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-   -   उमर खैय्याम की रुबाइयां (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=6343)

rajnish manga 24-01-2013 10:36 PM

उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Here with a Loaf of Bread beneath the Bough,
A Flask of Wine, a Book of Verse – and Thou
Beside me singing in the Wilderness –
And Wilderness is paradise enow.

(Edward Fitzgerald )

शुगल-ए-मयनोशी का सामां हो, बियाबां की बहार!
लो-ए-जज्बात को हेज़ान में मैदां का गुबार !
दिलरुबा ज़ीनत-ए-पहलू हो कोई जाम बदस्त !
ताज-ए-सुल्तानी भी इस ऐश पे कर दूं मैं निसार !!

(प्रोफ. वाकिफ़ )

वीराना हो, मयनोशी का सामान भी हो!
रोटी भी हो, बकरे की भुनी रान भी हो!
माशूक-ए-तरहदार भी हो पहलू में !
फिर अपनी बला से कोई सुलतान भी हो !!
(ताहा नसीम )

rajnish manga 29-01-2013 10:32 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Wake! For the Sun, who scatter'd into flight
The Stars before him from the Field of Night,
Drives Night along with them from Heav'n, and strikes
The Sultan's Turret with a Shaft of Light.


सूरज उगा है रात के सब चिन्ह धुंधलाने लगे
तारे भी अपना कारवाँ ले कर के हैं जाने लगे
आकाश पर छाया उजाला रोशनी में सूर्य की,
सल्तनत के महल जैसे हीरों को शरमाने लगे.
(स्वरचित)

rajnish manga 29-01-2013 10:34 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Before the phantom of False morning died,
Methought a Voice within the Tavern cried,
"When all the Temple is prepared within,
Why nods the drowsy Worshipper outside?"


रात ने अपना सफर तय कर लिया है मुस्कुरा
अंदर सराए में कहीं कोई कह रहा है मुस्कुरा
दिल के अंदर ही इबादतगाह जब मौला की है
क्यों सुने जो भी मुअज्ज़िन कह रहा है मुस्कुरा
(स्वरचित)

rajnish manga 29-01-2013 10:40 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
And, as the Cock crew, those who stood before
The Tavern shouted--"Open then the Door!
You know how little while we have to stay,
And, once departed, may return no more."

मुर्गे ने जब दी बांग सुन कर हर कोई उठ जाएगा
दर सराये का खुलेगा कोई जोर से जब चिल्लाएगा
तुम जानते तो हो हमारा है ठिकाना कितने दिन
फिर खल्क से जाने के बाद कौन मुड़ कर आयेगा?
(स्वरचित)

rajnish manga 29-01-2013 10:46 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Iram indeed is gone with all his Rose,
And Jamshyd's Sev'n-ring'd Cup where no one knows;
But still a Ruby kindles in the Vine,
And many a Garden by the Water blows,

वक्ते रुखसत इस जहाँ में कोई क्या रह पायेगा.
जमशेद हो या इरम हर कोई धार में बह जाएगा.
इक जाम ऐसा है कि जिसमे शान है पुखराज की
यूँ देखिये तो हर नज़ारा, संग वक्त के ढल जाएगा.
(स्वरचित)

rajnish manga 29-01-2013 10:48 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Come, fill the Cup, and in the fire of Spring
Your Winter-garment of Repentance fling:
The Bird of Time has but a little way
To flutter--and the Bird is on the Wing.

आ पास! भर दे पात्र मेरा वसंत ॠतु आने को है.
और इसके साथ ही ये पश्चाताप मिट जाने को है.
वक्त की सब बुलबुलें उड़ती क्षितिज के आसपास,
पंखों में भर परवाज़ सब उस पार उतर जाने को है.
(स्वरचित)

rajnish manga 29-01-2013 11:02 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Whether at Naishapur or Babylon,
Whether the Cup with sweet or bitter run,
The Wine of Life keeps oozing drop by drop,
The Leaves of Life keep falling one by one.

