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Dark Saint Alaick 08-04-2012 10:36 PM

Re: कुतुबनुमा
 
ठोस कदमों पर टिकी रिश्तों की बुनियाद

पाकिस्तान और भारत के बीच आपसी रिश्ते निश्चित रूप से पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाने पर ही टिके हैं। यह बात रविवार को तब और पुख्ता हो गई जब करीब सात घंटों की निजी यात्रा पर भारत आए पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को मेहमानवाजी के तहत दिए दोपहर के भोज से पहले आधे घंटे की बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कह ही डाली। अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद के खिलाफ एक करोड़ डॉलर के ईनाम की घोषणा के बाद भले ही पाकिस्तान पिछले चार दिनो से यह सफाई दे रहा हो कि सईद के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं लेकिन सच्चाई तो यही है कि सईद मुंबई पर हुए आतंकी हमले का मास्टर माइन्ड है और भारत उसके खिलाफ सभी सबूत पाकिस्तान को दे भी चुका है। रविवार को डॉ. मनमोहन सिह ने जिस तरह जरदारी से मुलाकात में यह दो टूक कह दिया कि हाफिज सईद और मुंबई आतंकी हमले के अन्य साजिशकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और यह कार्रवाई ही द्विपक्षीय संम्बधों में प्रगति के आकलन का महत्वपूर्ण बिन्दु होगी,साफ हो गया कि भारत चाहता है कि केवल बातचीत ही नहीं पाकिस्तान ठोस कदम भी उठाए ताकि दोनो देशों के बीच लंबित मसलों पर भी आगे बातचीत हो सके। मनमोहन सिंह ने जरदारी से यह भी कह दिया है कि पाकिस्तान की जमीन से भारत के खिलाफ हो रही गतिविधियों को रोकना अत्यंत आवश्यक है । अब देखना तो यही है कि पाकिस्तान इस विषय पर क्या कदम उठाता है क्योंकि डॉ. सिंह से मुलाकात के बाद जरदारी ने सईद के मुद्दे पर कहा कि दोनों देशों की सरकारों को इस मामले पर आगे और बातचीत की आवश्यकता है। भारत और पाकिस्तान के गृह सचिवों की जल्द होने वाली मुलाकात में इस मसले पर चर्चा होगी। जरदारी अमन चैन की दुआ के लिए अजमेर मे ख्वाजा की चौखट पर भी पहुंचे जो उनकी भारत यात्रा का मुख्य उद्देश्य भी था लेकिन कहते हैं कि ताली एक हाथ से नहीं बजती। भारत तो हमेशा ही चाहता है कि पड़ौसी से उसके रिश्ते बेहतर रहें लेकिन आतंक के खिलाफ पाकिस्तान को वे कदम तो उठाने ही होंगे जो इन रिश्तों को सामान्य बनाने में कहीं ना कहीं आड़े आ रहे हैं।

