पारख साहब के दिलचस्प किस्से
पारख साहब के दिलचस्प किस्से
किस्से का नाम सुनते ही आपको कुछ नाम तत्काल याद आ जाते हैं जैसे किस्सा तोता मैना, किस्सा गुल बकावली, किस्सा रूप-बसंत आदि आदि. कुछ ऐसे महापुरुषों के नाम भी याद आ जायेंगे जिनके नाम से भी अनेकों किस्से सुनाये जाते हैं. इनमे से प्रमुख हैं - मुल्ला नसरुद्दीन, बीरबल, तेनाली राम आदि. मित्रो, आपके परिवार में, बुजुर्गों में, मिलने वालों में, स्कूल या कॉलेज फेकल्टी में, दफ्तर में भी ऐसे महाशय मिल जायेंगे जिनके पास किस्से-कहानियों का न ख़त्म होने वाला भंडार होता है. यदि ये किस्से दिलचस्प होने के साथ साथ शिक्षाप्रद भी हों तो कहना ही क्या? मेरे दफ्तर में भी पारख साहब नाम के एक अधिकारी थे जिन्होंने स्टाफ को भरपूर प्यार भी दिया, ट्रेनिंग भी दी और तुरत बुद्धि से किसी भी परिस्थिति के अनुरूप किस्से कहानियां सुना कर व्यवहारिक ज्ञान भी बाँटते रहे. स्टाफ भी उन्हें हार्दिक प्यार व इज्ज़त देता था. कभी कोई नाराज हो भी गया तो तुरत फुरत उसकी नाराजगी दूर करने में भी माहिर थे. हमारे पारख साहब जो किस्से कहावतें सुनाते, हम उन्हें कलमबद्ध कर लिया करते. उन्हीं किस्सों में से चंद आपकी सेवा में हाजिर हैं. |
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(खब्ती बाप)
तीन चार दिन पहले कोई बात चली तो पारख साहब ने यह किस्सा सुनाया:- एक बाप ने अपने होनहार बेटे को अच्छी तालीम दी और बड़ा होने पर वकालत करवाई. एक दिन बेटा अपने कुछ मित्रों के साथ अपने कमरे में बैठा हुआ था जहाँ चारों ओर अलमारियों में क़ानून की मोटी मोटी पोथियाँ सजी हुयी थीं. कमरे का दरवाजा भिड़ा हुआ था. अचानक उधर से उसका बाप आ निकला. उसने दरवाजे को थोड़ा सा खोल कर अन्दर बैठे लोगों को देखना चाहा. एक क्षण में ही उसने दरवाजा पूर्ववत बंद कर दिया. तभी उसके कानों में यह शब्द सुनाई पड़े, “यह कौन है, भाई?” लड़के के मित्रों ने लड़के से पूछा. “है एक खब्ती.” लड़के ने जवाब दिया. बाप ने यह वार्तालाप सुन लिया. उसका मन आश्चर्य, ग्लानि और क्रोध से भर गया. अब वह पूरा दरवाजा खोल कर अन्दर आ गया और चारों ओर अलमारियों में लगी किताबें बड़े गौर से देखते हुए बोला, “हम ये सारी किताबें काबिले ज़ब्ती समझते हैं कि जिनको पढ़के बेटे बाप को खब्ती समझते हैं.” (उक्त शे’र अकबर इलाहाबादी का है) (21/10/1976) |
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जंगली पौधे और शहरी पौधे
कल पारख साहब ने एक किस्सा सुनाया. आज कल हमारे दफ्तर में रंग-रोगन का काम चल रहा है. झाड़ – पोंछ – रगड़ाहट की वजह से काफी धूल उडती रहती है जिसके कारण वहां बैठे रहना दुश्वार हो जाता है. बात बात में मैंने कहा कि कल परसों से इस धूल के कारण मेरा गला खराब हो गया है तो उन्होंने मुझसे यह कहा कि ये जो मजदूर काम कर रहे हैं, इनकी ओर तो देखो, इनका तो यह पेशा है. इस पर मैंने कहा कि चूना मिली धूल का जो असर हम पर होता है कुछ न कुछ तो इन पर भी होता होगा. यह बात दूसरी है कि आदतवश या मजबूरी में यह लोग सहन कर लेते हैं. इस पर पारख साहब ने निम्नलिखित किस्सा सुनाया:- एक बार एक राजा जंगल में शिकार खेलने गया हुआ था. जंगल में वह अपने साथियों से बिछड़ गया और एक लक्कड़हारे की झोंपड़ी में पहुँच गया. लक्कड़हारे की बीवी ही उस समय झोंपड़ी में थी और लक्कड़हारा काम पर गया हुआ था. लक्कड़हारे की पत्नि प्रसव में थी. राजा ने देखा कि बच्चे के प्रसव के बाद उठ कर अपने काम काज में लग गई. राजा के मन पर इस घटना का बड़ा भारी असर हुआ. उसकी रानी भी गर्भवती थी और शिशु को जन्म देने वाली थी. उस घटना से प्रभावित राजा ने यह आज्ञा दी कि कि कोई वैद्य व हकीम रानी की देखभाल करने के लिए नहीं बुलाया जाएगा. किसी प्रकार की सुगंधि तथा वैभव रानी के पास तक नहीं जाने