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bindujain 15-06-2013 06:46 PM

पर्दे के पीछे नर्क की जिंदगी जीते हैं टीवी 
 
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नई दिल्*ली. हाल ही में टेलीविजन कलाकार अबीर गोस्*वामी की हार्ट अटैक से मौत के बाद टेलीविजन की ग्*लैमरस दुनिया के पीछे की स्*याह हकीकत के बारे में तमाम तरह की बातें सामने आई हैं। काम के अधिक घंटे, टेलीविजन सेट्स के आसपास गंदगी, खराब खाना, तनाव जैसी समस्*याओं के बारे में कई कलाकारों ने खुलकर बोला है। वरिष्*ठ टेलीविजन कलाकार रोनित राय ने तो एक इंटरव्*यू में यहां तक कह दिया कि वे लोग बेहद दयनीय स्थिति में काम कर रहे हैं। अगर स्थिति अच्*छी होती तो शायद हम अबीर जैसे युवा कलाकार को नहीं खोते। उनकी इस बात से अधिकतर टीवी कलाकारों ने सहमति जताई है। जाने-माने कलाकार हितेन तेजवानी ने कहा है कि काम के अधिक घंटे कलाकारों की जिंदगी को तबाह कर रहे हैं। 14-16 घंटे तक शूटिंग करना उनकी मजबूरी है। वहीं, टेलीविजन का चर्चित चेहरा राखी सावंत का कहना है कि सेट्स को साफ-सुथरा रखने में कलाकारों को सहयोग करना चाहिए। लेकिन, उन्*होंने भी यह कहा कि कुछ प्रोड्यूसर पैसा बचाने के लिए सेट्स पर खराब खाने की सप्*लाई करते हैं।

bindujain 15-06-2013 06:48 PM

Re: पर्दे के पीछे नर्क की जिंदगी जीते हैं टीवी
 
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ऑडिशन देने में बीत जाती है जिंदगी

माया नगरी मुंबई में किस्*मत आजमाने के लिए हर रोज सैकड़ों युवा आते हैं। कुछ टीवी के ग्*लैमर से प्रभावित होकर तो कुछ अपनी कला को दिखाने के लिए यहां आते हैं। कुछ इसे पैसा कमाने का अड्डा मानते हैं और घर-परिवार छोड़कर माया नगरी आ जाते हैं। लेकिन, वर्षों तक ऑडिशन देते रहने और काम की तलाश करने के बाद अधिकतर लौट जाते हैं। कुछ गुमनाम जिंदगी जीने लगते हैं। विरले परदे पर दिख पाते हैं। यही है माया नगरी की पूरी जिंदगी। यह कहना है राष्*ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्*ली से डिप्*लोमा करने के बाद किस्*मत आजमाने मुंबई गईं एक कलाकार सरवानी (बदला हुआ नाम) का। उनका कहना है कि इस इंडस्*ट्री में अगर कोई अपना नहीं है तो आपकी पूरी जिंदगी ऑडिशन देने में बीत जाएगी। इस रंगीन दुनिया के पीछे एक नरक है, जहां इंसान को इंसान नहीं समझा जाता। पूरी इंडस्*ट्री यूनियन और गुटों में बंटी हुई है, लेकिन कलाकारों के लिए कहीं कोई जगह नहीं है। केवल आर्ट डिपार्टमेंट में तीन से चार यूनियन हैं, जो सदस्*यता के नाम पर मोटी रकम की वसूल करते हैं। उन्*होंने बताया कि एक यूनियन सिने और टेलीविजन आर्ट साल 2010 में सदस्*यता के लिए डोनेशन के नाम पर 51 हजार रुपये लेती थी। इसी तरह मनसे नामक यूनियन में सदस्*यता के लिए 10 हजार रुपये तक देने होते हैं। उनका कहना है कि ये सारी यूनियन्स नए कलाकारों से पैसा तो लेती हैं, लेकिन उनके कल्*याण के लिए कुछ नहीं करतीं।

bindujain 15-06-2013 06:51 PM

Re: पर्दे के पीछे नर्क की जिंदगी जीते हैं टीवी
 
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अड्डे पर रोज लिखी जाती है किस्*मत

