Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
“इन शब्दों के ज़रिये राजकुमारी यह जानना चाहती थी कि क्या मेरे होंटों के ऊपर मूछें आने लगी हैं या नहीं (क्योंकि मसें फूटना या मूछें आना युवावस्था के आगमन की निशानी है) और क्या मैं वाकई एक योग्य नौजवान हूँ. राजकुमारी ने जताया था कि यदि मैं एक नौजवान हूँ तो मेरा स्वागत है अन्यथा मैं जा सकता हूँ. यही मेरी दास्तान है महाराज.”
“यह तो तुम हमें पहले दिन ही बता सकते थे, जब तुम्हें हमने दरबार में बुलवाया था?” राजा ने नौजवान से पूछा. “महाराज, राजकुमारी की इच्छानुसार मैंने इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया था. उस दिन राजकुमारी ने अपनी दासी को भेजा जिसने एक रूमाल में गाँठ बाँध कर मुझे कुछ भी बोलने से मना कर दिया था.” “लेकिन दूसरे दिन भी तुम मौन रहे और कोई उत्तर नहीं दिया. क्यों?” “पहले की तरह दूसरे दिन भी राजकुमारी ने अपनी दासी को भेजा, जिसने एक छुरी से संतरे को दो हिस्सों में काट कर मुझे यह सन्देश देने की कोशिश की कि मैं अपनी जुबां बंद रखूँ चाहे मेरा सिर धड़ से अलग कर दिया जाए. आज सुबह जब मैं दरबार की ओर आ रहा था तो मैंने राजकुमारी की दासी को देखा जिसने अपने सिर पर पानी से भरा घड़ा रखा हुआ था. जब मैं उसके निकट पहुंचा तो दासी ने घड़े को जमीन पर दे मारा जिसे बह टुकड़े टुकड़े हो गया और उसका पानी चारों ओर बिखर गया. इस तरह राजकुमारी मुझे यह सन्देश देना चाहती थी कि अब मैं आपके सामने भरे दरबार में सारे घटनाक्रम का ‘भांडा फोड़’ सकता हूँ अर्थात सारा रहस्य बता सकता हूँ. इस घटना के कुछ दिन बाद ही राजकुमारी और उस नौजवान की शादी बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हुयी. ***** |
Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
आज हमें परिवार, समाज और अपने आसपास पारख साहब जैसे लोगों की बड़ी कमी महसूस होती है जो अपनी समझदारी, अनुभव तथा हाजिर जवाबी से वातावरण को खुशनुमा तथा जीवंत बना देते हैं. उनकी सादगी, उनकी हँसी, उनकी जीवन्तता व उनका आत्म-अनुशासन कम देखने को मिलता है. उन जैसे लोग अब क्यों नहीं मिलते? उनको याद करते ही हमारे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है.
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