चाहिए. उसके मन में यह विचार था कि यदि जंगल में एक स्त्री बिना किसी की सहायता के और बिना किसी देखभाल के अपने बच्चे को जन्म दे सकती है तो रानी क्यों ऐसा नहीं कर सकती? इसके लिए ये सारा दिखावा क्यों? दो चार दिन तक यह क्रम चलता रहा. राजा के प्रधानमंत्री भी सोच में पड़ गए. क्या किया जाए? राजा को समझाना आसान नहीं था. खैर उन्होंने मन ही मन कुछ निश्चय किया. उन्होंने शाही वाटिका में काम करने वाले मालियों को कह दिया कि वे लोग अब से पौधों में और गमलों में दो तीन दिन पानी न डालें. ऐसा ही किया गया. एक दिन राजा शाही वाटिका में घूमने के लिए आये. उन्हें यह देख कर बड़ा अहंभा हुआ कि फूलों वाले सभी पौधे मुरझा गए हैं. उनकी डालियाँ कुम्हला गई थीं. उन्होंने अपनी बगल में चल रहे प्रधान मंत्री की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा. प्रधानमंत्री राजा का आशय समझ कर बोले, “महाराज, जंगल में पौधों को कौन पानी डालता है? और कौन उनकी देखभाल करता है? कोई नहीं.लेकिन वे फिर भी फलते फूलते रहते हैं. तो इन पौधों को देख भाल की या मालियों की जरूरत क्यों हो? महाराज प्रधान मंत्री की बात का मर्म समझ कर मुस्कुरा दिए और उन्होंने अपनी जिद छोड़ दी. (29/10/1976) |
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गलत लिफाफा बनाम दुल्हे राजा
कल शाम की बात है. बनवारी जी डिस्पैच चढ़ा कर पारख साहब से चैक करवा रहे थे.एक पत्र के ऊपर लिफाफा गलत लग गया तो पारख साहब ने वो कहानी सुना दी जिसके अनुसार एक युवक की लड़कपन में ही शादी हो जाती है और युवावस्था में वह अपनी ससुराल आता है. इधर न तो वो ही ससुराल में किसी को जानता था न उसे लेने आये हुए लोग ही उसे पहचानते थे. सब उलट पलट हो गया.हुआ यह कि वह तो उस पते पर पहुँच गया जो उसके पास नोट किया हुआ था. थोड़ी देर में वो लोग भी आ पहुंचे जो कुंवर जी को (यानि उसे) लेने रेलवे स्टेशन गए थे. लेकिन वो लोग खाली हाथ नहीं आये थे. कुंवर जी को लिवा लाये थे. हुआ यह कि अनभिज्ञता में वह किसी और को ले आये थे. भारी समस्या उठ खड़ी हुयी जिसे बड़े कौशल से लेकिन मुश्किल से सुलझाया जा सका. (03/11/1976) |
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आपकी डायरी के इन अनमोल पलों के बलिहारी। कृपया ज़ारी रखें। :egyptian:
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Quote:
सूत्र पर विजिट करने के लिए और प्रशंसा के अनमोल शब्दों के लिए आपका धन्यवाद, अलैक जी. डायरी लिखने का सुख या उससे प्राप्त होने वाले आत्म-संतोष को एक डायरी लिखने वाला ही जान सकता है. इन किस्सों को जारी रखने का प्रयास करूंगा. |
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मस्त रहेंगे मस्ती में, आग लगे जी बस्ती में
उक्त कहावत पारख साहब ने सुनाई और हमसे इसका मतलब पूछने लगे. जब हमने कोई उत्तर नहीं दिया तो कुछ क्षणों के बाद अपने आप ही बताने लगे – कुछ लोग इसका यह मतलब लगाते हैं कि ‘बस्ती में चाहे आग लग जाए या कोई और मुसीबत आ जाए, हम तो अपनी मस्ती में मस्त रहेंगे, हमें किसी से कुछ लेना देना नहीं है’. उन्होंने बताया कि उपरोक्त उत्तर ठीक नहीं है, बल्कि इसका मतलब यह है कि बस्ती में चाहे आग लग जाए या अन्य आपदा आ जाए, हम पूरे उत्साह, धैर्य और शक्ति से उस पर काबू पा लेंगे, इसलिए घबराने की कोई बात नहीं है. (04/11/1976) |
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हम रहे ऊत के ऊत
आज पारख साहब ने निम्नलिखित दोहा हमें सुनाया – जवाईं ले गए बेटियाँ, बहुएं ले गयीं पूत, तिरिया जोबन ले गई हम रहे ऊत के ऊत. उन्होंने हमें समझाया कि किस प्रकार आदमी बड़ा होता है, पढ़ाई लिखाई करता है, अपनी शादी करता है, बच्चे पालता है, फिर उनकी भी शादी करता है और फिर मर जाता है. ऐसे जीवन में भी क्या तंत है, क्या रखा है? इस प्रकार का भाव इस दोहे से प्रकट होता है. (4/11/1976) |
