My Hindi Forum

My Hindi Forum (http://myhindiforum.com/index.php)
-   Mehfil (http://myhindiforum.com/forumdisplay.php?f=17)
-   -   कम हई महगाई हास्य व्यग कहानी (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=2341)

sagar - 02-04-2011 03:40 PM

कम हई महगाई हास्य व्यग कहानी
 
http://external.ak.fbcdn.net/safe_im...12-224x300.gif
ट्रीं…ट्रीं…अलार्म ने तीसरी बार मेरी “ड्रीम एक्सप्रेस” को रोकने की कोशिश की और मैंने उसे पिछले दोनों बार की तरह इस बार भी चपेट जमाकर उसे चुप कराया और तकिए से मुंह ढंककर वापस अपनी “ड्रीम एक्सप्रेस” शुरू कर दी। अभी मेरी ड्रीम एक्सप्रेस ने गति पकड़नी शुरू की ही थी कि पिताजी ने बाल पकड़कर मुझे उठा दिया। आंखों को मसलकर मैंने नींद से जागने की कोशिश की फिर चार गालियां सुनने के पश्चात ही मैंने मुंह धोया। बाहर बालकनी में चाय का कप और अखबार हाथ में लेकर मैं इधर-उधर झांकने लगा लेकिन रितु, स्वाति, पिंकी, साक्षी कोई नहीं दिखी शायद सब की सब कॉलेज चली गई थी और मैं निखट्टू आज फिर कॉलेज नहीं जा पाया। सामने देखा तो बंदरों की तरह हंसता हुआ मेरा दोस्त बिल्लू दिखाई दिया। सुबह-सुबह बिल्लू की शक्ल देखकर मैं डर गया कहीं आज फिर दिन खराब न हो जाए। तीन सप्ताह पहले सुबह सुबह बिल्लू की ही शक्ल देखी थी और शाम को मेरी शक्ल रूपा के भाइयों ने बिगाड़ दी थी।

sagar - 02-04-2011 03:48 PM

Re: कम हई महगाई हास्य व्यग कहानी
 
आखिर में कोई चारा न बचने के बाद मैंने अखबार की ओर नजरें घुमाना ही मुनासिब समझा और चाय की चुस्कियां लेने लगा। खेल के पृष्ठों से गुजरते हुए जैसे ही व्यापार के पृष्ठ से बचने की कोशिश कर रहा था एक खबर पर नजर ठहर गई। वैसे तो आजकल व्यापार पृष्ठ पढ़ने से भी डर लगता है। वही महंगाई, भाव बढ़े, सोना आसमान पर ग्राहक जमीन पर जैसी खबरें पढ़ने से चाय का स्वाद भी कड़वा हो जाता है। लेकिन आज जो खबर पढ़ी वह तो गजब की थी। खबर पढ़ते ही चाय मीठी लगने लगी। शीर्षक था “महंगाई की दर १७.६० से १४.७५ और खाद्य मुद्रास्फीति १६.९० से १२.९२ प्रतिशत हो गई” नीचे उपशीर्षक था- “महंगाई घटी”। अब हम हैं भारत की रट्टाऊ शिक्षा के पढ़े-लिखे होनहार और हर रट्टाऊ पढ़े-लिखे इंसान का यह कर्तव्य होता है कि भले ही उसे किसी शब्द का अर्थ न पता हो, उसे अर्थ पता होना का दिखावा जरूर करना चाहिए। तभी उसे जीनियस समझा जाता है। जैसे जो बैट और बल्ले के बारे में नहीं जानते है वह भी क्रिकेट के बारे में ऐसे विस्तार से बातें करते हैं जैसे बचपन से क्रिकेट खेलते रहे हों। भले ही वो क्रिकेट में बाइचुंग भुटिया को घुसा देंगे, ध्यानचंद को सचिन का कोच बना देंगे लेकिन बोलना नहीं छोड़ेंगे और धुप्पल में ऐसे लोगों को हां में हां मिलाने भी मिल जाते हैं।