Dark Saint Alaick 12-04-2012 11:18 AM

Re: कुतुबनुमा
 
पड़ौसी से सचेत तो रहना ही पड़ेगा

पाकिस्तान की कथनी और करनी में फर्क हमेशा ही से देखने को मिला है। हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट में जो चौंकाने वाला खुलासा हुआ है वह निश्चित रूप से भारत के लिए भी सावचेती के साथ आंखें खुली रहने जैसा है। अमेरिका की संस्था रिचिंग क्रीटिकल विल आॅफ द वूमेंस इंटरनेशनल लीग फार पीस एंड फ्रीडम ने दुनिया में परमाणु आधुनिकीकरण शीर्षक से एक रिपोर्ट तैयार की है। डेढ़ सौ से ज्यादा पेज वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान जिस तरह से अपने परमाणु हथियारों के जखीरे में तेज से वृद्धि कर रहा है उसके बारे में अनुमान है कि उसके पास भारत से अधिक परमाणु हथियार हैं। हाल ही पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी निजी दौरे पर भारत आए थे तो उसकी पूर्व संध्या पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी ने पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में कहा था कि पाकिस्तान कभी भी पहला परमाणु हमला भारत पर नहीं करेगा। सवाल यही उठता है कि जब पाकिस्तान की सोच यही है तो फिर वह परमाणु हथियारों का जमावड़ा बढ़ा क्यों रहा है जबकि शांतिप्रिय भारत से तो उसे ऐसा कोई खतरा होना ही नहीं चाहिए। अगर हम पिछला इतिहास उठा कर देखें तो जब-जब अमेरिका ने भारत के साथ सामरिक रिश्तों को मजबूत करने के प्रयास किए हैं, तब तब पाकिस्तान खौफ में आकर या तो सीमा पर अपनी हरकतें तेज कर देता है या अपने सैन्य जमावड़े में बढ़ोतरी के प्रयास करने लगता है। ताजा रिपोर्ट में रहा गया है कि अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के पास 90 से 110 परमाणु हथियार हैं। यही नहीं पाकिस्तान के पास कम दूरी, मध्यम और लंबी दूरी की जमीन से जमीन पर मार करने वाली कई बैलिस्टिक मिसाइलें विकास के अलग अलग चरणों में हैं। इसके अलावा उसके पास 2750 किलोग्राम हथियार बनाने वाला उच्च संवर्द्धित यूरेनियम है। यह प्रयास साफ यही इशारा कर रहे हैं कि हमारा पड़ौसी याने पाकिस्तान भले ही अपने विकास के साधनो पर खर्च होने वाली राशि में कमी कर रहा हो लेकिन खुद को हथियारों से लैस करने व परमाणु हथियार विकसित करने पर अपने सामर्थ्य से ज्यादा सालाना करीब 2.5 अरब डालर खर्च कर रहा है। पाकिस्तान के इस कदम पर लगातार नजर रख कर भारत को सावचेत तो रहना ही पड़ेगा।

Dark Saint Alaick 14-04-2012 12:37 PM

Re: कुतुबनुमा
 
जनता के समक्ष विकल्प ही क्या है ?

मध्य प्रदेश में आठ वर्षों से सत्तारूढ़ शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार पिछले कई महीनों से जिस तरह खनन माफिया और भ्रष्ट मंत्रियों के बीच साठगांठ के आरोप से घिरी है, उससे बच निकलने का उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। खास बात तो यह है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की ओर से राज्य सरकार के खिलाफ विधानसभा में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में उठाए गए इस सभी गंभीर मुद्दों का भी सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया। ऐसे में कांग्रेस ने इसका करारा जवाब देने के लिए जो कदम उठाया है, वह निश्चित रूप से भाजपा को और संकट में डाल देगा। कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ उठाए गए सभी आरोपों की एक पुस्तक प्रकाशित की है और अब उसे जनता के सामने रखने का फैसला किया है। इस पुस्तक में राज्य में अवैध खनन व मंत्रियों के भ्रष्टाचार से लेकर राज्य में कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति और हर संवेदनशील मसलों को समाहित किया गया है। इसमें कोई हो राय नहीं कि पिछले वर्षों में राज्य में अवैध खनन नासूर की तरह से फैल गया और खास बात यह रही कि जब-जब ऐसे मामले सामने आए,उसमें राज्य के ही किसी मंत्री का नाम भी जुड़ता गया। मुख्यमंत्री चौहान लाख सफाई देते रहें कि राज्य में अवैध खनन नहीं हो रहा है, लेकिन यह सच्चाई से परे है। मुरैना, भिंड, टीकमगढ़ और पन्ना जिले तो अवैध खनन के मुख्य अड्डे बने हुए हैं और माफिया मंत्रियों की शह पर बेखौफ अपना काम ही नही कर रहा, बल्कि विरोध करने वालों को जान से भी हाथ धोना पड़ रहा है। मुरैना जिले में युवा पुलिस अधिकारी नरेंद्र कुमार की हत्या इसका ज्वलंत उदाहरण है। खुद भाजपा के लोग मानते हैं कि यह समस्या विकराल रूप ले रही ही। भाजपा के बैतूल जिला अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने स्वयं एक पत्र सरकार को लिखा है, जिसमें उन्होंने जिले में रेत के अवैध खनन का जिक्र किया है। बताया जाता है कि वहां राज्य की एक मंत्री का भाई ही अवैध खनन में लगा है। इसके बावजूद प्रश्न यह है कि क्या यह स्थिति सिर्फ इसी शासन की देन है ? जवाब है - नहीं, यह तो हमेशा से होता आया है । ... तो फिर यह हाय-तौबा क्यों ? जनाब, मुख्य विपक्षी दल इसके अलावा और क्या कर सकता है । ज़रा, पड़ोसी राज्य राजस्थान का उदाहरण लीजिए। काबिले-गौर है कि एमपी में इसी मुद्दे पर हाय-तौबा कर रही कांग्रेस ही यहां सत्ता पर काबिज है। यहां एक मंत्री ने वन-भूमि में ही अपने पुत्रों को खानें आवंटित कर दी थीं। मामला उजागर होने पर भी कुछ नहीं हुआ और काफी जद्दो-जहद के बाद जब कोर्ट ने लताड़ लगाई, तब भारी मन से मंत्री को विदा किया गया। ऐसे ही उदाहरण अन्य अनेक राज्यों में भरे पड़े हैं। लेकिन मध्य प्रदेश की स्थित अलग इसलिए है, यहां इन दोनों दलों के अलावा जनता के समक्ष कोई अन्य विकल्प ही नहीं है । वह करे, तो क्या ? राज किसी का भी हो, पिसना तो उसी को है !

