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-   -   पता नहीं बेटा (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=14656)

ndhebar 31-10-2015 12:40 AM

Re: पता नहीं बेटा
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 556090)
राजनीति में आने वाले लोग किसी न किसी बात से हमेशा परेशान रहते हैं. टिकट न मिले तो परेशानी. चुनाव जीतने पर मंत्री न बनने की परेशानी. मंत्री बन गए तो मनपसंद विभाग न मिलने की परेशानी आदि आदि.

सिर्फ राजनीति में आने वाले ही क्यों, हर कोई किसी न किसी बात से परेशान है.

Pavitra 31-10-2015 03:02 PM

Re: पता नहीं बेटा
 
बहुत बढिया रजनीश जी .....आपका हर एक व्यंग्य लाजवाब है .....

everdeenkatniss257 03-12-2015 08:56 AM

Re: पता नहीं बेटा
 
really nice thread...

dailybazaar 12-01-2016 10:11 AM

Re: पता नहीं बेटा
 
It's a nice thread about joke. I love reading good humor articles. Newspapers used to be great those days.

rajnish manga 17-08-2016 09:36 PM

Re: पता नहीं बेटा
 
पिता जी!

हाँ, बेटा?

दिल्ली के मुख्य मंत्री केजरीवाल जी ने कहा है कि हम दिल्ली में शराब बेचने वाली कोई नई दूकान नहीं खोलेंगे.

हाँ, वह तो है, बेटा. यह भी हो सकता है पुरानी दुकानों को नई जगह शिफ्ट कर दिया जाये.

वह क्यों, पिता जी?

ताकि लोगबाग शराब पीने की बुरी आदत से बच सकें.

लेकिन यह भी तो हो सकता है कि जिस जगह लोगों को शराब प्राप्त करने में दिक्कत होती है, वहाँ मोहल्ला सभा प्रशासन को गाइड कर सकती है?

पता नहीं, बेटा.


rajnish manga 17-08-2016 11:46 PM

Re: पता नहीं बेटा
 
और पिता जी!

हाँ, बेटा?

प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त के अपने भाषण में बलूचिस्तान, गिलगित आदि में मानव अधिकारों के हनन और उनकी आज़ादी का ज़िक्र क्यों किया?

उन्होंने तो पाकिस्तान को आईना दिखाया है, बेटा. वो कश्मीर में आतंक को बढ़ावा दे रहे हैं, तो उनके अपने इलाकों में क्या हो रहा है, इस बारे में भी तो विश्व को मालूम होना चाहिये. बलूचिस्तान की आज़ादी के लिये बलूची नौजवान कमर कसे बैठे हैं. यह हमारी सरकार की ओर से खेला गया एक राजनीतिक दाँव था, बेटा.

लेकिन क्या इससे कश्मीर में जारी खून-खराबा समाप्त हो जायेगा?

पता नहीं, बेटा.


Deep_ 18-08-2016 11:58 AM

Re: पता नहीं बेटा
 
सही कहा । कश्मीर मामला हमारे लिए अधिक संगीन है । बचूलिस्तान की बात कर के हम कश्मीर से मूंह नहीं फेर सकते ।

rajnish manga 26-10-2016 10:10 PM

Re: पता नहीं बेटा
 
उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है

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पिता जी!

हाँ, बेटा?

आज कल उत्तर प्रदेश में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी के दो गुटों में घमासान चल रहा है.

हाँ, बेटा. विधानसभा चुनावों से कुछ पहले ऐसा होना दुर्भाग्यपूर्ण है.

लेकिन पिता जी, देखने में आया है कि इन दिनों उत्तर प्रदेश में अपराध कुछ कम हो गए हैं.

हाँ, बेटा! यह तो अच्छी खबर है.

क्या ऐसा इसलिए तो नहीं कि अपराधियों को समझ ही नहीं आ रहा कि पकडे जाने पर किस खेमे का दामन पकड़ें?

पता नहीं, बेटा.

rajnish manga 08-11-2017 10:15 PM

Re: पता नहीं बेटा
 
नोटबंदी
पिता जी!

हाँ बेटा !

आज नोटबंदी की सालगिरह है.

हाँ बेटा ! आज एक साल बाद इसकी समीक्षा हो रही है जो स्वाभाविक ही है.