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कोई खात मस्त, कोई ख्वात मस्त
आज के इंसान की आत्म-केन्द्रित मनोवृत्ति के बारे में टिप्पणी करते हुए पारख साहब ने निम्नलिखित कविता सुनाई: कोई खात मस्त, कोई ख्वात मस्त, कोई मस्त है जूए में, मालिक तो हैं अपने में मस्त, और गए सब कूयें में. (4/11/1976) |
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उदासी का कारण
उन दिनों पारख साहब मुनि नथमल रचित एक पुस्तक पढ़ रहे थे. इसी पुस्तक से एक प्रसंग उन्होंने हमें सुनाया जो इस प्रकार है – कोई व्यक्ति तो दुःख में से सुख ढूँढता है, और कोई सुख में से दुःख ढूंढ लेता है. एक व्यक्ति की लाटरी निकली. बहुत से लोग बधाई देने पहुंचे. लेकिन इतनी मुबारकबाद मिलने के बाद भी वो भाई ग़मगीन बैठा था. ‘ऐसा क्यों?’ लोगों ने उससे पूछा, “ क्या बात है, इतनी अच्छी खबर सुन कर भी तुम्हें कोई ख़ुशी नहीं हुयी, तुम उदास और गुमसुम बैठे हो.” उसने जवाब दिया, “मैंने दो रुपये खर्च कर के लाटरी के दो टिकट लिए थे. सिर्फ एक टिकट पर ईनाम निकला है, दूसरा तो बेकार चला गया. (30/11/1976) |
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मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक जानकारियाँ हैं बन्धु। हार्दिक धन्यवाद।
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कच्ची मिट्टी की सुराही
‘first impression is the last impression’के विषय में बात चल रही थी तो पारख साहब ने हमें एक कहानी सुनाई जो बकौल उनके उनके पिता ने उनकी शादी से पहले सुनाई थी. इसमें बताया गया है कि पत्नि को जैसा शुरू में बनाओगे वह वैसी ही बन जायेगी. कहानी इस तरह है: किसी जगह एक परिवार में पति – पत्नि, एक बेटा और एक पत्नि रहते थे. घर में पत्नि का राज चलता था. वह जो कह देती, उसमे रत्ती भर भी फेर बदल नहीं हो सकता था. पति की क्या मजाल कि वो चीं-चुपड़ कर जाए. इस वातावरण का बेटी पर भी असर होना स्वाभाविक था. वह भी अपनी माँ की तरह सोचती. जब वह जवान हुयी तो उसके विवाह की चर्चा चलने लगी. जो भी लड़का देखने आता उसकी माँ उससे खुले शब्दों में कह डालती कि यदि मेरी लडकी की हर बात को सर माथे ले कर चलोगे और उसके हुकम को राजा की आज्ञा मान कर काम करो तो उसी हालत में मेरी लडकी तुम से विवाह कर सकती है. बहुत से लड़के आते लेकिन शर्तों को सुन कर और निराश हो कर वापिस चले जाते. खैर, एक युवक को लडकी जंच गई और वह हर शर्त मानने को मान कर शादी के लिए राजी हो गया. यहाँ तक कि उसने लडकी की माँ के कहने पर लिखित में उन शर्तों को पालन करने का वचन-पत्र भी दे दिया. इस लिखा पढ़ी के बाद शुभ मुहूर्त में उन्होंने लड़की की शादी उसी युवक से कर दी. |
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बरात विदा हो कर लड़के के गाँव की ओर चल पड़ी. रास्ता लम्बा था. बैलगाड़ियों व रथों (सजे हुए इक्के तांगे) पर बराती और सामान आदि से लदा हुआ यह काफिला चला जा रहा था. लड़का और लडकी जिस रथ पर चले जा रहे थे उससे पीछे वाली बैलगाड़ी पर सामान लदा हुआ था जिसमे से खड़-खड़ और धड़-धड़ करती बड़ी आवाजे आ रहीं थी क्योंकि सामान ही इस ढंग से लादा गया था कि इधर से उधर और उधर से इधर लुढ़क रहा था. लड़के से यह शोर ज्यादा सहन न हो सका तो उतर कर उस गाड़ी के पास पहुँचा और गाड़ीवान के दो चार हाथ जमा दिए और बोला कि ऐसे सामान बाँधा व लादा जाता है? इतना कह कर वह ओने रथ पर आ कर दुल्हन के साथ बैठ गया. काफिला चलता जा रहा था. चलते चलते युवक को महसूस हुआ जैसे उनका रथ बाहुत धीमी गति से चल रहा हो. उसे पहले झुंझलाहट हुयी, फिर गुस्सा आ गया. उसने आव देखा न ताव, गाड़ी चलाने वाले को दो-तीन झापड़ रसीद कर दिये.