Dark Saint Alaick 15-04-2012 10:09 PM

Re: कुतुबनुमा
 
रणनीति में मात खा गए माही

पहले रणनीति बनाकर और बाद में उसे फंसा कर विरोधी टीम को मात देने में माहिर माने जाने वाले महेन्द्र सिंह धोनी लगता है इस बार आईपीएल में अपनी रणनीति को अंजाम देने में कहीं ना कहीं खुद मात खा रहे हैं वरना शनिवार रात पुणे वारियर्स को जीतने का 156 रनो का अच्छा लक्ष्य देने के बाद भी वे इस मैच को अपने हाथ से केवल जाता हुए ही देखते रह गए। अंतिम ओवर में जब उन्होने यो महेश को गेंद थमाई तो उनके चेहरे पर आत्म विश्वास नहीं झलक रहा था यह तो साफ नजर आ रहा था लेकिन इसके साथ ही वे यह भी शंका छोड़ गए कि फटाफट क्रिकेट में उनके पैंतरे अब कमजोर जरूर पड़ रहे हैं वरना हार के बाद उन्हे यह कहने की नौबत ही नहीं आती कि उनकी टीम को पावरप्ले और डेथ ओवरों में गेंदबाजी में सुधार करना होगा। चेन्नई सुपर किंग्स ने पुणे में खेले गए इस मैच में पांच विकेट पर 155 रन का स्कोर खड़ा किया था जिसके जवाब में पुणे वारियर्स ने 19.2 ओवर में तीन विकेट पर 156 रन बनाकर मैच जीता और अंक तालिका में अव्वल आ बैठी। पुणे वारियर्स चार में से तीन मैच अब तक जीत चुकी है। धोनी ने मैच के बाद स्वीकार किया कि मुकाबला बराबरी का था लेकिन हम अपनी रणनीति को सही तरह से अंजाम नहीं दे पाए। अंतिम ओवर में महेश को गेंदबाजी सौंपने के बारे में रणनीति क्या थी यह पूछने पर धोनी ने कहा, मैं देखना चाहता था कि कौन अंतिम ओवर फेंकने को तैयार है। महेश से पूछा कि तो वह सकारात्मक दिखा । मैंने उसे गेंदबाजी दी। दूसरी तरफ पुणे के कप्तान सौरव गांगुली ने मैच में मिली सात विकेट से जीत का श्रेय बल्लेबाज जेस्सी राइडर व स्टीव स्मिथ को दिया । निश्चित रूप से राइडर इस श्रेय के हकदार थे। राइडर ने 56 गेंद में सात चौकों और एक छक्के की मदद से 73 रन की नाबाद पारी खेलने के अलावा स्मिथ (नाबाद 44) के साथ 6.4 ओवर में 66 रन की साझेदारी की जिससे पुणे टीम जीती। धोनी को अब सतर्क हो जाना चाहिए क्योंकि इस बार आईपीएल में सबसे कमजोर माने जाने वाली पुणे की टीम ने उन्हे मात दी है। वैसे माही हार मानने वाले हैं नहीं और उन्हे पता है कि आईपीएल का सफर अभी बहुत लंबा है।

