहसास कराया वैसे ही अभी उसे उखाड़ने और रस्सी खोलने का एहसास कराओ तभी यह ऊंट उठेगा. कमरुद्दीन ने खूंटी उखाड़ने और रस्सी खोलने का नाटक किया और ऊंट उठकर चल पड़ा. यही हम सबके साथ भी होता है हम भी ऐसी ही काल्पनिक खूंटियों और रस्सियों के बंधन में जकड़े होते हैं. और वह है हमारा नजरिया या गलत दृष्टिकोण, गलत सोच, नकारत्मक विचार. किसी भी काम के प्रति जैसा हमारा दृष्टिकोण होगा, हमारी सफलता भी उसी पर निर्भर करेगी. इसलिए हम चिंतन करें और अपने विचार या दृष्टिकोण पर अवश्य विचार करें. |
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एक आदमी जंगल से गुजर रहा था । उसेएक आदमी जंगल से गुजर रहा था चार स्त्रियां मिली । उसने पहली से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ? उसने कहा -: "बुद्धि "! तुम कहां रहती हो? ... उसने कहा-: मनुष्य के दिमाग में। दूसरी स्त्री से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ? " लज्जा "। तुम कहां रहती हो ? उसने कहा-: आंख में । तीसरी से पूछा - तुम्हारा क्या नाम हैं ? "हिम्मत" कहां रहती हो ? उसने कहा-: दिल में । चौथी से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ? "तंदुरूस्ती" कहां रहती हो ? उसने कहा-: पेट में। वह आदमी अब थोडा आगे बढा तों फिर उसे चार पुरूष मिले। उसने पहले पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ? " क्रोध " कहां रहतें हो ? दिमाग में, दिमाग में तो बुद्धि रहती हैं, तुम कैसे रहते हो? उसने कहा-: जब मैं वहां रहता हुं तो बुद्धि वहां से विदा हो जाती हैं। दूसरे पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं? उसने कहां -" लोभ"। कहां रहते हो? आंख में। आंख में तो लज्जा रहती हैं तुम कैसे रहते हो। उसने कहा-: मेरे रहते लज्जा का कोई ठिकाना नहीं है मै कुछ भी करवा सकता हूँ ..चोरी ,डकैती, हत्या आदि तीसरें से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ? जबाब मिला "भय"। कहां रहते हो? दिल में तो हिम्मत रहती हैं तुम कैसे रहते हो? उसने कहा-: जब मैं आता हूं तो हिम्मत भाग जाती है ..!! चौथे से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ? उसने कहा - "रोग"। कहां रहतें हो? पेट में। पेट में तो तंदरूस्ती रहती हैं, उसने कहा-: तुम जैसे सहनशील व्यक्ति जब अपना संतुलन खो देते हो तब मैं आता हूँ और तन्दरुस्ती को भगा कर तुम्हारे शरीर में राज करता हूँ ...!! NAND KISHOR GUPTA |
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Quote:
...और कहा भी है— 1. जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि । 2. सावन के अन्धे को हरा ही हरा नजर आता है । 3. या दृषि भावना भवती ता दृषि कार्याणां सिद्धयती । 4. मन के हारे हार है मन के जिते जित । 5. कौन कहता है कि आंसमा में सुराख नहीं हो सकता ? तबियत से एक पत्थर तो उछालो यारों ! ये और इसी तरह के वक्तव्य हमारे दृष्टिकोण से फलित होने वाले कार्यो को दर्शाते है |
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