थोडा सा रुमानी हो जाए
थोडा सा रुमानी हो जाए
दुरदर्शन के बेनर तले, हमारे प्रिय अमोल पालेकर द्वारा बनाई गई यह एक खुबसुरत फिल्म है। यह दरअसल अंग्रेजी फिल्म 'द रेनमेकर' का हिन्दी या कहा जाए हिन्दुस्तानी रुपांतरण है। ईस के गीत, गझल, कविता वगैरह गहन है और दिल को छू लेने वाले है। सालों प्रतीक्षा के बाद जब डीजीटल युग शुरु हुआ तौ अब एसी अदभुत फिल्में सीधे सीधे ईन्टरनेट पर देखना कितना आसान हो गया है! वरना यह फिल्म सिर्फ याद बन के रह जाती, जो मेरे जैसे लोग कितनों को सुना सुना के पका देते! :giggle: आईए पहले फिल्म देखतें है.... |
Re: थोडा सा रुमानी हो जाए
कहानी की नायिका एक सामान्य दिखने वाली लडकी है। उसकी मां नही है लेकिन पापा और दो भाई की वह लाडली है। सभी को चिंता ईस बात की है की उसकी शादी नहीं हो रही। (एसी ही सीच्युएशन १९९७ कि खुबसुरत फिल्म में उर्मिला की दिखाई गई थी।)
ईन दौरान उस छोटे से शहर के मेयर से शादी की कोशिशें चलती है। वहां जल्दी कामियाबी न मिलने पर फिर से मायुसी छाने लगती है। आगे क्या होता है....यह जानने के लिए फिल्म देखनी होगी! पापा, भाई वगैरह के पात्रों को बहुत बारीकी से दिखाया गया है। यह शांत फिल्म बीच बीच में हंसी और खिलकारीयां छोड जाती है। फिल्म में कई बार बारिश, सुखा ईत्यादी का ज़िक्र हमें कुदरत की तरफ भी आकर्षित करता है। |
Re: थोडा सा रुमानी हो जाए
ईस फिल्म में एक अच्छा मोटीवेशनल संवाद है...
समंदर को बांधे ऐसा कोई घाट नहीं, कदमों को थामे एसी कोई बाट नहीं, पतली सी धारा जा कर समंदर से मिलती है, समंदर से मिलती है और मिल के खो जाती है। घाट घाट ही रहता है, वह...समंदर हो जाती है! |
Re: थोडा सा रुमानी हो जाए
यह फिल्म ह्युमन बिहेवीयर की पढाई के सिलेबस में भी शामिल की गई है! सोर्स
'थोडा सा रुमानी हो जाए' फिल्म 1991 में दुरदर्शन द्वारा निर्मित की गई थी और दिग्दर्शक थे अमोल पालेकर जी। जब मैं छोटा था तब यह फिल्म दुरदर्शन पर ईतवार की शाम को टेलिकास्ट की गई थी। तब भी बहुत अच्छी लगी थी। उन दिनों मुझे डायरी लिखने का शौख था और यह बात मैने उसी दिन डायरी में भी लिखी थी। मुझे यह फिल्म बहुत पसंद है यह जानने पर एक बहुत अच्छी मित्र ने ईस फिल्म की सीडी मुझे पांच-छः साल पह्ले भीजवाई थी! |
Re: थोडा सा रुमानी हो जाए
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