" कबीर के दोहे "
ठाडे बिटपर निकट कटिपर कर पीतांबर धारी ।
शंख चक्र दो हात बिराजे गोवर्धन गिरिधारी ॥ |
Re: " कबीर के दोहे "
मदन मुरत खुब सुरत बनी हे नटनागर ब्रजवासी ।
अतसीकुसुमसम कांति बिराजत मोर मुगुट गला तुलशी |
Re: " कबीर के दोहे "
भीमाके तट निकट पंढरपुर अजब छत्र सुखदाई ।
टाल बिना और मृदंग बजावत संतनकी बादशाही ॥ |
Re: " कबीर के दोहे "
भजन पूजन करिकीर्तन निशिदिनी गावत हरिलीला ।
प्रेमसुखकू लंपट बैठकर पुंडलीक मतवाला ॥ |
Re: " कबीर के दोहे "
छाडे किया बैकुंठसुख हरी भाव भगतका भूका ।
कहत कबीर हरीसे मीठा लागत तुलशी बुका ॥ |
Re: " कबीर के दोहे "
हमसफ़र जी कबीर के दोहे तो काफी अच्छे है, share करने के लिए थैंक्स.
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Re: " कबीर के दोहे "
निकट भीमाके तट ठारे कर रखाये कट ।
देखो ऐसा मुरशद मौला करो नामसे लूट ॥ |
Re: " कबीर के दोहे "
भगत पुंडलीक उनोदे खातर बैकुंठ छोड आयो ।
भीमा किनारे पग जोगकर ठारा बीटपर रहायो ॥ |
Re: " कबीर के दोहे "
गावत नाचत सबही संत नर और नारी ।
परचित देखो समाधी उन्मनी डारे सबसे फेरी ॥ |
Re: " कबीर के दोहे "
कहत कबीर सुनो भाई साधु तुलसी और बुका ।
और कुच मांगे नहीं भाव भक्तीसे भूका ॥ |
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