Dark Saint Alaick 15-04-2012 10:18 PM

Re: कुतुबनुमा
 
बच्चों के भविष्य से न हो खिलवाड़

कहते हैं कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में सरकारी अनदेखी व कोताही का असर राज्य के बस्तर अंचल के आदिवासी बच्चों पर ऐसा पड़ रहा है कि वे चाहते हुए भी स्कूल जाने से कतराते हैं और अगर चले भी जाते हैं तो उन्हें पुलिस और नक्सलियों के बीच संघर्ष के चलते नतीजों को भुगतना पड़ता है, जिसके कारण उनकी पढ़ाई ही चौपट हुए जा रही है। हाल ही यह जानकारी सार्वजनिक हुई कि छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में एक ओर पुलिस स्कूली छात्रों को नक्सलियों का मुखबिर बता रही है, वहीं दूसरी ओर नक्सली इन्ही छात्रों को पुलिस का मुखबिर बता रहे हैं। इन शंकाओं के चलते छात्रों की पढाई पर व्यापक असर पड़ रहा है। पुलिस की तरफ से आधिकारिक तौर पर कहा जा रहा है कि नक्सली छात्रों की आड़ लेकर हिंसा की घटनाएं करते हैं। नक्सली संगठनों ने पुलिस की गोपनीय सूचना एकत्र करने और उन पर निगरानी के लिए बाल संगम का गठन किया है। बाल संगम के सदस्य पुलिस की आवाजाही और उसके क्रियाकलापों पर निगरानी रखकर उसकी सूचना नक्सली आकाओं को देते हैं। कुछ छात्रों को तो हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी दिया गया है। ऐसे छात्र स्कूली गणवेश में भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाकर हिंसा की घटनाओ को अंजाम भी देते हैं। हाल में कुछेक ऐसी घटनाएं होने के कारण पुलिस इन छात्रों को नक्सलियों का मुखबिर मान चुकी है। उधर, दूसरी तरफ नक्सली नेता छात्रों पर पुलिस का मुखबिर होने की शंका कर रहे हैं। इसके चलते हाल ही में नारायणपुर के राष्ट्रीय स्तर के एक खिलाड़ी पाकलू का अपहरण किया गया था। पाकलू नक्सलियों के चंगुल से तो भाग निकला, लेकिन आज वह उनकी हिटलिस्ट में है। इस घटना के अलावा एक गांव में 12वीं के छात्र की पुलिस मुखबिर होने की शंका में हत्या कर दी गई। ये घटनाएं साबित करती हैं कि राज्य के नक्सल प्रभावित इलाकों में बढ़ रही समस्याओं पर राज्य सरकार ध्यान नहीं दे रही। माना नक्सल हिंसा व्यापक रूप ले चुकी है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि इससे प्रभावित हो रहे स्कूली बच्चों को भी दयनीय हालत में छोड़ दिया जाए और वे पढ़ाई जैसे मूलभूत अधिकार से ही वंचित होने लग जाएं। सरकार को इस ज्वलंत मुद्दे पर गौर करना चाहिए। साथ ही एक अपील नक्सलियों से यह कि कोई भी 'वाद' या 'विचारधारा' इतनी निकृष्ट नहीं हो सकती कि अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए मासूम बच्चों को निशाना बनाने की इजाज़त दे। उन्हें चाहिए कि यदि वे अपने उद्देश्य को पवित्र साबित करना चाहते हैं, तो उन्हें बच्चों को निर्भय करना ही होगा, अन्यथा सामान्य डकैतों और उनमें अंतर ही क्या और किसे नज़र आएगा ?

