काश !!
काश !!
(इन्टरनेट से साभार) कथाकार: मनीष मिश्रा मणि मनोज ने जब वृद्ध आश्रम की पहली सीढ़ी पर कदम रखा उसे बाबू जी की याद आ गयी.. अपनी पत्नी के कहे में आकर वह उन्हें यही पर छोड़ गया था.. उसे अब याद आ रहा था की घर में उसे भी बाबू जी की उपस्थिति परेशान करने लगी थी.. उम्र होने की वजह से बाबू जी के काम में कुछ कमी रह जाती थी जो उनकी बहु और मनोज की पत्नी को सहन नहीं होती थी…इस कारण कुछ न कुछ बहस होती रहती थी घर में.. मनोज ने इस स्थिति से उबरने का यही हल ढूंढा की बाबू जी को वृद्ध आश्रम छोड़ दिया जाये . .उसे पता नहीं था की रवि इन सब घटनाओ को ध्यान से देखा करता था.. मनोज और रश्मि का प्यारा बेटा .. मम्मी या पापा से पूछने पर वह उसे बहला देते कि दादा जी अब बेकार हो गए है .. कोई काम उनसे नहीं होता … आज उसी बच्चे रवि ने उसे इसी वृद्ध आश्रम के सामने ला खड़ा किया . . पत्नी का साथ भी नहीं रहा अब .. उसने जिस दर्द की कल्पना भी नहीं की थी आज उसे महसूस करने की मजबूरी से निकल भी नहीं पा रहा था मनोज.. वृद्ध आश्रम के एक कोने में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया.. सर को ऊपर आसमान की तरफ करके कुर्सी पर ही टिका लिया.. जिसे पाला पोसा बड़ा किया और बस इतनी सी उम्मीद रखी कि आगे वह उसका ध्यान रखेगा.. सब कुछ सोचते सोचते उसकी आँख का कोना इतना गीला हो गया था कि आंसू की बूँद बनकर गिरने ही वाला था.. रोक भी नहीं पाया मनोज आंसू गिरने से .. अचानक उसने अपने सर पर प्यार भरा स्पर्श महसूस किया .. उसे लगा कि जिस दर्द ने उसे मजबूर बनाकर दुखी किया था वह भी रुकने के लिए असमर्थ सा हो रहा है.. हाँ बाबू जी ही तो थे … मनोज के सामने आकर बैठे ही थे कि पूरी तरह फूट पड़ा वह.. वक़्त लगा सँभालने में लेकिन सिसकना अभी भी बरकरार था… बाबू जी ने पूछा तो मनोज ने बताया कि रवि ने उसे भी घर से निकाल दिया है .. बाबू जी को बड़ा आश्चर्य हुआ तो पूछ ही लिया कि तू इतना तो बूढ़ा नहीं हुआ अभी कि बेकार समझ कर घर से निकाल दे… उसने बताया कि रवि कि शादी हो गयी है और परिस्थिति खुद को दोहरा रही है लेकिन इस बार बाबू जी कि जगह मनोज है बस . . फिर भी चिंता मत कर मैं हु तेरे साथ .. बाबू जी के यह शब्द कितने अच्छे लग रहे थे मनोज को.. बाबू जी का होना ही उसको हर दर्द से निजात दिलाने में सक्षम था.. बाबू जी बेकार नहीं हुए उसे आज पता चला… काश वह इस बात को तब समझ पाता . . . काश रवि इस बात को अब समझ पाता .. काश ..... !!! ** |
Re: काश !!
हिरदय स्पर्शी कहानी... कहने को तो ये कहानी है किन्तु ये आज के समाज की सच्चाई है काश लोग अब भी कुछ सोचें और समझे और अपने माता पिता के साथ वृध्धाश्रम भेजने जेइसा महा पाप न करें .
बहुत अच्छी कहानी रजनीश जी ऐसा साहित्य हमारे समाज केलिए बहुत उपयोगी है जिसमे लोगो सोई हुई इंसानियत को जगाने की क्षमता हो. |
Re: काश !!
very nice
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