टेलीविजन इंडस्*ट्री में सालों तक संघर्ष करने के बाद एक मुकाम हासिल करने की चाह रखने वाले अधिकतर कलाकारों की किस्*मत इस अड्डे पर लिखी जाती है। अंधेरी में इन्फिनिटी मॉल के सामने बने इस अड्डे पर हर रोज सैकड़ों कलाकार और टेक्*नीशियन मिलते हैं और अपनी किस्*मत लिखते हैं। वे इस उम्*मीद से लबरेज होते हैं कि एक दिन उन्*हें कोई सही आदमी मिलेगा और उनकी किस्*मत बदल जाएगी। सरवानी बताती हैं कि ये कलाकार वे सब कुछ करते हैं जो एक इंसान कर सकता है, लेकिन अधिकतर किसी छोटे विज्ञापन या किसी सीरियल में एक छोटी भूमिका हासिल करने से अधिक कुछ नहीं हासिल कर पाते।

bindujain 15-06-2013 06:52 PM

Re: पर्दे के पीछे नर्क की जिंदगी जीते हैं टीवी
 
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शूटिंग स्*थल पर दुर्घटना आम

मुंबई में करीब चार साल तक टेलीविजन की दुनिया की खाक छानने के बाद इन दिनों दिल्*ली में एक रिसर्च एजेंसी के साथ काम कर रहे राकेश जोशी (बदला हुआ नाम) का कहना है कि टेलीविजन प्रोडक्*शन की दुनिया की सबसे बड़ी समस्*या वहां पर किसी अनहोनी से निपटने के लिए किसी भी तरह के इंतजाम का नहीं होना है। उनका कहना है कि आमतौर पर सभी प्रमुख टेलीविजन चैनल अपने कार्यक्रम किसी न किसी प्रोडक्*शन हाउस से बनवाते हैं। इन प्रोडक्*शन हाउसों का एक मात्र मकसद कम से कम पैसे में प्रोडक्*शन कर चैनल द्वारा दिए गए पैसे में से अधिक से अधिक की बचत करना होता है। पैसे बचाने के लिए वे अक्*सर शहर से बाहर दूर-दराज के इलाके में सेट्स लगवाते हैं, जहां पर आग लगने की स्थिति में तत्*काल न तो फायर ब्रिगेड की गाडि़यां पहुंच सकती हैं, न ही किसी दुर्घटना की स्थिति में घायलों को जल्*दी अस्*पताल पहुंचाया जा सकता है। उन्*होंने बताया कि शूटिंग के दौरान अक्*सर छोटी-बड़ी दुर्घटना होती है। इस बारे में सरवानी ने अपनी टीम के साथ शूटिंग के दौरान अहमदाबाद में घटी एक घटना का जिक्र किया। उन्*होंने बताया कि शूटिंग के बाद आर्ट डिपार्टमेंट के मजदूर पुल को साफ कर रहे थे। इसी दौरान शॉर्ट सर्किट के कारण पुल में बिजली आ जाने के कारण एक मजदूर की मौके पर मौत हो गई। उन्*होंने बताया कि दो साल बीत जाने के बावजूद उसके परिवार को आज तक पूरा मुआवजा नहीं मिला है। कुछ ही दिन बाद उसी कंपनी के एक दूसरे सेट पर एक और सीनियर इलेक्*ट्रीशियन की मौत हो गई।

bindujain 15-06-2013 06:52 PM

Re: पर्दे के पीछे नर्क की जिंदगी जीते हैं टीवी
 
http://i7.dainikbhaskar.com/thumbnai...14/8874_p6.jpg

दबंगई और भ्रष्*टाचार के गिरफ्त में हैं कलाकार

जोशी का कहना है कि प्रोडक्*शन हाउसों की पूरी व्*यवस्*था पूरी तरह से दबंगई वाली होती है। प्रोडक्*शन मैनेजर कलाकारों के साथ पूरी तरह से एक ठेकेदार की तरह पेश आता है। उसका मुख्*य काम तमाम समस्*याओं के बीच किसी भी तरह अपने शो का प्रोडक्*शन पूरा करवाना होता है और इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है। वह कलाकारों के साथ जोर-जबरदस्*ती करने के अलावा उन्*हें भुगतान नहीं करने तक की भी धमकी देता है। जोशी ने कहा कि अगर आप स्*टैबलिश कलाकार नहीं हैं तो आपको प्रोडक्*शन मैनेजर की हां में हां मिलानी ही होगी। जोशी टेलीविजन सेट्स पर गंदगी, खराब खाना, सुरक्षा में लापरवाही जैसी सभी समस्*याओं के लिए प्रोडक्*शन मैनेजर को जिम्*मेदार मानते हैं। उनका कहना है कि मुंबई में रहते समय उन्*हें करीब सभी प्रमुख प्रोडक्*शन हाउसों के अलग-अलग लोकेशन पर जाने का मौका मिला, लेकिन कहीं भी ऐसी स्थिति नहीं दिखी, जिसे संतोषजनक माना जाए। उन्*होंने बताया कि ऐसा नहीं है कि प्रोडक्*शन मैनेजर के पास व्*यवस्*था के लिए पैसे नहीं होते, बल्कि अधिकतर मैनेजर छोटे-छोटे कामों के लिए मंजूर बजट का एक बड़ा हिस्*सा अपनी जेब में डालते हैं।

