उमर खैय्याम की रुबाइयां
Here with a Loaf of Bread beneath the Bough,
A Flask of Wine, a Book of Verse – and Thou Beside me singing in the Wilderness – And Wilderness is paradise enow. (Edward Fitzgerald ) शुगल-ए-मयनोशी का सामां हो, बियाबां की बहार! लो-ए-जज्बात को हेज़ान में मैदां का गुबार ! दिलरुबा ज़ीनत-ए-पहलू हो कोई जाम बदस्त ! ताज-ए-सुल्तानी भी इस ऐश पे कर दूं मैं निसार !! (प्रोफ. वाकिफ़ ) वीराना हो, मयनोशी का सामान भी हो! रोटी भी हो, बकरे की भुनी रान भी हो! माशूक-ए-तरहदार भी हो पहलू में ! फिर अपनी बला से कोई सुलतान भी हो !! (ताहा नसीम ) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Wake! For the Sun, who scatter'd into flight
The Stars before him from the Field of Night, Drives Night along with them from Heav'n, and strikes The Sultan's Turret with a Shaft of Light. सूरज उगा है रात के सब चिन्ह धुंधलाने लगे तारे भी अपना कारवाँ ले कर के हैं जाने लगे आकाश पर छाया उजाला रोशनी में सूर्य की, सल्तनत के महल जैसे हीरों को शरमाने लगे. (स्वरचित) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Before the phantom of False morning died,
Methought a Voice within the Tavern cried, "When all the Temple is prepared within, Why nods the drowsy Worshipper outside?" रात ने अपना सफर तय कर लिया है मुस्कुरा अंदर सराए में कहीं कोई कह रहा है मुस्कुरा दिल के अंदर ही इबादतगाह जब मौला की है क्यों सुने जो भी मुअज्ज़िन कह रहा है मुस्कुरा (स्वरचित) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
And, as the Cock crew, those who stood before
The Tavern shouted--"Open then the Door! You know how little while we have to stay, And, once departed, may return no more." मुर्गे ने जब दी बांग सुन कर हर कोई उठ जाएगा दर सराये का खुलेगा कोई जोर से जब चिल्लाएगा तुम जानते तो हो हमारा है ठिकाना कितने दिन फिर खल्क से जाने के बाद कौन मुड़ कर आयेगा? (स्वरचित) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Iram indeed is gone with all his Rose,
And Jamshyd's Sev'n-ring'd Cup where no one knows; But still a Ruby kindles in the Vine, And many a Garden by the Water blows, वक्ते रुखसत इस जहाँ में कोई क्या रह पायेगा. जमशेद हो या इरम हर कोई धार में बह जाएगा. इक जाम ऐसा है कि जिसमे शान है पुखराज की यूँ देखिये तो हर नज़ारा, संग वक्त के ढल जाएगा. (स्वरचित) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Come, fill the Cup, and in the fire of Spring
Your Winter-garment of Repentance fling: The Bird of Time has but a little way To flutter--and the Bird is on the Wing. आ पास! भर दे पात्र मेरा वसंत ॠतु आने को है. और इसके साथ ही ये पश्चाताप मिट जाने को है. वक्त की सब बुलबुलें उड़ती क्षितिज के आसपास, पंखों में भर परवाज़ सब उस पार उतर जाने को है. (स्वरचित) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Whether at Naishapur or Babylon,
Whether the Cup with sweet or bitter run, The Wine of Life keeps oozing drop by drop, The Leaves of Life keep falling one by one. चाहे नैशापुर में हों या बेबीलोन में कयाम. दे कभी मीठी कभी कड़वी सुरा पर भर ये जाम. जिन्दगी की मय यहाँ हर बूँद में रिसती है यूँ, एक एक कर वृक्ष के, ज्यों टूटते पत्ते तमाम. (स्वरचित) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
अद्भुत सूत्र है, रजनीशजी। उमर खय्याम की रुबाइयां स्वयं ही मादक, सम्मोहक और मस्त कर देने वाली हैं, उस पर आपने उनका जो अनुपम रूपांतर किया है, माशाअल्लाह वह काबिले तारीफ़ ही नहीं, दीवाना कर देने वाला है। फोरम को आपका यह एक बेहतरीन तोहफा है; इसके लिए मैं आपका तहे-दिल से शुक्रिया अदा करता हूं। आभार। :cheers:
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Each Morn a thousand Roses brings, you say;
Yes, but where leaves the Rose of Yesterday? And this first Summer month that brings the Rose Shall take Jamshyd and Kaikobad away. हर सुबह लाखों गुलाबों को नया मिलता शबाब. पर कहाँ है वो जो ठहराए गए थे कल खराब. मौसमे-गरमा भी आ पहुंचा खिला पहला गुलाब, ‘अलविदा’ दुनिया से बोले जमशेद औ’ कैकोबाद. (स्वरचित) |
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बेहतरीन.............................
