बेगानी लड़ाई में पाक फिर होगा 'दीवाना'?
सऊदी अरब ने यमन के हालात से निपटने के लिए पाकिस्तानी फ़ौज से मदद मांगी है.
यमन में पिछले कई दिनों से सरकार और शिया हूती विद्रोहियों के बीच भीषण संघर्ष चल रहा है. वहां फ़िलहाल विद्रोहियों से निपटने के लिए सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब गठबंधन सेना का हवाई अभियान जारी है. पाकिस्तान पर सऊदी अरब का ख़ासा राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव रहा है. अब पाकिस्तान पसोपेश में है कि वह क्या करे? क्या वो आंखें मूंद कर सऊदी अरब की मदद के लिए इस जंग में कूद पड़े या फिर सोच-समझ कर कदम उठाए? |
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फ़ौजी मदद या सौदा?
पाकिस्तान ने इससे पहले कई बार दूसरे मुल्कों में ख़ासकर गैर संयुक्त राष्ट्र अभियानों पर फ़ौजें भेजी हैं. यदि यूएन चार्टर से अलग होकर देखा जाए तो पाकिस्तान ने 60 के दशक में मध्य पूर्व को फ़ौजी सहायता देने से शुरुआत की थी. 1967 में अरबों-इसराइल के बीच छह दिन के युद्ध में भी पाकिस्तान पायलट अरब देशों की तरफ़ से लड़े. अरब देशों के अनुसार यह लड़ाई वो फ़लस्तीनियों को उनकी ज़मीन दिलाने के लिए लड़ रहे थे. पाकिस्तान ने तब जॉर्डन, सीरिया और मिस्र के जहाज उड़ाए थे. 1969 में सऊदी अरब ने दक्षिण यमन पर हमला बोला था तब भी पाकिस्तानी फ़ौजों ने उनका साथ दिया था. |
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1970 में पाकिस्तान ने जॉर्डन की तरफ़ से फ़लस्तीनियों पर हमले किए और जॉर्डन के शाह हुसैन को अपना शासन बचाए रखने में मदद की.
यमन संघर्ष पाकिस्तानी अभियान में ज़िया-उल-हक़ ने बड़ी भूमिका निभाई. ज़िया-उल-हक़ बाद में पाकिस्तान में राष्ट्रपति बने. 1973 में अरब-इसराइल संघर्ष के दौरान भी पाकिस्तान ने तब जॉर्डन, सीरिया और मिस्र के जहाज उड़ाए थे. 1980-1989 तक पाकिस्तानी सेना ने सऊदी अरब और अमरीका से भारी आर्थिक और सैन्य मदद ले कर अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सैन्य मदद की. 1994-2001 के बीच पाकिस्तान ने तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़े के लिए युद्ध में कई तरह से मदद की. 2001- 2012 में 9/11 के हमले के बाद अमरीका के वॉर ऑन टैरर में शामिल हो गया और उसे अपने देश में ड्रोन विमानों के लिए बेस दिए और उसके कहने पर सैन्य अभियान चलाए. |
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और भी हैं मजबूरियां
सऊदी अरब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को काफ़ी सहारा देता आया है. पिछले साल पाकिस्तान को डेढ़ अरब डॉलर सऊदी अरब से मदद के रूप में मिले थे. साल 1998 में परमाणु विस्फोट करने के बाद पाकिस्तान आर्थिक रूप से लगभग दिवालिया हो चुका था. उस ज़माने में सऊदी ने पाकिस्तान को सीधे तौर पर तो कोई आर्थिक मदद नहीं की लेकिन पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण तेल सुविधा ज़रूर शुरू की थी. पाकिस्तान को दी जाने वाली इस सुविधा के तहत सऊदी अरब ने तीन से चार अरब डॉलर का तेल उन्हें लंबे उधार पर दे दिया. पाकिस्तान ने अब तक इसका कोई भुगतान नहीं किया. इसके अलावा जब भी पाकिस्तान के रुपए में या भुगतान संतुलन की दिक्कत सामने आती है सऊदी अरब 40-50 करोड़ डॉलर की मदद दे दिया करता है. एक अंदाज़ के मुताबिक पाकिस्तान के लगभग 15-20 लाख लोग सऊदी अरब में काम करते हैं जो सऊदी अरब से पाकिस्तान में पैसा भेजते हैं. |
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राजनीतिक वजह
पाकिस्तान की सऊदी अरब को मदद से इंकार करने की संभावना राजनीतिक और कूटनीतिक कारणों से कम है. इसके पीछे बड़ी वजह ये है कि सऊदी अरब का पाकिस्तान की राजनीति पर बाहरी तौर पर तो नहीं लेकिन भीतरी तौर पर काफी असर रहता है. पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के ज़माने में भी सऊदी अरब का काफी असर रहा. 1999 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की सरकार के तख़्तापलट के समय भी शरीफ़ की जान बचाने में सऊदी अरब ने मदद की और उन्हें अपने देश में पनाह दी. नवाज़ शरीफ से जुड़े इस बेहद निजी पहलू के कारण पाकिस्तान मदद से कैसे मना करे, ये भी एक सवाल है. समर्थन और विरोध पाकिस्तान के सऊदी अरब की मदद के लिए फ़ौज भेजने की बात पर कुछ समूह साथ हैं तो कुछ इसका विरोध कर रहे हैं. पाकिस्तान में सत्ताधारी पार्टी पीएमएल-नवाज़ के राजनेता चाहते हैं कि सऊदी अरब की मदद की जाए. फ़ौज की तरफ़ से भी ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई कि पाकिस्तान जंग से दूर रहे. देश में जमात-उद-दावा या लश्कर-ए-तैयबा, अहले सुन्नत वल जमात जैसी सुन्नी कट्टरपंथी ताक़तें हैं, देवबंदी पार्टी या एहले-हदीस की पार्टी जैसे वहाबी सोच रखने वाले लोग फ़ौज भेजने के समर्थन में हैं. लेकिन बरेलवी या शिया लोग या तो जंग में शामिल होने के ख़िलाफ़ हैं या फिर एक मध्यम मार्ग चाहते हैं, यानि सोच समझ कर जंग में कदम रखने के पक्ष में हैं. |
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