Dark Saint Alaick 16-04-2012 11:26 PM

Re: कुतुबनुमा
 
शाही जीत में रहाणे का रौबदार अंदाज

इसे कहते हैं शाही जीत। राजस्थान रॉयल्स ने रविवार रात रायल चैलेंजर्स बेंगलूरू को चिन्नास्वामी स्टेडियम में आईपीएल के अपने पांचवें मैच में जो शिकस्त दी वह वाकई में ही शाही जीत थी। पहले बल्लेबाजी और बाद में गेंदबाजी में जो कहर रॉयल्स की युवा टीम ने बरपाया उससे रायल चैलेंजर्स की टीम अंत तक भी उभर नहीं पाई। सपाट शब्दों में कहा जाए तो रॉयल्स की यह एकतरफा जीत थी। पहले बल्लेबाजी के दौरान अजिंक्य रहाणे के एक ओवर में छह चौकों के रिकार्ड प्रदर्शन के साथ नाबाद शतक की बदौलत रॉयल्स टीम ने दो विकेट पर 195 रन का विशाल स्कोर खड़ा किया । ओवैस शाह ने भी 26 गेंद पर पांच चौकों और इतने ही छक्कों की मदद से 60 रन की तूफानी पारी खेली। बाद में गेंदबाजी में सिद्वार्थ त्रिवेदी के चार विकेट के कहर ने रायल चैलेंजर्स को 19.5 ओवर में 136 रन पर ढेर कर दिया और 59 रन से जीत दर्ज की। रहाणे को उनकी पारी के लिए मैन आफ द मैच चुना गया। इससे पहले रहाणे किंग्स इलेवन पंजाब के खिलाफ भी 98 रन बना चुके हैं। निश्चित रूप से रहाणे के रूप में राजस्थान रॉयल्स के पास एक विस्फोटक बल्लेबाज है और वे अपने खास खेल से लोगों को चौंका भी रहे हैं। मैच के बाद खुद रहाणे ने कहा, यह मेरी विशेष पारी है। मैं अपने साथियों को भी उनके प्रदर्शन के लिए बधाई देना चाहूंगा। अभी हमें लंबा रास्ता तय करना है। यह केवल पांचवां मैच है और मैं अपनी इस फार्म को आगे भी बरकरार रखना चाहूंगा। रहाणे ने अपनी इस फार्म का श्रेय टीम के कप्तान राहुल द्रविड़ को दिया व कहा, मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मैं अपने आदर्श खिलाड़ी के साथ खेल रहा हूं। राहुल से मैं काफी कुछ सीख रहा हूं। वह बल्लेबाजी में मेरी काफी मदद करते हैं। याने साफ हो गया कि पूरी टीम राहुल के नेतृत्व की कायल है और पिछले पांच में से तीन मैच जीत कर अंक तालिका में शीर्ष पर आकर राहुल ने इसे साबित भी कर दिया है। जहां तक रायल चैलेंजर्स की बात है उसकी कुछ कमजोरियां सामने आई हैं और इन्ही कमजोरियों के चलते वह लगातार अपना तीसरा मैच हारी है। खुद कप्तान डेनियल विटोरी ने माना कि मध्यक्रम के बल्लेबाजों का खराब प्रदर्शन और पांचवें गेंदबाज की कमी उन्हें बुरी तरह खल रही है। गेंदबाजी में समस्या की जड़ पांचवें अच्छे गेंदबाज का अभाव है। हमें इस समस्या से जल्दी पार पाना होगा ताकि टूर्नामेंट में वापसी की जा सके। हम लक्ष्य का पीछा कर पाने में इसलिए भी नाकाम हो रहे हैं क्योंकि पहले बल्लेबाजी करते हुए टीमें बड़ा स्कोर बना रही हैं। अब देखना यह है कि राजस्थान रॉयल्स अपनी इस बेहतर जीत को किस मुकाम तक ले जाती है।