चाहे नैशापुर में हों या बेबीलोन में कयाम.
दे कभी मीठी कभी कड़वी सुरा पर भर ये जाम.
जिन्दगी की मय यहाँ हर बूँद में रिसती है यूँ,
एक एक कर वृक्ष के, ज्यों टूटते पत्ते तमाम.
(स्वरचित)

Dark Saint Alaick 29-01-2013 11:02 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
अद्भुत सूत्र है, रजनीशजी। उमर खय्याम की रुबाइयां स्वयं ही मादक, सम्मोहक और मस्त कर देने वाली हैं, उस पर आपने उनका जो अनुपम रूपांतर किया है, माशाअल्लाह वह काबिले तारीफ़ ही नहीं, दीवाना कर देने वाला है। फोरम को आपका यह एक बेहतरीन तोहफा है; इसके लिए मैं आपका तहे-दिल से शुक्रिया अदा करता हूं। आभार। :cheers:

rajnish manga 29-01-2013 11:08 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Each Morn a thousand Roses brings, you say;
Yes, but where leaves the Rose of Yesterday?
And this first Summer month that brings the Rose
Shall take Jamshyd and Kaikobad away.

हर सुबह लाखों गुलाबों को नया मिलता शबाब.
पर कहाँ है वो जो ठहराए गए थे कल खराब.
मौसमे-गरमा भी आ पहुंचा खिला पहला गुलाब,
‘अलविदा’ दुनिया से बोले जमशेद औ’ कैकोबाद.
(स्वरचित)

rajnish manga 29-01-2013 11:37 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Quote:

Originally Posted by Dark Saint Alaick (Post 220273)
अद्भुत सूत्र है, रजनीशजी। उमर खय्याम की रुबाइयां स्वयं ही मादक, सम्मोहक और मस्त कर देने वाली हैं, उस पर आपने उनका जो अनुपम रूपांतर किया है, माशाअल्लाह वह काबिले तारीफ़ ही नहीं, दीवाना कर देने वाला है। फोरम को आपका यह एक बेहतरीन तोहफा है; इसके लिए मैं आपका तहे-दिल से शुक्रिया अदा करता हूं। आभार।

:cheers:

आपके उत्साहवर्धन के किये मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ. उमर खैय्याम की रुबाइयों का मैं स्कूल के ज़माने से ही शैदाई रहा हूँ ठीक ऐसे ही जैसे दीवाने ग़ालिब, बच्चन की मधुशाला, Golden Treasury of Lyrical Poems, शेक्सपीयर के कुछ नाटक जिनमे कॉमेडी भी शामिल है, टॉलस्टॉय के वृहद् उपन्यास, चेखव के उपन्यास और नाटक व कहानी और पर्ल बक का उपन्यास 'द गुड अर्थ' आदि आदि का रहा हूँ. मेरी बड़ी इच्छा थी कि मूल फ़ारसी के ज़रिये रुबाइयाँ समझ सकता, लेकिन यह संभव न हुआ. खैर जैसा भी बन पड़ा आपके सामने है. परिमार्जन करते रहें, धन्यवाद.

aspundir 29-01-2013 11:48 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
बेहतरीन.............................

abhisays 30-01-2013 12:13 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
रजनीश जी, उमर खैय्याम की रुबाइयां से रूबरू करवाने के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन। :bravo::bravo::bravo::bravo:

rajnish manga 05-02-2013 10:42 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
ताहा नसीम:
पा बस्ता-ए-ज़ंजीर पे रहमत हो तेरी
ज़िन्दानी-ए-तक़दीर पे रहमत हो तेरी (कैद)
मयखाने सिम्त उठते क़दमों पे करम
इस दस्ते-कदह गीर पे रहमत हो तेरी. (प्याला)
***
प्रोफ़ेसर वाकिफ़:
इंकार का मारा हुआ रोता ही रहेगा
ये चर्ख ख़ुशी दहर की खोता ही रहेगा
हाँ छोड़ बखेड़ों को मेरा जाम तो भर
दुनियां में जो होता है वो होता ही रहेगा.