खरामा खरामा काफिला अपने गाँव जा पहुंचा. घर पहुँच कर दूल्हा दुल्हन दोनों को एक अलग कमरे में बिठा दिया गया तो युवक बड़े दयनीय स्वर में अपनी पत्नि से बोला, “देख, मैंने वचन दिया है कि मैं आजीवन तेरा गुलाम बन के रहूँगा और तेरी हर आज्ञा का पालन करूंगा, क्योंकि तू अपने माँ बाप की लाड़ली बेटी है. लेकिन मुझे इतना बता दे कि मुझे किस तरह से आज्ञा पूरी करनी है. हर चीज मुझे अच्छी प्रकार समझा दे ताकि हुकम की तामील में किसी प्रकार की गफलत न होने पाये”. उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसकी पत्नि ने उसे निर्देश देने के स्थान पर उसके पाँव पकड़ लिए और बोली कि मुझे माफ़ कर दीजिये. मैं आपको कोई आज्ञा देने के योग्य नहीं बल्कि मुझे ही अपनी सेवा करने का मौका दीजिये. लड़का शशोपंज में पड़ गया. उसने दोबारा से अपनी बात का मतलब समझाया. युवती ने भी कह दिया कि आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगी. |
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दरअसल, लड़की ने सोचा कि जो आदमी रस्ते में आते हुए बिना बात के गाड़ीवानों को पीट सकता है, वह मुझसे दब कर क्यों रहेगा. वह मुझसे भी वही व्यवहार करने की क्षमता रखता है. आवेश में आ कर वह क्या कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता. इन बातों का लड़की के मन पर गहरा असर हुआ और उसने अपने आपको बदल देने का निश्चय कर लिया. इस प्रकार जीवन की गाड़ी चलने लगी.
कुछ दिन बाद युवक का साला अपनी बहन को लिवाने के लिए आ पहुंचा. यहाँ के ढंग देख कर तो उसकी हैरानी का ठिकाना न रहा. जैसा वह सोच कार आया था, सब कुछ उसका उलट दीख रहा था. किसी तरह की अशांति का नामो निशान तक न था. जब उसने बहन को अपने आने का मकसद बताया तो बहन ने यह बहाना बना कर कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, भाई को वापिस लौटा दिया. उसके भाई ने वापिस आ कर सारी बातें घर में बतायीं कि किस प्रकार उसकी बहन अपने पति की आज्ञा का पालन करती है और कहीं कोई अशांति या क्लेश दिखाई नहीं देता तो उसके माता-पिता दोनों सकते में आ गये. माँ तो अपनी बेटी में आये परिवर्तन की बात सुन कर और बाप अपने दामाद की विजय के विचार से हैरान होते रहे. आखिर बाप से रहा न गया. वह चल पड़ा अपने दामाद से मिलने. वह सोचने लगा कि शायद उसे भी कोई फारमूला मिल जाए. |
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अपनी बेटी के ससुराल में पहुँच कर उसे ऐसा लगा जैसे वह किसी दूसरे लोक में आ गया हो. यहाँ का रंग ढंग देख कर तो उसने अपने दांतों तले उंगली दबा ली. दोपहर के खाने के बाद, ससुर ने दामाद के नज़दीक आ कर पूछा,