sagar - 02-04-2011 04:05 PM

Re: कम हई महगाई हास्य व्यग कहानी
 
http://external.ak.fbcdn.net/safe_im...y2-300x267.jpg


वैसे तो मझे नहीं मालूम कि ये महंगाई, मुद्रास्फीति की दर कैसे तय होती है, ये तो देश की बाकी जनता भी नहीं जानती लेकिन मैंने बस इतना पढ़ा था कि दर कम हुई है मतलब महंगाई कम हुई है। भले ही महंगाई आंकड़ों में कम हुई हो लेकिन कम तो हुई ना। ये तो जश्न का मौका था भई। लोग वैसे भी आंकड़ों में ही ज्यादा यकीन रखते हैं। आंकड़े ही सत्य हैं। आंकड़ों में लिखा रहे कि ८० प्रतिशत जनता को भोजन मिल रहा है, लोग मान लेंगे भले ही आधे से ज्यादा आबादी रोटी को तरसते रहे। सब आंकड़ों की जादूगरी है, और हम तो जादूगरी पर ही फिदा हैं। अब मुझे पूरी दुनिया को बताना था कि दुखी होने की जरूरत नहीं महंगाई कम हो गई। इसलिए मैं स्नान करने चला गया। चूंकि महंगाई कम हो चुकी थी इसलिए मैंने सस्ते साबुन को तुरंत साबुनदान से निकाल फेंका और महंगे साबुन से स्नान करने लगा। महंगाई के कारण रोज घर पर ही नाश्ता करना पड़ रहा था लेकिन चूंकि आंकड़ों में महंगाई कम हो चुकी थी इसलिए मैं बंगाली स्वीट्स में नाश्ता करने चला गया। समोसों का स्वाद लेते हुए मैंने २ किलो रसगुल्ले का भी आर्डर दे दिया। मुझे खुश देख चटर्जी अंकल ने पूछ ही लिया- “क्या बात है बेटे, आज बहुत खुश लग रहे हो।” मैंने भी चहकते हुए बोला- “बात ही खुशी की है, महंगाई और खाद्य मुदास्फीति दर कम हो गई मतलब महंगाई कम हो गई।” यह बात सुनकर चटर्जी अंकल ने सिर पकड़ लिया। मैंने अखबार दिखाते हुए कहा- “देखिए, अखबार में छपा है।” वे फिर पूछने लगे- “बेटा ये होता क्या है।” मैंने समझाते हुए कहा- “आप खाद्य मुद्रास्फीति नहीं जानते, खाद्य मुद्रास्फीति मतलब फूड इन्फ्लेशन। आप फूड इन्फ्लेशन जैसे अंग्रेजी और व्यावसायिक शब्दों से दूर हैं इसलिए तो आज के आधुनिक ग्राहक आपकी इस पुरानी खंडहर होटल से दूर हैं। ऐसे शब्दों को जानना बहुत जरूरी है नहीं तो आप पिछड़े कहलाएंगे और पिछडे लोगों को कोई आदर नहीं देता। हो सकता है मैं भी कल आपके इस होटल में नाश्ता करना बंद दूं।” मेरे शार्ट एंड स्वीट प्रवचन की घुड़की पीकर अंकल को ज्ञान आ आ चुका था। वे बोले-”बेटा मैं समझ गया फूड इन्फ्लेशन क्या है,

sagar - 02-04-2011 04:10 PM

Re: कम हई महगाई हास्य व्यग कहानी
 
http://external.ak.fbcdn.net/safe_im...la-300x225.jpg
मैं भी तो पढ़ा-लिखा हूं। मैंने कहा- क्योंकि खाद्य मुद्रास्फीति का दर कम हो गया है, आपको मिठाइयां के दाम कम कर देने चाहिए।” मैंने २ किलो रसगुल्ले लिए और चटर्जी अंकल को उनके हाल पर छोड़कर चला आया।