दुनिया को ये फिरदौस का हैकर क्या है
खबर साक़ी दे जन्नत-ओ-कौसर क्या है
यां भी वही जन्नत में वही साक़ी-ओ-मय
कौनीन में उन दोनों से बेहतर क्या है.

sombirnaamdev 06-02-2013 10:04 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Quote:

Originally Posted by dark saint alaick (Post 220273)
अद्भुत सूत्र है, रजनीशजी। उमर खय्याम की रुबाइयां स्वयं ही मादक, सम्मोहक और मस्त कर देने वाली हैं, उस पर आपने उनका जो अनुपम रूपांतर किया है, माशाअल्लाह वह काबिले तारीफ़ ही नहीं, दीवाना कर देने वाला है। फोरम को आपका यह एक बेहतरीन तोहफा है; इसके लिए मैं आपका तहे-दिल से शुक्रिया अदा करता हूं। आभार। :cheers:


रजनीश जी ज्यादा तो कुछ कहने की हिम्मत नही है हां अलेक्क जी ने जो भी कहा इन पंक्तियोंके १०० प्रतिशित सही कहा है

sauravpaul12 07-02-2013 10:12 AM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Nice work! Rajnish ji. :hello::hello::hello:

rajnish manga 07-02-2013 10:30 AM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Quote:

Originally Posted by sombirnaamdev (Post 225980)

रजनीश जी ज्यादा तो कुछ कहने की हिम्मत नही है हां अलेक्क जी ने जो भी कहा इन पंक्तियोंके १०० प्रतिशित सही कहा है

सोमबीर जी, आपकी खैयाम की रुबाइयों के बारे में सुन्दर प्रतिक्रिया और मेरे प्रयत्न की प्रशंसा करने के लिए मैं आपका ह्रदय से आभारी हूँ. मैं चाहता हूँ कि जहाँ आप प्रशंसा योग्य सामग्री की प्रशंसा करते हैं उसी प्रकार जहाँ आपको कोई कमी दिखाई दे तो उस पर भी अपनी सम्मति से अवश्य अवगत कराते रहें ताकि भविष्य में गलतियों के दोहराव से बच सकूँ.

rajnish manga 09-02-2013 11:07 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Quote:

Originally Posted by abhisays (Post 220438)
रजनीश जी, उमर खैय्याम की रुबाइयां से रूबरू करवाने के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन। :bravo::bravo::bravo::bravo:

Quote:

Originally Posted by aspundir (Post 220283)
बेहतरीन.............................

Quote:

Originally Posted by sauravpaul12 (Post 226404)
Nice work! Rajnish ji. :hello::hello::hello:

:cheers:

अभिषेक जी, पुंडीर जी और सौरव पॉल जी, आप सब का इस सूत्र पर अपनी टिप्पणी देने के लिए और पसंद करने के लिए आभार प्रकट करता हूँ. धन्यवाद.

Dark Saint Alaick 09-02-2013 11:32 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 220280)
आपके उत्साहवर्धन के किये मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ. उमर खैय्याम की रुबाइयों का मैं स्कूल के ज़माने से ही शैदाई रहा हूँ ठीक ऐसे ही जैसे दीवाने ग़ालिब, बच्चन की मधुशाला, Golden Treasury of Lyrical Poems, शेक्सपीयर के कुछ नाटक जिनमे कॉमेडी भी शामिल है, टॉलस्टॉय के वृहद् उपन्यास, चेखव के उपन्यास और नाटक व कहानी और पर्ल बक का उपन्यास 'द गुड अर्थ' आदि आदि का रहा हूँ. मेरी बड़ी इच्छा थी कि मूल फ़ारसी के ज़रिये रुबाइयाँ समझ सकता, लेकिन यह संभव न हुआ. खैर जैसा भी बन पड़ा आपके सामने है. परिमार्जन करते रहें, धन्यवाद.