“अरे बेटा, यह मैं क्या देख रहा हूँ? तूने तो चमत्कार कर दिया. मैं सोच रहा था कि मेरी बेटी यहाँ पर अपनी आज्ञा चलवाती होगी और तुम गुलाम की तरह उसकी हर आज्ञा का पालन कर रहे होगे. मगर मैं देख रहा हूँ कि मेरी बेटी तेरे इशारों पर नाचती है. ऐसा कैसे हुआ? तुमने ये क्या कर दिया?” दामाद को पहले से ही ऐसे प्रश्न की आशंका थी. वह बोला, “मैंने तो पिता जी, कुछ भी नहीं किया. मैं तो अब भी उसकी हर आज्ञा मानने को तैयार हूँ क्योकि मैंने वचन दिया है”. फिर उसने अपने आदमी को दो सुराही लाने को कहा – एक पुरानी पकी हुयी और दूसरी कच्ची मिट्टी की. जब दोनों सुराही आ गयीं तो दामाद ने उन्हें दोनों हाथों में ले कर फर्श पर गिरा दिया. जिससे दोनों सुराही टूट गयीं. दामाद ने अपने नौकर से कहा कि जाओ और इन दोनों सुराहियों को ले जा कर कुम्हार से ठीक करवा कर ले आये. नौकर थोड़ी देर बाद वापिस आ कर बोला, “हुजूर, कुम्हार ने कच्ची मिट्टी वाली सुराही तो मरम्मत कर के दे दी लेकिन पुरानी सुराही उसने वैसी की वैसी यह कह कर लौटा दी कि नयी वाली सुराही तो मैं एक बार और मरम्मत कर के दे सकता हूँ, लेकिन पुरानी वाली तो अब दोबारा तैयार नहीं कर सकता. उसको तो भगवान ही ठीक कर सकता है”. यह बात ससुर और युवक ने एक साथ सुनी. तदुपरांत, युवक अपने ससुर की ओर देख कर बोला, “सो पिता जी, यही बात हमारे घरों पर भी लागू होती है. आपको एक लम्बी अवधि हो चुकी है, उस वातावरण में रहते हुए और मैंने अभी यात्रा शुरू ही की है और सुधार कर लिया है. आपका तो भगवान् ही मालिक है”. यह सुन कर वृद्ध जाने के लिए उठ खड़े हुए. (30/11/1976) |
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आत्मा की शान्ति के लिए वाह वाह
एक बहुत कंजूस व्यक्ति था.वह जब मरने को हुआ तो उसने अपने बेटे को बुलवा कर कहा, “बेटा, मेरी एक इच्छा तुझे पूरी करनी है. मेरे मरने के पश्चात साधू संतों को बुलवा कर उनसे एक बार वाह वाह जरूर करवा देना. इससे मेरी आत्मा को शान्ति मिल जायेगी. बेटे के हाँ भर लेने के बाद पिता ने प्राण छोड़े. बाप के मरने के बाद बेटे ने बिरादरी के पंडों पंडितों को बुलवाया और उनके समक्ष कहने लगा, “पिता जी का मृत्युभोज करना है,” पंडितजन उत्साहित हो कर बेटे के मुख की ओर देखने लगे. बेटे ने उनसे पूछा कि आप अपनी मन पसंद मिठाइयों और पकवानों का नाम लिखवाइए ताकि मृत्युभोज पर किसी वस्तु की कमी न रह जाए. सबको उसके पिता और उसकी कंजूसी के बारे में तो पता था ही. अतः उन्होंने एक दो सस्ती चीजो का नाम ले दिया. उसने कहा कि मिठाइयों के विषय में बतायें कि क्या बनवाया जाए. किसी ने कहा –बर्फी-, किसी ने कहा –जलेबी-, किसी ने दाल के हलवे की फरमाइश कर दी. और भी कई प्रस्ताव आये. उन सभी को शांत करते हुए उस कंजूस पुत्र ने सूचित किया कि ये सभी खाद्यान्न और मिठाइयाँ देसी घी से बनवाई जायेंगी, और साथ में खीर भी तैयार करवा लेंगे और पूरियां भी. यह सुनते ही सब लोगों की बांछे खिल गयीं. मन में प्रशंसा के भाव आने लगे क्योंकि किसी को इतनी बढ़िया दावत होने की उम्मीद नहीं थी. अतः उपस्थित ब्राहमणों के मुंह से लार टपकने लगी और उनके मुंह से “वाह वाह” की आवाजे निकलनी शुरू हो गयीं. “वाह वाह” की आवाजों को सुनते ही, वह कंजूर पुत्र बोला, “बस बस, मेरे पिता जी की “वाह वाह” वाली इच्छा पूरी हो गई. भोजन तो किसी को मेरे बाप ने भी नहीं कराया तो मैं क्या कराऊंगा.” सभी ब्राह्मणों को काटो तो खून नहीं वाली हालत थी. |
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चार वचन
