नपुंसकामृतार्णव
नपुंसकामृतार्णव
अर्थात नपुंसकों के लिए अमृत का समुद्र यानी यौन क्रिया में अक्षम लोगों के लिए नायाब नुस्खे मित्रो, अनेक आयुर्वेदिक चिकित्सक अपने अनुभव और अनेक बीमारियों पर शोध तथा अध्ययन से प्राप्त ज्ञान को अपनी हस्तलिपि में कागजों पर उतारते रहे हैं ! कुछ पुस्तक के रूप में प्रकाशित होते हैं, कुछ सिर्फ पांडुलिपि के रूप में ही रह जाते हैं ! यहां मैं एक अनुपम ग्रन्थ 'नपुंसकामृतार्णव' संस्कृत से अनूदित कर प्रस्तुत कर रहा हूं ! यह कभी वाराणसी के किसी संस्थान से संस्कृत में प्रकाशित हुआ था, किन्तु अब उसकी कोई प्रति उपलब्ध नहीं है ! मेरे पास हस्तलिखित पांडुलिपि मौजूद है, अतः मैं आज से इसे क्रमशः अनूदित कर प्रस्तुत करूंगा ! मेरा मानना है कि यह ग्रन्थ आज की नौजवान पीढी के लिए एक प्रकाश-स्तम्भ है ! |
Re: नपुंसकामृतार्णव
नोट- मेरा आप सभी से अनुरोध है कि इस सूत्र में कृपया यह ध्यान रखें -
1. मैं कोई वैद्य नहीं हूं, अतः आपकी किसी यौन समस्या का निदान नहीं बता सकता, अतः ऐसे कोई प्रश्न मुझसे नहीं पूछें ! 2. मैं सिर्फ एक कृति आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं, यदि आपको नुस्खे में दी गई किसी जड़ी-बूटी के सम्बन्ध में कुछ पूछना है, तो आप निस्संकोच मुझसे सवाल कर सकते हैं, क्योंकि यह पांडुलिपि हस्तगत होने के बाद मैंने कई वैद्यों और अत्तारों से जड़ी-बूटियों के नामों में उनके परिवर्तन के अनुसार सुधार कर लिया है, किन्तु कृपया मुझसे किसी बीमारी का इलाज़ न पूछें ! 3. कृपया यह भी याद रखें कि दवाओं का एक निश्चित अनुपात आयुर्वेद ही नहीं, प्रत्येक चिकित्सा पद्धति के अनुसार निर्धारित है, अतः अपने डॉक्टर कृपया खुद न बनें, किसी भी नुस्खे का इस्तेमाल कृपया किसी वैद्य के निर्देशन में ही करें ! आपकी किसी लापरवाही अथवा दवा निर्माण में त्रुटि से होने वाले किसी भी नुक्सान के लिए सूत्र-निर्माता अथवा फोरम कतई जिम्मेदार नहीं होगा, कृपया यह ध्यान रखें ! धन्यवाद ! |
Re: नपुंसकामृतार्णव
इस सूत्र में आगे कई प्रकार की भारतीय तौल मात्राएं आएंगी, अतः मैं यहां इस पद्धति को स्पष्ट कर देना उचित समझता हूं !
4 धान की एक रत्ती बनती है ! 8 रत्ती का एक माशा बनता है ! 12 माशों का एक तोला बनता है ! 5 तोलों की एक छटाक बनती है ! 16 छटाक का एक सेर बनता है ! 5 सेर की एक पनसेरी बनती है ! 8 पनसेरियों का एक मन बनता है ! एक रत्ती लगभग 0.12125 ग्राम के बराबर है। एक तोला में आप 12 ग्राम मान सकते हैं, किन्तु ब्रिटिश काल में जारी किए गए चांदी के सिक्के ठीक एक तोला के होते थे, जिनका सही वज़न 11.6638038 ग्राम था और वर्तमान में आयुर्वेदिक औषधियों के अलावा स्वर्ण और चांदी का वज़न भी इसी पद्धति से होता है, जिसमें एक तोला आज भी 11.6638038 ग्राम के बराबर ही है। |
Re: नपुंसकामृतार्णव
प्रारम्भ्यते !
मंगलाचरणम विलोलद्वीचि संयुक्ता दुःख त्रय विनाशिनी ! राजते ह्यापगा यस्य शाशि शोभित मस्तके !! गिरिजा यस्य वामांगे सपुत्रा च विराजते ! भस्मोद्धूलित देहाय नमस्तस्मै पिनाकने !! |
Re: नपुंसकामृतार्णव
दोहा -
चपल वीचि युत आपगा, करहि दुःखत्रयनाश ! शशि शोभित मस्तक विषे, रही निरंतर भास् !! गणनायक को अंक ले, गिरिजा वामाचार ! भस्म लिप्त तनु देव को, नमः है बारम्बार !! |
Re: नपुंसकामृतार्णव
ग्रंथारम्भः !