जहां तक मैं आपको समझ सका हूं, आप इस सूची में फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की, मक्सिम गोर्की और पाब्लो नेरूदा का उल्लेख करना विस्मृत कर गए हैं। यह मैं जोड़ रहा हूं और मैं शत-प्रतिशत आशान्वित हूं कि आप अपनी गलती मानेंगे। :cheers:

bindujain 10-02-2013 05:09 AM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
बहुत सुंदर

rajnish manga 10-02-2013 03:50 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Quote:

Originally Posted by Dark Saint Alaick (Post 229081)
जहां तक मैं आपको समझ सका हूं, आप इस सूची में फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की, मक्सिम गोर्की और पाब्लो नेरूदा का उल्लेख करना विस्मृत कर गए हैं। यह मैं जोड़ रहा हूं और मैं शत-प्रतिशत आशान्वित हूं कि आप अपनी गलती मानेंगे।

:cheers:

आप बिलकुल ठीक फरमा रहे हैं, अलैक जी. दोस्तोयेव्स्की और गोर्की तो विश्व साहित्य के सिरमौर हैं और इनको मैं कैसे भूल सकता हूँ (इन दोनों की मीर प्रकाशन द्वारा हिन्दी में जारी कुछ पुस्तकें बड़ी हिफाज़त से मेरे पास रखी हैं). लिस्ट बड़ी न हो जाए इस डर से यह नाम शामिल न हो सके. हाँ, पेब्लो नेरुदा को अधिक नहीं पढ़ पाया. हिंदी पत्रिकाओं तथा कुछ वेब साइट्स के माध्यम से ही उनको पढ़ा है. एक नाम यहाँ अवश्य जोड़ना चाहूंगा -अलेक्ज़ेन्डर सोल्ज्हेनित्सिन -जिनके दो उपन्यासों 'A day in the life of Evan Denisovich' तथा 'cancer Ward' ने मुझे अत्यंत प्रभावित किया. फिर से इन सभी की याद दिलाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, अलैक जी.

rajnish manga 12-02-2013 10:25 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Some for the Glories of This World; and some
Sigh for the Prophet's Paradise to come;
Ah, take the Cash, and let the Credit go,
Nor heed the rumble of a distant Drum!

शौक जन्नत का न कुछ शेफ्तगी-ए-हूर भली.
मैं ये कहता हूँ कि बस दुख्तर-ए-अंगूर भली.
नक़द को छोड़ के किस वास्ते सौदा हो उधार,
कहते हैं ढोल की आवाज़ तो बस दूर भली.
(प्रो. वाकिफ़)
शेफ्तगी-ए-हूर = परियों का मोह / दुख्तर-ए-अंगूर = अंगूर की बेटी अर्थात् शराब

कुछ तो इस दुनिया में जीने का तसव्वुर पालते हैं.
और कुछ परलोक, हूर-ओ-अंगूर में ग़ म ढालते हैं.
बात वो जो आज, अब की, नक़द की, आनन्द की,
ये ढोल दूर के लगें सुहाने कल के सारे मुग़ालते है.
(रजनीश मंगा)

rajnish manga 12-02-2013 10:26 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
The Worldly Hope men set their Hearts upon
Turns Ashes--or it prospers; and anon,
Like Snow upon the Desert's dusty Face,
Lighting a little hour or two--is gone.

दुनियां में हज़ारों अशिया हैं किस किस की ख्वाहिश में मरना.
जो पूरी हुयी सो पूरी हुयी बाक़ी का मगर दुःख क्या करना.
जीवन तो हमारा है इक दरिया, मकसद है समंदर में मिलना,
जो कुछ है यहीं रह जाना है अब इनकी तरफ रूख क्या करना.
(रजनीश मंगा)

rajnish manga 12-02-2013 10:29 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
The Moving Finger writes; and, having writ,
Moves on: nor all your Piety nor Wit
Shall lure it back to cancel half a Line,
Nor all your Tears wash out a Word of it.

किस्मत का लिखा लेख भला कैसे मिटेगा.
कितनी भी हो फरियाद, मगर हो के रहेगा.
इक लफ्ज़ न तहरीर का तदबीर बदल पाये,
आंसुओं की भले बरसात करो, ये न हटेगा.
(रजनीश मंगा)

dipu 14-02-2013 11:52 AM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
nice thread

rajnish manga 16-03-2013 10:38 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
A Book of Verses underneath the Bough,
A Jug of Wine, a Loaf of Bread--and Thou
Beside me singing in the Wilderness—
Oh, Wilderness were Paradise enow!

सरस कविता की पुस्तक हाथ,
और सब के ऊपर तुम प्राण,
गा रही छेड़ सुरीली तान,
मुझे अब मधु नंदन उद्यान.