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
रजनीश जी, उमर खैय्याम की रुबाइयां से रूबरू करवाने के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन। :bravo::bravo::bravo::bravo:
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ताहा नसीम:
पा बस्ता-ए-ज़ंजीर पे रहमत हो तेरी ज़िन्दानी-ए-तक़दीर पे रहमत हो तेरी (कैद) मयखाने सिम्त उठते क़दमों पे करम इस दस्ते-कदह गीर पे रहमत हो तेरी. (प्याला) *** प्रोफ़ेसर वाकिफ़: इंकार का मारा हुआ रोता ही रहेगा ये चर्ख ख़ुशी दहर की खोता ही रहेगा हाँ छोड़ बखेड़ों को मेरा जाम तो भर दुनियां में जो होता है वो होता ही रहेगा. दुनिया को ये फिरदौस का हैकर क्या है खबर साक़ी दे जन्नत-ओ-कौसर क्या है यां भी वही जन्नत में वही साक़ी-ओ-मय कौनीन में उन दोनों से बेहतर क्या है. |
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रजनीश जी ज्यादा तो कुछ कहने की हिम्मत नही है हां अलेक्क जी ने जो भी कहा इन पंक्तियोंके १०० प्रतिशित सही कहा है |
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Nice work! Rajnish ji. :hello::hello::hello:
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
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अभिषेक जी, पुंडीर जी और सौरव पॉल जी, आप सब का इस सूत्र पर अपनी टिप्पणी देने के लिए और पसंद करने के लिए आभार प्रकट करता हूँ. धन्यवाद. |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
बहुत सुंदर
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Some for the Glories of This World; and some
Sigh for the Prophet's Paradise to come; Ah, take the Cash, and let the Credit go, Nor heed the rumble of a distant Drum! शौक जन्नत का न कुछ शेफ्तगी-ए-हूर भली. मैं ये कहता हूँ कि बस दुख्तर-ए-अंगूर भली. नक़द को छोड़ के किस वास्ते सौदा हो उधार, कहते हैं ढोल की आवाज़ तो बस दूर भली. (प्रो. वाकिफ़) शेफ्तगी-ए-हूर = परियों का मोह / दुख्तर-ए-अंगूर = अंगूर की बेटी अर्थात् शराब कुछ तो इस दुनिया में जीने का तसव्वुर पालते हैं. और कुछ परलोक, हूर-ओ-अंगूर में ग़ म ढालते हैं. बात वो जो आज, अब की, नक़द की, आनन्द की, ये ढोल दूर के लगें सुहाने कल के सारे मुग़ालते है. (रजनीश मंगा) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
The Worldly Hope men set their Hearts upon
Turns Ashes--or it prospers; and anon, Like Snow upon the Desert's dusty Face, Lighting a little hour or two--is gone. दुनियां में हज़ारों अशिया हैं किस किस की ख्वाहिश में मरना. जो पूरी हुयी सो पूरी हुयी बाक़ी का मगर दुःख क्या करना. जीवन तो हमारा है इक दरिया, मकसद है समंदर में मिलना, जो कुछ है यहीं रह जाना है अब इनकी तरफ रूख क्या करना. (रजनीश मंगा) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
The Moving Finger writes; and, having writ,
Moves on: nor all your Piety nor Wit Shall lure it back to cancel half a Line, Nor all your Tears wash out a Word of it. किस्मत का लिखा लेख भला कैसे मिटेगा. कितनी भी हो फरियाद, मगर हो के रहेगा. इक लफ्ज़ न तहरीर का तदबीर बदल पाये, आंसुओं की भले बरसात करो, ये न हटेगा. (रजनीश मंगा) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
nice thread
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
A Book of Verses underneath the Bough,
A Jug of Wine, a Loaf of Bread--and Thou Beside me singing in the Wilderness— Oh, Wilderness were Paradise enow! सरस कविता की पुस्तक हाथ, और सब के ऊपर तुम प्राण, गा रही छेड़ सुरीली तान, मुझे अब मधु नंदन उद्यान. घनी सिर पर तरुवर की डाल, हरी पांवों के नीचे घास, बगल में मधु मदिरा का पात्र, सामने रोटी के दो ग्रास. (रूपांतर / डा. हरिवंश राय बच्चन) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
चलो चल कर बैठे उस ठौर,