पर पिता जी, विरोधी दल वाले आज काला दिवस मना रहे हैं. रोजगार ठप हो गए हैं. छोटे व्यापारी पिस रहे हैं. अर्थ व्यवस्था लड़खड़ा रही है.

हा बेटा, यह तो है. लेकिन प्रधानमंत्री व अन्य मंत्री तो इसे ऐतिहासिक दिवस के रूप में मना रहे हैं और देश को नोटबंदी के फ़ायदे गिनवा रहे हैं. आतंकवाद कम हुआ है. ब्लैक मनी पर लगाम लगी है. हवाला कारोबार बंद हुआ है. अर्थव्यवस्था काले धन के दुष्प्रभाव से मुक्त हो गयी है.

लेकिन पिता जी, क्या आपको पता है कि 8 नवंबर हमारे भूतपूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी का जन्मदिवस भी है जो आजकल बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल का कामकाज देख रहे हैं. आज प्रधानमंत्री मोदी उन्हें मिलने भी गए थे.

नहीं बेटा, मुझे मालूम नहीं था. लेकिन नोटबंदी का आडवाणी जी के जन्मदिन से क्या संबंध है?

पिता जी, कहीं ऐसा तो नहीं प्रधानमन्त्री पिछले साल 8 नवंबर को आडवाणी जी को जन्मदिन का बड़ा उपहार देना चाहते थे?

पता नहीं बेटा !!
**

rajnish manga 10-11-2017 10:09 PM

Re: पता नहीं बेटा
 
फ़िल्म 'पद्मावती' का विरोध
पिता जी!

हाँ, बेटा?

हमारे देश में फ़िल्में रिलीज़ होने से पहले अक्सर फ़साद खड़े हो जाते हैं. ऐसा क्यों? और कभी कभी तो रिलीज़ होने के बाद भी विवाद शुरू हो जाते हैं.

बेटा, बात यह है कि हर किसी को अपनी बात कहने का हक है. अगर किसी को फ़िल्म में दिखाई गई किसी बात से शिकायत होती है तो उसकी बात सुनी जानी चाहिए. यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी के विश्वास या धार्मिक आस्था को चोट न पहुंचे. किसी की भावनाएं आहत न हों.

लेकिन यह समझ में नहीं आता कि फ़िल्म ‘पद्मावती’ का विरोध क्यों हो रहा है? महारानी पद्मावती का तो कोई ऐतिहासिक उल्लेख भी नहीं मिलता. सिर्फ जायसी द्वारा रचे गए सूफ़ी विचारधारा के महाकाव्य ‘पद्मावत’ में उसकी कहानी लिखी गई है. उसे ले कर राजपूत सेना और करणी सेना और कुछ अन्य वर्ग इस रानी के जीवन पर बनने वाली फ़िल्म का विरोध कर रहे हैं. वो कहते हैं कि फिल्म में रानी का किरदार गलत तरीके से चित्रित किया गया है और अलाउद्दीन खिलजी के किरदार को जबरदस्ती महिमामंडित किया गया है. लोग कहते हैं कि पहले फ़िल्म हमें दिखाओ नहीं तो हम फिल्म को रिलीज़ ही नहीं होने देंगे. सिनेमाघरों में आग लगा देंगे. क्या यह दादागिरी नहीं है?

बेटा, चाहे कुछ भी हो पद्मिनी की कहानी राजस्थान के जनमानस में रची बसी है. उसकी एक छवि लोगों में बनी हुई है जो राजपूती गौरव तथा आन बान व शान के अनुरूप है. लोग नहीं चाहते की फिल्म में ऐसा कुछ हो जिससे रानी की इस परंपरागत छवि पर आंच आये.

तो पिता जी, क्या हर फिल्म को दिखाए जाने या न दिखाए जाने का फ़ैसला सड़कों पर किया जायेगा? हिंसा, आगजनी या गुंडों द्वारा मार-पीट से इन मसलों का हल निकाला जायेगा? देश में क़ानून भी तो है. सेंसर बोर्ड भी मौजूद है. अदालतें भी हैं. फिर यह अराजकता क्यों? इस साल जनवरी में भंसाली से जयपुर में हुई मारामारी किस ओर इशारा करती है?

पता नहीं बेटा!


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