घनी सिर पर तरुवर की डाल,
हरी पांवों के नीचे घास,
बगल में मधु मदिरा का पात्र,
सामने रोटी के दो ग्रास.

(रूपांतर / डा. हरिवंश राय बच्चन)

rajnish manga 16-03-2013 10:45 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
चलो चल कर बैठे उस ठौर,
बिछी जिस थल मखमल की घास
जहाँ जा शस्य श्यामला भूमि,
धवल मरू के बैठी है पास.

सुना मैंने कहते कुछ लोग,
मधुर जग पर मानव का राज,
और कुछ कहते जग से दूर,
स्वर्ग में ही सब सुख का साज!

(रूपांतर / डॉ. हरिवंश राय बच्चन)

rajnish manga 16-03-2013 10:49 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
दूर का छोड़ प्रलोभन मोह,
करो जो पास उसी का मोल,
सुहाने बस लगते है प्राण,
अरे ये दूर - दूर के ढोल!

जगत की आशाये जाज्वल्य,
लगाता मानव जिन पर आँख,
न जाने सब की सब किस ओर,
हाय! उड़ जाती बन कर राख.

(रूपांतर / डॉ. हरिवंश राय बच्चन)

rajnish manga 16-03-2013 10:52 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
किसी की यदि कोई अभिलाष,
फली भी तो कितनी देर,
धूसरित मरू पर हिमकन राशि,
चमक पाती है कितनी देर!

समेटा जिन कृपणों ने स्वर्ण,
सुरक्षित रखा उस को मूँद,
लुटाया और जिन्होंने खूब,
लुटाते जैसे बादल बूँद.

(रूपांतर/ डॉ. हरिवंश राय बच्चन)

rajnish manga 16-03-2013 10:56 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
गड़े दोनों ही एक समान,
हुए मिट्टी के दोनों हाड़,
न कोई हो पाया वह स्वर्ण,
जिसे देंगे फिर लोग उखाड़.

यहाँ आ बड़े बड़े सुलतान,
बड़ी थी जिनकी शौकत शान,
न जाने कर किस ओर प्रयाण,
गए बस दो दिन रह मेहमान.
(रूपांतर/डॉ. हरिवंश राय बच्चन)

rajnish manga 16-03-2013 10:59 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
और अब जो कुछ भी है शेष,
भोग वह सकते हम स्वच्छंद,
राख में मिल जाने के पूर्व,
न क्यों कर लें जी भर आनंद.

गड़ेंगे हो कर हम जब राख,
राख में तब फिर कहाँ बसंत,
कहाँ स्वरकार, सुरा, संगीत,
कहाँ इस सूनेपन का अंत.

(रूपांतर/डॉ. हरिवंश राय बच्चन)

rajnish manga 24-03-2013 10:34 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Well, let it take them! What have we to do
With Kaikobad the Great, or Kaikhosru?
Let Zal and Rustum bluster as they will,
Or Hatim call to Supper--heed not you

जब तक है तन-ओ-जान में तेरे यक जाई.
तकदीर की जारी रहेगी करम फरमाई.
रुस्तम से न दुश्मन से झुके मेरी बला,
अहसान न ले जो दोस्त, है हातिमताई.
(रचना / प्रो. वाकिफ़)

rajnish manga 24-03-2013 10:59 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Think, in this batter'd Caravanserai
Whose Portals are alternate Night and Day,
How Sultan after Sultan with his Pomp
Abode his destined Hour, and went his way.

कुहनासराय--दहर कि दुनियाँ है जिसका नाम
आरामगाह अब लक अय्याम--सुबह--शाम
यह बज़्म जिससे सैकड़ों जमशेद उठ गए
वह कस्र कितने कर गए बहराम भी कयाम.
(रचना / प्रो. वाकिफ़)

rajnish manga 24-03-2013 11:05 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Ah! fill the cup – what boots it to repeat.
How time is slipping underneath our feet:
Unborn To-Morrow and dead yesterday,
Why fret about them if To-Day be sweet.

गुलशन में है नौरोज़ के छींटों से बहार.
हर शाख़ पे रंगत, हर गुल पे निखार.
अब ज़िक्रे खिज़ां भी है तबीयत पे गरां,
खुश वक़्त अगर हाल तो माज़ी फिल्नार.