sagar - 02-04-2011 04:13 PM

Re: कम हई महगाई हास्य व्यग कहानी
 
अब मैंने अपने ज्ञान का प्रसार सबको करने की सोची। सामने से शर्मा आंटी आती दिखाई दी। मैंने रसगुल्ला देते हुए कहा,”लीजिए मिठाई खाइए आंटी, महंगाई कम हो गई है।” आंटी ने पूछा- अरे पागल बाजार में आग लगी है, सब्जी-टमाटर पहुंच के बाहर हैं, फलों का नाम लेने पर भी पैसा लग जाता है और तू कह रहा है महंगाई कम हो गई। मैं समझाते हुए बोला- “देखिए, अखबार में लिखा है फूड इन्फ्लेशन रेट कम हो गई मतलब यही हुआ न कि महंगाई कम हो गई।” आंटी चकराकर बोली- “ये फूड इन्फ्लेशन रेट क्या बला है।” मैंने चौंकते हुए पूछा,”आपको फूड इन्फ्लेशन रेट नहीं पता। आज नारी सशक्तिकरण का जमाना है। ग्लोबलाइजेशन है। नारी ज्ञान देने वाली है, पढ़ाई और नौकरियों में नारी ही आगे है और आप पूछ रही हैं फूड इन्फ्लेशन रेट क्या है? आप आधुनिक नारी नहीं हैं, तभी तो इस मोहल्ले में आपकी बखत नहीं है। २ साल पहले ही मोहल्ले में आई सोफिया आंटी आपसे ज्यादा आधुनिक और एजुकेटड हैं।” अब आंटी की “इमेज” का सवाल था। वह बोली- “जानती हूं ना। मैं तो ऐसे ही पूछ रही थी।” मैंने कहा- तो अब आप मानती हैं न कि फूड इन्फ्लेशन रेट १६.९० से १२.९२ पर आ गया, मतलब महंगाई कम हुई ना। तो फिर जाइए जश्न मनाइए। पकवान बनाइए, दोपहर के खाने के लिए मुझे आमंत्रित कीजिए क्योंकि मैंने ही आपको ये खुशखबरी दी है और आधुनिकता का पाठ भी पढ़ाया है।

sagar - 02-04-2011 04:18 PM

Re: कम हई महगाई हास्य व्यग कहानी
 
http://external.ak.fbcdn.net/safe_im...7%2Fdrunk3.gif

अपने दोपहर के भोजन का इंतजाम कर मैं आगे बढ़ा और ऐसे व्यक्ति को ढूंढने लगा जिसे मैं अपना ज्ञान बघार सकूं। चौक पर महंगाई की मार से पूरी ताकत से लड़ने वाले जांबाज “बेवड़ों” को देखा। इनकी जिद को मैं सलाम करता हूं। चाहे कितनी भी महंगाई आ जाए, कुछ भी हो जाए इनके कोटे में कोई कमी नहीं आती। महंगाई कितना ही फुंकार मारे ये वीर एक बोतल दारू धकेलकर उसका फन कुचलने को आतुर रहते हैं। मैं ऐसे लड़ाकों से बात करना चाहता था। मैं पास गया और बोला कि बधाई हो महंगाई कम हो गई। ये लीजिए रसगुल्ला खाइए। उन बेवड़ों ने अपनी नशीली आंखों से मुझे देखा फिर डोलते हुए पास आए और बोले- “महंगाई क्या है भई। हमको तो नही मालूम। हम तो पहले भी दिन में चार बार टुन्न हुआ करते थे और अब भी होते हैं और आगे भी होते रहेंगे। आओ तुम भी महंगाई का सामना करो। ये क्या रसगुल्ला खिला रहे हो यार कोई नमकीन-वमकीन हो तो बताओ, हमारा चखना खत्म हो गया है।” मैंने पीछे हटते हुए कहा- मैं रसगुल्ला बांटकर ही तो महंगाई कम होने का जश्न मना लूंगा। आप लोग लगे रहिए। जाकर बंगाली होटल से नमकीन ले लीजिए उसने रेट कम कर दिए। इतना सूनते ही सभी बेवड़ों ने दौड़ लगा दी।