bindujain 15-06-2013 06:53 PM

Re: पर्दे के पीछे नर्क की जिंदगी जीते हैं टीवी
 
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रोजगार का है जरिया, लेकिन असंतुष्*ट हैं कलाकार

इस बारे में कई फिल्*मों और सीरियलों में काम कर चुके कलाकार रवि भूषण भारतीय की राय थोड़ी अलग है। उनका कहना है कि टेलीविजन सीरियल और फिल्*म अलग-अलग विधा है। फिल्*मों में जहां पूरी कहनी को तीन घंटे में समेटने की चुनौती होती है, वहीं टेलीविजन सीरियल में कुछ मिनट की कहानी को पूरे एपिसोड तक खींचना होता है। दोनों चीजों के बीच कोई तुलना ही नहीं है। आज की तारीख में एक सामान्*य फिल्*म का बजट करोड़ों में होता है, वहीं सीरियल का बजट बहुत कम है। ऐसे में सुविधाओं और शूटिंग स्*थल की कमियों और अच्*छाइयों को लेकर दोनों की तुलना उचित नहीं है। उनका कहना है कि सीरियल के पीछे की कथित काली दुनिया की आलोचना करने के बजाय हमें यह देखना चाहिए कि स्*ट्रगल कर रहे कलाकारों को टेलीविजन सीरियल से कितनी राहत मिली है। कुछ साल पहले तक काम नहीं मिलने के कारण फिल्*मों में किस्*मत आजमाने आए कलाकारों की स्थिति बेहद खराब रहती थी, लेकिन आज ऐसे कलाकारों के लिए सीरियल एक तरह की नौकरी है। उनके सामने आज घर चलाने की समस्*या नहीं है। कार्य स्थल की स्थिति के बारे में उनका कहना है कि निश्चित तौर पर सेट्स पर उपलब्*ध सुविधाएं बेहतर नहीं होतीं, लेकिन इसके लिए कलाकारों को खुद इंतजाम करना चाहिए।

bindujain 15-06-2013 06:53 PM

Re: पर्दे के पीछे नर्क की जिंदगी जीते हैं टीवी
 
http://i7.dainikbhaskar.com/thumbnai...14/8879_p7.jpg

इंडस्*ट्री में पैसे की नहीं है कमी

पिछले कुछ सालों में देश का मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्*ट्री ने शानदार विकास किया है। फिक्*की-केपीएमजी मीडिया एंड एंटरटेनमेंट 2013 रिपोर्ट के मुताबिक बीते साल 12.6 फीसदी के विकास के साथ यह 820 अरब रुपये की इंडस्*ट्री बन गर्इ। अगले पांच साल में इसके करीब 1700 अरब रुपये की इंडस्*ट्री हो जाने की संभावना है। सवाल यह है कि इंडस्*ट्री में इतना पैसा होने के बावजूद कलाकारों की स्थिति इतनी दयनीय क्*यों है? इंडस्*ट्री के जानकारों का कहना है कि कमाई के मामले में कलाकारों की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन इस इंडस्*ट्री की जरूरतों को देखते हुए कलाकारों को अत्*यधिक काम और तनाव से मुक्*त करना मुश्किल है। उनके मुताबिक यदि कोई कलाकार किसी सीरियल में मुख्*य भूमिका निभा रहा है तो उसे हर रोज की शूटिंग पूरी करनी होगी। ऐसा नहीं होने पर सीरियल का प्रसारण प्रभावित हो सकता है। उनका कहना है कि आज कलाकारों को 50 हजार रुपये प्रति एपिसोड तक के हिसाब से भुगतान किया जा रहा है, जो अन्*य प्रोफेशन्स की तुलना में बेहतर है। टेलीविजन कलाकारों की तुलना फिल्*मी सितारों से करना उचित नहीं है।


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