(माज़ी = भूत काल / फिल्नार = नरक)

rajnish manga 28-03-2013 10:52 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 


मुश्किल मेरी आसान खुदाया करना
दुनिया पे मेरे एब न अफ़शा करना
ये तेरी इनायत है जो खुश हूँ आज
कल जो भी करम का हो तकाज़ा करना.
(रचना / ताहा नसीम)

rajnish manga 28-03-2013 10:55 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
क्या कोई गुनाहों से बचा तू ही बता
बच कर कोई कैसे जिया तू ही बता
मेरे बुरे आमाल थे बुरा तेरा सुलूक
हम दोनों में क्या फ़र्क रहा तू ही बता.
(रचना / ताहा नसीम)

rajnish manga 30-03-2013 10:55 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 

तेरी ख़ुशी क़ुबूल मुझे हिज्र का ख़याल.
ये ए’न सरफराज़ी जो दे शर्बते विसाल.
ये मैंने कब कहा था कि मेरी ख़ुशी ये है,
जो तालिबे रज़ा है हरिक हाल में निहाल.

धंधा दुनिया का अजब तौर से चलते देखा.
इसको हर मोड़ पे सौ रंग बदलते देखा.
जिस तरफ मेरी मुरादों ने उठाई है नज़र,
हाथ मायूसी से तकदीर को मलते देखा.
(प्रो. वाकिफ़)

rajnish manga 30-03-2013 10:59 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 

क्या ज़िंदगी का लुत्फ़ जो दिल बेकरार है.
तेरे बगैर दर्द से दिल हम कनार है.
दुनियां के ग़म को भूला था तेरे ख़याल में,
तू ही नहीं तो ख़ाक जहाँ की बहार है.

क्या खबर गुंचा-ए-दिल तेरा खिले या न खिले.
तेरे आ’माल के किस शान से मिलते है सिले.
शहदो मय से यहाँ तू अपनी बना ले जन्नत,
किसको जन्नत की खबर, सब मिले या न मिले.

(प्रो. वाकिफ़)

rajnish manga 14-09-2013 10:41 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
They say the Lion and the Lizard keep
The Courts where Jamshyd gloried and drank deep:
And Bahram, that great Hunter--the Wild Ass
Stamps o'er his Head, but cannot break his Sleep.

शहन्शाह जमशेद का यूं राज था कहते.
शेर औ’ खरगोश जहां थे साथ ही रहते.
बहराम शिकारी था मगर ये भी देखिये,
भेड़िया आ जाये तो भी बेफिक्र ही रहते.

rajnish manga 14-09-2013 10:43 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
Ah, my Belov'ed fill the Cup that clears
To-day Past Regrets and Future Fears:
To-morrow!--Why, To-morrow I may be
Myself with Yesterday's Sev'n Thousand Years.



मेरे महबूब तू आ कर ये मेरा जाम तो भर दे.
जो मुझे माज़ी औ’ कल के दुखों से परे कर दे.
इक कल का ही दिवस क्यों कल होंगे मेरे साथ
हज़ारों बीते हुये साल, ग़मों-दर्दो-अलम के परदे.

rajnish manga 14-09-2013 10:46 PM

Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
 
उमर खैयाम की रुबाइयां

उमर खैय्याम की रुबाइयों के कई अंग्रेजी अनुवाद हुए. लेकिन इन सभी अनुवादों में जो सर्वप्रमुख और सर्वप्रसिद्ध अनुवाद है वो है जॉन फिट्जराल्ड का. जॉन का पहला अनुवाद सन 1859 में आया उसके बाद इसी अनुवाद के कुल पांच संस्करण आये. पहला संस्करण – 1859 ,दूसरा संस्करण – 1868, तीसरा संस्करण – 1872 , चौथा संस्करण – 1879 और पांचवां संस्करण – 1889 में आया. पहले चार संस्करण जॉन के जीवन काल में ही प्रकाशित हो गये थे. पांचवा संस्करण उनकी मृत्योपरांत, उनके द्वारा छोड़ी गयी अधूरी पांडुलिपि से तैयार किया गया.


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