Dark Saint Alaick 16-04-2012 11:39 PM

Re: कुतुबनुमा
 
मनमोहन के वक्तव्य का मंतव्य

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सोमवार को दिल्ली में आंतरिक सुरक्षा पर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में संजीदगी के साथ देश को विश्वास दिलाया कि आतंकवाद, वामपंथी उग्रवाद, धार्मिक कट्टरता और जातीय हिंसा के मामले में पिछले दिनों कमी आई है, लेकिन हमें अभी और लंबा रास्ता तय करना है। निश्चित रूप से पिछले कुछ वर्षों पर नजर दौड़ाई जाए, तो यह तो कहा जा सकता है कि सरकार ने आतंकवाद और हिंसा पर नकेल कसने के जो प्रयास किए हैं, उसके बेहतरीन नतीजे सामने आए हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण आतंकवाद से लंबे समय तक प्रभावित रहा राज्य जम्मू कश्मीर है, जहां हाल के कुछ वर्षों में न केवल देश-विदेश के पर्यटकों, बल्कि विभिन्न धार्मिक स्थलों पर पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या में आशा से भी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। जम्मू के माता वैष्णोदेवी मंदिर में तो वर्ष 2011 में रिकॉर्ड एक करोड़ से ज्यादा धर्मावलम्बी पहुंचे। वहां पंचायत चुनाव सफल रहे और लंबे समय बाद फिर से बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग भी बड़ी संख्या में हो रही है। इससे साफ पता चलता है कि न केवल जम्मू-कश्मीर, बल्कि पूरे देश की जनता हिंसा और आतंकवाद के साये से निकलकर सामान्य जीवन जीने की इच्छा रखती है। प्रधानमंत्री के बयान से यह भी साफ हो गया कि भले ही देश में आतंकवाद और हिंसा को लेकर हालात काबू में है, लेकिन सरकार को हर वक्त चौकस और चौकन्ना रहने की जरूरत लगातार बनी हुई है। प्रधानमंत्री का यह बयान ही इस मुद्दे पर उनकी चिंता को प्रदर्शित करता है कि आंतरिक सुरक्षा हालात भले ही संतोषजनक हैं, लेकिन अभी और अधिक करने की जरूरत है । आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियां अभी बनी हुई हैं। हमें अपनी ओर से इन चुनौतियों के प्रति लगातार सतर्क रहना होगा। इन चुनौतियों से कड़ाई से निपटने की आवश्यकता है, लेकिन पूरी संवेदनशीलता के साथ। आने वाले समय में भी सरकार ने आतंकवाद की समस्या से निपटने के लिए मजबूत एवं प्रभावशाली संस्थागत तंत्र स्थापित करने के इरादे से राज्यों के साथ मिलकर काम करने की जो तैयारी की है, उससे यह संकेत मिलता है कि अब धीरे-धीरे ही सही, आतंक और हिंसा से देश को निजात मिल सकती है, लेकिन विचित्र स्थिति यह है कि देश की इन परिस्थितियों में भी राज्य क्षेत्रीयता की संकुचित मानसिकता नहीं छोड़ पा रहे हैं। आतंक के खिलाफ एक केन्द्रीय इकाई हो और वह पूरे देश पर नज़र रखे, तो इसमें राज्यों के अधिकारों में कटौती या हस्तक्षेप की बात कहां से आ जाती है, यह समझ से परे है ! वह भी उस स्थिति में जब वे किसी भी ऐसे हादसे के लिए केन्द्रीय खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों की चूक को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं।

Dark Saint Alaick 21-04-2012 04:02 AM

Re: कुतुबनुमा
 
भारत ने फिर दिखा दी अपनी ताकत

ओडिसा में बालासोर के निकट समुद्र में व्हीलर द्वीप से गुरूवार सुबह परमाणु क्षमता से लैस और स्वदेशी तकनीक से विकसित पहली इंटर कॉन्टिनेटल बैलेस्टिक मिसाइल(आईसीबीएम)अग्नि पांच का सफल परीक्षण कर भारत ने एक बार फिर दुनिया को अपनी क्षमता और ताकत का अहसास तो करवा ही दिया है साथ ही उन चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो गया है जिनके पास आईसीबीएम है। फिलहाल इस क्लब में अमेरिका,रूस,फ्रांस,ब्रिटेन और चीन शामिल हैं। निश्चित रूप से आज हर भारतीय के लिए यह गौरव का दिन है क्योंकि हमारे वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत और समर्पण से भारत को अग्रणी देशों की पंक्ति में ला खड़ा किया है। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने इसे बड़ी सफलता बताया और कहा, यह कामयाबी देश के मिसाइल शोध और विकास कार्यक्रम में मील का पत्थर है। भारत ने हमेशा ही अपनी सामरिक क्षमता को अपने बूते केवल शांति और सुरक्षा के मकसद से ही विकसित किया है और अग्नि पांच उसी की एक कड़ी है। भारत की इस बड़ी कामयाबी की जहां सभी सर्वत्र प्रशंसा हो रही है वहीं चीन इस सफलता को पचा नहीं पा रहा है। उसका कहना है कि मिसाइल की ताकत में भारत अब भी पीछे है और अग्नि पांच के परीक्षण से भारत को कुछ भी हांसिल होने वाला नहीं है जबकि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन( डीआरडीओ ) के प्रमुख डॉ. वी. के. सारस्वत का मानना है कि मिसाइल तकनीक के लिहाज से कुछ मामलों में भारत चीन से भी आगे है। चीन भले ही तेवर दिखा रहा हो लेकिन इसके विपरीत नाटो के सेक्रेट्री जनरल एंडर्स एफ राममुसेन ने कहा कि हमें नहीं लगता कि अग्नि पांच का परीक्षण कर भारत नाटो के सहयोगी देशों के लिए कोई खतरा पैदा करेगा। अब भारत की इस कामयाबी पर प्रतिक्रियाएं तो होती रहेंगी लेकिन हमारे वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है कि वे किसी से कम नहीं हैं। इससे पहले अग्नि के चार संस्करण के अलावा हमारे वैज्ञानिक पृथ्वी, धनुष, ब्रह्मोस, सागरिका, आकाश और प्रहार जैसी मिसाइलें भारत को दे चुके हैं और गुरूवार को अग्नि पांच का सफल परीक्षण व हिन्द महासागर में अचूक निशाना लगा कर उन्होने फिर साबित कर दिया है कि भारत ठान ले तो कुछ भी कर सकता है।

