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jai_bhardwaj 31-10-2010 11:03 PM

Quote:

Originally Posted by anjaan (Post 6320)


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पत्थर से दोस्ती, जान को ख़तरा.
सरदार से दोस्ती, दिमाग़ को ख़तरा.
दारू से दोस्ती, लिवर को ख़तरा.
हम से दोस्ती, रात बे रात sms का ख़तरा.

जान को कोई ख़तरा नहीं , यदि दोस्त सलोना हो
दिमाग को ख़तरा नहीं, अगर सरदार मोना हो
लीवर को ख़तरा नहीं, यदि दवा बराबर दारू लें
sms का ख़तरा नहीं, जब तीन के बाद सोना हो

jai_bhardwaj 31-10-2010 11:13 PM

मुझे वह सर्द रात याद है जब तुम मेरे सपनों में आयीं
नयी नयी दुल्हन की तरह शर्माते हुए मेरी बाहों में समायीं
मैंने चूमे तुम्हारे रक्तिम कपोल और दोनों गुलाबी अधर
सहलाने चाहे तुम्हारे केश, तो हीटर से 'जय' उंगलियाँ जलायीं

jai_bhardwaj 31-10-2010 11:20 PM

मेरा जन्म दिन मनाईये , शौक से ऐ दुश्मनों !
आखिर मेरी ज़िन्दगी से एक साल कम हुआ है /
खुश हो लो 'जय' , शोहरत से मेरी जलने वालों
आखिर तुम्हारे नाम से गुमनाम कम हुआ है //

jalwa 31-10-2010 11:28 PM

Quote:

Originally Posted by bhaaiijee (Post 8169)
मेरा जन्म दिन मनाईये , शौक से ऐ दुश्मनों !
आखिर मेरी ज़िन्दगी से एक साल कम हुआ है /
खुश हो लो 'जय' , शोहरत से मेरी जलने वालों
आखिर तुम्हारे नाम से गुमनाम कम हुआ है //

जन्म दिन मनाएंगे दुश्मन कैसे ?
जब दोस्त ही दोस्त हों महफ़िल में सिर्फ .

हुआ दोस्त जिसका हमारे जैसा...
फिर उसे दुश्मनों की क्या कमी है?

दादा, प्रणाम.

jai_bhardwaj 31-10-2010 11:41 PM

Quote:

Originally Posted by jalwa (Post 8170)
दादा, प्रणाम.


राम राम बीरबल जी /
दिन दूना रात चौगुना तरक्की करो !!
दीपावली का अवसर है अतः अब रात में भी अपना कारखाना चलाया करो .... तभी तो तरक्की मिलेगी //

" वो हथियार ले के चल पड़े, हमारी मौत के लिए /
मेरा दोस्त मर मिटा, 'जय' अपने दोस्त के लिए //"

jalwa 31-10-2010 11:48 PM

Quote:

Originally Posted by bhaaiijee (Post 8175)
राम राम बीरबल जी /
दिन दूना रात चौगुना तरक्की करो !!
दीपावली का अवसर है अतः अब रात में भी अपना कारखाना चलाया करो .... तभी तो तरक्की मिलेगी //

" वो हथियार ले के चल पड़े, हमारी मौत के लिए /
मेरा दोस्त मर मिटा, 'जय' अपने दोस्त के लिए //"

दादा, करने को तो चौबीसों घंटे भी कारखाना चला सकते हैं. लेकिन मैं धन के पीछे ज्यादा नहीं भागता. इसलिए बहुत साधारण तरीके से कार्य करता हूँ.

मेरी किस्मत में गम गर इतना था
दिल भी या रब कई दिए होते

jai_bhardwaj 31-10-2010 11:57 PM

Quote:

Originally Posted by jalwa (Post 8176)
दादा, करने को तो चौबीसों घंटे भी कारखाना चला सकते हैं. लेकिन मैं धन के पीछे ज्यादा नहीं भागता. इसलिए बहुत साधारण तरीके से कार्य करता हूँ.

मेरी किस्मत में गम गर इतना था
दिल भी या रब कई दिए होते

सुन्दर विचार है बीरबल जी !
हृदय गदगद हो गया / धन्यवाद /

"तुम हमारे स्वप्न में आते हो, तो बस मुस्कुराते हो /
क्या गूंगे हो तुम ? नहीं तो मौन क्यों बन जाते हो //"

jalwa 01-11-2010 12:03 AM

Quote:

Originally Posted by bhaaiijee (Post 8180)
सुन्दर विचार है बीरबल जी !
हृदय गदगद हो गया / धन्यवाद /

"तुम हमारे स्वप्न में आते हो, तो बस मुस्कुराते हो /
क्या गूंगे हो तुम ? नहीं तो मौन क्यों बन जाते हो //"



धन्यवाद दादा.
यह सोच कर हम आये, तेरे गुलशन में माही
वो फूलों से चेहरे गुलाबों में मिल गए

jai_bhardwaj 01-11-2010 12:09 AM

Quote:

Originally Posted by jalwa (Post 8183)
धन्यवाद दादा.
यह सोच कर हम आये, तेरे गुलशन में माही
वो फूलों से चेहरे गुलाबों में मिल गए

हम कैसे नामुराद थे जो तुम्हे ढूंढते रहे
हमने अपनी बाजू को क्यों देखा ही नहीं //
'जय' जिनसे कह रहे थे तुम्हे ढूंढ कर लायें
तुम थे उन्ही के पीछे, हमने देखा ही नहीं //

jalwa 01-11-2010 12:10 AM


जान लेनी ही थी तो कह दिया होता
मुस्कराने की क्या जरूरत थी

:)


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