68 वर्ष स्त्रियों की आजादी के
यूँ तो सामंती जकड़नों और स्त्रियों के प्रति पितृसत्तात्मक रूढिवादी मूल्यों की जड़ें आजादी के पहले ही दरकने लगी थीं, लेकिन आजाद भारत में यह और तेजी के साथ टूटी हैं। स्त्रियों ने उन सभी मोर्चों पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है, दो दशक पहले जिसकी कल्पना भी असंभव थी। हालाँकि ये परिवर्तन आँखें मूँदकर सिर्फ गर्व किए जाने के योग्य हों, ऐसा नहीं है। उपलब्धियों का दूसरा चेहरा स्त्री के वस्तुकरण, उसे उत्पाद और भोग की वस्तु बना दिए जाने की शक्ल में भी सामने आया है, लेकिन इससे उपलब्धियों का वजन कम नहीं हो जाता।
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एक नजर आजाद भारत में सूरज की ओर बढते स्त्रियों के कदमों की ओर और उन महिलाओं पर, जिन्हें अपने मुल्क पर और मुल्क को जिन पर नाज है।
अरुँधती रॉय : सामाजिक आंदोलन में सक्रिय प्रख्यात लेखिका, जिन्हें अपनी अविस्मरणीय कृति ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ के लिए बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार की सारी राशि अरूँधति ने ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ को दान कर दी। |
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कुर्रतुल ऐन हैदर :
उर्दू की प्रख्यात लेखिका कुर्तुलऐन हैदर ने साहित्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और ‘आग का दरिया’ और ‘निशांत के सहयात्री’ जैसी कालजयी रचनाओं के रूप में साहित्य को ऐसी विरासत दी, जिसके समकक्ष खड़ा करने लायक दूसरी चीज हम अभी तक नहीं रच पाएँ हैं. कुर्तुल ऐन हैदर नि:संदेह विगत सदी की सबसे महान महिला लेखिका हैं। |
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सोनल मानसिंह :
सोनल मानसिंह ने नृत्य को अपनी साधना बनाया और स्वतंत्र भारत में एक महान नर्तकी के रूप में अपार ख्याति अर्जित की। उन्होंने पूरी दुनिया में एक नृत्यांगना के रूप में अपना स्थान बनाया और अन्य स्त्रियों के लिए ललित कलाओं का क्षेत्र और उन्नत किया। |
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कुंजू रानी देवी :
कुंजू रानी देवी ने 18वें कामनवेल्थ गेम्स में भारत की ओर से 48 किलोग्राम वजन की श्रेणी में पहला स्वर्ण पदक जीता। मार्च 2006 में यह प्रतियोगिता मेलबर्न में अयोजित हुई थी। |
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लता मंगेशकर :
लता मँगेशकर पिछले पाँच दशकों से हिंदुस्तान की आवाज हैं। उन्हें स्वर साम्राज्ञी भी कहते हैं। भारत रत्न और पद्म विभूषण आदि सम्मानों से अलंकृत लता जी ने हिंदी, मराठी, बांग्ला समेत कई भाषाओं में हजारों गीत गाए और कई बार राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हुईं। |
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कोनेरू हम्पी :
महिलाओं की शतरंज खिलाडि़यों की श्रेणी में कोनेरू हम्पी का स्थान विश्व में दूसरा है। इन्होंने मात्र 15 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर का खिताब जीता था। |
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रीता फारिया :
भारतीय स्त्रियों की कला और प्रतिभा के साथ-साथ उनके सौंदर्य की चमक ने भी हिंदुस्तान को पूरी दुनिया में रौशन किया| 1966 में रीता फारिया को पहली भारतीय विश्व सुंदरी होने का गौरव हासिल हुआ। रीता फारिया की राह चलकर आगे बहुत-सी महिलाओं ने अपने सौंदर्य का परचम लहराया। |
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अतिउत्तम मित्र आप भूली-बिसरी यादो को ताजातरीन के लिए धन्यवाद.
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