Dark Saint Alaick 21-04-2012 04:45 AM

Re: कुतुबनुमा
 
लोकतंत्र की मजबूती के लिए सीआईआई का सुझाव

लोकतंत्र की मजबूती के लिए पिछले दिनो उद्योग मंडल सीआईआई ने जो सुझाव दिया है वह निश्चित रूप से देश और चुनावी व्यवस्था के लिए बेहद कारगर साबित हो सकता है। सीआईआई ने सुझाव दिया है कि कंपनियों सहित सभी आयकरदाताओं पर 0.2 प्रतिशत का लोकतंत्र उपकर लगाया जाना चाहिए और इसी उपकर का राजनीतिक गतिविधियों और देश में चुनाव के दौरान होने वाले खर्च में उपयोग किया जाना चाहिए। इन सुझावों वाली रिपोर्ट सीआईआई ने मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी को सौंपी है और अब आगे इन पर कैसे अमल संभव है इसका आकलन चुनाव आयोग को ही करना है। अगर सुझावों पर आगे बढ़कर काम किया जाए तो तय है कि देश में चुनाव के दौरान होने वाले बेतहाशा खर्च पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी साथ ही देश के हर आयकरदाता को यह महसूस होगा कि वह केवल वोट के जरिए ही नहीं बल्कि अपनी आय के एक हिस्से को देश के ऐसे काम में लगा रहा है जिससे लोकतंत्र मजबूत होगा। इस कदम को पूर्ण रूप से पारदर्शी बनाने के बारे में भी व्यापक सुझाव दिए गए हैं और कहा गया है कि इसमें ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि करदाता सीधे उपकर की राशि का चेक अपनी पसंद के राजनीतिक दल या फिर चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त दल के खाते में डाल सके। आयकरदाता को खुद यह फैसला करने दिया जाए कि वह किस राजनीतिक दल का समर्थन करना चाहता है। अगर कोई आयकर दाता एक से ज्यादा राजनीतिक दल को उपकर की राशि देना चाहता है तो वह ऐसा कर सके इसकी व्यवस्था भी होनी चाहिए। इसके अलावा सुझावों में यह भी कहा गया है कि अगर किसी करदाता द्वारा सीधे राजनीतिक दलों को किया गया भुगतान इस उपकर से कम हो तो शेष राशि को सरकार के खाते में जमा करवा देना चाहिए। इस उपकर सुझाव में सबसे बेहतरीन सुझाव यह भी है कि इस तरह के उपकर देने वाले करदाता को आयकर में छूट का प्रवधान भी किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सीआईआई ने लोकतंत्र को मजबूत करने के सरकार के प्रयासों को सार्थक करने में मददगार रहने का यह सुझाव देकर अपनी दूरदृष्टि का जो परिचय दिया है वह स्वागत योग्य है। सरकार को इस पर निश्चित रूप से पहल करनी चाहिए।