एक नौजवान गलत रास्ते पर चल कर अपना जीवन नष्ट कर रहा था. वह बुरी संगत में फंस कर, जूए और तवायफों के चक्कर में पड़ गया था. उसके पिता को इसके बारे में मालूम था लेकिन वह इसका कोई इलाज नहीं कर सके. मृत्यु को निकट जान कर उन्होंने अपने पुत्र को बुलवाया और उससे चार वचन लिए. ये चारों वचन लेने से पहले पिता ने उसे यह कहा कि :-- 1. तुम्हारा जितना मन करे उतनी पियो लेकिन हफ्ते में एक दिन शराब न पी कर सिर्फ यह देखो कि शराब पीने के बाद तुम्हारे मित्रों का क्या हाल होता है. 2. अगर जुआ खेलना है तो सिर्फ ऐसे खिलाड़ी से खेलो जो तुम से अधिक अनुभवी हो और अपने फन में माहिर हो. 3. मुझे पता है कि तुम तवायफों के यहाँ भी जाते हो. मैं चाहता हूँ कि तुम किसी दिन सुबह किसी तवायफ के यहाँ जाओ और उसके जीवन की हकीकत को नज़दीक से अपनी आँखों से देखो. 4. अंत में, मुझे वचन दो कि तुम अपने जीवन में बुजुर्गों पर भरोसा रखोगे. उनकी सलाह हमेशा व्यवहारिक होती है क्योंकि इसमें उनका तजुरबा घुला होता है. मरणासन्न पिता की अंतिम इच्छा का पालन करते हुए पुत्र ने यह चारों वचन अपने पिता को दिये. पिता की मृत्यु के बाद उसने वो चारों वचन मन में धारण कर लिए. उसने अपने पिता के कहे अनुसार ही बर्ताव किया. समय व्यतीत होने के साथ ही उस नौजवान के जीवन में परिवर्तन आने लगा. उसने कुछ ही समय में जुआ खेलना, शराब पीना और तवायफ़ों के यहाँ जाना बंद कर दिया. पिता को दिए अंतिम वचन के अनुसार उसने बड़े बुजुर्गों के पास बैठना शुरू कर दिया जिससे वो लोग भी उससे स्नेह रखने लगे. जिस राज्य में यह नौजवान रहता था वहां के राजा की एक बहुत सुन्दर कन्या थी. जब राजकुमारी विवाह योग्य हुयी तो राजा ने अपने प्रधानमंत्री से इस बारे में मंत्रणा की कि राजकुमारी के लिए सुयोग्य वर कैसे ढूँढा जाये. राजकुमारी यह बातचीत सुन रही थी. वह राजा के सामने आ कर बोली कि उसकी एक शर्त है. वह उसी से शादी करेगी जो उसकी शर्तों को पूरा करेगा. “वह क्या है, बेटी?” राजा ने पूछा. उसने कहा कि मैं विवाह के इच्छुक उम्मीदवार को मेरे द्वारा पूछे हुये प्रश्नों का उत्तर देना होगा. यदि उसने मेरे प्रश्नों का ठीक ठीक उत्तर दे दिया तो मैं उससे ख़ुशी ख़ुशी विवाह कर लूंगी. राजा से इसकी अनुमति मिलने के बाद प्रतियोगिता के दिन निश्चित कर दिये गये और राज्य भर में घोषणा कर दी गई. |
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निश्चित दिनों और स्थान पर राज कुमारी से विवाह के इच्छुक नवयुवक आने लगे. राजकुमारी ने प्रतियोगिता शुरू करते हुए पहले प्रतियोगी से प्रश्न पूछा,
“बत्तीस कीले, पांच मोड़ जो ल्यावे, वो नर ब्याह मुझे ले जावे.” वह इसका कोई उत्तर न दे पाया. इसी प्रकार राजकुमारी हर प्रतियोगी से यही प्रश्न पूछती लेकिन कोई भी उसका संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया. शाम होने को आई. उस राज कुमारी की ख़ास सेविका महल के द्वार पर ही खड़ी थी और हर आगंतुक के सम्मुख यह प्रश्न कह सुनाती. लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला. इसी बीच, हमारी कहानी का नायक भी राजकुमारी की इन शर्तों के बारे में सुन चुका