बिछी जिस थल मखमल की घास जहाँ जा शस्य श्यामला भूमि, धवल मरू के बैठी है पास. सुना मैंने कहते कुछ लोग, मधुर जग पर मानव का राज, और कुछ कहते जग से दूर, स्वर्ग में ही सब सुख का साज! (रूपांतर / डॉ. हरिवंश राय बच्चन) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
दूर का छोड़ प्रलोभन मोह,
करो जो पास उसी का मोल, सुहाने बस लगते है प्राण, अरे ये दूर - दूर के ढोल! जगत की आशाये जाज्वल्य, लगाता मानव जिन पर आँख, न जाने सब की सब किस ओर, हाय! उड़ जाती बन कर राख. (रूपांतर / डॉ. हरिवंश राय बच्चन) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
किसी की यदि कोई अभिलाष,
फली भी तो कितनी देर, धूसरित मरू पर हिमकन राशि, चमक पाती है कितनी देर! समेटा जिन कृपणों ने स्वर्ण, सुरक्षित रखा उस को मूँद, लुटाया और जिन्होंने खूब, लुटाते जैसे बादल बूँद. (रूपांतर/ डॉ. हरिवंश राय बच्चन) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
गड़े दोनों ही एक समान,
हुए मिट्टी के दोनों हाड़, न कोई हो पाया वह स्वर्ण, जिसे देंगे फिर लोग उखाड़. यहाँ आ बड़े बड़े सुलतान, बड़ी थी जिनकी शौकत शान, न जाने कर किस ओर प्रयाण, गए बस दो दिन रह मेहमान. (रूपांतर/डॉ. हरिवंश राय बच्चन) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
और अब जो कुछ भी है शेष,
भोग वह सकते हम स्वच्छंद, राख में मिल जाने के पूर्व, न क्यों कर लें जी भर आनंद. गड़ेंगे हो कर हम जब राख, राख में तब फिर कहाँ बसंत, कहाँ स्वरकार, सुरा, संगीत, कहाँ इस सूनेपन का अंत. (रूपांतर/डॉ. हरिवंश राय बच्चन) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Well, let it take them! What have we to do
With Kaikobad the Great, or Kaikhosru? Let Zal and Rustum bluster as they will, Or Hatim call to Supper--heed not you जब तक है तन-ओ-जान में तेरे यक जाई. तकदीर की जारी रहेगी करम फरमाई. रुस्तम से न दुश्मन से झुके मेरी बला, अहसान न ले जो दोस्त, है हातिमताई. (रचना / प्रो. वाकिफ़) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Think, in this batter'd Caravanserai
Whose Portals are alternate Night and Day, How Sultan after Sultan with his Pomp Abode his destined Hour, and went his way. कुहनासराय-ए-दहर कि दुनियाँ है जिसका नाम आरामगाह अब लक अय्याम-ए-सुबह-ओ-शाम यह बज़्म जिससे सैकड़ों जमशेद उठ गए वह कस्र कितने कर गए बहराम भी कयाम. (रचना / प्रो. वाकिफ़) |
Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Ah! fill the cup – what boots it to repeat.
How time is slipping underneath our feet: Unborn To-Morrow and dead yesterday, Why fret about them if To-Day be sweet. गुलशन में है नौरोज़ के छींटों से बहार. हर शाख़ पे रंगत, हर गुल पे निखार. अब ज़िक्रे खिज़ां भी है तबीयत पे गरां, खुश वक़्त अगर हाल तो माज़ी फिल्नार. (माज़ी = भूत काल / फिल्नार = नरक) |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
क्या कोई गुनाहों से बचा तू ही बता |
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They say the Lion and the Lizard keep |
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Ah, my Belov'ed fill the Cup that clears |
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उमर खैयाम की रुबाइयां
उमर खैय्याम की रुबाइयों के कई अंग्रेजी अनुवाद हुए. लेकिन इन सभी अनुवादों में जो सर्वप्रमुख और सर्वप्रसिद्ध अनुवाद है वो है जॉन फिट्जराल्ड का. जॉन का पहला अनुवाद सन 1859 में आया उसके बाद इसी अनुवाद के कुल पांच संस्करण आये. पहला संस्करण – 1859 ,दूसरा संस्करण – 1868, तीसरा संस्करण – 1872 , चौथा संस्करण – 1879 और पांचवां संस्करण – 1889 में आया. पहले चार संस्करण जॉन के जीवन काल में ही प्रकाशित हो गये थे. पांचवा संस्करण उनकी मृत्योपरांत, उनके द्वारा छोड़ी गयी अधूरी पांडुलिपि से तैयार किया गया. |
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