ग़ज़ल- न जाने क्यूँ भला मशहूर होकर भूल जाता है
ग़ज़ल- न जाने क्यूँ भला मशहूर होकर भूल जाता है
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ मेरा साया है लेकिन दूर होकर भूल जाता है कि वह सत्ता के मद में चूर होकर भूल जाता है ◆◆◆ सियासतदां को जनता ही उठाती है गिराती भी मगर किस बात पर मगरूर होकर भूल जाता है ◆◆◆ रिवायत है जमाने की यहां हर शख्स यारों को न जाने क्यूँ भला मशहूर होकर भूल जाता है ◆◆◆ कमी थी जब तलक हमसे वो अक्सर मेल रखता था कि अपनो को भी जो भरपूर होकर भूल जाता है ◆◆◆ उसी के ही लिए 'आकाश' आँखें भीग जातीं क्यूँ हमें आदत से जो मजबूर होकर भूल जाता है ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी |
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