एक दिवाली ऐसी हो
जश्न मिल जुल के मनाओ तो क्या दिवाली हो ;
कुछ नए दीप जलाओ तो क्या दिवाली हो . खुद के भीतर के अंधेरों को ख़तम कर दे जो ; दीप इक ऐसा जलाओ तो क्या दिवाली हो . रास्ता लम्बे समय तक जो दिखाए कुछ को , दीप इक ऐसा जलाओ तो क्या दिवाली हो . देश की सीमा पर गुल हो गए जिनके कुल - दीप ; दीप इक उनका जलाओ तो क्या दिवाली हो . जिस तलक अब भी नहीं पहुंची है विकास - किरण ; रौशनी में उसे लाओ तो क्या दिवाली हो . किसी भले ने तुम्हे दिल से गर निकाला हो ; फिर उसके दिल में समाओ तो क्या दिवाली हो . कभी तो जुगनुओं के झुण्ड टिमटिमाएँ जहाँ ; द्वार पर वृक्ष लगाओ तो क्या दिवाली हो . रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड -2,गोमती नगर , लखनऊ . |
Re: एक दिवाली ऐसी हो
दीपावली के शुभ अवसर पर इतनी अच्छी कविता. दिल बाग़ बाग़ हो गया.
धन्यवाद राकेश जी. |
Re: एक दिवाली ऐसी हो
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आपको दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाये........... |
Re: एक दिवाली ऐसी हो
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Re: एक दिवाली ऐसी हो
इस दिवाली पर डॉक्टर साहब के तरफ से इस हिंदी मंच को अनुपम सौगात. :bravo:
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Re: एक दिवाली ऐसी हो
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Abhisays जी , आपका धन्यवाद एवं दीपावली की शुभ कामनाएं . |
Re: एक दिवाली ऐसी हो
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आपका धन्यवाद एवं दीपावली की शुभ कामनाएं . |
Re: एक दिवाली ऐसी हो
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आपका धन्यवाद एवं दीपावली की शुभ कामनाएं . |
Re: एक दिवाली ऐसी हो
दीपू जी ,
आपका धन्यवाद एवं दीपावली की शुभ कामनाएं . |
Re: एक दिवाली ऐसी हो
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फोरम के सभी सदस्यों को दीपावली की शुभ कामनाएं . |
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