पुंसत्व वृद्धिकरम चैव शंडादिदोषनाशनं ! संत्यादि सुख कर मायुरा रोग्यदम तथा !! तरंगैरष्टभिः शुद्धैर्नपुंसका मृतार्नवम ! अनुभव कृतैर्योगैस्तथैव शास्त्रसंमते : !! निबन्धामि नियोगाच्च सतां लोक हितैशिणाम ! वैद्यो रामप्रसादोहं दृष्टा लोकस्य संस्थितिम !! |
Re: नपुंसकामृतार्णव
संसार का हित चाहने वाले श्रेष्ठ पुरुषों की आज्ञा से तथा इस समय लोक की अवस्था देख कर मैं रामप्रसाद नामक वैद्य इस 'नपुंसकामृतार्णव' ग्रन्थ को शास्त्र सम्मत अनुभव किए हुए योगों से निबंधन करता हूं अर्थात अपने अनुभूत योगों को ग्रन्थ रूप में लिखता हूं ! सो यह 'नपुंसकामृतार्णव' (नपुंसकों के लिए अमृत का समुद्र) सुन्दर शुद्ध आठ तरंगों से युक्त होगा और पुरुषार्थ को बढ़ाने वाला तथा षंड (नपुंसक) आदि दोषों को हरने वाला, और संतान आदि सुख का दान करने वाला, आयु तथा आरोग्यता देने वाला होगा !!1-3!!
|
Re: नपुंसकामृतार्णव
मित्रो, यहां से मैं संस्कृत का उपयोग ख़त्म कर रहा हूं अर्थात अब सूत्र सिर्फ हिन्दी में चलेगा ! यदि मित्र चाहें, तो मैं साथ ही संस्कृत प्रस्तुत करने को भी तैयार हूं, किन्तु संस्कृत लिखने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ! जैसे ऊपर दिए गए कुछ श्लोकों में अनेक स्थानों पर 'न' के बजाय 'ण' का प्रयोग होना था, किन्तु संयुक्त रूप में काफी प्रयास के बाद भी यह न कर पाने की स्थिति में मैंने 'न' जाने देना ही उचित समझा ! ठीक इसी तरह कुछ स्थानों पर षटकोण वाला 'ष' प्रयोग होना था, किन्तु कई प्रयास के बावजूद मुझे संयुक्त अक्षरों में 'श' ही जाने देने को विवश होना पड़ा ! (इसी तरह) संस्कृत संयुक्त वाक्यांशों में लिखी जाने वाली भाषा है, लेकिन जब मैंने ऐसे वाक्यांश प्रविष्ट किए, तो बीच-बीच में अजीब आकृतियां प्रकट हो गईं, तब मुझे संयुक्त अक्षरों को तोड़ कर प्रस्तुत करना पड़ा ! मेरा संस्कृत के विद्वानों से अनुरोध है कि आप सभी सज्जन मेरी विवशता समझते हुए मुझे क्षमा करेंगे ! धन्यवाद !
|
Re: नपुंसकामृतार्णव
शरीर में सब धातुओं का सारभूत वीर्य ही कहा जाता है ! वही वीर्य ओज, तेज, बल, कांति और पराक्रम रूप से शरीर में स्थित है, जिसके शुद्ध होने से शरीर की गति सर्वदा सब तरह से शुद्ध रहती है ! ब्रह्मचर्य अवस्था में वीर्य के क्षीण होने से मनुष्य पराक्रम, धैर्य और तेज से हीन होकर अनेक रोगों से युक्त शरीर वाला होता है ! जैसे सारहीन पदार्थ रद्दी होता है, वैसे ही वीर्य के बिना पुरुषार्थ है !!4 -6!!
|
Re: नपुंसकामृतार्णव
और भी बहुत सी महाव्याधियों से भी मनुष्य नपुंसकता को प्राप्त होता है तथा माता-पिता के रज-वीर्य संबंधी विकारों से भी मनुष्य को नपुंसकता प्राप्त होती है और कुछ पूर्व जन्म के पापों के सबब से भी कुछ नपुंसकता को प्राप्त होते हैं ! परन्तु इस समय अधिकतर मनुष्य ब्रह्मचर्य से विहीन होकर अपने ही कुकर्मों के फल से नपुंसकता को प्राप्त हो दुःख भोग रहे हैं !!7-8!!
|
All times are GMT +5. The time now is 12:45 PM. |
Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.