Dark Saint Alaick 22-04-2012 12:17 PM

Re: कुतुबनुमा
 
आय बढ़ाने के चक्कर में दर्शक परेशान न हो

पिछले कई अर्से से टेलीविजन चैनल्स पर एक विज्ञापन लगातार प्रसारित हो रहा है जिसमें उपभोक्ताओं को उनके हक से रूबरू करवाया जाता है कि वे जो भी सामान खरीदें उसका बिल लें या उत्पाद पर लिखी गई कीमत से ज्यादा अदा न करें वगैरह-वगैरह। ‘जागो ग्राहक जागो’ शीर्षक वाले इस विज्ञापन में कभी-कभार कोई बड़ी हस्ती भी दिख जाती है जो ग्राहक को यह बताने का प्रयास करती है कि बाजार से जो भी सामान खरीदा जाए उसे देख-परख लिया जाए। आम तौर पर माना जाता है कि मीडिया लोगों को सही और गलत की पहचान करवाता है लेकिन इन दिनो ‘जागो ग्राहक जागो’वाला विज्ञापन प्रदर्शित करने वाले कई चैनल्स पर उपभोक्ताओं को कथित तौर पर भ्रमित करने वाले विज्ञापनों का प्रसारण भी हो रहा है। उससे दर्शक यह समझ ही नहीं पा रहे कि सही क्या है और गलत क्या। मूल रूप से ये विज्ञापन लोगों की धार्मिक भावनाओं से खेलते दिखाई देते हैं। मसलन एक चैनल पर देर रात धार्मिक यंत्रों वाला एक विज्ञापन प्रसारित होता है जिसमें दर्शकों को बताया जाता है कि उक्त यंत्र को घर के मंदिर में रखने से लक्ष्मी का आगमन होता है। दर्शक को यह भी कहा जाता है कि इस यंत्र के साथ यदि वे कुछ और धार्मिक वस्तुएं भी लेंगे तो भविष्य सुखमय होगा। ताज्जुब की बात तो यह है कि इस तरह के यंत्र की बाजार में तो कीमत बहुत ज्यादा बताई जाती है लेकिन यदि उस चैनल के दर्शक विज्ञापन में दिखाए गए नंबर पर बात कर यंत्र खरीदेंगे तो उसकी कीमत आधी ही रहेगी। अब एक आम दर्शक इस विज्ञापन को किस संदर्भ में ले, यह बताने वाला कोई नहीं है। इसी तरह एक चैनल पर इन दिनो एक धार्मिक पुस्तक को लेकर देर रात में विज्ञापन प्रसारित हो रहा है जिसमें एक नामचीन कलाकार उसका प्रचार-प्रसार करते नजर आते हैं और कहते हैं कि इस पुस्तक को घर में रखने से दुख दूर हो जाते हैं। इस विज्ञापन में कुछ ऐसे लोगों के साक्षात्कार भी दिखाए जाते हैं जो पुस्तक खरीदने के बाद कथित तौर पर लाभान्वित हुए हैं। अब अगर हम इन विज्ञापनो को इन दिनो चर्चा में रहे निर्मल बाबा के समागम वाले विज्ञापन से जोड़ कर देखें तो दोनो में कोई अंतर नहीं दिखाई देगा। लोगों की धार्मिक भावनाओं से खेलने वाले ऐसे विज्ञापन पहले तो चैनल खुद दिखाते हैं लेकिन जब ग्राहक या दर्शक ही ठगे जाते हैं तो वही चैनल उसे ऐसा मुद्दा बनाते हैं मानो आसमान टूट पड़ा। यही हाल विभिन्न चैनल्स पर दिखाए जाने वाले टेली शॉपिंग विज्ञापनो का है जहां ग्राहक को सिर्फ नंबर डायल कर अपनी मनचाही वस्तु खरीदने का आॅफर किया जाता है और यह भी बताया जाता है कि उक्त वस्तु बाजार में नहीं मिलेगी क्योंकि हमारी कोई शाखा नहीं है। ऐसे में उपभोक्ता का भ्रमित होना लाजिमी है। मीडिया को चाहिए कि वह ऐसे विज्ञापनो के प्रसारण से पहले ठोक बजा कर यह तो पता कर ही ले कि कहीं अपनी आय बढ़ाने के चक्कर में वे जो विज्ञापन दिखा रहे हैं उससे उनका नियमित दर्शक आर्थिक या मानसिक रूप से बाद में परेशान तो नहीं होगा। मीडिया को खुद आगे चल कर ऐसी नीति बनानी चाहिए जिसमें ऐसे विज्ञापनो के प्रसारण से पहले दर्शक को चेता दिया जाए कि जो हम दिखा रहे हैं वह केवल और केवल एक विज्ञापन है।


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