था. वह एक ऐसे स्थान पर पहुंचा जहाँ बहुत से बुजुर्ग रोज बैठे कर जन सामान्य से जुड़े मसलों पर चर्चा किया करते थे. वे उस नौजवान को अब पहचानने लगे थे. उसने उनके समक्ष राज कुमारी की शर्तों के बारे में चर्चा की. वह राजा के महल में जा पहुंचा. उसने महल के बाहर खड़ी दासी को एक पोटली दे कर कहा कि इस पोटली को वह अपनी राज कुमारी को दे दे. उसने अपनी एक शर्त भी राजकुमारी के लिए कह सुनाई. उसने राजकुमारी को उस नवयुवक, उसकी पोटली और उसकी शर्त के बारे में भी बताया. राजकुमारी ने उस नौजवान को महल में बुला लिया. वह राजकुमारी से कुछ दूरी पर खड़ा हो गया और फिर उसने राजकुमारी को संबोधित करते हुए कहा, “खड़ी हो तो आऊं, पड़ी हो तो जाऊं” यह बात सुन कर राजकुमारी ने वापिस उत्तर दिया, “मोंह पे हो तो आजा, नहीं तो जा.” |
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वहां खड़े सभी दास दासियों को, जो यह बातचीत सुन रहे थे, यह बाते कुछ वाहियात, अश्लील व अभद्र लगीं. यह बात राजा के कानों में भी पड़ी. उसने आदेश दिया कि नौजवान को तुरन्त दरबार में प्रस्तुत किया जाए. जब नौजवान को राजा के दरबार में लाया जा रहा था तो उसे राजकुमारी के महल के बाहरी दालान से हो कर जाना था. राजकुमारी की वही दासी वहां खड़ी थी. उसने अपने हाथ में एक रूमाल ले रखा था. जब नौजवान वहां से गुज़रा तो उसने दासी की ओर देखा. दासी ने नौजवान को दिखा कर रूमाल में एक बड़ी गाँठ लगाई. नौजवान ने दासी को ऐसा करते देखा और इसका तात्पर्य समझते हुए आगे बढ़ गया. राजा ने जब उससे उसके और राजकुमारी के बीच हुए अभद्र वार्तालाप के विषय में पूछा तो उसने कोई उत्तर न दिया और मूक बना खड़ा रहा. खैर राजा ने उसे अगले दिन तक की मोहलत दी और कहा कि कल दरबार में उपस्थित हो कर उपरोक्त वार्तालाप के बारे में बयान दे जो बेहूदा, निरर्थक और घटिया प्रतीत हो रहा था. अगले दिन उसे दरबार में फिर हाजिर किया गया. उसी रास्ते से उसे लेजाया गया जहाँ कल उसे राजकुमारी की दासी मिली थी. आज भी दासी वहां खड़ी थी. आज उसने अपने एक हाथ में संतरा पकड़ रखा था और दूसरे में हाथ में एक छुरी पकड़ी हुयी थी. जैसे ही नौजवान उसके सामने से गुज़रा उसने छुरी से संतरे को दो भागों में काट दिया. नौजवान ने दासी की आज की हरकत भी देख ली थी. आज फिर दरबार में राजा ने अपना सवाल दोहराया. नौजवान आज भी चुप रहा और कुछ न बोला. राजा ने उसे सजा का डर भी दिखाया तथा चेतावनी भी दी. उसकी चुप्पी देख कर राजा पहले तो बैचेन हुआ और बाद में क्रोध से लाल पीला होने लगा. खैर, राजा ने कहा कि उस युवक को कल फिर दरबार में प्रस्तुत किया जाए. यदि कल भी नौजवान कोई संतोषजनक उत्तर नहीं देता तो उसे प्रजा के सामने फांसी पर लटका दिया जाएगा. |
Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
अगले दिन भी उसे दरबार में जब लाया जा रहा था तो उसे रास्ते में वही दासी फिर दिखाई दी. आज उसने अपने सर पर पानी से भरा एक घड़ा उठा रखा था. जैसे ही नौजवान उसके सम्मुख आया उसने घड़ा जमीन पर पटक कर फोड़ दिया जिससे पानी चारों ओर बहने लगा. नौजवान दरबार में लाया गया.