sagar - 02-04-2011 04:35 PM

Re: कम हई महगाई हास्य व्यग कहानी
 
उन पियक्कड़ों से किसी तरह पीछा छुड़ाया। मैंने तय कर लिया आइंदा किसी बेवड़े को छेडऩे की हिम्मत नहीं करूंगा। उनकी साधना में मैं विघ्न नहीं डालूंगा वरना अपनी साधना में ये लोग मुझे भी जबर्दस्ती शामिल कर लेंगे। इतनी भागदौड़ के बाद मुझे घर की याद आई। घर जा ही रहा था कि सामने से साक्षी आते दिखी। मुझे देखते ही बोली- “क्या बात है, आज बहुत रसगुल्ला बांट रहे हो। अब महंगाई कम हुई ही है तो चलो फिल्म चलते हैं। तुम ही तो मोहल्लेभर में ढिढोरा पीटते फिर रहे हो कि महंगाई कम हो गई और अब फिल्म का नाम लिया तो शक्लें बना रहे हो।” मैंने सोचा फिल्म मतलब केवल फिल्म ही नहीं साथ में रेस्टारेंट में जेब कटवाना आदि-इत्यादि और अगर साथ में लगेज(सहेली) भी हुई तो डबल खर्चा। जेब में हाथ डाला तो जेब ठंडा था। फिर याद आया परसो ही तो पापा की दी पॉकेट मनी साक्षी पर उड़ा दी थी। सब्जी लाने के लिए दिए गए पैसों से गोलगप्पे खाए थे। अब अगर और पैसा मांगा तो घर में उल्टा टांग दिया जाऊंगा। जिस तरह अफसर जनता के लिए आबंटित पैसों को अपने ऊपर उड़ाते हैं उसी भ्रष्टाचार धर्म का पालन करते हुए मैंने भी अपने घर के सब्जी, किताबें, पंखे, कपड़े, राशन आदि के लिए आबंटित पैसों को साक्षी पर उड़ाया था। पिछले ही महीने मेरे इस भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हुआ था इसलिए मैं इन्वेस्टीगेशन आफिसर (पापा) की नजर में था। और पैसे मांगने की हिम्मत नहीं थी। मैंने जेब में फिर हाथ डाला तो कुछ गर्माहट का अहसास हुआ शायद ५०-१०० रुपए थे। मैंने किसी तरह उसे घर रवाना कर अपने जेब कटने से बचाया। उसे क्या पता महंगाई कम होने का जश्न मना रहा मैं खुद महंगाई से पीड़ित हूं। खैर उस दिन इन आंकड़ों ने अपनी जादूगरी दिखा ही दी और मेरे मोहल्ले मे महंगाई कम हो गई। सरकार ने तो आंकड़ों में महंगाई की थी लेकिन मैंने अपनी विलक्षण दिमागखाऊ प्रतिभा से असलियत में कर दिया। अपने मोहल्लेवालों का दिमाग खाकर मैं ऊब चुका हूं, मुझे बदलाव चाहिए। बचके रहिएगा, मैं आपका भी दिमाग खा सकता हूं और महंगाई कम हुई का नारा लगाते हुए आपके शहर में धमक सकता हूं।

Bholu 02-04-2011 05:03 PM

Re: कम हई महगाई हास्य व्यग कहानी
 
बेस्ट कर रहे हो मोटा भाई

VIDROHI NAYAK 02-04-2011 06:41 PM

Re: कम हई महगाई हास्य व्यग कहानी
 
अत्यंत सुन्दर सूत्र !

ndhebar 02-04-2011 07:53 PM

Re: कम हई महगाई हास्य व्यग कहानी
 
मजा आ गया
और हाँ ये आंकड़ों का खेल मेरी भी समझ से बाहर है


All times are GMT +5. The time now is 06:59 AM.

Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.