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आकाश महेशपुरी 12-12-2020 10:16 AM

ग़ज़ल- मत बाँधो ग़म को तुम मन के खूँटे से
 
ग़ज़ल- मत बाँधो ग़म को तुम मन के खूँटे से
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मत बाँधो ग़म को तुम मन के खूँटे से,
दिख जाये तो इसे दबा दो जूते से।

मौके तुम ख़ुशियों के मत जाने देना,
उनको छोड़ो जो हैं रूठे-रूठे से।

उसकी चिंता क्यों करते हो अक्सर ही?
जो बाहर है भाई तेरे बूते से।

किसके ग़म में रोज़ बहाते हो आँसू?
ये तो रिश्ते-नाते हैं सब झूठे से।

और तुझे 'आकाश' ज़माना तोड़ेगा,
अगर दिखोगे यूँ जो टूटे-टूटे से।

ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी
दिनांक- 07/12/2020
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वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी"
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
पिन- 274304
मो. 9919080399

rajnish manga 12-12-2020 12:52 PM

Re: ग़ज़ल- मत बाँधों ग़म को तुम मन के खूँटे से
 
बहुत सुंदर ग़ज़ल. जीवन में ख़ुशी और ग़म दोनों हैं. लेकिन गम में इतने मत डूब जाओ कि ख़ुशी के अवसरों को पहचानने से इनकार कर दो. ख़ुशी के दो पल भी इतने बड़े बना दो कि उनमें ग़म छुप जाएँ.


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