राजा ने पुनः अपने प्रश्न को दोहराया और चेतावनी दी कि यदि आज भी वह राजा के प्रश्न का नहीं देगा तो उसे सजाये मौत दी जायेगी. आज नौजवान चुप न बैठा. उसने भरे दरबार में वह सब कह सुनाया जिसे राजा और अन्य सभासद सुनना चाहते थे. वह बोला, “महाराज, राजकुमारी ने उसके सामने जिस बूझ-बुझौवल को रख कर उसका उत्तर जानना चाहा था उससे मालूम हुआ कि राजकुमारी ‘पान’ खाना चाहती थी. ‘बत्तीस कीले’ कहने का अर्थ था कि उसे खाने के लिए कुछ चाहिए. इसके बाद ‘पांच मोड़’ कहने से राजकुमारी का मंतव्य था कि वह खाने की वस्तु हाथों की सहायता से पांच जगह से मोड़ कर तैयार की जाती है. महाराज को ज्ञात होगा कि पान को पांच जगह से मोड़ा जाता है. इस प्रकार राजकुमारी द्वारा पूछी गई बुझौवल का उत्तर था ‘पान’. इसी लिए मैंने राजकुमारी को पान भेट किया था. महाराज, अब से पहले मैंने राजकुमारी को कभी नहीं देखा था. अतः मैं जानना चाहता था कि क्या राजकुमारी वास्तव में सुन्दर है, युवा है और व्यवहार-कुशल है कि नहीं, क्योंकि अपने होने वाले जीवन-साथी में मुझे इन गुणों की तलाश थी. इस वजह से मैं राजकुमारी से मिलना चाहता था. राजकुमारी ने मुझसे मिलना तो स्वीकार किया लेकिन हमारे बीच काफी दूरी रखी गई थी. जब मैं राजकुमारी के सम्मुख गया तो मैंने राजकुमारी से पुछा, “खड़ी हो तो आऊँ, लेटी हो तो जाऊं” इन शब्दों के माध्यम से मैं राजकुमारी से यह जानने की कोशिश कर रहा था कि क्या वह युवावस्था में पदार्पण कर चुकी है और विवाह-योग्य वय में है, अधिक आयु की या बीमार तो नहीं है (क्योंकि बूढ़े और बीमार व्यक्ति अधिकतर बिस्तर पर पड़े रहते हैं). यह सुन कर राजकुमारी ने मेरे कथन का इस प्रकार उत्तर भिजवाया – “मोंह पे हों तो आजा, नहीं तो जा” |
Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
“इन शब्दों के ज़रिये राजकुमारी यह जानना चाहती थी कि क्या मेरे होंटों के ऊपर मूछें आने लगी हैं या नहीं (क्योंकि मसें फूटना या मूछें आना युवावस्था के आगमन की निशानी है) और क्या मैं वाकई एक योग्य नौजवान हूँ. राजकुमारी ने जताया था कि यदि मैं एक नौजवान हूँ तो मेरा स्वागत है अन्यथा मैं जा सकता हूँ. यही मेरी दास्तान है महाराज.”
“यह तो तुम हमें पहले दिन ही बता सकते थे, जब तुम्हें हमने दरबार में बुलवाया था?” राजा ने नौजवान से पूछा. “महाराज, राजकुमारी की इच्छानुसार मैंने इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया था. उस दिन राजकुमारी ने अपनी दासी को भेजा जिसने एक रूमाल में गाँठ बाँध कर मुझे कुछ भी बोलने से मना कर दिया था.” “लेकिन दूसरे दिन भी तुम मौन रहे और कोई उत्तर नहीं दिया. क्यों?” “पहले की तरह दूसरे दिन भी राजकुमारी ने अपनी दासी को भेजा, जिसने एक छुरी से संतरे को दो हिस्सों में काट कर मुझे यह सन्देश देने की कोशिश की कि मैं अपनी जुबां बंद रखूँ चाहे मेरा सिर धड़ से अलग कर दिया जाए. आज सुबह जब मैं दरबार की ओर आ रहा था तो मैंने राजकुमारी की दासी को देखा जिसने अपने सिर पर पानी से भरा घड़ा रखा हुआ था. जब मैं उसके निकट पहुंचा तो दासी ने घड़े को जमीन पर दे मारा जिसे बह टुकड़े टुकड़े हो गया और उसका पानी चारों ओर बिखर गया. इस तरह राजकुमारी मुझे यह सन्देश देना चाहती थी कि अब मैं आपके सामने भरे दरबार में सारे घटनाक्रम का ‘भांडा फोड़’ सकता हूँ अर्थात सारा रहस्य बता सकता हूँ. इस घटना के कुछ दिन बाद ही राजकुमारी और उस नौजवान की शादी बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हुयी. ***** |
Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
आज हमें परिवार, समाज और अपने आसपास पारख साहब जैसे लोगों की बड़ी कमी महसूस होती है जो अपनी समझदारी, अनुभव तथा हाजिर जवाबी से वातावरण को खुशनुमा तथा जीवंत बना देते हैं. उनकी सादगी, उनकी हँसी, उनकी जीवन्तता व उनका आत्म-अनुशासन कम देखने को मिलता है. उन जैसे लोग अब क्यों नहीं मिलते? उनको याद करते ही हमारे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है.
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